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क्या है हवाला, जिसका नाम सुनते ही हर नेता थर्राने लगता है?

भारतीय राजनीति ने सबसे पहले इसकी गूंज सुनी 1993 में.

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19 मई 2017 (Updated: 19 मई 2017, 01:52 PM IST)
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कपिल मिश्रा हर रोज केजरीवाल पर नया आरोप लगा रहे हैं. 2 करोड़ की रिश्वत के बाद अब उन्होंने केजरीवाल पर हवाला कंपनियों ने पैसा लेने का आरोप लगाया है. राजनीतिक उठा-पटक अपनी जगह, आज हम आपको बताएंगे कि असल में हवाला है किस बला का नाम?
क्या होता है हवाला दरअसल हवाला शब्द अरब से चल कर यहां तक पहुंचा है. इसका पहला जिक्र हमें आठवीं शताब्दी में मिलता है. भूमध्य सागर से दक्षिण चीन सागर तक साढ़े छह हजार किलोमीटर लंबा व्यापार मार्ग था, सिल्क रूट. यह मार्ग अफ्रीका, एशिया और यूरोप को आपस में जोड़ता था. इस रास्ते पर अक्सर लूट-पाट की घटनाएं होती रहती थीं. इससे बचने के लिए व्यापरियों ने एक तरकीब सोची. व्यापारियों ने तय किया कि वो आपस में एक ख़ास किस्म का टोकन रखेंगे. जब अरब से कोई आदमी चीन की तरफ जाएगा तो अरब का व्यापारी उसे ये टोकन देगा और एक खास व्यापारी का पता भी. चीन का व्यापारी उस टोकन को रख लेगा और उसे तय रकम का भुगतान कर देगा.
 
हुंडी
हुंडी

 
इस टोकन को अलग-अलग भाषा में अलग-अलग नाम मिला. जैसे भारत में इसे हुंडी के नाम से जाना जाता है. सोमालिया में यह जवाला हो जाता है. अरब लोग इसे हवाला कहते हैं. इसे हम उस समय की बैंकिंग के रूप में समझ सकते हैं. पुराने समय में किसी व्यापारी की साख इस बात से तय होती थी कि उसकी हुंडी कहां तक चलती है.
धीरे-धीरे बढ़ती व्यापारिक जरूरतों के चलते 1695 में बैंक ऑफ़ इंग्लैंड की शुरुआत हुई. इसे हम आधुनिक बैंकिंग का प्रस्थान बिंदु मान सकते हैं. लेकिन हवाला कभी बंद नहीं हुआ. आधुनिक बैंकिंग ने लेन-देन के रिकॉर्ड को आसान बना दिया. लेन-देन के इस दस्तावेजीकरण ने सरकार के लिए कर चोरी करने वालों तक पहुंचना आसान बना दिया. गलत तरीके से कमाए गए पैसे और कर की चोरी करने वालों ने सदियों से आजमाई हुई हवाला व्यवस्था का सहारा लिया. आज ये गैरकानूनी तरीके से पैसा इधर से उधर करने का सबसे बड़ा जरिया बन गया है.
राजनीति का सबसे बदनाम शब्द
दरअसल भारतीय राजनीति ने सबसे पहले इसकी गूंज सुनी 1993 में. जनसत्ता में जून 1993 में एक स्टोरी छपी. लेकिन मामला दो साल पुराना था. 1991 में दिल्ली पुलिस ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के एक छात्र शहाबुद्दीन गोरी को जामा मस्जिद इलाके से गिरफ्तार किया. कश्मीरी आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने के संदेह में. मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. इसके बाद ये मामला परत दर परत खुलता चला गया.
 
indiatodayhawala

 
गोरी की निशानदेही पर सीबीआई ने साकेत में रहने वाले जैन बंधुओं के घर पर छापा मारा. इस छापे के दौरान सीबीआई को चार जैन बंधुओं में से एक सुरेंद्र कुमार जैन की विस्फोटक डायरी भी मिली थी. इस डायरी में 115 बड़े अफसरों और नेताओं के नाम दर्ज थे, जिन्हें 64 करोड़ रुपए अदा किए गए थे. लालकृष्ण आडवाणी, मदनलाल खुराना, विद्याचरण शुक्ल, नारायणदत्त तिवारी, बलराम जाखड़ जैसे बड़े नाम भी शामिल थे. इस खुलासे ने भारतीय लोकतंत्र में भूचाल ला दिया था. हालांकि इस मामले में कानूनी कार्रवाई सिफर साबित हुई और सीबीआई की भूमिका संदिग्ध साबित हुई. राजनीति का यही इतिहासबोध 'हवाला' को विस्फोटक शब्द बनाता है.
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