जानिए, ग्रेच्युटी का नया क़ानून बनते ही आपको कितना फ़ायदा होने वाला है
ग्रेच्युटी क्या होती है, कैसे कैल्क्यूलेट की जाती है, पूरी जानकारी यहीं मिलेगी

मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है. ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है.इस कथन में ऊपरी आय का आशय ‘अंडर द टेबल’ कमाई से है. लेकिन अगर ध्यान दें तो एक नौकरीपेशा आदमी या परिवार के लिए हर वो आय प्यास बुझाने का स्रोत है, जो वो सैलरी के अलावा पाता है. लीगल और नैतिक भी. जैसे इंक्रीमेंट और उसका एरियर, दिवाली का बोनस, सेल्स-इंसेंटिव, मैच्योर्ड हुई कोई पॉलिसी या फिर ग्रेच्युटी वग़ैरह.
- ‘नमक का दारोग़ा’ (मुंशी प्रेमचंद)
एक मध्यम-वर्गीय परिवार में सैलरी कैसे खपनी है, इसका तो पूरा बजट बना रहता है. लेकिन फ़्रिज, एसी, टीवी, कार और कई बार नए कपड़ों के लिए भी सैलरी-पेशा इन ऊपरी कमाइयों पर निर्भर रहता है. इन्हीं लीगल ऊपरी कमाइयों में से एक है ग्रेच्युटी.
# ग्रेच्युटी
गूगल इस शब्द के हिंदी में कई अर्थ बताता है. उपदान, आनुतोषिक, पुरस्कार, ऐच्छिक दान…
अगर आप किसी कंपनी में 5 साल काम कर चुके होते हैं तो आप ग्रेच्युटी के लिए पात्र हो जाते हैं. अब सवाल ये कि ग्रेच्युटी कब मिलेगी? जब कर्मचारी, कंपनी से त्यागपत्र देगा, रिटायर होगा, निकाला जाएगा या उसकी मृत्यु हो जाएगी तब. तीसरा सवाल ये कि कितनी मिलेगी? एक लाइन में याद करना हो तो-
जितने साल कंपनी में किसी एम्प्लॉई को हुए हैं, उतने सालों के हिसाब से 15 दिन की तनख़्वाह.ये ओवर-सिंपलीफ़ाई करके बताया हमने. चलिए दो उदाहरणों से और समझते हैं.
#1) राज जी.जे. मल्होत्रा, कानपुर में चमड़े का जूता बनाने वाली फ़ैक्ट्री में 20 सालों से काम कर रहे हैं. अब वो रिटायरमेंट चाहते हैं. तो उन्हें कितनी ग्रेच्युटी मिलेगी?
> सबसे पहले तो ये देखा जाएगा कि उनकी लास्ट तनख़्वाह कितनी थी? इससे मतलब नहीं है कि 20 साल पहले उनकी सैलरी कितनी थी. न इससे मतलब कि उनके कितने इंक्रीमेंट, कितने प्रमोशन हुए. तो राज मल्होत्रा की लास्ट ड्रॉन सैलरी थी- 23,500 रुपये.
> लेकिन मल्होत्रा जी को इन 23,500 रुपयों के हिसाब से ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी. अब ये देखा जाएगा कि राज मल्होत्रा की इस अंतिम सैलरी में ‘बेसिक सैलरी + महंगाई भत्ता’ कितना है. जो ऑफ़ कोर्स कुल तनख़्वाह से कम ही होगा. राज के केस में ये अमाउंट बनता है 15,000 रुपये.
> अब ये 15,000 रुपये हुई एक महीने की तनख़्वाह. अब इस हिसाब से 15 दिन की तनख़्वाह कितनी बनी? आसान सा गणित है. एक दिन की तनख़्वाह निकालो, उसे 15 से गुणा कर दो. कुछ लोग पूछेंगे कि एक दिन की तनख़्वाह कैसे निकालें? महीने वाली तनख़्वाह को, महीने के दिनों से डिवाइड कर दो. यानी 26 से. 30 से क्यूं नहीं? ये फ़िगर सोच समझ के रखा गया है. 4 दिन जो आपकी छुट्टी होती है, उसे हटा दिया गया है. तो यूं राज की एक दिन की तनख़्वाह कितनी हुई? 15,000/26 = 577 रुपये. तो फिर राज की 15 दिन की तनख़्वाह कितनी हुई? 577*15 = 8,655.

>> यानी राज को 20 साल की नौकरी में हर साल के 8,655 रुपये मिलेंगे. या कुल 20*8655 = 1,73,100 रुपये मिलेंगे.
यूं राज, जिन्होंने 20 साल नौकरी की और जिनकी लास्ट सैलरी 25,000 है, लेकिन सैलरी स्लिप में ‘बेसिक सैलरी + महंगाई भत्ता’ वाला कंपोनेंट 15,000 रुपये है, की नौकरी छोड़ते वक़्त ग्रेच्युटी बनी 1,73,100 रुपये.
इस फ़ॉर्मूले को सब कांट-छांटकर लिखते हैं तो बन जाता है-
G= 15*n*y/26
G = ग्रेच्युटी, n = अंतिम सैलरी का 'बेसिक + महंगाई भत्ता' वाला कंपोनेंट, y = कुल वर्ष.
#2) बुधिया, हनी फार्मास्यूटिकल्स में पिछले 3 साल से हैं. एज़ अ क्वालिटी हेड. अब वो दूसरी कंपनी जॉइन करने वाले हैं. हनी फार्मास्यूटिकल्स में उनकी अंतिम तनख़्वाह 3,35,400 रुपये प्रति माह थी. तो उनकी ग्रेच्युटी कितनी बनेगी? जी सही गेस किया. इल्ले. कुछ नहीं. ज़ीरो. शून्य. सिफ़र. क्योंकि उन्हें नौकरी करते हुए 5 साल नहीं हुए हैं, तो ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी.# क्यूरियस केस ऑफ़ ग्रेच्युटी
अच्छा एक बात बताइए, ऐसा तो होगा नहीं कि लोग साल पूरा होने पर ही नौकरियां छोड़ें. कोई 20 साल 7 महीने में छोड़ेगा, कोई 6 साल 3 महीने में. तो उन केसों में ग्रेच्युटी की गणना कैसे की जाएगी?
सिंपल है. 6 महीने से कम समय को शून्य वर्ष और 6 महीने या उससे ज़्यादा समय को एक वर्ष कंसीडर किया जाएगा. यानी 20 साल 7 महीने में नौकरी छोड़ने वाले को 21 साल के हिसाब से और 6 साल 3 महीने में नौकरी छोड़ने वाले को 6 साल के हिसाब से ग्रेच्युटी मिलेगी.
और इसी के चलते, जिनकी 4 साल 6 महीने से ज़्यादा की नौकरी हो जाती है, वो भी ग्रेच्युटी लेने का दावा पेश करते हैं, और केस जीतते भी हैं.

एक और स्थिति है, जिस दशा में 5 साल की सर्विस कंप्लीट न होने के बावज़ूद आप अपना लक आज़मा सकते हैं. कब और कैसे? देखिए ग्रेच्युटी के नियमों के अनुसार, वही साल 5 साल की सर्विस में काउंट होंगे, जिनमें आपने 240 दिन काम किया है. अब ये लग तो रेस्ट्रिक्शन सा रहा है- कि मान लो आपने किसी कंपनी में 6 साल काम किया, लेकिन इसमें से 2 साल ऐसे थे, जिनमें आपने 240 दिन काम नहीं किया. तो ऐसे में आपके 6 नहीं सिर्फ़ 4 साल कंपनी के साथ माने जाएंगे. और आप ग्रेच्युटी के लिए पात्र नहीं होंगे. लेकिन इस नियम का दूसरा पक्ष देखिए. अगर आपको किसी कंपनी में 5 साल पूरे नहीं हुए, लेकिन पांचवे साल में आप 240 दिन या 8 महीने काम कर चुके हैं तो आप ग्रेच्युटी के पात्र हो जाते हैं. वेल टेक्निकली. और मद्रास हाई कोर्ट ने एक फ़ैसले में इस बात की पुष्टि भी की है.
लेकिन ये दो पॉइंट केस-टु केस वेरी करने वाले, एक्सेप्शनल हैं. रूल्स नही. एक चीज़ जो निश्चित है, वो ये कि 5 पूरे साल कंप्लीट हुए तो फिर आपको ग्रेच्युटी के लिए चिंता करने की ज़रूरत नहीं. बाक़ी तो यही है कि अपने अधिकारों को लेकर How far you can go.
और वैसे भी इन दो पॉइंट्स के विरोध में ये दलील दी जा सकती है कि ग्रेच्युटी की पात्रता कैसे नापें, ये एक अलग चीज़ है. उसका कैल्क्युलेशन कैसे किया जाना चाहिए, ये अलग बात है.
# ग्रेच्युटी क्यूं?
आप शायद ये भी सोच रहे हों कि ग्रेच्युटी क्यूं दी जाती है. कंपनी को क्या पड़ी है. ये कर्मचारी को कंपनी की तरफ़ से दिया जाने वाला वफ़ादारी का इनाम है. अगर लोग ज़ल्दी-ज़ल्दी नौकरी छोड़ेंगे तो कंपनी को नए कर्मचारियों को फिर से वही सब सिखाना पड़ेगा. रिसोर्स लगेंगे. पैसे लगेंगे. इसीलिए कर्मचारियों को लंबे समय तक किसी कंपनी से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते ग्रेच्युटी इंट्रोड्यूस की गई. 1972 में. सरकार द्वारा. आवश्यक रूप से. मतलब हर उस कंपनी को देनी होगी, जिसमें 10 या 10 से ज़्यादा कर्मचारी होंगे.
लेकिन ये साल 1972 नहीं है. ये है साल 2020. और बीते कुछ समय में बहुत कुछ बदल गया है. और यही हमारे वीडियो बनाने की वजह है. हमने सोचा कि आपको बता दें क्योंकि टीवी पर तो केवल ड्रग्स चल रहे हैं. खैर.
# ये ख़बर क्यूं?ग्रेच्युटी की कैल्क्यूलेशन करना हमें आ गया है. लेकिन इसमें एक पॉइंट हमने आपको पहले नहीं बताया. वो ये कि किसी भी कर्मचारी को 20 लाख से ज़्यादा की ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी. दुखी मत होइए, ख़ुश होइए. क्यूंकि पहले ये सीमा 10 लाख थी. पीयूष गोयल ने 2019 का बजट पेश करने के दौरान ये सीमा बढ़ा दी थी.
और जो लेटेस्ट अपडेट है, वो ये कि अब ग्रेच्युटी के लिए आपको 5 साल इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा. ऐसा कुछ रिपोर्ट्स में आपने भी पढ़ा होगा. लेकिन ये आधा ही सच है. कैसे?
# जो फ़िक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले कर्मचारी हैं, उन्हें उतने दिनों के ‘प्रो रेटा’ आधार पर ग्रेच्युटी मिलेगी, जितने दिनों का कॉन्ट्रैक्ट है. ‘प्रो रेटा’ मतलब, अगर फ़िक्स्ड टर्म कॉन्ट्रैक्ट छह महीने या सवा साल का है तो आप नीचे वाले समीकरण में y के स्थान पर क्रमशः (.5) या (1.25) भी डालकर ग्रेच्युटी कैल्क्युलेट कर सकते हैं.23 सितंबर, 2020 को राज्यसभा में तीन प्रमुख श्रम सुधार विधेयकों को मंज़ूरी मिली है. 22 सितंबर को लोकसभा इन पर मुहर लगा चुकी थी. बस राष्ट्रपति के सिग्नेचर हुए, और ये बन जाएगा क़ानून. बहुत सी बातें हैं इसमें. पर हम ग्रेच्युटी से जुड़ी बातों पर फोकस करेंगे. क़ानून का रूप लेते ही 5 साल वाली कैपिंग ख़त्म हो जाएगी, ये कहना अनुचित होगा. दरअसल अब ग्रेच्युटी कई कारकों पर निर्भर करेगी. जैसे आप क्या जॉब करते हैं? आपका आपकी कंपनी के साथ क्या रिश्ता है? (मतलब आप परमानेंट हैं, कॉन्ट्रैक्ट पर हैं या सीज़नल हैं?) जैसे-
15*n*y/26
#मिंट की खबर के अनुसार, इस क़ानून के बाद भी रेगुलर और परमानेंट कर्मचारियों के लिए सीमा 5 वर्ष की ही है. मतलब कोई बदलाव नहीं. पूरी खबर यहां पढ़ सकते हैं
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# वर्किंग-जर्नलिस्ट के लिए ये सीमा घटाकर 3 वर्ष कर दी गई है. यहां पर ‘वर्किंग-जर्नलिस्ट’ बहुत स्पेसिफ़िक तरीक़े के पत्रकार हैं. जिसकी अपनी कानूनी परिभाषा है. यहां पढि़ए.
# सीज़नल वर्कर्स को हर सीज़न में 7 दिन की सैलरी के बराबर ग्रेच्युटी मिलेगी. सीज़नल वर्कर्स कौन? हो सकता है पटाखे बनाने वाली कंपनी को हर साल दिवाली के दौरान ज़्यादा कर्मचारी चाहिए हों, ये सब केवल कुछ महीनों के लिए काम करेंगे. ऐसे लोग.
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