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वशिष्ठ नारायण सिंहः वो महान गणितज्ञ जिसे बीमारी ने न जकड़ा होता तो देश को दूसरा आर्यभट मिल जाता

जानिए बिहार से अमेरिका तक का उनका पूरा सफर.

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अक्सर एक पेंसिल और नोटबुक साथ रखते. और मैथ्स के फॉर्मूलों से पन्ने भरते.
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आयुष
14 नवंबर 2019 (Updated: 18 नवंबर 2019, 03:14 PM IST)
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बिहार का भोजपुर जिला. शहर आरा. आरा से 12 किलोमीटर दूर एक गांव है - वसंतपुर. किसी रैंडम आरा वाले से वसंतपुर का पता मत पूछिएगा. शायद उसे एक बार को सोचना पड़े. पूछिएगा कि 'वशिष्ठ बाबू का गांव' कहां हैं? आपको वसंतपुर का पता मिल जाएगा. शायद यही वो अवस्था है जब कोई गंवैया अपने गांव का नाम रोशन कर देता है.
ये इसी गांव का नाम रोशन करने वाले की कहानी है. वशिष्ठ नारायण सिंह की कहानी.
साल 1946 था. वसंतपुर में लाल बहादुर सिंह और ल्हासा देवी के घर एक बच्चे ने जन्म लिया. नाम रखा गया वशिष्ठ नारायण सिंह.
वशिष्ठ भगवान राम के गुरु का नाम था. ये लड़का भी आगे चलकर प्रोफेसर ही बना. शायद वशिष्ठ के मम्मी-पापा रामायण के फैन थे. तभी तो वशिष्ठ के बड़े भाई का नाम अयोध्या और छोटे का नाम दशरथ रखा.
पापा पुलिस कॉन्स्टेबल थे. घर में गरीबी पसरी थी. वशिष्ठ नरायाण पढ़ने में खूब तेज़. इतना तेज़ कि गरीबी को पीछे छोड़ दिया. ऐसे बच्चों के लिए अंग्रेज़ी का एक शब्द है - प्रॉडिजी. और इस प्रॉडिजी ने अपनी तेज़ी के बूते नेतरहाट विद्यालय में एडमिशन पा लिया.इनके बड़े भाई अयोध्या सिंह इनके कई किस्से सुनाते हैं. इनके बारे में जो भी जानकारी है वो उन्हीं के हवाले से है.
इनके बड़े भाई अयोध्या सिंह इनके कई किस्से सुनाते हैं. इनके बारे में ज़्यादातर जानकारी है उन्हीं के हवाले से है.
नेतरहाट विद्यालय. रांची से करीब 160 KM दूर बसा रेसिडेंशियल स्कूल. उत्तर भारत के सबसे बेहतरीन स्कूलों में से एक. इस स्कूल का पहला इंट्रोडक्शन ये है कि यहां के बच्चे बोर्ड में टॉप करते हैं. और वशिष्ठ नारायण सिंह जैसे स्टूडेंट्स इस इंट्रोडक्शन में सीमेंट भरते हैं. वशिष्ठ ने मैट्रिक और इंटरमीडिएट में बिहार स्टेट टॉपर्स की लिस्ट में झंडा गाड़ दिया. उस समय बिहार और भी बड़ा राज्य हुआ करता था. तब झारखंड भी इसी सूबे का हिस्सा था.
नेतरहाट विद्यालय के बाद वशिष्ठ पटना साइंस कॉलेज के लिए निकल गए. B.Sc. इन मैथेमैटिक्स ऑनर्स. यहां से वशिष्ठ और गणित का नाता सदा-सदा के लिए जुड़ गया. यहीं वशिष्ठ नारायण सिंह की मुलाकात प्रोफेसर जॉन कैली से हुई. एक वाकया है -
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफेर्निया, बर्कली(UCB) के प्रोफेसर जॉन कैली पटना आए थे. एक मैथ्स की कॉन्फ्रेंस के लिए. प्रोफेसर कैली ने गणित के पांच कठिन सवाल उछाले. कॉन्फ्रेंस में वशिष्ठ नारायण सिंह भी मौजूद थे. वशिष्ठ ने पांचों सवाल सॉल्व कर दिए. और वो अलग-अलग तरीकों से. प्रोफेसर कैली नंबर्स की ऐसी समझ देख कर इंप्रेस हो गए. और उन्होंने वशिष्ठ नारायण सिंह को अमेरिका बुला लिया.
प्रोफेसर जॉन कैली कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मैथ्स डिपार्टमेंट के HoD थे. (सोर्स - विकिमीडिया)
प्रोफेसर जॉन कैली कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मैथ्स डिपार्टमेंट के HoD थे. (सोर्स - विकिमीडिया)
इस वाकये ने वशिष्ठ नारायण सिंह को एस्केप वेलोसिटी दे दी. और बिहार के इस लड़के ने बर्कली की फ्लाइट पकड़ ली. फ्लाइट की टिकट्स और स्कॉलरशिप का इंतज़ाम प्रोफेसर कैली ने ही किया था. प्रोफेसर जॉन कैली के सुपरविज़न में वशिष्ठ ने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफॉर्निया से अपनी PhD पूरी की. इनके थीसिस का सब्जेक्ट था - 'Reproducing Kernels and Operators with a Cyclic Vector'. ये साल 1969 की बात है. वशिष्ठ नारायण सिंह अब डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह हो चुके थे.
अपनी PhD के बाद डॉक्टर वशिष्ठ नारायण सिंह ने स्पेस ऑर्गेनाइज़ेशन नासा की तरफ रुख किया. 1969 में ही नासा का अपोलो मिशन भी लॉन्च हुआ था. वही मिशन जिसने पहली बार इंसान को चांद पर पहुंचाया था. इस मिशन का एक मशहूर किस्सा है-
जब अपोलो मिशन के दौरान कंप्यूटर्स बंद हो गए तब वशिष्ठ नारायण सिंह ने गणित लगाकर एक हिसाब निकाला. जब कंप्यूटर्स चालू हुए तो वशिष्ठ और कंप्यूटर्स का कैल्क्यूलेशन एक ही था.
बीमारी के कारण इनके ख्याल इधर से उधर डोलते हैं. इन्हें भूत-भविष्य का ख्याल भी नहीं रहता.
बीमारी के कारण इनके ख्याल इधर से उधर डोलते हैं. इन्हें भूत-भविष्य का ख्याल भी नहीं रहता.

अब तक बिहार में वशिष्ठ नारायण के नाम का डंका बज चुका था. आसपास से रिश्ते आने लगे. कई साल तक प्रेशर झेला और वशिष्ठ नारायण को हां करनी पड़ी. 1973 में पास वाले गांव की एक लड़की से ब्याह हो गया. ब्याह के महीने भर बाद भैया भौजी को लेकर अमेरिका चले आए.
अमेरिका में इनकी बीवी को इनकी कुछ हरकतें अजीब सी लगीं. एक बार इन्होंने कुछ दवा लेते देख लिया. और यहां से परिवार को वशिष्ठ की मानसिक अस्वस्थता के बारे में पता चला.
पति-पत्नी कुछ दिन अमेरिका में रहे. और कुछ दिनों के बाद इन्हें स्वदेस की याद आई. 1974 में वशिष्ठ भारत लौट आए. और IIT कानपुर में असोसिएट प्रोफेसर बन गए. यहां कुछ परेशानियां झेलने के बाद उन्होंने फिर से जगह बदली. पहले TIFR ज्वाइन किया. फिर कोलकाता स्थित ISI गए.
इस दौरान इनकी मानसिक हालत बिगड़ती जा रही थी. हालत इतनी बिगड़ गई कि इनकी बीवी ने मायके जाने का फैसला कर लिया. 1976 में पत्नी ने डिवोर्स दे दिया. और इस डिवोर्स ने उन्हें अंदर से पूरी तरह हिला दिया. उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया और वो पहले से ज़्यादा हिंसक होने लगे. यहीं से वशिष्ठ नारायण सिंह की लाइफ ने यू-टर्न लिया.
घर वालों ने परेशान होकर इन्हें कांके मेंटल असायलम भेज दिया. यहां पता चला कि वशिष्ठ को स्कित्ज़ोफ्रेनिया नाम की बीमारी है.
स्कित्ज़ोफ्रेनिया में मरीज़ असलियत से नाता खो बैठता है. उसकी लड़खड़ाती ज़ुबान से कुछ ऐसे ख्याल निकलते हैं जो एक-दूसरे से बिलकुल अलग हों.
मैथ्स की दुनिया में रहने वाले वशिष्ठ अब किसी और दुनिया में ही थे. मेंटल असायलम में इनका इलाज हुआ. धीरे-धीरे हालत में सुधार भी होने लगा.
कुछ साल बाद पिताजी का देहांत हो गया. वशिष्ठ अंतिम संस्कार के लिए घर आए. और असायलम वापस लौटने से मना कर दिया. हालत में सुधार था तो अनुमति भी मिल गई. और उन्हें असायलम से डिस्चार्ज कर दिया गया. बड़े भाइया मिलिट्री में थे. पुणे में पोस्टिंग थी. वशिष्ठ नारायण अपने भाई के साथ रहने पुणे चले गए.
1989 में चैक-अप कराने के लिए भाई के साथ रांची जा रहे थे. ट्रेन से बीच रास्ते में गायब हो गए. खूब ढूंढा गया. कोई पता न चला. चार साल बाद कूड़े के ढेर के पास मिले. अपनी एक्स-वाइफ के गांव के पास. तब से घर वालों ने अपनी नज़र से दूर नहीं जाने दिया.
लोकल न्यूज़ पेपर्स ने इसे रिपोर्ट किया. सरकार को मदद देने के लिए मजबूर कर दिया. पहले इन्हें बेंगलुरु स्थित NIHAMS यानी National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences में शिफ्ट किया गया. उसके बाद दिल्ली के IHBAS यानी Institute of Human Behaviour and Allied Sciences में इलाज चला. 2009 में ये वहां से भी घर वापस आ गए. और तब से अपने घर पर ही थे.
बीच में फिर मीडिया रिपोर्ट्स में इनका ज़िक्र आया. पिछले साल खबर आई कि प्रकाश झा वशिष्ठ नारायण सिंह की बायोपिक बनाएंगे.
अब 14 नवंबर, 2019 की एक खबर है -
पटना के PMCH में उनका निधन हो गया.
फिर ट्विटर पर एक वीडियो आया जिसमें उनके परिवार वाले सरकारी एंबुलेंस के लिए परेशान नज़र आ रहे हैं. अपनी इमेज को बिगड़ता देख बिहार सरकार ने फौरन एंबुलेंस मुहैया कराई. और अब एक आखिरी खबर ये है कि वशिष्ठ नारायण सिंह का अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा. वशिष्ठ नारायण सिंह को लोग ऐसे याद करते हैं -
एक भारतीय गणितज्ञ था जिसने आइंस्टीन को चुनौती दे डाली थी.
वशिष्ठ नारायण सिंह को महान गणितज्ञ जॉन नैश के साथ रखकर भी देखा जाता हैू. सूचित हो जॉन नैश को भी स्कित्ज़ोफ्रेनिया नाम की बीमारी थी. बस फर्क ये है कि जॉन नैश की बीमारी का इलाज हो गया था और वशिष्ठ नारायण सिंह का इलाज नहीं हुआ.


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