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UN ने मुसलमानों के नरसंहार पर रिपोर्ट दी, चीन का बड़ा राज़ खुल गया!

UN की लेटेस्ट रिपोर्ट में क्या बताया गया है और इसके खास मायने क्या हैं?

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UN की लेटेस्ट रिपोर्ट में क्या बताया गया है और इसके खास मायने क्या हैं?(फोटो-AFP)
UN की लेटेस्ट रिपोर्ट में क्या बताया गया है और इसके खास मायने क्या हैं?(फोटो-AFP)
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1 सितंबर 2022 (Updated: 1 सितंबर 2022, 20:20 IST)
Updated: 1 सितंबर 2022 20:20 IST
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1945 में जब संयुक्त राष्ट्र (UN) की स्थापना हुई तब चीन इसका फ़ाउंडिंग मेंबर था. हालांकि तब इसे रिपब्लिक ऑफ चाइना, ROC कहते थे. 1949 में चीन में गृह युद्ध के बाद ROC सरकार ने ताइवान में शरण ले ली, और मेनलैंड चीन का नाम हो गया पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC). 1970 तक संयुक्त राष्ट्र में ROC को ही चीन का प्रतिनिधि माना जाता रहा. फिर 1971 में चीन से सम्बन्ध सुधारने की अमेरिकी कोशिश के चलते संयुक्त राष्ट्र असेम्बली में रेजोल्यूशन 2758 पास हुआ. इस रेजोल्यूशन के पास होते ही ROC की जगह PRC ने ले ली.

चीन शुरुआत से ही संयुक्त राष्ट्र् सिक्योरिटी काउंसिल का परमानेंट मेंबर रहा है. उसके पास वीटो पावर है. लेकिन फिर भी काफी समय तक उसका कद बाकी परमानेंट मेम्बर्स से नीचे था. 21वीं सदी की शुरुआत में चीन की आर्थिक शक्ति में इजाफा हुआ. जिसके चलते अन्तराष्ट्रीय समुदाय में उसका रसूख बढ़ा. चीन की बढ़ती ताकत का एक महत्वपूर्ण पहलू था, UN में उसका दखल.

UN में 15 मुख्य एजंसियां हैं. इन सभी एजेंसियों से माध्यम से संयुक्त राष्ट्र के मेंबर आपस में सहमति बनाते हैं. कोई विवाद होता है तो उसे इन एजेंसियों से माध्यम से सुलझाया जाता है. वर्तमान में इन 15 एजेंसियों में से 4 को चीन सीधे-सीधे हेड करता है. इसके अलावा 9 एजेंसियों में डेप्युटी पद पर चीनी अधिकारी बैठे हैं. इनमें IMF, UNESCO, और WHO शामिल है. UN में चीन के बढ़ते दखल को देखते हुए बार-बार ये सवाल उठाया जाता है कि UN एजेंसियां चीन के प्रति नरम रुख रखती हैं.

कोविड-19 को लेकर WHO पर ये आरोप लगता रहा है कि उसने चीन के प्रति नरमी दिखाई. और कोविड वायरस कहां से निकला, इसकी तहकीकात को लेकर भी चीन पर दबाव नहीं डाला. कुछ ऐसा ही आरोप OHCHR यानी ‘ऑफिस ऑफ हाई कमिश्नर फॉर ह्यूमन राइट्स’ पर भी लगता रहा है. साल 2021 में OHCHR की तरफ से कहा गया कि वो चीन के शिनजियांग प्रान्त में उइगर मुसलमानों के उत्पीड़न पर एक रिपोर्ट जारी करेगा. इसी साल मई महीने में OHCHR का एक फैक्ट फाइंडिंग मिशन शिनजियांग के दौरे पर पहुंचा. इस मिशन की रिपोर्ट का इंतज़ार दुनियाभर की मानवाधिकार संस्थाएं कर रही थीं. फिर 31 अगस्त की तारीख आई. OHCHR की कमिश्नर के कार्यकाल का आख़िरी दिन और रिपोर्ट का कहीं अता-पता नहीं था. एक बार फिर ये साबित होने जा रहा था कि UN में चीन का दखल है. फिर रात 12 बजे से ठीक पहले, अचानक खबर आई कि OHCHR ने शिनजियांग रिपोर्ट जारी कर दी है.

हालांकि ये पहली बार नहीं है कि शिनजियांग के उइगर मुसलमानों पर कोई रिपोर्ट आई हो. एमनेस्टी इंटरनेशनल सहित कई मानवधिकार संगठन पिछले कई सालों में ऐसी रिपोर्ट पेश कर चुके हैं. इसके अलावा शिनजियांग से बचकर निकले दर्जनों लोगों ने अपनी कहानी बयान की है. जिसमें साफ़ पता चलता है कि चीन शिनजियांग में नरसंहार को अंजाम देने में मशगूल है.

आज जानेगे कि UN की लेटेस्ट रिपोर्ट में क्या बताया गया है और इसके खास मायने क्या हैं?

चीन के नक़्शे पर नजर डालें तो उत्तर-पश्चिम में बसा शिनजियांग चीन का सबसे बड़ा प्रांत है. इसकी सीमाएं आठ देशों को छूती हैं. ये आठों देश हैं- भारत, रूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान और मंगोलिया. ऐतिहासिक रूप से शिनजियांग हमेशा से चीन का हिस्सा नहीं था. 18 वीं सदी के आसपास चीन ने इस इलाके पर कब्ज़ा किया. लेकिन यहां के लोग भाषा और संस्कृति में बाकी चीन से अलग थे.

1949 में, जब चीन में गृह युद्ध शुरू हुआ और शिनजियांग ने ख़ुद को आज़ाद घोषित कर दिया. लेकिन उसी साल माओ के कम्युनिस्ट चीन ने दोबारा इस हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया. शिनजियांग भूगोल और प्राकृतिक संसाधन, दोनों लिहाज से बहुत अहम था. चीन को इस इलाके की तो ज़रूरत थी, मगर उसे यहां की बसाहट से परेशानी थी. ये परेशानी जुड़ी थी, धर्म से. शिनजियांग में ज़्यादातर जनसंख्या मुस्लिमों की थी. इनमें सबसे बड़ा ग्रुप था उइगरों का.

कौन हैं उइगर?

टर्किक लैंग्वेजेज़ नाम का भाषाओं का एक झुंड है. इन्हें बोलने वाले टर्किक पीपल कहलाते हैं. इस एक ग्रुप के भीतर कई अलग-अलग छोटे-बड़े समूह हैं. इनमें से ही एक हैं उइगर. घुमक्कड़ कबीलाई अतीत वाले इस समुदाय की बसाहट का मुख्य इलाका है सेंट्रल एशिया. यहां उज़बेकिस्तान, किरगिस्तान और कज़ाकिस्तान जैसे देशों में उइगरों की अच्छी-ख़ासी संख्या है. मगर इनकी सबसे अधिक संख्या पाई जाती है, शिनज़ियांग में. यहां करीब सवा करोड़ उइगर रहते हैं.

उइगर अपनी भाषा और संस्कृति से काफी जुड़ाव रखते हैं. और ये बात चीन की एकमुश्त संस्कृति की ज़िद से मेल नहीं खाती थी. इसलिए चीन ने शिनजियांग की डेमोग्राफी बदलनी शुरू की. चीन के अलग-अलग हिस्सों से लाकर हान समुदाय को यहां बसाया जाने लगा. 1949 में शिनजियांग में हान समुदाय की संख्या 6 फीसदी थी. 21 वीं सदी तक ये 50 फीसदी तक पहुंच गए. वहीं उइगर 76 परसेंट से 40-45 परसेंट रह गए. .

सर पर खाने का सामान बेचते हुए उइगर मुस्लिम बच्चे (AFP)

ऐसा नहीं कि चीन ने बस शिनजियांग की आबादी का गणित बदला हो. उसने सांस्कृतिक आधार पर भेदभाव भी शुरू किया. लोगों पर मैंडेरिन भाषा थोपी जाने लगी. और अपना धर्म छोड़ने का दबाव बनाया जाने लगा. 1958 से ही सोशल इन्टीग्रेशन के नाम पर चीन ने उइगर समेत बाकी अल्पसंख्यक समुदायों का चीनीकरण करना शुरू कर दिया. कल्चरल रेवॉल्यूशन की आड़ में इनपर बहुत अत्याचार किए गए. इस वजह से उइगरों का एक धड़ा मिलिटेंसी की तरफ मुड़ने लगा.

1991 में सोवियत विघटन के बाद उइगर मिलिटेंसी को और रफ़्तार मिली. इस दौर में सेंट्रल एशिया के कई देश सोवियत से आज़ाद होकर इस्लामिक मुल्क बन गए. इसे देखकर शिनजियांग के उइगरों में भी अलगाववाद की भावना बढ़ी. उन्होंने कई सेपरेटिस्ट ग्रुप्स बना लिए. इन चरमपंथी समूहों को सेंट्रल एशिया में बसे उइगरों से भी सपोर्ट मिलने लगा. चीन ने इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा माना. उसने शिनजियांग में उइगरों का दमन और तेज़ कर दिया.

इस दमन के जवाब में उइगर मिलिटेंट्स भी समय-समय पर हिंसा करते रहे. 2009 में एक कारख़ाने में हान और उइगरों के बीच ख़ूब मारकाट हुई. इसमें 156 लोग मारे गए. इसके बाद चीन ने शिनजियांग को एक सर्विलांस और पुलिस स्टेट में तब्दील करना शुरू कर दिया.

साल 2016 में चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) ने चेन कुआंगो को शिनजियांग प्रांत का सेक्रेटरी नियुक्त किया. कुआंगो इससे पहले तिब्बत के सेक्रेटरी थे. उन्होंने आते ही शिनजियांग में पुलिस बल में हज़ारों की बढ़ोतरी की. शिनजियांग की आबादी को तीन हिस्सों में बांटा गया. एक हिस्सा उनका जो भरोसेमंद थे. दूसरे सामान्य और इसके अलावा एक तीसरा हिस्सा था उन लोगों का जिन पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

साल 2017 में शी जिनपिंग और कुआंगो के बीच एक मीटिंग हुई. और मीटिंग के अगले ही दिन शिनजियांग की राजधानी उरुमकी में हेलीकाप्टर मंडराने लगे. बख्तरबंद गाड़ियों में पुलिस बल पहुंचा. और लोगों को लाइन हाजिर किया जाने लगा. कुआंगो ने ऐलान किया कि वो शिनजियांग से आतंकियों का सफाया कर देंगे.

कुआंगो ने शिनजियांग के मुस्लिमों पर कई तरह के बैन लगा दिए. रोज़ा बैन. दाढ़ी रखना बैन. बुर्का बैन, क़ुरान बैन, मस्ज़िद बैन. धार्मिक तरीके से शादी बैन. उन्हें सुअर का मांस खाना होगा, शराब पीनी होगी. वो अपनी कम्यूनिटी में शादी नहीं कर सकते. सरहद पार के अपने रिश्तेदारों को फ़ोन कर लें, तो अरेस्ट हो जाएंगे.

इसके बाद शुरुआत हुई नजरबंदी शिविरों की. यहां उइगर मुसलमानों को रखा जाने लगा. कुआंगो का आदेश था कि इन शिविरों को मिलिट्री कैम्प की तरह चलाया जाए. और सुरक्षा किसी जेल की तरह रखी जाए. इन शिविरों को समझिए जैसे कोई रीसाइक्लिंग वाला कारख़ाना. जैसे रीसाइक्लिंग में किसी पुराने सामान को तोड़-फोड़कर उससे नया प्रॉडक्ट बनाया जाता है. वैसे ही इन शिविरों में उइगर समेत बाकी मुस्लिमों को टॉर्चर करके उनका चीनी संस्करण तैयार किया जाता. उनकी इस्लामिक पहचान मिटा दी जाती. बच्चों को मां-बाप से अलग करके उनका ब्रेनवॉश किया जाता. साल 2018 में जब पहली बार कुछ इंटरनेशनल पत्रकारों ने इस पर रिपोर्ट की, तो सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया. 2019 में चीन की सरकार ने माना कि ऐसे शिविर हैं, लेकिन उसका दावा था कि ये मात्र वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर हैं. सरकार कहती रही कि चंद महीने की ट्रेनिंग के बाद लोग इन शिविरों से चले जाते हैं. लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 से 2019 के बीच इन शिविरों में रहने वाले लोगों की संख्या में तीन गुना का इजाफा हुआ था.

अब समझिये UN का इस मुद्दे पर दखल कैसे शुरू हुआ?

इस बीच कई देशों की तरफ से ये मुद्दा संयुक्त राष्ट्र असेम्बली में उठाया गया. UN मानवाधिकार ऑफिस से मांग की गई कि वो इस मामले में चीन से जवाब-तलब करे. साल 2018 में मिशेल बैचेलेट संयुक्त राष्ट्र की ह्यूमन राइट्स कमिश्नर नियुक्त हुई. इससे पहले वो चिली की राष्ट्रपति रह चुकी थीं. उन्होंने आते ही कहा कि वो चीन के अधिकारियों से इस मामले में जल्द ही बात शुरू करेंगी. मानवाधिकार संगठन मांग कर रहे थे कि शिनजियांग में UN की एक स्वतन्त्र जांच कमिटी भेजी जाए. लेकिन चीन इससे लगातार इनकार करता रहा. और साथ ही पब्लिक में बयान जारी कर कहता रहा कि UN कमिश्नर का शिनजियांग में स्वागत है.

साल 2021 में मिशेल बैचेलेट ने ऐलान किया कि वो उइगर मुसलमानों पर एक रिपोर्ट पेश करेंगी. बैचेलेट के इस बयान के बाद चीन के रुख में कुछ नरमी आई और वो एक फैक्ट फाइंडिंग मिशन पर सहमत हो गया. लेकिन साथ में उसकी एक शर्त भी थी. शर्त ये कि विंटर ओलंपिक्स के बाद ही UN अपनी रिपोर्ट पब्लिश करेगा.

इसके बाद इसी साल अप्रैल और मई महीने में मिशेल बैचेलेट शिनजियांग के दौरे पर पहुंची. 17 साल में किसी ह्यूमन राइट्स कमिश्नर का ये पहला चीन दौरा था. कहने को ये फैक्ट फाइंडिग मिशन था, लेकिन अधिकतर रिपोर्ट्स के अनुसार चीन ने सिर्फ उतना ही दिखाया, जितना वो दिखाना चाहता था. बैचेलेट ने इस दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी वीडियो कॉल पर बात की. जिसके बाद चीनी समाचार पत्रों ने प्रोपोगेंडा चलाया कि बैचेलेट ने चीन के मानवधिकार रिकॉर्ड का प्रशंसा की है.

दौरा पूरा होने के बाद बैचलैट ने भी बयान जारी किया. और कहा कि उन्होंने सरकार से आतंक निरोधक कानूनों को रिव्यू करने को कहा है. उइगर अधिकार के लिए लड़ रहे संगठनों ने आरोप लगाया कि बैचलैट के दौरे से चीन के प्रोपोगेंडा को जीत मिली है. अपने ऊपर लग रहे आरोपों पर सफाई देते हुए बैचलैट ने कहा कि वो अपने कार्यकाल के खत्म होने से पहले शिनजियांग पर एक रिपोर्ट पेश करेंगी. दिन बीतते रहे लेकिन रिपोर्ट का कहीं अता-पता नहीं था.

फिर जुलाई महीने में एक लेटर लीक हुआ. जिससे कहानी कुछ साफ़ हुई. रायटर्स न्यूज़ एजेंसी ने बताया कि उसके हाथ एक लेटर लगा है, जिससे पता चलता है कि चीन बैचलैट के खिलाफ लॉबी कर रहा है. ये लेटर चीन ने जेनेवा में अपने सभी डिप्लोमेटिक मिशन्स तक पहुंचाया था. इस लेटर से चीन इस रिपोर्ट को न पब्लिश किए जाने के पक्ष में बाकी देशों का समर्थन जुटा रहा था. बैचलैट पर एक बार फिर आरोप लगे कि वो चीन के दबाव में हैं. लगभग एक हफ्ते पहले उन्होंने एक बयान जारी कर ये बात स्वीकार भी की. हालांकि उन्होंने चीन का नाम न लेते हुए कहा कि उन पर रिपोर्ट पब्लिश करने और न करने, दोनों तरफ से बहुत दबाव है. लेकिन वो अपना कार्यकाल ख़त्म होने से पहले रिपोर्ट पब्लिश करके जाएंगी.

31 अगस्त बैचलैट के कार्यकाल का आख़िरी दिन था. सबको लगा चीन अपनी करामात कर गया. रिपोर्ट पब्लिश होने से रही. लेकिन आख़िरी बॉल पर छक्का मारते हुए रात 11 बजे रिपोर्ट सामने आ गई. और ये बात भी सामने आई कि रिपोर्ट पब्लिश होने में इतनी देर क्यों लग रही थी. दरअसल रिपोर्ट को तैयार कर चीन के पास भेजा गया था. ताकि वो इस पर जवाब दे. चीन ने आख़िरी घंटे तक न सिर्फ रिपोर्ट को दबाए रखा, बल्कि आख़िरी दिन कुछ नाम और चेहरों की लिस्ट भेजी. कहा कि इन लोगों का नाम बाहर आने से खतरा है. इसलिए इन्हें रिपोर्ट से हटा दिया जाए. आखिर में इन लोगों का नाम और चेहरा छुपाकर रिपोर्ट को पब्लिश कर दिया गया. 45 पन्नों की इस रिपोर्ट के साथ चीन का जवाब भी पब्लिश किया गया है, जो इससे तीन गुना लम्बा है.

उइगर मुस्लिम कैंप (फोटो-AFP)
क्या कहती है ये रिपोर्ट?

45 पन्नों की इस रिपोर्ट में सबसे पहले चीन की काउंटर टेररिज़्म पॉलिसी की समीक्षा की गई है. चीन शिनजियांग में चल रही गतिविधियों को आतंकवाद के खिलाफ अपनी पॉलिसी का हिस्सा बताता रहा है. चीन ने आतंकवाद से निपटने के लिए जो क़ानून बनाया है, उसका नाम है, PRC काउंटर टेररिज़्म लॉ. इस क़ानून की परिभाषा में हर वो काम जो देश का माहौल बिगाड़ सकता है, आतंकवाद के अंदर आता है. रिपोर्ट बताती है कि इस क़ानून की भाषा इतनी व्यापक है कि किसी भी आदमी को इस क़ानून के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है.

इसके अलावा रिपोर्ट में 40 उइगर मुसलमानों के इंटरव्यू की बात दर्ज़ है. जिनसे कुछ बातें पता चलती हैं. रिपोर्ट के अनुसार चीन जिन्हें वोकेशन सेंटर कहता है, वो दरसल बंधुआ मजदूरी के अड्डे हैं. यहां लोगों को टॉर्चर किया जाता है. रिपोर्ट के अनुसार लोगों को इलेक्ट्रिक रॉड से मारा जाता है. भूखा रखा जाता है. और लड़कियों और औरतों का सामूहिक रेप होता है. एक इंरव्यू के अनुसार कैम्पों में रहने वाले लोगों को अपनी मातृभाषा में बोलने भी नहीं दिया जाता. दिन भर उनसे देशभक्ति के गाने तब तक गवाए जाते हैं, जब तक गले और चेहरे की नसें उभर न आएं.

इसके अलावा रिपोर्ट में शिनजियांग में गिरती जन्म दर की बात कही गयी है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 से 2019 के बीच इस इलाके की जन्म दर में 48.7 % की कटौती हुई है. इसी दौरान नसबंदी दर में भी अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज़ हुई है. जिससे संकेत मिलता है कि चीन जबरदस्ती उइगर मुस्लिमों की आबादी घटाने की दिशा में काम कर रहा है.

इस रिपोर्ट पर चीन का क्या कहना है?

UN की रिपोर्ट के साथ चीन का जवाब भी संलग्न है. जिसे उसने ट्रुथ एन्ड फैक्ट्स का नाम दिया है. चीन ने UN की रिपोर्ट को उसके खिलाफ साजिश करार दिया है. और साथ ही लिखा है कि UN को अमेरिका और पश्चिमी देशों के मानवधिकार उल्लंघनों पर भी तहकीकात करनी चाहिए.

चीन के बरक्स मानवधिकार संगठन इस रिपोर्ट के सामने आने से काफी उत्साहित हैं. मानवधिकार संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि इस रिपोर्ट को जल्द से जल्द UN ह्यूमन राइट्स काउंसिल के सामने पेश किया जाना चाहिए. ताकि बाकी देश इस रिपोर्ट पर चर्चा कर सकें. और रिपोर्ट में बताए गए कदम लागू करने के लिए चीन पर दबाव डाला जा सके.

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