इंदिरा ने रॉ की सुनी होती तो 500 लोगों की जान बच जाती
साल 2012 में लंदन में कुछ खुफिया दस्तावेज़ों के बाहर आने से पता चला कि रॉ ने 1984 में जरनैल सिंह भिंडरांवाले को अगवा करने का प्लान बनाया था

साल 2012 की बात है. ब्रिटेन के राजनीति में एक लेटर बम फूटा. 30 साल पुराने कुछ दस्तावेज़ डीक्लासिफाई किए गए तो एक पुराना खत मिला. जिसे 1984 में ब्रिटिश फॉरेन सेक्रेटरी ज्यॉफ्री हावे ने तब के होम सेक्रेटरी लीओन ब्रिटन को लिखा था. इस खत से पता चलता था कि मारग्रेट थैचर ने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान इंदिरा सरकार की मदद की थी.
लेटर में बाकायदा गोल्डन टेम्पल में एक मिलिट्री ऑपरेशन का पूरा प्लान दर्ज़ था. जिसे UK की इलीट कमांडो फ़ोर्स, स्पेशल एयर सर्विस (SAS) के एक अफसर ने तैयार किया था. खबर बाहर निकली तो लन्दन में रहने वाली सिख जनता में आक्रोश उपजा. बात इतनी बढ़ी कि प्रधानमंत्री डेविड कैमरन को इन्क्वायरी बिठानी पड़ी. इन्क्वायरी के बाद जो बात सामने आई वो ऑपरेशन ब्लू स्टार से अलहदा थी. खत में गोल्डन टेम्पल में होने वाले जिस ऑपरेशन का जिक्र था, उसका नाम था ऑपरेशन सनडाउन. और इस ऑपरेशन की प्लानिंग ब्लू स्टार से बहुत पहले कर ली गयी थी.
आज की ही तारीख थी जब 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान जरनैल सिंह भिंडरावाले की मौत हो गई थी. लेकिन उस कहानी से पहले आपको बताएंगे ऑपरेशन सन डाउन की कहानी. जिसका मकसद था जरनैल सिंह भिंडरावाले को अगवा करना. क्या था ये ऑपरेशन?
इंदिरा और काओ की मीटिंगसाल 1984. अप्रैल का महीना. लुटियंस दिल्ली स्थित 1 सफदरजंग रोड पर एक सफ़ेद एम्बेसडर गाड़ी आकर रुकती है. ये प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का आवास है. एम्बेसडर में से चश्मा पहने हुए एक ऊंची कद काठी का आदमी निकलता है.

आंध्र प्रदेश काडर के राम टेकचंद नागरानी तब RAW में डायरेक्टर जनरल सिक्योरिटी यानी DGS हुआ करते थे. उनके कंट्रोल में एक छोटी सी एयर फ़ोर्स, अर्धसैनिक बलों की दो छोटी टुकड़ियां, और स्पेशल सर्विस ब्यूरो था. इसके अलावा तीन साल पहले DGS ने एक और यूनिट का गठन किया था. स्पेशल ग्रुप या SG. जिसे ख़ास तौर पर पंजाब और असम में काउंटर टेररिस्ट मिशन के लिए तैयार किया गया था. पिछले दो महीने से SG की टुकड़ी दिल्ली के पास एक सीक्रेट बेस पर एक मिशन की तैयारी में जुटी थी.
बहरहाल प्रधानमंत्री इंदिरा के घर पर पहुंच कर DGS उनके लिविंग रूम में इंटर करते हैं. जहां गंभीर मुद्रा में इंदिरा एक और शख्स के साथ बैठी थीं. काला चश्मा लगाए ये व्यक्ति रामेश्वर काव थे. रॉ के संस्थापक. इमरजेंसी के बाद जब जनता पार्टी की सरकार आई तो काव ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. लेकिन फिर 1981 में इंदिरा की वापसी हुई तो काव भी इंदिरा के सलाहकार के तौर पर जुड़ गए. पंजाब में तब खालिस्तानी आंदोलन अपने चरम पर था. जरनैल सिंह भिंडरावाले की सरपरस्ती में उग्रवादी सिख संगठनों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह का ऐलान कर दिया था. 1981 से ही जरनैल अपने फॉलोवर्स के साथ गोल्डन टेम्पल में डेरा डाले हुआ थे. और साल 1984 तक उनके इशारे पर 100 से ऊपर आम नागरिकों और सुरक्षा कर्मियों की हत्या हो चुकी थी.
इंदिरा सरकार के लिए पंजाब का माहौल एक बड़ा सरदर्द साबित हो रहा था. उस रोज़ गोल्डन टेम्पल से चरमपंथियों को खदेड़ने के लिए DGS ने प्रधानमंत्री को एक सर्जिकल मिशन की सलाह दी. जिसका नाम था, ऑपरेशन ‘सनडाउन’.
हेलीकॉप्टर से भिंडरांवाले को किडनैप करने का प्लानDGS ने इंदिरा को बताया कि ये एक ‘स्नैच एंड ग्रैब’ ऑपरेशन होगा. हेलीकॉप्टर के थ्रू कमांडोज़ गोल्डन टेम्पल के पास ‘गुरु नानक निवास’ गेस्टहाउस में घुसेंगे. और जरनैल सिंह भिंडरावाले को अगवा कर लेंगे. ऑपरेशन का नाम ‘सन डाउन’ इसलिए दिया गया था क्यूंकि इस ऑपरेशन को रात 12 बजे बाद अंजाम दिया जाना था. जब भिंडरावाले और उसके गार्ड्स को इसकी जरा भी भनक न हो.

रेकी करने के लिए स्पेशल ग्रुप कमांडोज़ इससे पहले भी गोल्डन टेम्पल में प्रवेश कर चुके थे. इसके लिए उन्होंने पत्रकारों और तीर्थयात्रियों का भेष धरा था. इसलिए उनके पास अंदर का पूरा ले आउट था. और प्रधानमंत्री के पास मिशन की योजना ले जाने से कई हफ्ते पहले से ही SG कमांडोज़ ऑपरेशन की तैयारी में लगे हुए थे. इस मिशन के लिए सरसावा, सहारनपुर वाले SG बेस पर रिहर्सल की गयी. एक नकली गेस्ट हाउस बनाया गया. जिसमें दो MI-4 हेलीकॉप्टर से कमांडोज़ उतरते. और सीधे भिंडरावाले को पकड़ने की कोशिश करते. इसके बाद एक ग्राउडं टीम की मदद से उसे अगवा कर लिया जाता. लेकिन इस ऑपरेशन में इस बात की भी पूरी संभावना थी कि भिंडरावाले के समर्थकों के साथ SG को उलझना पड़ता. गोलीबार में लोगों की जान जाने का भी पूरा अंदेशा था.
DGS जब ये प्लान समझा रहे थे, इंदिरा चुपचाप सब कुछ सुन रही थीं. अंत में उन्होंने सिर्फ एक सवाल पूछा, ‘कितने लोग हताहत हो सकते हैं?’
20% कमांडो फ़ोर्स और दोनों हेलीकॉप्टर’, DGS ने जवाब दिया. इंदिरा का चेहरा और गंभीर हो गया. सवाल से उनका आशय कुछ और था. उन्होंने एक और सवाल पूछा, ‘कितने आम लोग मर सकते हैं?’
अबकी DGS के पास कोई जवाब नहीं था. उन्होंने काव की तरफ देखा. इस सवाल का उनके पास भी कोई जवाब नहीं था. अंत में नागरिकों की जान को खतरा देख इंदिरा ने ऑपरेशन के लिए इंकार कर दिया. और ऑपरेशन सन डाउन शुरू होने से पहले ही खत्म हो गया.
लन्दन में हुआ ऑपरेशन का खुलासाइस घटना के ठीक दो महीने बाद प्रधानमंत्री इंदिरा ने आर्मी को आदेश दिया कि गोल्डन टेम्पल से उग्रवादियों को बाहर निकाल दें. इस संघर्ष में सुरक्षा बलों के 83 लोग और 492 आम लोग इस मारे गए. ऑपरेशन ब्लू स्टार भारतीय इतिहास के सबसे खूनी सशस्त्र संघर्ष साबित हुआ. आर्मी को मशीन गन, रॉकेट, और अंत में जरूरी पड़ा तो बैटल टैंक्स भी उतारने पड़े. ब्लू स्टार के बवंडर में ऑपरेशन सन डाउन और उसकी तैयारियों की डिटेल्स रॉ के सीक्रेट आर्काइव्स में दबी रह गईं.

इस घटना का जिन्न बोतल से निकला साल 2012 में. जब लन्दन में कुछ खतों से इस ऑपरेशन की डीटेल्स पता चली. लोग मानकर चल रहे थे कि ब्रिटिश इंटेलिजेंस ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में भारत सरकार की मदद की थी. लेकिन रिटायर्ड रॉ अधिकारी इस मामले में एक दूसरी ही कहानी बताते हैं.
दरअसल इस पूरे ऑपरेशन के पीछे काओ का दिमाग था. ब्रिटिश इंटेलिजेंस MI-5 में उनकी अच्छी पहचान थी. और उन्हीं के कहने पर SAS के अफसर ऑपरेशन सन डाउन में मदद करने पहुंचे थे. रॉ कांउटर डिविजन के हेड रह चुके बी रमन, अपनी किताब, ‘द काओबॉयज ऑफ रॉ’ में लिखते हैं कि दिसंबर 1983 में MI-5 के दो अधिकारियों ने गोल्डन टेम्पल काम्प्लेक्स की रेकी की थी. इसके बाद उन्होंने एक सीनियर SAS ऑफिसर को यूके से दिल्ली भेजा था, जिसने काव को बताया कि ऐसा एक ऑपरेशन संभव था.
इंडिया टुडे के वरिष्ठ पत्रकार संदीप उन्नीथन ने साल 2014 में इस पूरे खुलासे पर एक कवर स्टोरी की थी. उनके अनुसार इंदिरा ने इस ऑपरेशन के लिए ना कह दिया. शायद काव इंदिरा के फैसले से इत्तेफाक नहीं रखते थे लेकिन उन्होंने इसे अपने चेहरे पर आने नहीं दिया. क्योंकि काव भी स्थिति की नजाकत को समझ रहे थे. हफ़्तों से उन्हें विदेशों में स्थित रॉ स्टेशन चीफों से चेतावनी मिल रही थी कि मिलिट्री ऑपरेशन के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. जिन-जिन देशों में सिखों की अच्छी जनसंख्या थी, वहां भारत के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही थी.
काओ खुद कई महीनों से विदेशों में मौजूद सिख चरमपंथी नेताओं के संपर्क में थे. काव कोशिश कर रहे थे कि वो लोग भिंडरावाले को गोल्डन टेम्पल खाली करने के लिए मनाएं. लेकिन इस कोशिश का कोई नतीजा नहीं निकला.
भिंडरांवाले से समझौते की कोशिशमिलिट्री ऑपरेशन के अलावा मसले को सुलझाने के राजनैतिक प्रयास भी किए जा रहे थे. जनवरी 1984 से ही राजीव गांधी की पहल पर सरकार ने भिंडरावाले से सीक्रेट बातचीत शुरू कर दी थी. लेकिन चार महीनों चली बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला. दोनों तरफ ऐसे लोग थे वो जंग के लिए तैयार थे.

अप्रैल के आख़िरी महीनों की बात है. बीबीसी दिल्ली ब्यूरो के सतीश जैकब स्वर्ण मंदिर में मौजूद थे. उन्होंने देखा कि कंस्ट्रक्शन का सामान लिए कुछ ट्रक मंदिर के अंदर जा रहे हैं. साथ ही उन्होंने देखा कि एक पतला और मझली हाइट का आदमी इस काम के निर्देश दे रहा था. सफ़ेद रंग की सलवार कमीज पहने ये शख्स था मेजर जनरल शाहबेग सिंह. शाहबेग 1971 में बांग्लादेश युद्ध के हीरो रह चुके थे. उन्होंने मुक्ति बाहिनी के लड़ाकों को ट्रेनिंग दी थी. लेकिन 1976 में रिटायर होने से ठीक पहले उन पर करप्शन के चार्जेस लगे.
शाहबेग इस बेज्जती का बदला लेने के लिए भिंडरावाले के मिलिट्री एडवाइजर बन गए थे. और उनके निर्देश पर अकाल तख़्त को एक फोर्ट्रेस बना दिया गया था. मई 1984 के अंत में में पंजाब बारूद के ढेर पर खड़ा था. अप्रैल 1983 में DIG अटवाल की गोल्डन टेम्पल परिसर में सरेआम हत्या हुई थी. जिसके बाद स्थिति बिगड़ती देख, अक्टूबर 1983 में राज्य सरकार को भंग कर दिया गया. दिल्ली से हजारों की संख्या में पैरामिलिट्री फ़ोर्स अमृतसर में तैनात की गई. 11 मई को समझौते की एक आख़िरी कोशिश हुई लेकिन भिंडरावाले ने उसे भी ठुकरा दिया.
इसके कुछ रोज़ बाद से ही आर्मी चीफ जनरल अरुण कुमार वैद्य का प्रधानमंत्री कार्यालय में आना जाना शुरू हो गया. इंदिरा के पर्सनल सेक्रेटरी RK धवन इन मीटिंग में मौजूद रहते थे. इंडिया टुडे से बातचीत में उन्होंने बताया कि जनरल वैद्य ने इंदिरा से वादा किया था कि गोल्डन टेम्पल को कोई नुक्सान नहीं पहुंचेगा और आम लोगों की जान नहीं जाएगी.
2 जून तक सरकार अकाली दल के ज़रिए बातचीत की कोशिश करती रही. लेकिन जब सारे रास्ते बंद हो गए तो इंदिरा गांधी ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को हरी झंडी दे दी. 5 तारीख को ऑपरेशन शुरू हुआ और 10 तारीख तक चला. सैकड़ों लोगों की जान गई. सिर्फ पीछे रह गया एक सवाल? अगर ऑपरेशन सन डाउन को झंडी मिल जाती तो सैकड़ों लोगों की जान बच सकती थी. लेकिन ये बात फिर ’यूं होता तो क्या होता’ के बक्से में जमा हो जाती है.
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