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1971 बांग्लादेश युद्ध: जंग शुरू होने से पहले ही जीत चुका था भारत!

जंग से पहले ही वायुसेना ने बोयरा में पाक एयरफोर्स को पस्त कर दिया था

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गरीबपुर की ज़मीन और बोयरा के आसमान में हुई लड़ाई ने जंग से पहले ही भारत की जीत की नींव रख दी थी तस्वीर: Getty)
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कमल
22 नवंबर 2021 (Updated: 22 नवंबर 2021, 06:13 AM IST) कॉमेंट्स
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आसमान में पहली हरकत आज 22 नवंबर है. और आज की तारीख का संबंध है बोयरा की जंग से. साल 1971 की बात है. नवंबर की उस सुबह ईस्टर्न फ़्रंट पर इंडियन एयर फ़ोर्स को रडार में कुछ हरकत नज़र आती है. तब घड़ी में 8 बजकर 11 मिनट का वक्त हुआ था. उसी समय कलकत्ता के दम-दम एयरफ़ील्ड से भारतीय वायुसेना के 4 विमान उड़ान भरते हैं. और चारों विमान कुछ ही देर में आसमान में गश्त मारने लगते हैं. इससे पहले कि वो घुसपैठिए तक पहुंच पाते, वो अंतरराष्ट्रीय सीमा के पार जा चुका था.
अगले 2 घंटे तक रडार में कोई हरकत नहीं होती. फिर 10 बजकर 28 मिनट पर रडार पर कुछ और बिंदु टिमटिमाने लगते हैं. भारतीय विमान दुबारा उड़ान भरते हैं, लेकिन दुबारा उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ता है. अगले 4 घंटे तक कमांड की नज़र रडार से लगी रहती है. देरी की कोई गुंजाइश नहीं थी. अबकी दोपहर 2 बजकर 48 मिनट पर रडार में हरकत होती है. कमांड की कैलकुलेशन के हिसाब से 3 विमान उत्तर पश्चिम दिशा में क़रीब 2000 फ़ीट की ऊंचाई पर सॉर्टी कर रहे थे.
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गरीबपुर की लड़ाई के दौरान पकिस्तानी टैंक पर कब्जा किए हुए भारतीय सैनिक (तस्वीर: getty)


कमांड अबकी बार पूरी तरह से मुस्तैद थी. दम-दम से एक और बार भारतीय सेना के चार विमान उड़ान भरते हैं. और जब तक आसमान साफ़ होता है. दुश्मन के दो लड़ाकू विमान ध्वस्त हो चुके थे. इतना ही नहीं दुश्मन के दो फ़्लाइंग पाइलट्स भी भारतीय सेना के कब्जे आ चुके थे. जिनमें से एक आगे जाकर पाकिस्तानी वायुसेना का अध्यक्ष भी बना. क्या हुआ था उस दिन? आइए समझते हैं
1971 के ज़िक्र से आप इतना तो समझ गए होंगे कि बांग्लादेश युद्ध की चर्चा हो रही है. लेकिन असल में ये युद्ध से पहले की बात है. आधिकारिक रूप से बांग्लादेश की मुक्ति का युद्ध 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ. लेकिन इससे ठीक 2 हफ़्ते पहले ही इंडियन आर्मी और वायुसेना ने पाकिस्तान को इतना तगड़ा झटका दिया था कि वो कभी संभल ही नहीं पाए. आधिकारिक ऐलान से ठीक पहले अक्टूबर 1971 से ही इंडिया और पूर्वी पाकिस्तान के बॉर्डर पर तनाव बढ़ने लगा था. लेकिन ये सब, कुछ छोटी-मोटी झड़पों तक ही सीमित था. पूर्वी पाकिस्तान के बोयरा इलाक़े से गरीबपुर का एक हिस्सा भारत की सीमा को छूता था. इसी इलाक़े का इस्तेमाल कर पाकिस्तानी सेना गोलीबारी कर रही थी. जंग का ऐलान किसी भी वक्त हो सकता था. इसलिए मुक्ति वाहिनी और भारतीय सेना तैयारी में जुटी हुई थी. पैट्रोलिंग और रेड्स के ज़रिए गरीबपुर और बोयरा में पाकिस्तानी सेना की ताक़त को खंगाला जा रहा था.
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1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान कोलकाता से बांग्लादेश के जेसोर तक जेस्सोर रोड की मरम्मत करते भारतीय सैनिक (तस्वीर: Getty)


सेना में ये आम समझ है कि दुश्मन अपनी डिफ़ेन्सिव पोजिशन मज़बूत कर रहा हो तो, बहुत मुमकिन है कि वो उसे अटैक लॉंच करने के लिए यूज़ करे. इसलिए जब गरीबपुर में पाकिस्तानी सेना की हरकत तेज हुई तो भारतीय सेना ने एक प्लान बनाया.
प्लान ये था कि अगर गरीबपुर कब्जे में आ जाए तो पाकिस्तान के लिए भारतीय सीमा पर सीधे हमला करना मुश्किल हो जाएगा. सिख रेजीमेंट की चौथी बटालियन (4 सिख) ने 11 नवंबर से ही बोयरा के उत्तर में पूर्वी पाकिस्तान के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया था. सेना अंतरराष्ट्रीय सीमा के छह किलोमीटर अंदर पहुंच चुकी थी. और अब बारी गरीबपुर की थी. गरीबपुर पर कब्जे के लिए ऑपरेशन का ज़िम्मा पंजाब रेजिमेंट की 14th बटालियन, C टैंक स्क्वाड्रन और 45 रिसाला आर्मर्ड कोर को सौंपा गया.
प्लान के तहत 20 और 21 नवंबर की रात एक साइलेंट अटैक की शुरुआत हुई. लेकिन बदक़िस्मती से भारतीय सेना की सबसे आगे की टुकड़ी का सामना एक पाकिस्तानी टुकड़ी से हो गया, जो उस वक्त पैट्रोलिंग कर रही थी. इसे देखते हुए कमांडिंग ऑफ़िसर लेफ़्टिनेंट कर्नल RK सिंह ने नया ऑर्डर दिया. इससे पहले कि पाकिस्तानी सेना और मदद बुलाती, मिशन को तेज़ी से आगे बढ़ाना ज़रूरी था. गरीबपुर की लड़ाई बटालियन की पांच कंपनियां और एक टैंक स्क्वाड्रन ने तेज़ी से मूव किया. जेस्सोर से 15-20 किमी उत्तर-पश्चिम में चौगाचा में काबाड़ाक नाम की एक नदी पड़ती है. सेना ने उस पर पुल बनाने की शुरुआत की. पाकिस्तानी सेना के टैंकों ने पुल तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ दिया. तब तक वहां से 10 किमी दक्षिण-पश्चिम में 14वीं पंजाब रेजीमेंट ने गरीबपुर में भी एक पुल बना लिया था.
21 नवंबर की सुबह 3 बजे तक गरीबपुर पर भारतीय सेना का क़ब्ज़ा हो गया. दोनों तरफ़ से लड़ाई भयंकर हुई थी. इसलिए सेना को अंदाज़ा था कि दुश्मन काउंटर अटैक कर दुबारा पोजिशन हथियाने की कोशिश करेगा. अंदाज़ा सटीक था. सुबह 5 बजे के आस-पास पाकिस्तान की पंजाब रेजीमेंट की छठी बटालियन ने गरीबपुर की तरफ़ मूव किया. इसे देखते हुए कैप्टन MS गिल की अगुवाई में एक पैट्रोलिंग पार्टी आगे भेजी गई. नवंबर की सर्द रात और कोहरा घना था. कैप्टन MS गिल की पार्टी ने सामने से आते हुए पाकिस्तानी टैंकों की आवाज़ सुनी. उन्होंने तुरंत अपनी बटालियन को मेसेज भेजा ताकि टैंक और बाकी ट्रूप्स आगे भेजे जा सकें.
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डिफ़ेंस मिनिस्टर जगजीवन राम के साथ बोयरा में पकिस्तानी एयरफ़ोर्स को धूल चटाने वाले भारतीय पायलट (फ़ाइल फोटो)


इंडियन इन्फ़ंट्री ने गरीबपुर में डिफ़ेन्सिव फ़ॉर्मेशन जमाई. और भारतीय टैंक पाकिस्तानी टैंकों का सामना करने के लिए आगे बढ़ गए. जेस्सोर गरीबपुर से 9 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता था. वहां से पाकिसटनी सेना की 107th इन्फ़ंट्री ब्रिगेड और 3 बख़्तरबंद टैंक स्क्वाड्रन बढ़े चले आ रहे थे. ये अमेरिका मेड M24 चेफ़ी टैंक थे. भारत की तरफ़ से भी स्क्वाड्रन कमांडर मेजर DS नारंग पूरी तैयारी के साथ पहुंचे थे. उन्होंने अपने PT 76 टैंकों को पाकिस्तानी टैंकों से निपटने के लिए तैनात किया था. ये पानी में तैर सकने वाले हल्के टैंक थे जो M24 टैंकों के मुक़ाबले कमजोर पड़ते थे. साथ ही ये पूरी तरह से बख़्तरबंद भी नहीं थे.
फिर भी दलदली इलाक़े में भारतीय सेना ने ग़ज़ब का साहस दिखाते हुए पाकिस्तानी टैंक डिविज़न को पीछे खदेड़ दिया. इस मुठभेड़ के दौरान मेजर नारंग शहीद हो ग़ए. उनके अदम्य साहस के लिए उन्हें महा वीर चक्र से नवाज़ गया. गरीबपुर पर पाकिस्तानी टैंक डिविज़न ने 3 बार और हमला किया. लेकिन 14th पंजाब और 45 रिसाला, C स्क्वाड्रन ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया. सिर्फ़ एक इन्फ़ंट्री बटालियन और टैंक स्क्वाड्रन ने पाकिस्तान के पूरे ब्रिगेड अटैक को फेल कर डाला. लड़ाई के दौरान पाकिस्तान के 8 टैंक ध्वस्त हो गए. पाकिस्तानी सेना की ज़बरदस्त हार हुई थी. पाकिस्तान एयरफ़ोर्स ज़मीन की लड़ाई में हार होते देख पाकिस्तान ने एयर फ़ोर्स की मदद ली. 21 नवंबर की दोपहर धुंध छंटते ही पाकिस्तानी वायुसेना की नम्बर 14 स्क्वाड्रन ने सॉर्टीज़ शुरू की. इस स्क्वाड्रन में 20 केनेडेयर सेबर MK6 लड़ाकू विमान थे. जिन्हें जर्मनी और ईरान की मदद से स्मगल कर जोड़ा गया था. सेबर MK 6 तब डॉगफ़ाइट के सबसे माहिर लड़ाकू विमान हुआ करते थे. बमवर्षक विमान की तरह ये 2000 फुट की ऊंचाई तक जाते और वहां से 500 फुट तक नीचे आकर हमला करते. पाकिस्तान की इस स्क्वाड्रन को कमांड कर रहे थे फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट परवेज़ क़ुरैशी.
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फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट परवेज़ मेहदी क़ुरैशी जो आगे जाकर PAF के अध्यक्ष बने (तस्वीर: thepakteahouse)


हैरानी की बात ये थी कि ये ज़िम्मेदारी स्क्वाड्रन लीडर को दी जाती है. जबकि परवेज़ की रैंक काफ़ी नीचे थी. संभवतः पाकिस्तानी एयर फ़ोर्स को ये डर था कि अगर कमांड किसी बंगाली को दे दी तो वो मुक्तिवाहिनी से जा मिलेगा. 22 नवंबर की दोपहर तक पाकिस्तानी सेना ने चौथी सिख और 14वीं पंजाब बटालियन पर हमले करने के लिए 24 उड़ानें भरीं. इस दौरान पाकिस्तानी लड़ाकू विमान कई बार भारतीय सीमा में भी घुसे.
चूंकि युद्ध की आधिकारिक घोषणा नहीं हुई थी. इसलिए भारतीय वायुसेना को जवाबी हमले की पर्मिशन मिलने में देर लगी. पर्मिशन मिलते ही आज ही के दिन यानी 22 नवंबर 1971 को भारतीय वायुसेना ने जवाबी कार्रवाई शुरू की. भारतीय एयर फ़ोर्स की 22वीं स्क्वाड्रन में फ़ौलेंड नेट विमान थे. ये हल्के और कॉम्पैक्ट लेकिन कम ऊंचाई पर लड़ने में माहिर थे. 22वीं स्क्वाड्रन कलाईकुंडा फौजी हवाईअड्डे पर तैनात थी. इस स्क्वाड्रन पर कलकत्ता सेक्टर की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी थी. इसी स्क्वाड्रन का एक फ़ैक्शन कलकत्ता के दम-दम एयरफ़ील्ड में भी तैनात था. जिसको कमांड कर रहे थे, विंग कमांडर BS सिकंद. (आगे जाकर इंडियन एयर फ़ोर्स में एयर मार्शल बने) बोयरा के आसमान में 22 नवंबर की दोपहर 2.40 तक भारतीय सेना, पाकिस्तानी विमानों पर मीडियम लाइट मशीनगन से जवाबी हमला कर रही थी. तीन बजे के आसपास 4 भारतीय नेट विमानों ने सॉर्टी शुरू की और बोयरा के आसमान में गश्त लगाने लगे. जैसे ही उन्हें पाकिस्तानी विमान दिखे, वो दो सेक्शन में बंट कर उनका पीछा करने लगे. पहले सेक्शन को फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट MA गनपथी और फ़्लाइंग ऑफ़िसर डॉनल्ड लेज़ारस उड़ा रहे थे. जबकि दूसरे सेक्शन को फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट ऐंड्रू मासी और फ़्लाइंग ऑफ़िसर SF सुआरेज उड़ा रहे थे.
भारतीय नेट विमानों से अंजान पाकिस्तानी फ़ाइटर 500 फ़ीट तक गोता लगाकर ज़मीन पर हमला करने में बिज़ी थे. इस दौरान एक पाकिस्तानी सेबर जेट जैसे की गोता लगाकर ऊंचाई पर लौटा. वो फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट गनपथी और ऑफ़िसर लेज़ारस की सीध में आ गया. ऑफ़िसर लेज़ारस ने उस पर 30 एमएम के दो गोले दागे और वो धू-धू कर जलते हुए नीचे जा गिरा.
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(बायीं से दायीं ओर) फ्लाइट लेफ्टिनेंट रॉय एंड्रयू 'माउस' मैसी, फ्लाइंग ऑफिसर केबी बागची (फाइटर कंट्रोलर), फ्लाइंग ऑफिसर डोनाल्ड 'डॉन' लेजारस, फ्लाइंग ऑफिसर एस.एफ. 'सु' सोरेस, फ्लाइट लेफ्टिनेंट एमए 'गन' गणपति (तस्वीर: IAF_MCC)


दूसरे सेबर विमान पर भी ऐसे ही निशाना लगाया गया और वो भी ज़मीन पर क्रैश हो गया. तीसरे सेबर विमान के पंख में गोला लगा था, लेकिन किसी तरह उसका पाइलट उसे ढाका पहुंचकर लैंड कराने में सफल रहा. गिरने वाले दोनों विमानों से पाकिस्तानी पाइलट इजेक्ट हो चुके थे. दोनों ने अपना पैराशूट खोला और नीचे पहुंचकर भारतीय सेना ने उन्हें युद्ध बंदी बना लिया. इनमें से एक परवेज़ क़ुरैशी थे, जो आगे जाकर पाकिस्तानी एयर फ़ोर्स में एअर चीफ मार्शल और चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ के पद तक पहुंचे.
पूरी लड़ाई सिर्फ़ तीन मिनट में ख़त्म हो गई. जिसके बाद नैट विमान कलाईकुंडा फौजी हवाईअड्डे की ओर लौट गए. नेट विमान उड़ाने वाले चारों पाइलट्स को उनके अदम्य साहस के लिए वीर चक्र से सम्मानित किया गया. भारत की निर्णायक जीत बोयरा के आसमान और गरीबपुर की ज़मीन पर, दोनों जगह भारतीय सेना को निर्णायक जीत मिली थी. गरीबपुर को कब्जे में लेने का सेना का निर्णय आगे जाकर एकदम क्रूशियल साबित हुआ. इंडियन बॉर्डर तक पहुंच के लिए पाकिस्तानी सेना के पास अब और कोई रास्ता नहीं बचा था. दूसरी तरफ़ हवा में हुई लड़ाई में भारत का कोई नुक़सान नहीं हुआ. जबकि पाकिस्तान के 3 विमानों को ध्वस्त कर दिया गया. ये इतनी ज़बरदस्त हार थी कि पाकिस्तान ने पूरे युद्ध के दौरान इस सेक्टर में एक बार भी विमानों का इस्तेमाल नहीं किया.
इसी युद्ध से जुड़ी एक घटना का ज़िक्र 1996 में आता है. पाकिस्तान के एयर चीफ़ मार्शल परवेज़ क़ुरैशी वायुसेना के अध्यक्ष बनने जा रहे थे. तब उन्हें भारत से एक पत्र मिला. पत्र खोला तो अंदर ग्रुप कैप्टन लेज़ारस का नाम था. वही लेज़ारस जिन्होंने 1971 में बोयरा के आसमान में क़ुरैशी को पस्त किया था. कैप्टन लेज़ारस ने उन्हें बधाई देते हुए 1971 की घटना की याद दिलाई. कैप्टन लेज़ारस को हैरानी हुई जब उन्हें इस ख़त का जवाब मिला, जिसकी उन्हें बिलकुल अपेक्षा नहीं थी. क़ुरैशी ने जवाब में धन्यवाद लिखा और साथ ही उस दिन भारतीय पाइलटों के द्वारा दिखाई गई बहादुरी की सराहना की.

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