The Lallantop
Advertisement

Swift-K ड्रोन से खौफ में आएगी दुश्मन सेना, न रडार देख पाएगा, न दुश्मन समझ पाएगा

सब कुछ तय योजना के मुताबिक रहा तो देश के दुश्मनों पर अगला हमला कोई इजरायली ड्रोन नहीं बल्कि मेक इन इंडिया ड्रोन कर रहा होगा. क्या है देश का Swift-K स्टेल्थ सुसाइड ड्रोन प्रोजेक्ट. जानें इसके फीचर्स, बजट, विकास की टाइमलाइन और भविष्य की रणनीति, जिससे दुश्मन के खिलाफ गुप्त हमले होंगे और भी सटीक.

Advertisement
Swift-K Drone
ऑपरेशन सिंदूर में चर्चा में आया DRDO का स्टेल्थ सुसाइड ड्रोन Swift-K (फोटो-आजतक)
pic
दिग्विजय सिंह
27 मई 2025 (Updated: 18 जून 2025, 09:04 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

हाल ही में भारत के सैन्य अभियानों में उन्नत ड्रोन तकनीक की महत्वपूर्ण भूमिका देखने को मिली है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सुसाइड ड्रोन खासा सुर्खियों में रहे, जिनकी मदद से दुश्मन के ठिकानों को निशाना बनाया गया. इस कड़ी में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के अधीन काम करने वाली प्रतिष्ठित संस्था Aeronautical Development Establishment (ADE) एक अत्याधुनिक स्टेल्थ तकनीक से लैस सुसाइड ड्रोन Swift-K का विकास कर रही है.

Swift-K ड्रोन का उद्देश्य विशेष रूप से गुप्त और सटीक हमलों को अंजाम देना है. इसकी स्टेल्थ तकनीक इसे रडार और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिटेक्शन सिस्टम से बचने में मदद करती है, जिससे यह दुश्मन के इलाके में बिना पता चले घुसपैठ कर सकता है. इसके साथ ही, इस ड्रोन में आधुनिक नेविगेशन और लक्ष्य निर्धारण तकनीकें भी शामिल हैं, जो इसे उच्च सटीकता के साथ मिशन को पूरा करने में सक्षम बनाती हैं.

बजट और वित्तीय पहलू

Swift-K जैसे उन्नत सुसाइड ड्रोन प्रोजेक्ट के लिए DRDO और ADE को करोड़ों रुपये का बजट आवंटित किया गया है. अनुमानित तौर पर इस परियोजना का कुल बजट 150 से 200 करोड़ रुपये के बीच बताया जा रहा है. इस बजट में ड्रोन के डिज़ाइन, परीक्षण, उत्पादन और कार्यान्वयन से जुड़ी सभी लागतें शामिल हैं. हालांकि, DRDO की नीतियों के अनुसार यह राशि बदल भी सकती है.

विकास की टाइमलाइन

ADE ने इस ड्रोन के प्रोटोटाइप पर पिछले दो वर्षों से काम किया है और हाल ही में इसका सफल परीक्षण भी किया गया है. Swift-K को पूर्ण रूप से फील्ड रेडी बनाने का लक्ष्य अगले 1-2 साल के अंदर रखा गया है. यानी, अनुमान है कि 2026 के अंत तक यह ड्रोन भारतीय सशस्त्र बलों के बेड़े में शामिल हो जाएगा.

DRDO और ADE के प्रमुख ड्रोन प्रोजेक्ट्स: तकनीक और भविष्य

सिर्फ स्वीफ्ट-के ही नहीं डीआरडीओ भारत के लिए कई ड्रोन विकसित कर रहा है, जो आने वाली जंगों में भारत को आत्मनिर्भर बनाएंगे. आइये एक-एक करके उन सभी से रूबरू हो लेते हैं.

1. Swift-K सुसाइड ड्रोन
जैसा कि पहले बताया गया, Swift-K एक स्टेल्थ सुसाइड ड्रोन है जो ऑपरेशन सिंदूर जैसे गुप्त हमलों के लिए विकसित किया जा रहा है. इसकी खासियत है रडार से बचने की क्षमता, उच्च सटीकता से लक्ष्य को नष्ट करना, और कम समय में मिशन पूरा करना. इसका विकास 150-200 करोड़ रुपये के बजट में हो रहा है और इसे 2026 तक फील्ड में तैनात करने की योजना है.

2. Rustom श्रृंखला ड्रोन
Rustom एक मध्यम ऊंचाई, लंबी उड़ान क्षमता वाला ड्रोन है जो निगरानी और टोही के लिए बनाया गया है. ADE के साथ DRDO की विकास टीम Rustom-2 और Rustom-3 जैसे वेरिएंट्स पर काम कर रही है. ये ड्रोन 24 घंटे से अधिक उड़ान भर सकते हैं और लंबी दूरी पर भी सटीक इमेजिंग और डेटा कलेक्शन कर सकते हैं. इनका उपयोग सीमा सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी अभियानों में होता है.

3. Nishant और Lakshya ड्रोन
Nishant ड्रोन मुख्य रूप से युद्धक्षेत्र में फील्ड इंटेलिजेंस के लिए प्रयोग होता है. Lakshya एक टारगेट ड्रोन है, जिसे सैनिकों के प्रशिक्षण के लिए उपयोग किया जाता है ताकि वे दुश्मन के हवाई हमले की तैयारी कर सकें. ये ड्रोन भी ADE की विशेषज्ञता से बनाए गए हैं और भारतीय सेना की रणनीति में अहम भूमिका निभाते हैं.

4. Abhyas टारगेट ड्रोन
Abhyas ड्रोन उच्च गति से उड़ान भरने वाला टारगेट ड्रोन है, जो मिसाइल और एयर डिफेंस सिस्टम के परीक्षण में इस्तेमाल होता है. यह वास्तविक लड़ाकू हालात की नकल कर सेनाओं को प्रशिक्षण और जांच में मदद करता है.

ये भी पढ़ें- अमेरिका ने अभी 'गोल्डन डोम' बनाने का एलान भर किया, चीन ने उसकी तोड़ भी खोज निकाली

भविष्य की तकनीकी दिशा

अब सवाल उठता है कि मॉर्डन वॉरफेयर के वो पैमाने क्या है, जिन्हें ध्यान में रखकर भारत अपने फ्यूचर ड्रोन्स को विकसित कर रहा है. ऐसे एक नहीं बल्कि तीन पैरामीटर्स हैं.

स्टेल्थ और AI इंटीग्रेशन: ADE वर्तमान में स्विफ्ट-K के बाद और अधिक उन्नत स्टेल्थ ड्रोन पर काम कर रहा है, जिनमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित स्वायत्त नेविगेशन और लक्ष्य पहचान तकनीकें होंगी. इससे ड्रोन बिना इंसानी हस्तक्षेप के ही मिशन पूरा कर सकेंगे.

स्वायत्त मल्टी-ड्रोन ऑपरेशंस: भविष्य में ड्रोन के समूह मिलकर जटिल मिशन को पूरा करेंगे. ये ‘स्वार्म टेक्नोलॉजी’ से लैस होंगे, जिससे एक साथ कई ड्रोन मिलकर बड़े लक्ष्यों पर हमला कर सकेंगे.

अंतरिक्ष और हाइब्रिड ड्रोन: DRDO हाइब्रिड ड्रोन पर भी काम कर रहा है जो जमीनी और हवाई दोनों मिशनों के लिए इस्तेमाल हो सकेंगे. इसके अलावा, अंतरिक्ष आधारित ड्रोन टेक्नोलॉजी की दिशा में भी रिसर्च चल रही है.
भविष्य की संभावनाएं

Swift-K ड्रोन को ऑपरेशन सिंदूर जैसे गुप्त और तीव्र सैन्य अभियानों के लिए आदर्श माना जा रहा है. इसके अलावा, भविष्य में इस तकनीक को और उन्नत करके लंबी दूरी पर कार्य करने वाले और अधिक स्टेल्थ ड्रोन विकसित करने की योजना भी DRDO के पास है. इससे भारत की सैन्य सामर्थ्य और आत्मनिर्भरता दोनों में वृद्धि होगी.
 

वीडियो: भारत के पास हैं उन्नत ड्रोन, पूर्व वायुसेना अफसर ने बताई कहां तक मार सकते हैं...

इस पोस्ट से जुड़े हुए हैशटैग्स

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement