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ब्लैक-होल जब दिखता नहीं, तब उसकी फोटो कैसे खींचते हैं?

वैज्ञानिकों ने बहुब्बड़ा ब्लैक-होल खोजा है. अपने सूरज से भी 3 हज़ार करोड़ गुना बड़ा.

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ये ब्लैक होल, ग्रैविटेशनल लेंसिंग के जरिए खोजा गया है (फोटो सोर्स- इंडिया टुडे)
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शिवेंद्र गौरव
3 अप्रैल 2023 (Updated: 31 मार्च 2023, 08:56 PM IST)
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स्कूल में हमने पढ़ा था कि सूरज धरती से बहुत, बहुत बड़ा है. कितना बड़ा? कि तकरीबन 13 लाख धरतियां उसमें समा जाएं. तो सूरज हमारे सोलर सिस्टम का दादा है. लेकिन सारे दादाओं की तरह सूरज का जलवा सिर्फ हमारे सोलर सिस्टम में चलता है. ब्रह्मांड में ऐसे ऐसे परदादा पड़े हैं, जो सूरज को भी निगल जाएं, वो भी बिना डकारे. मज़ाक नहीं कर रहे हैं. वैज्ञानिकों को एक ऐसा सूपर मैसिव ब्लैकहोल माने SMBH का पता चला है, जो सूरज से अरबों गुना भारी है और एक साथ 3 हजार करोड़ सूरज निगल सकता है. 

आज इसी महाभयंकर, मॉन्स्टर ब्लैक होल की बात करेंगे. इसे कैसे खोजा गया? वैज्ञानिकों के लिए ये कितनी बड़ी उपलब्धि है और इसकी खोज ने अन्तरिक्ष के कुछ अबूझे सवाल सुलझाए हैं या पहेलियों को और उलझा दिया है?

आगे की बात से पहले एक ट्रिब्यूट. साल 2018 में दुनिया के जाने-माने वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग की मौत हुई. हमारी पीढ़ी जिसने आइंस्टाइन और न्यूटन के बस किस्से पढ़े हैं, उसने महान भौतिकशास्त्री स्टीफन हॉकिंग के साथ अपना वर्तमान साझा किया. वो स्टीफन हाकिंग, जिनकी साल 1970 की ब्लैक होल थियरी ने वैज्ञानिकों के लिए ब्लैक होल खोजना और उसे समझना कुछ आसान कर दिया था.

ब्लैक होल होता क्या है?

पृथ्वी को एक बड़ी सी फुटबॉल मान लीजिए. और मान लीजिए कि इस पर कहीं एक सुई की नोक भर जगह में आप खड़े हैं. खड़े इसलिए हैं क्योंकि पृथ्वी आपको अपनी तरफ खींच रही है. आप पर उसका गुरुत्वाकर्षण बल लग रहा है. पृथ्वी पर गुरुत्वाकर्षण 9.8 मीटर/सेकंड स्क्वायर के हिसाब से लगता है. अब मान लीजिये की ये अचानक बढ़कर लाख गुना हो जाए, तो क्या होगा? आप कहेंगे कि खिंचते हुए पृथ्वी के कोर में धंस जाएंगे. आप सही हैं, लेकिन असल में इतने ज्यादा गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी भी सिमट कर एक सुई की नोक भर रह जाएगी.

पृथ्वी के सिमट जाने वाली हमारी यही कल्पना ब्लैक होल के पीछे का सिद्धांत है. ब्लैक होल, एक अदृश्य चीज है. ये बस है. वैज्ञानिक मानते हैं कि हर तारे का अंत होता है. और अंत के समय ये तारा बहुत ज्यादा, मतलब बहुत-बहुत ज्यादा गुरुत्वाकर्षण के चलते एक बहुत छोटी जगह में सिमट जाता है. ये नींबू की तरह निचुड़ता नहीं है. माने इसका द्रव्यमान कम नहीं होता. बस ये ज़रा सी जगह में सिकुड़ जाता है. 

साइंस स्ट्रीम वाले दोस्त, इसको उल्टा भी समझ सकते हैं, मास ज्यादा तो ग्रैविटी ज्यादा. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये ब्लैकहोल एक परमाणु जितने छोटे भी हो सकते हैं और खरबों सूरज खा जाएं इतने बड़े भी. लेकिन सिद्धांत वही रहेगा, परमाणु जितना छोटा ब्लैक होल एक बड़े पहाड़ जितना भारी भी हो सकता है. फिर सोचिए कई अरब सूर्य के बराबर आकार का एक ब्लैकहोल कितने ख़रब सूरज निगल सकता है.

अब आप पूछेंगे कि ये ब्लैक होल दिखता कैसा है. सही जवाब है, हम नहीं जानते. क्योंकि ये इतनी ज़ोर से किसी भी चीज़ को अपनी ओर खींचते हैं, कि इनसे प्रकाश भी बच नहीं पाता. अब सीन ये है कि कोई भी चीज़ हम देख तभी सकते हैं, जब प्रकाश उस तक जाए और उससे टकराकर लौटे. अब जब प्रकाश लौटेगा ही नहीं, तो हम उसे देखेंगे कैसे? 

जब ये दिखता नहीं, तो साइंटिस्ट कैसे खोजते हैं?

साइंटिस्ट ये देखते हैं कि क्या किसी आकाशगंगा में खूब सारे तारे किसी अदृश्य चीज के चारों तरफ एक घूम रहे हैं? उसके बाद पृथ्वी पर या अन्तरिक्ष में तैनात बड़े शक्तिशाली दूरबीनों से इन इलाकों (ब्लैक होल्स) की तस्वीर उतारने की कोशिश की जाती है. तस्वीर भी कैसी? हमने शुरुआत में स्टीफन हॉकिंग को श्रद्धांजलि दी. फिर से एक बार उन्हें थैंक्स बोलिए. उन्होंने अपनी थियरी में कहा था कि ब्लैकहोल से एक रेडिएशन निकलता है. जिसे ख़ास इंस्ट्रूमेंट्स से डिटेक्ट किया जा सकता है. और इसी थियरी के मुताबिक, इवेंट होराइजन के आस-पास के गोलाकार इलाके की तसवीरें उतारी गईं. इवेंट होराइजन माने ब्लैक होल का वो बाहरी हिस्सा, जहां से कुछ भी वापस नहीं आ सकता. न लाईट, न दूसरी कोई इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव. साल 2019 की अप्रैल को एस्ट्रोनॉमर्स ने पहली बार ब्लैक होल की कोई तस्वीर जारी की थी. अब जो बहुब्बड़ा ब्लैकहोल खोजा गया है, उसकी बात करते हैं.

मॉन्स्टर ब्लैकहोल

NASA के मुताबिक ब्लैकहोल की दो क्लासेज़ हैं. एक स्टेलर-मास ब्लैक होल. ये ब्लैक होल, हमारी गैलेक्सी ‘मिल्की वे’ में होते हैं. इनका द्रव्यमान, सूरज के द्रव्यमान से कम से कम 3 गुना होता है. 3 गुना से लेकर कुछ दर्जन गुना वाले इसी कैटेगरी में आते हैं.

जबकि दूसरे टाइप के ब्लैकहोल SMBH यानी सुपर मासिव ब्लैक होल कहे जाते हैं. इनका द्रव्यमान सूरज के द्रव्यमान से लाखों या करोड़ों गुना ज्यादा तक हो सकता है. अभी जो ब्लैकहोल खोजा गया है. उसका द्रव्यमान सूरज से 30 अरब गुना है. यानी पूरे ३००० करोड़ गुना. रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अब तक का पहला ब्लैक होल है जिसे ग्रेविटेशनल लेंसिंग के जरिए खोजा गया है.

कैसे खोजा गया?

रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ने 29 मार्च, 2023 को जर्नल 'मंथली नोटिसेज़' में अपनी रिसर्च छापी है. जिसके मुताबिक, ये बड़ी खोज करीब 20 साल की मेहनत का नतीजा है. सबसे पहले साल 2004 में इंग्लैंड की डरहम यूनिवर्सिटी के एस्ट्रोनॉमर, प्रोफ़ेसर एलेस्टेयर एज (Alastair Edge) ने इसे नोटिस किया था. वे एक गैलेक्सी के सर्वे की कुछ तसवीरें देख रहे थे. तभी उन्हें ग्रेविटेशनल लेंस पर एक बड़ा सा आर्क दिखा. घुमावदार सी आकृति. 

इसके बाद उन्होंने ग्रेविटेशनल लेंसिंग के जरिए आगे काम शुरू किया. यहां ग्रेविटेशनल लेंसिंग का मोटा-माटी अर्थ यूं है कि जब स्पेस में किसी बहुत बड़ी चीज, जैसे कि किसी आकाशगंगा की वजह से उसके पीछे की किसी और बड़ी चीज से आने वाला प्रकाश मुड़ जाता है, तो इससे पीछे वाली चीज की दो इमेज दिखती हैं. वो भी असली ऑब्जेक्ट से बड़ी. इसी ग्रेविटेशनल लेंसिंग का इस्तेमाल करके रिसर्चर्स की टीम ने ये भीमकाय ब्लैक होल खोज निकाला. 

हबल स्पेस टेलिस्कोप ने गैलेक्सी की तस्वीरें लीं, इनमें गैलेक्सी के पीछे ब्लैकहोल से आने वाली रेडिएशन और लाइट मुड़ी हुई थीं. इसके बाद सुपर कंप्यूटर की मदद से तस्वीरों की लाइट पर सिमुलेशन किया गया. सिमुलेशन एक टर्म है, जिसके मायने हैं, किसी आकृति या किसी चीज की एक तरह की नक़ल उतारना. सुपर कंप्यूटर ने ये सिमुलेशन हजारों बार किया. हर बार गैलेक्सी से पृथ्वी तक आने वाली लाइट के रास्ते, और उसके घुमाव पर विश्लेषण किया गया. और ऐसे ही एक सिमुलेशन में ये साफ हो गया कि ये एक बड़ा ब्लैकहोल है. इस बार लाइट का रास्ता और घुमाव वैसा ही था, जैसा हबल टेलिस्कोप की उतारी गईं असली तस्वीरों में था.

जेम्स नाइटिंगेल डरहम यूनिवर्सिटी के फिजिक्स डिपार्टमेंट में काम करते हैं. जेम्स उस रिसर्च को तैयार करने वाले लेखकों में से एक हैं. अग्रेजी अखबार डेक्कन हेराल्ड के मुताबिक, जेम्स कहते हैं,

"जितने भी बड़े ब्लैक होल, हम जानते हैं, लगभग सभी एक्टिव स्टेज में हैं. जब कोई चीज इन ब्लैक होल्स के नजदीक जाती है तो उसका तापमान बढ़ता है. और इससे लाइट, एक्स रेज़ और दूसरे तरीके के रेडिएशन के रूप में एनर्जी निकलती है. ग्रेविटेशनल लेंसिंग के चलते, उन निष्क्रिय ब्लैक होल्स की स्टडी करना भी संभव है जो कहीं बहुत दूर की गैलेक्सीज में हैं. इस तरीके से हम हमारे यूनिवर्स के पार के ब्लैक होल्स भी खोज सकते हैं." 

वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में और बड़े टेलिस्कोप से और दूर के ब्लैकहोल्स के बारे में भी स्टडी की जा सकेगी.

वीडियो: एस्ट्रोनॉमर्स सोच रहे हैं कि इतना भारी ब्लैक होल गया कहां!

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