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'बिना सवाल का इंसान, इंसान थोड़े बचता है'

इस बार की संडे वाली चिट्ठी में एक इंजीनियर नौकरी के लिए अप्लाई कर रहा है. इस सच के बावजूद कि कंपनी कभी किसी की सगी नहीं होती.

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लल्लनटॉप
17 अप्रैल 2016 (Updated: 16 अप्रैल 2016, 05:28 AM IST)
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ओहो. संडे वाली चिट्ठी पढ़नी है क्या? पर इस बार संडे वाली चिट्ठी की शक्ल थोड़ी सी बदली हुई है. इसे चिट्ठी नहीं, जॉब एप्लीकेशन समझ लो. हां वही थैंक्स रिगार्डस वाली चिट्ठी. dpd-pic_140216-040741-600x400दिव्य प्रकाश दुबे ने दरअसल चिट्ठी नहीं, जॉब एप्लीकेशन लिखी है. एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज के इंजीनियर की तरफ से नौकरी के लिए लिखी गई चिट्ठी. पर ये चिट्ठी बहुत ईमानदारी से लिखी गई है. वैसे नहीं लिखी गई है, जैसे इंग्लिश वाला झूठ हम अपने सीवी में लिख देते हैं, रीडिंग बुक्स इज माइ हैबिट टाइप्स. दिव्य ने पूरी ईमानदारी से सच लिखा है. क्योंकि कंपनियां कभी किसी की सगी तो हुई हैं नहीं, तो क्यों न ईमानदारी बरत ली जाए....
Dear Sir/Mam,Subject: Job Application from an engineer from private college सविनय निवेदन है कि मैं आपके यहां नौकरी के आवेदन हेतु सम्पर्क करना चाहता हूं. मैं पहले ही बता दूं कि मैं वो हूं जो एक प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग कर चुका हूं. नहीं ऐसा नहीं है कि मेरे कॉलेज में कंपनी प्लेसमेंट के लिए नहीं आई थी. कंपनी का कट ऑफ मार्क्स 75 फीसदी के ऊपर था और आपको तो पता ही है प्राइवेट कॉलेज से इंजीनियरिंग करके अगर कोई 75 फीसदी के ऊपर नंबर ला पा रहा है तो ये कहीं न कहीं लड़के का नहीं सिस्टम का दोष है. ऐसे लोगों को डिग्री मिलनी ही नहीं चाहिए.
मैं वो हूं जो छोटी से छोटी नौकरी मई- जून के महीने की सड़ती गर्मी में, हजारों लोगों की भीड़ के साथ वॉक इन देने के लिए लाइन में घंटो खड़ा रह सकता हूं. वहां एक बार शॉर्टलिस्ट होने के बाद ग्रुप डिस्कशन वाले राउंड को रोडीज़ का ऑडिशन समझकर चिल्ला सकता हूं. ग्रुप डिस्कशन क्लियर होने के बाद इंटरव्यू में अपने ‘5 years down the line’ के रटे रटाये जवाब दे सकता हूं.
नहीं आप ये मत समझिएगा कि मुझे कोई सॉफ्टवेर इंजीनियर वाली नौकरी बड़ी पसंद है. असल में एक बार नौकरी लग जाती तो मैं हर संडे MBA की तैयारी करते हुए चैन से डिसाइड कर पाता कि आखिर मुझे जिन्दगी में करना क्या है. इंजीनियरिंग के चार सालों में 500-600 GB फिल्में और टीवी सीरीज़ देखने के चक्कर में इतना टाइम मिल नहीं पाया कि सोच पाऊं कि आखिर मैं करना क्या चाहता हूं. आंसुओं से बना ऑफिस वाला एक्सट्रा मैरीटल रिश्ता देखिए काम की आप चिंता मत करिएगा वो तो हो ही जाएगा. हर कम्पनी में कुछ लड़के लड़कियां तो ऐसे होते ही हैं जो कॉलेज में पहली सीट पर बैठते थे. वो सब संभाल लेंगे, उनको अगर काम न मिले तो नींद नहीं आती, डर सताने लगता है कि कम्पनी उन्हे कहीं निकालने तो नहीं वाली है.
ऐसा नहीं है कि मुझे डर नहीं लगता, लगता है लेकिन ये डर नहीं लगता कि कम्पनी निकाल देगी. कम्पनी तो किसी कि सगी नहीं होती न आपकी भी नहीं है. असल में मुझे डर ये लगता है कि कहीं मुझे अपनी ज़िन्दगी में पता ही नहीं चल पाया कि मैं असल में करना क्या चाहता था तो क्या होगा.
क्या मैं केवल एक ऐसी जिंदगी जी पाऊंगा, जब केवल और केवल वीकेंड और छुट्टियों का इंतज़ार होगा. बस साल भर मैं एक दस दिन की छुट्टी के लिए अपने आप को घिसता और घसीटता रहूंगा. मैं झूठ नहीं बोलना चाहता लेकिन अगर एजुकेशन लोन नहीं होता न तो मैं आपको ये चिट्ठी शायद लिखता ही नहीं. उम्मीद है आप भी इन सब सवालों से गुजरे होंगे. असल में ज़िन्दगी अपने आप में इतना उलझा लेती है कि एक दिन हम सवाल भूल जाते हैं और बिना सवाल का इंसान, इंसान थोड़े बचता है. 'अधूरी लिस्ट पूरी करते-करते हमारी ज़िन्दगी बीत जाएगी' मुझे अपने सवाल बहुत प्यारे हैं. क्या आप मुझे मेरे नकली रेडीमेड जवाबों के लिए नहीं बल्कि मेरे सवालों के लिए अपनी कंपनी में इंटरव्यू देने का एक मौका देंगे. Thanks & Regards, दिव्य प्रकाश
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