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पापा, गले लगते हुए अगर रोना आ जाए तो चुप मत कराइगा

पढ़िए हैप्पी फादर्स डे पर स्पेशल संडे वाली चिट्ठी.

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फोटो क्रेडिट: Reuters
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19 जून 2016 (Updated: 18 जून 2016, 03:49 AM IST) कॉमेंट्स
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दिव्य प्रकाश दुबे
दिव्य प्रकाश दुबे

 
हैप्पी फादर्स डे. यूं तो किसी दिन को एक दिन में समेटकर नहीं रखना चाहिए. फिर भी अगर एक ऐसा दिन मिलता है तो इसे मनाने से क्यों ही परहेज किया जाए. आज फादर्स डे है. संडे भी है. दिव्य प्रकाश दुबे भी हैं. तो बस तीनों ने मिलकर एक खूबसूरत चिट्ठी लिखी है. संडे वाली चिट्ठी. दिव्य ने ये चिट्ठी अपने पापा के नाम लिखी है. क्योंकि दुनिया के सारे पापा लगभग एक से होते हैं, अपने बच्चों को प्यार करने वाले. परवाह करने वाले. चुपचाप दुलार करने वाले. इसलिए ये चिट्ठी दिल के ज्यादा करीब लगती है. पढ़िए संडे वाली चिट्ठी.


डियर पापा,

कुछ दिन पहले आपकी चिट्ठी मिली थी. आपकी चिट्ठी मैं केवल एक बार पढ़ पाया. एक बार के बाद कई बार मन किया कि पढ़ूं लेकिन हिम्मत नहीं हुई. मैंने आपकी चिट्ठी अटैची में अखबार के नीचे दबाकर रख दी है. अटैची में ताला लगा दिया है. मैं नहीं चाहता मेरे अलावा कभी कोई और आपकी चिट्ठी पढ़े.
आपने जैसे कई बातें उस दिन पहली बार चिट्ठी में मुझे बताईं. ऐसी ही एक बात मैं आपको बताना चाहता हूं. छोटे पर जब मैं रोज़ बस से स्कूल जाता था तो रोना नहीं आता था लेकिन जिस बस छूट जाती और आप स्कूल छोड़ने आते थे उस दिन रोना आ जाता था. क्यूं आता था इसका कोई जवाब नहीं है. न मुझे तब समझ आया था न अब समझ में आ रहा है जब मैं ये चिट्ठी लिख रहा हूं.
हम लोगों को मम्मी लोगों ने ये क्यूं सिखाया है कि लड़के रोते नहीं हैं. रोते हुए लड़के कितने गंदे लगते हैं. क्यूं बाप बेटे कभी एक दूसरे को ये बताना ही नहीं चाहते कि उन्हें एक दूसरे के लिए रोना भी आता है. मैं इस चिट्ठी से बस एक चीज बताना चाहता हूं कि जब मैं घर से हॉस्टल के लिए चला था. तब मैं जितना घर, मोहल्ला, खेल के मैदान, शहर, मम्मी के लिए रोया था उतना ही आपके लिए भी रोया था. मुझे याद आती है आपकी. ठीक 10 बजे जो रात में आप फोन करते हैं किसी दिन फोन में आधे घंटे की देरी होती है तो मुझे चिंता होती है. फोन पे भी बस इतनी सी ही बात कि हां ‘यहां सब ठीक है. ‘तुम ठीक हो’ कुल इतनी सी बातचीत से लगता है कि दुनिया में सब ठीक है और मैं आराम से सो सकता हूं.
मम्मी ने घर से आते हुए रोज़ नहाकर हनुमान चलीसा पढ़ने के कसम दी थी, शुरू में बुरा लगता था लेकिन अब आदत हो गई है. हालांकि अब भी मैं मन्दिर वंदिर नहीं जाता हूं. आपको पता है जब मैं छुट्टी पर घर आता हूं तो उतने दिन हनुमान चालीसा नहीं पढ़ता. लगता है कि आपके घर पे रहते हुए हनुमान चालीसा पढ़ने की क्या जरूरत आप तो हो ही.
इस बार घर आऊंगा को सही से गले लगाऊंगा आपको. आज तक हम सही से गले भी नहीं मिले. गले लगते हुए मुझे अगर रोना आ जाए तो चुप मत कराइएगा. बस थोड़ी देर चैन से रो लेने दीजिएगा. बहुत साल के आंसू हैं बहुत देर तक निकलें शायद.
आपकी चिट्ठी का इंतज़ार रहेगा.
दिव्य प्रकाश


 
इस बार सुनिए दिव्य से संडे वाली चिट्ठी
https://www.youtube.com/watch?v=kHvadK_coE4


पढ़िए ये संडे वाली चिट्ठियां…..

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