‘कोका-कोला’ बनने की ग़ज़ब कहानी, जिसकी शुरुआत अफ़ीम की लत से हुई थी
जानिए पानी के बाद सबसे ज़्यादा पिए जाने वाले ड्रिंक की पूरी कहानी.
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फ़ाइल फ़ोटो. सांकेतिक तस्वीर. (AFP)
आज 12 मार्च है और आज की तारीख़ का संबंध है दुनिया में पानी के बाद सबसे ज़्यादा पिए जाने वाले ड्रिंक, कोका-कोला और उसकी बोतल की कहानी से. यूं हमने आज की स्टोरी दो भागों में बांटी है. आइए पहले भाग से शुरू करते हैं.
# ठंडा मतलब कोका-कोला
1861 से 1865 तक अमेरिका गृह युद्ध में फंसा था. कारण बनी थी ‘दास प्रथा’. कुछ राज्य और उसके लोग इसके समर्थन में, कुछ विरोध में. एक लेफ्टिनेंट कर्नल इस गृह युद्ध के दौरान बुरी तरह घायल हो गए. नाम था जॉन स्टिथ पेंबरटन. चोटों ने उन्हें तड़पा दिया. दर्द से निजात पाने के वास्ते अफ़ीम के आदी हो गए. फ़ौज की नौकरी छोड़कर जॉर्जिया राज्य के कोलंबस शहर में बस गए. अपनी अफ़ीम की लत छुड़ाने के लिए उसका ऐसा विकल्प खोजने लगे, जिसकी लत न लगे और जो जानलेवा भी न हो. उन्होंने आर्मी जॉइन करने से पहले फार्मेसी का कोर्स किया था. तो अपनी लत का इलाज खोजने के दौरान ही फार्मेसी को कमाई का ज़रिया भी बनाया.
लेकिन न उन्हें अफ़ीम का कोई विकल्प मिला, न धंधा चला. फिर डेढ़ सौ किलोमीटर दूर जॉर्जिया राज्य की ही एक दूसरी बड़ी मेट्रो सिटी एटलांटा चले आए. साल था 1870. सिविल वॉर को ख़त्म हुए काफ़ी समय हो चुका था, और बड़े शहर पैसा कमाकर देने में सक्षम होने लगे थे. एटलांटा में पेंबरटन को एक और व्यक्ति मिले. फ्रैंक मेसन रॉबिनसन. दोनों ने मिलकर एक कंपनी बनाई – पेंबरटन केमिकल कंपनी.
लेकिन इस दवाई बनाने वाली कंपनी की हालत भी पेंबरटन के कोलंबस वाले धंधे की तरह रही. फिर दूसरा बिज़नेस खोलने की सोची. एक कॉफ़ी शॉप टाइप आउटलेट खोला. ‘सोडा फाउंटेन’ का. तरह-तरह के फ़्लेवर सोडा में मिलाए. लेकिन इन फ़्लेवर्स में कोई भी कोका-कोला वाला फ़्लेवर नहीं था. नवंबर 1885 में एटलांटा ने अपने सारे बार बंद करने की ठान ली. अगले दिन अख़बार में छपा-
किंग एल्कोहोल, एटलांटा से निर्वासित.

SWOT एनालिसिस के अनुसार, ये ख़बर पेंबरटन की ‘सोडा फाउंटेन’ के लिए ओ मतलब ऑपरट्यूनिटी वाले खाने में बैठती थी. हालांकि इस शराबबंदी से पहले भी पेंबरटन का काम सही चल रहा था. क्यूंकि तब महिलाएं बार में नहीं जाती थीं. इसलिए ‘सोडा फाउंटेन’ इन महिलाओं के लिए गप्पों का एक ठिया था. जैसे बार, पुरुषों के लिए.
अब पेंबरटन ने सोचा कि अपने फार्मेसी वाले अनुभव को यहां भी अप्लाई किया जाए. तो अपने घर के बेसमेंट में नए फ़्लेवर के लिए प्रयोग करने लगे. फ़्लेवर अच्छा है या बुरा, इसके लिए एक फ़ीडबैक लूप बनाया. वो अपने ग्राहकों को हर नया फ़्लेवर टेस्ट करवाते. ऐसा करते-करते एक दिन उन्हें लगा बेस्ट फ़ॉर्मूला मिल चुका. ये बात थी 8 मई, 1886 की.
अब रॉबिनसन की बारी थी, वो कंपनी की मार्केटिंग देखते थे. उन्होंने इस प्रॉडक्ट का नाम कोका-कोला (Coca Kola) रखा. Coca इसलिए, कि इसमें कोका प्लांट के पत्ते प्रयुक्त होते थे. और Kola इसलिए क्यूंकि इसमें Kola Nuts (एक तरह का बादाम) प्रयुक्त होते थे. Kola को Cola में बदल दिया गया, जिससे एक राइमिंग वाली फ़ील आती.
लिखने के वास्ते ‘स्पेनसेरियन स्क्रिप्ट’ फ़ॉन्ट चुना गया. जो टाइपराइटर के अविष्कार से पहले अमेरिका का आधिकारिक फॉन्ट था. और रॉबिनसन ये सब जानते थे, क्यूंकि वो एक लाइब्रेरी में बुककीपिंग कर चुके थे. 29 मई, 1886 को कोका-कोला का पहला विज्ञापन प्रकाशित हुआ. ‘एटलांटा कॉन्स्टीट्यूशन’ नाम के अख़बार में.

पहले साल घाटा हुआ. हालांकि घाटा सिर्फ़ बीसेक डॉलर के क़रीब का था, लेकिन एक दूसरी बड़ी दिक्कत आ खड़ी हुई. पेंबरटन की कुछ दिनों के लिए ग़ायब हुई पीड़ा लौट आई थी. इस दौरान वो अपने प्रॉडक्ट कोका-कोला और उसके फ़ॉर्मूले के पेटेंट में हिस्सेदारी अटलांटा के व्यापारियों को बेचते रहे. लेकिन फिर भी उनका मानना था कि कोका-कोला एक दिन अमेरिका का नेशनल ड्रिंक बनेगा, इसलिए एक बड़ा हिस्सा अपने बेटे के नाम कर दिया. उनके बेटे चार्ली को पैसों की ज़रूरत थी इसलिए उसने बचे खुचे शेयर्स आसा ग्रिग्स कैंडलर को 1,750 डॉलर में बेच डाले. ये 1888 की बात थी. हालांकि आसा ने बाद में बताया कि उनके पास 1887 से ही कोका-कोला के पर्याप्त शेयर्स आ चुके थे. ये उन्होंने बाकी व्यापारियों और पेंबरटन से ख़रीदे थे. 16 अगस्त, 1888, यानी डील हो चुकने के कुछ ही महीनों बाद पेंबरटन चल बसे.
आसा ग्रिग्स कैंडलर उस वक्त एटलांटा के काफ़ी मशहूर फार्मसिस्ट थे. कहा जाता है कि शुरुआत में आसा, पेंबरटन के ड्रग स्टोर में जॉब मांगने भी आए थे, लेकिन तब पेंबरटन के पास इतना काम नहीं था.
बहरहाल 29 जनवरी, 1892 को ‘कोका-कोला’ एक प्रॉडक्ट से कंपनी बना दी गई. ‘दी कोका-कोला कंपनी’. यूं आसा ग्रिग्स कैंडलर बने इस कंपनी के फ़ाउंडर. लेकिन ये याद रखिए कि ‘कोका-कोला’ प्रॉडक्ट के फ़ाउंडर जॉन पेंबरटन ही हैं.

# बोतल से एक बात चली है- अब आते हैं आज के किस्से के दूसरे भाग पर और इस सवाल पर कि आज की तारीख़ से कोका-कोला की कहानी का क्या संबंध. तो बात दरअसल ये है कि साल 1894 तक, इस पेय को बोतलों में बंद करके या कैन में नहीं बेचा जाता था. बल्कि इसे आउटलेट्स में हर एक ग्राहक के लिए तुरंत तैयार किया जाता था. कोला सिरप में पहले बर्फ मिलाई जाती फिर सोडा और फिर उसे हिलाकर ग्राहकों को एक कॉकटेल की तरह सर्व किया जाता.
लेकिन ये सब बदलना शुरू हुआ आज की तारीख़ यानी 12 मार्च से. साल था 1894. इस दिन से विक्सबर्ग, मिसिसिपी के एक थोक व्यापारी, जोसफ़ ए. बाइडेनहार्न, ने इसे बोतलों में भरकर बेचना शुरू किया.

1920 तक, 1,200 से अधिक कोका-कोला बॉटलिंग ऑपरेशन स्थापित किए जा चुके थे. लेकिन तब भी कोका-कोला, फाउंटेन और बॉटल्ड दोनों तरीक़े से बिक रही थी. और ख़ूब बिक रही थी. कई कंपनियों ने कोका-कोला की नकल करने की कोशिश की. फ़ॉन्ट भी वही ‘स्पेनसेरियन स्क्रिप्ट’ चुना गया. और प्रॉडक्ट के नाम: ‘कोका-नोला’, ‘मा कोका-को’, ‘टोका-कोला’ जैसे. हालांकि इन धोखाधड़ियों के ख़िलाफ़ कोका-कोला ने कई मुक़दमे भी लड़े लेकिन इन मुक़दमों का फ़ैसला आने में सालों लग जाते.
फिर 1906 में, कोका-कोला कंपनी ने एक रंगीन ट्रेडमार्क के साथ हीरे के आकार का लेबल चिपकाना शुरू किया. लेकिन ये लेबल बोतल से निकल जा रहे थे.

26 अप्रैल, 1915 को ‘कोका-कोला बॉटलिंग एसोसिएशन’ के ट्रस्टियों ने कोका-कोला के लिए लेबल नहीं, एक ऐसी बोतल ही विकसित करने का फ़ैसला लिया, जिसकी नक़ल करना नामुमकिन हो. अमेरिका की ग्लास-कंपनियों के लिए 500 डॉलर की एक रचनात्मक प्रतियोगिता चलाई. और शर्त थी कि-
बोतल इतनी अलग और अजब हो कि उसे अंधेरे में छूकर भी पहचाना जा सके और अगर टूटकर ज़मीन पर पड़ी हो तो उसके टुकड़े तक पहचान में आ जाएं.'रूट ग्लास कंपनी' ने ‘सैम्युल्सन’ नाम के तहत 16 नवंबर, 1915 को एक बोतल का पेटेंट करवाया. बाद में यही बोतल, कंपटीशन जीती. कोका-कोला और ‘रूट ग्लास कंपनी’ के बीच एग्रीमेंट हुआ. अमेरिका में छह नई ग्लास कंपनियों को स्थापित करने का. जहां से आने वाले सालों में इन बोतलों का निर्माण होने लगा.

कोई फ़ॉन्ट, कोई लोगो या कोई टैग लाइन छोड़िए, 12 अप्रैल, 1961 को, कोका-कोला की बोतल को ही ट्रेडमार्क के रूप में मान्यता दे दी गई थी.
ये बोलत वाक़ई इतनी लैंडमार्क थी कि 1949 के एक अध्ययन से पता चला कि 1% से भी कम अमेरिकी हैं, जो कोक की बोतल को उसके आकार से नहीं पहचान सकते थे. मतलब जैसे भारत में क़भी वनस्पति घी का मतलब डालडा, टूथपेस्ट का मतलब कोलगेट रहा था वैसे ही तब यूएस में ‘ठंडा मतलब कोका कोला’ हो चुका था. और आज ये अमेरिका छोड़िए दुनिया में सबसे ज़्यादा पिया जाने वाला पेय है. ऑफ़ कोर्स, पानी के बाद.

कोका कोला सिर्फ़ दो देशों, क्यूबा और नॉर्थ कोरिया, के अलावा हर देश में बिकता है. नॉर्थ कोरिया में क्यूं नहीं बिकता, इसका उत्तर आसान है: किम जोन उन. और क्यूबा वाले पर हमने तारीख़ में अलग से एक एपिसोड किया है, जिसका लिंक ये रहा-
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