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RN Kao: दुनिया के सबसे बेहतरीन खुफिया प्रमुख और रॉ के जनक को कितना जानते हैं?

आरएन काओ ने ऐसे कई ऑपरेशन्स को अंजाम दिया जिन्होंने भारत के भविष्य को आकार दिया. कौन थे RN काओ? कैसे वे एक साधारण पुलिस अधिकारी से देश की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी के प्रमुख बने?

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The Man Behind India Intelligence RN Kao
खूफिया एजेंसी R&AW की स्थापना करने वाले आर एन काओ
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प्रगति चौरसिया
14 अक्तूबर 2024 (Updated: 14 अक्तूबर 2024, 11:51 PM IST) कॉमेंट्स
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भारत की सबसे ताकतवर एजेंसी के पीछे एक ऐसा व्यक्ति था, जिसने दुनिया के इतिहास को बदल दिया, लेकिन खुद कभी सुर्खियों में नहीं आया? यह है कहानी रामेश्वर नाथ काओ की. जिन्हें R&AW का जनक कहा जाता है. एक ऐसा व्यक्ति जो छाया में रहकर देश की सुरक्षा का ढाल बना. बांग्लादेश की आजादी से लेकर सिक्किम के भारत में विलय तक, काओ ने ऐसे कई ऑपरेशन्स को अंजाम दिया जिन्होंने भारत के भविष्य को आकार दिया. कौन थे RN काओ? कैसे वे एक साधारण पुलिस अधिकारी से देश की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी के प्रमुख बने?

19वीं सदी का आखिरी दौर. जब बनारस और इलाहाबाद में पलायन कर रहे कश्मीरी पंडितों की संख्या बढ़ने लगी थी. पहले विश्व युद्ध के कुछ आखिरी दिन चल रहे थे, जब ब्रिटिश राज में रिक्रूटिंग ऑफिसर पद पर तैनात द्वारका नाथ काओ को दो बेटे हुए - श्याम सुंदर नाथ और रामेश्वर नाथ काओ. बांग्लादेश के आर्किटेक्ट, वॉर में दुश्मन की स्ट्रैटेजी को नाप लेने वाले, सिक्किम विलय के मास्टरमाइंड वही रामेश्वर नाथ जिन्हें हम स्पाईमास्टर RN Kao नाम से जानते है.

कठिनाई भरा बचपन

आरएन काव का जन्म 10 मई, 1918 को बनारस में हुआ था. पिता द्वारका नाथ काओ बेटे के जन्म के बाद जल्द ही डिप्टी कलेक्टर बन गए. लेकिन महज 29 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई. तब RN Kao केवल 5 साल के थे. पिता के जाने के बाद उनका बचपन काफी अनसेटल रहा. पहले वो अपनी मां के साथ बड़ौदा में शिफ्ट हुए, फिर उन्नाव, वहां से दोबारा बनारस, और बनारस के बाद एक बार फिर बड़ौदा. 10-12 साल की उम्र में 54 किलो वजन. क्लासमेट के बीच रैगिंग तो होती थी, फिर काओ सरनेम का भी दोस्त खूब मजाक उड़ाते.

गुजराती आती नहीं थी, तो जो भी थोड़ी बहुत बातचीत स्कूल में होती थी वो अंग्रेजी में. ऐसा था आरएन काओ का बचपन. लेकिन जल्द ये ठिकाना भी बदल गया. काओ का परिवार मुंबई शिफ्ट हो गया. वो अपने अंकल त्रिलोकी नाथ काओ के साथ रहने लगे. यहां उनका दाखिला हुआ विले पारले के रामकृष्ण मिशन में. पढ़ाई के दौरान वो योग से दो चार हुए और इससे वजन कम करने में काफी मदद मिली.

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RN Kao का दाना पानी एक बार फिर बदला जब वो लखनऊ आए. यहां उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी में BA की डिग्री हासिल की. पढ़ाई में अच्छे थे तो टीचर्स ने MA करने की हिदायत दी. फिर लखनऊ से उन्होंने संगम नगरी की ट्रेन पकड़ ली. और पहुंच गए उस शहर जहां से नेहरू परिवार की जड़े जुड़ी हैं. काओ ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. BA की पढ़ाई के साथ उन्होंने खुद को बैलेंस रखने के लिए फिल्में देखना शुरू किया. हफ्ते में एक बार हॉलीवुड मूवी देख लेते थे. बदले में शब्दों की सूची में कुछ अंग्रेजी शब्द जुड़ जाते थे. 

पढ़ाई पूरी हुई तो मां ने नौकरी लेने पर जोर दिया. लेकिन काओ को तो अभी आगे और पढ़ना था. मां की बात न मानकर वो लॉ की पढ़ाई के साथ कंपटीशन की तैयारी करने लगे. इस बीच उसी कॉलेज में पीएन हक्सर भी पढ़ाई कर रहे थे. वही हक्सर जो आगे चलकर इंदिरा गांधी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी बने और काओ के साथ मिलकर बांग्लादेश लिबरेशन वॉर में साथ काम किया.

PN Haksar
पी एन हक्सर

1940 में काओ ने इंडियन पुलिस का एग्जाम क्वालीफाई किया. जो फिलहाल इंडियन पुलिस सर्विस के नाम से जाना जाता है. ट्रेनिंग खत्म करने करने के बाद लखीमपुर खीरी में पहली पोस्टिंग हुई. उस समय पुलिस सर्विस में ज्यादातर ब्रिटिशर्स होते थे. ऐसे में जिन इंडियंस का सिलेक्शन होता था उन पर खास नजर रखी जाती थी.

काओ की ट्रेनिंग से जुड़ा एक किस्सा है. एक दिन सभी ट्रेनीज के बीच राष्ट्रीय आंदोलन पर चर्चा हो रही थी. तभी व्यंग्य करते हुए प्रिंसिपल ने कहा, “इस बारे में काओ से पूछो वो ज्यादा अच्छे से बता पाएगा.” दरअसल उस समय पुलिस ऑफिसर्स को स्टेट्समैन या दि पायनियर पढ़ने की हिदायत दी जाती थी. लेकिन मेस में प्रिंसिपल ने काओ को हिन्दुस्तान टाइम्स अखबार पढ़ते देख लिया था. HT को उन दिनों नेशनल मूवमेंट का समर्थक माना जाता था.

तकरीबन सात साल पुलिस की नौकरी करने के बाद काओ को डायरेक्ट ऑफ इंटेलिजेंस ब्यूरो में रिक्रूट किया गया. तब IB की कमान टीजी संजीवी पिल्लई के पास थी. वो IB के डायरेक्टर बनने वाले पहले भारतीय थे. बाद में भोला नाथ मलिक ने ये पद संभाला और उन्होंने ही काओ को पीएम नेहरू के सिक्योरिटी इंचार्ज की जिम्मेदारी सौंपी. बाद में काओ डिप्टी डायरेक्टर होने के साथ विदेशी मेहमानों की सिक्योरिटी के भी जिम्मेदार बने.

एलिजाबेथ का भारत दौरा

1961 की बात है, जब क्वीन एलिजाबेथ भारत के दौरे पर थीं. लोगों का अभिवादन करने के दौरान अचानक कोई चीज तेजी से उनकी तरफ आई. और इसे पलक झपकते ही कैच कर लिया गया. जिसे देखने के बाद क्वीन ने कहा था- गुड क्रिकेट. इसे आरएन काओ ने अंजाम दिया था. और इसके बाद वो गुड बुक्स में आ चुके थे. काओ नेहरू के साथ विदेशों की यात्रा में साथ रहने लगे. जिससे विदेशी डिप्लोमैट्स से उनकी मुलाकात नजदीकियां बढ़ने लगीं. वो कई इंटेलिजेंस चीफ के कॉन्टैक्ट में थे.

Queen Elizabeth
भारत के दौरे पर क्वीन एलिजाबेथ 
चीनी प्रधानमंत्री को मारने की साजिश

1955 की बात है. जब बांडुंग इंडोनेशिया में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया. ये उन देशों का सम्मेलन था जो किसी गुट में नहीं थे. लीड करने वाले दो देश थे भारत और चीन. तब हिन्दी चीनी भाई-भाई का दौर था. चीन के प्रधानमंत्री झू इनलाई को इंडोनेशिया ले जाने के लिए प्रधानमंत्री नेहरू ने एक ख़ास विमान भेजा. ये लॉकहीड मार्टिन का L749A- कॉन्स्टेलशन एयरक्राफ्ट था. जो अमेरिकन मेड था. जो प्लेन झू इनलाई को ले जाने वाला था, उसका नाम था कश्मीर प्रिंसेस.

Nehru with Zhou Enlai
 चीन के प्रधानमंत्री झू इनलाई और भारत के प्रधानमंत्री नेहरु

11 अप्रैल, 1955 को कश्मीर प्रिंसेस दक्षिण चीनी सागर में क्रैश हो गया. घटना में चीन, और भारत के कई नागरिक मारे गए. प्लेन भारत का था. मेड इन अमेरिका था. हांग कांग से टेक ऑफ किया था जो तब ब्रिटिश अधिकार में था. प्लेन में सवार थे चीनी नागरिक. और प्लेन क्रैश हुआ था इंडोनेशिया में. यानी इस केस से पांच देश जुड़े थे. और जुड़ी थी इन पांचों देशों की जांच एजेंसियां. क्योंकि इस प्लेन में चीन के प्रधानमंत्री यात्रा करने वाले थे, ऐसे में इतनी बड़ी चूक का पता लगाने के लिए भारत की तरफ से तहकीकात के लिए भेजा गया RN काओ को.

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ताइवान की कुओमितांग सरकार

काओ तब IB में थे. और इंटरनेशनल इंटेलिजेंस में ये उनका पहला मिशन था. हांग कांग पहुंचकर काओ ने अपनी तहकीकात शुरू की. इसी दौरान वो ब्रिटिश , चीनी और अमेरिकी इंटेलिजेंस के संपर्क में आए. बाद में यही नेटवर्क काम आए जब रॉ का गठन हुआ. जांच में ये बात सामने आई कि प्लेन को बम से उड़ाने की साजिश ताइवान की कुओमितांग सरकार ने की थी. मिशन कंप्लीट होने के बाद काओ वापस लौटे. इसके बाद 1950 में उन्होंने पंडित नेहरू के कहने पर घाना की खुफिया एजेंसी के गठन में भी मदद की थी.

R&AW की स्थापना

1962 में चीन से जंग हारने के बाद भारत की हालत पस्त थी कि पाकिस्तान ने 1965 में जंग छेड़ दिया. प्लान था- घुसपैठ करके हमला. ऑपरेशन जिब्राल्टर पाक आर्मी गुरिल्ला वॉर से कब्जा जमाना चाहती थी, लेकिन कामयाब नहीं हो सकी. IB को 1887 में बनाया गया था जो इंटर्नल और एक्सटर्नल इंटेलिजेंस देख रही थी. लेकिन चीन और पाकिस्तान से जंग के बाद भारत को एक चीज तो समझ आ गई थी कि उसे अपने एक्सटर्नल इंटेलिजेंस को और भी मजबूत करना होगा. 

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 R&AW के हेड आर एन  काओ

जंग केवल बल से नहीं दिमाग से जीती जाती है. मिलिट्री तो अपना काम कर रही थी. लेकिन कुछ काम बैकेंड में चलता है. जैसे दुश्मन की सीक्रेट जानकारी जुटाना. सरकार ऑप्शन्स चाहती थी. जरूरत थी इंटेलिजेंस एजेंसी की. फिर 1968 में स्थापना हुई R&AW की और काओ को उसका हेड बनाया गया.

बांग्लादेश की स्थापना

5 साल बाद 1971 में भारत पाकिस्तान फिर आमने-सामने थे. जंग में भारत के पास थी इंटेलिजेंस एजेंसी R&AW. काओ का खुफिया तंत्र इतना मजबूत था कि उन्हें इस बात तक की जानकारी होती थी कि किस दिन पाकिस्तान भारत पर हमला करने वाला है. R&AW ने पाकिस्तान के हवाई हमले की खुफिया जानकारी को इंटरसेप्ट किया. पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराने का प्लान पर्दे के पीछे से चल रहा था. सामने थी इंडियन मिलिट्री और पीछे R&AW. जिसने एक लाख से अधिक मुक्तिवाहिनी के जवानों को भारत में ट्रेनिंग दी.

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बांग्लादेश लिबरेशन वॉर

काओ को बांग्लादेश का आर्किटेक्ट कहा जाता है. क्योंकि ये पता लगाना कि पूर्वी पाकिस्तान में जमीनी स्तर पर हो क्या रहा है, मुक्तिवाहिनी और मुजीब वाहिनी को ट्रेन करने के साथ पाकिस्तान के डिप्लोमैट्स से नेटवर्किंग बनाने और इस मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय बयानों को संभालने या संगठित करने का काम R&AW के जिम्मे था. और काओ इसे लीड कर रहे थे.

1996 की बात है, जब भारत में बांग्लादेश के स्वतंत्रता की 25वीं सालगिरह का जश्न मनाया जा रहा था. कार्यक्रम में काओ भी पहुंचे थे. वो हॉल में सबसे आखिरी कुर्सी पर बैठे थे. एक बांग्लादेशी पत्रकार ने उनके पास आ कर बोला, “सर आपको तो मंच पर होना चाहिए. आप ही की वजह से तो 1971 संभव हो सका.” काओ को अटेंशन और वाहवाही की आदत तो थी नहीं. वो हल्की मुस्कुराहट में मना करते हुए उठे और चुपचाप हॉल से बाहर निकल गए.

सिक्किम का भारत में विलय

बांग्लादेश की स्थापना के बाद RN Kao के सामने अब एक नया मिशन आने वाले था. सिक्किम का भारत से विलय. आजादी के वक्त सिक्किम अलग रियासत हुआ करती थी. सिक्किम पर चीन की नजर थी. US दूतावास का दखल भी दिख रहा था. साथ ही राजा चोग्याल सिक्किम में राजशाही बरकरार रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय पटल पर जोर लगा रहे थे. इंदिरा के पास और कोई ऑप्शन नहीं था. उन्होंने काओ से पूछा कि क्या इसका कुछ हो कता है? रॉ में जॉइंट डायरेक्टर के पद पर तैनात PN Banerjee ने सिर्फ़ चार दिनों में एक प्लान बनाया और RN काओ ने इसे इंदिरा के सामने पेश किया.

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सिक्किम के राजा चोग्याल और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 

प्लान ये था कि चोग्याल राजशाही को धीरे-धीरे कमजोर किया जाए. और इसके लिए सिक्किम की लोकल राजनीतिक पार्टियों की मदद ली गई. जिन्होंने पहले ही राजशाही के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी थी. 16 मई, 1975 को सिक्किम आधिकारिक रूप से भारत का 22वां राज्य बन गया. R&AW ने इसके लिए सिक्किम के राजा चोग्याल के खिलाफ प्रदर्शन को बढ़वाया, राजनीतिक दलों का समर्थन जीता, जनमत संग्रह की योजना बनाई, ये सब कुछ प्लान का हिस्सा था.

जब आरएन काओ पर लगे आरोप

9 साल बाद R&AW को सर्व करने के बाद साल 1977 में काओ ने रॉ चीफ के पद से इस्तीफा दे दिया. तब मोरारजी देसाई की सरकार सत्ता में आई थी. जो पहले इंदिरा गांधी पर ये आरोप लगा चुकी थी कि वो अपने विरोधियों की जासूसी करवाती थी. काओ पर इमरजेंसी के दौरान इंदिरा की मदद करने का भी आरोप लगा था, लेकिन जांच में वो बेकसूर पाए गए.

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 पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके ठीक पीछे आर एन काओ

रिटायरमेंट के बाद साल 1981 में इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त कर दिया. आरएन काओ ने भविष्य की सुरक्षा चिंताओं से निपटने के लिए पॉलिसी एंड रिसर्च स्टाफ (PARS) की नींव रखी. PARS एक थिंक टैंक और पॉलिसी एडवाइजरी संस्था है, जो कि सरकार को सलाह देती है. रिटायरमेंट के कई सालों बाद तक वो एक्टिव रहे. लेकिन इस बीच काफी कम ही पब्लिक प्लेस पर स्पॉट किए जाते थे. उन्हें अटेंशन पसंद नहीं थी. उन्होंने पूरे टेन्योर में केवल एक इंटरव्यू दिया.

ऑपरेशन ब्लू स्टार और आतंकवाद से निपटने के लिए 1986 में नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) की स्थापना की गई. इसमें काओ की भूमिका अहम थी. काओ समय के सख्त थे. साल में एक बार अपने सभी ऑफिसर्स से मिलते थे. उन्हें दूसरों पर चिल्लाना अच्छा नहीं लगता लेकिन कोई उनकी बात में टांग लड़ाए ऐसा भी बिल्कुल पसंद नहीं करते थे. काओ का कहना था कि ‘नसीहत मत दो नमूना बन जाओ’. और ऐसा उन्होंने किया भी. 1982 में फ़्रांस की एक्सटर्नल खुफिया एजेंसी DGSE के प्रमुख काओंट एलेक्ज़ांड्रे द मेरेंचे से जब पूछा गया था कि वो 70 के दशक के दुनिया के पांच सबसे बेहतरीन खुफिया प्रमुखों के नाम बताएं, तो उन्होंने उन पांच लोगों में काओ का नाम भी लिया था.

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RAW के शुरुआती दिनों में काओ की टीम पैन इंडिया टाइप थी. जिसमें के शंकरन नायर, पीएन बनर्जी, IS Hassanwalia, डॉक्टर फड़के जैसे नाम थे. के शंकर नायर, काओ के डिप्टी थे. जो आगे चलकर R&AW के चीफ भी बने. नायर काओ के सबसे करीबी दोस्त थे. काओ की पूरी टीम को ‘काउ बॉयज़’ बुलाया जाता था. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति और इंटेलिजेंस एजेंसी सीआईए के प्रमुख रह चुके जार्ज बुश सीनियर ने काओ को अमेरिकी 'काऊ बॉय' की छोटी सी मूर्ति गिफ्ट में दी थी. बाद में जब उनके ऑफिसर्स को 'काउ बॉयज़' कहा जाने लगा तो उन्होंने इस मूर्ति का फाइबर ग्लास मॉडल बनवा कर रॉ के हेडक्वॉटर के रिसेप्शन रूम में लगवा दिया.

काओ के बारे में बताया जाता है कि धार्मिक होने के साथ उनकी शिल्पकला में काफी रुचि थी. दिल्ली के वसंत विहार में आरएन काओ अपनी पत्नी मालिनी काओ और छोटे भाई श्याम सुंदर नाथ काओ के साथ रहते थे. भाई के साथ उनका बेहतरीन बॉन्ड था. जब उनके भाई की तबीयत खराब होने पर आईसीयू में एडमिट किया गया तो काओ भी बीमार पड़ गए. 20 जनवरी 2002 में आएएन काओ ने आखिरी सांस ली. उन्होंने अपने आखिरी दिनों मे कुछ टेप रिकॉर्ड किए थे. और साथ ही कुछ खुफिया फाइलें थीं जिनमें बांग्लादेश, सिक्किम विलय और इंदिरा गांधी की हत्या से जुड़ी जानकारियां शामिल हैं. लेकिन उनकी ये इच्छा थी कि 2025 से पहले इसे न खोला जाए. ये सारे रिकॉर्ड दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी में मौजूद हैं.

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