पाकिस्तान में हुए हमले की पूरी कहानी!
26 अगस्त की सुबह बंदूकधारियों ने बलूचिस्तान में 23 लोगों की गोली मार कर हत्या कर दी. इन हमलों की ज़िम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ली है. क्या है बलूचिस्तान और BLA की पूरी कहानी?
तारीख़, 26 अगस्त 2024. जगह, बलूचिस्तान का मुसाखेल. सुबह का वक़्त था. लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी जी रहे थे. सड़कों पर गाड़ियां आ-जा रही थीं. तभी एक हाइवे पर अचानक 30-40 हथियारबंद लोग रास्ता रोक कर खड़े हो गए. फिर उन्होंने आती-जाती गाड़ियों को रोकना शुरू किया. यात्रियों से आइडी कार्ड दिखाने के लिए कहा. कुछ लोगों को अलग लेकर गए. फिर उन्हें एक साथ खड़ा कर गोली मार दी. जब तक सिलसिला खत्म होता, तब तक 23 लोग मारे जा चुके थे. पाकिस्तान में पिछले कई बरसों में इस किस्म का सबसे बड़ा हमला था. इस घटना ने पूरे पाकिस्तान में तहलका मचा दिया.
मगर कहानी यहीं तक सीमित नहीं थी. हिंसा 25 अगस्त की रात ही शुरू हो गई थी. कुछ और घटनाओं पर ग़ौर करिए,
-कलात में 11 लोगों की हत्या.
-बोलान में 06 लोगों की डेडबॉडी बरामद.
-सिबी, पंजगुर, मस्टैंग, तुरबत, बेला और क़्वेटा में बम धमाके.
-बेला में फ़्रंटियर कोर (FC) के कैंप पर क़ब्ज़ा.

ये सारी घटनाएं पिछले 48 घंटों में घटी हैं. पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में. इन हमलों की ज़िम्मेदारी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने ली है. पाकिस्तान आर्मी ने जवाबी कार्रवाई में 21 चरमपंथियों को मार गिराने का दावा किया.27 अगस्त को पाकिस्तान सरकार ने इमरजेंसी मीटिंग बुलाई. मीटिंग के बाद प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि आतंकवाद को खत्म करने वक़्त आ गया है. BLA के हमलों की टाइमिंग भी खूब चर्चा में है. दरअसल, 26 अगस्त को नवाब अकबर बुगती की बरसी थी. इसी तारीख़ को 2006 में पाकिस्तान फ़ौज ने उनकी हत्या कर दी थी. बुगती बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री और गवर्नर रहे. बाद में बलूचिस्तान की आज़ादी की मुहिम चलाने लगे. आइए समझते हैं.
- बलूचिस्तान में सिलसिलेवार हमलों की कहानी.
- BLA ने पंजाब प्रांत के लोगों को निशाना क्यों बनाया?
- और, नवाब अकबर बुगती कौन थे, जिनकी बरसी पर BLA ने हमले किए?
बलूचिस्तान, पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है. दो देशों से बलूचिस्तान की सीमा लगती है - ईरान और अफ़ग़ानिस्तान. पाकिस्तान में कुल चार प्रांत हैं - पंजाब, खैबर पख्तूनख्वाह, सिंध और बलूचिस्तान. क्षेत्रफल के लिहाज से बलूचिस्तान सबसे बड़ा है. क्षेत्रफल लगभग साढ़े 3 लाख वर्ग किलोमीटर है. आबादी लगभग 1 करोड़ 30 लाख है. - पाकिस्तान की 44 फीसदी ज़मीन बलूचिस्तान में है. हालांकि, आबादी 05 फीसदी से भी कम है.
बलूचिस्तान के दक्षिण में अरब सागर है. जो समुद्री व्यापार के लिए काफी अहम है. पाकिस्तान ने ग्वादर पोर्ट चीन को लीज पर दिया है. ये चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का हिस्सा है. इसके अलावा, खनिजों के खनन की भी छूट दी है. हालिया समय में चीन, पाकिस्तान का सबसे अहम मददगार बनकर उभरा है. आरोप लगते हैं कि पाकिस्तान इसका बदला बलूचिस्तान को बंधक बनाकर चुका रहा है.
बलूचिस्तान में तांबा, कोयला, सोना और यूरेनियम का बड़ा भंडार है. पाकिस्तान के कुल प्राकृतिक संसाधनों का 20 फीसदी यहीं पर है. पाकिस्तान के 03 नौसैनिक अड्डे बलूचिस्तान में है. यहीं स्थित चगाई में परमाणु परीक्षण कर पाकिस्तान परमाणु ताकत बना था. इतना कुछ होने के बाद भी बलूचिस्तान के सितारे धूमिल हैं. 80 फीसदी आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करती है. विकास के दूसरे मानकों पर भी ये इलाका सबसे पीछे है.
बलोचों की संस्कृति, उनकी भाषा और उनका इतिहास पंजाबियों और सिंधियों से अलग रहा है. पाकिस्तान की राजनीति में पंजाबियों का वर्चस्व सबसे अधिक है. आरोप लगते हैं कि उन्होंने बलोचों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया. एक उदाहरण तो पाकिस्तान की संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली का है. 336 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में बलूचिस्तान के हिस्से में महज 20 सीटें हैं. आकार में सबसे विशाल होने के बावजूद.
बलूचिस्तान का इतिहास क्या है?जो आज बलूचिस्तान है, एक वक्त पर वो चार रियासतों में बंटा था. कलात, खारान, लॉस बेला, मकरान. सबसे ताक़तवर कलात था. 1947 में भारत का बंटवारा हुआ. पाकिस्तान मगर कलात के राजा मीर अहमद ख़ान आज़ादी की मंशा रखते थे. उन्होंने कई महीने पहले इसकी तैयारी शुरू कर दी थी.
1946 में जब कैबिनेट मिशन भारत आया, मीर अहमद ने अपना एक वकील पैरवी के भेजा था. वो वकील थे, मुहम्मद अली जिन्ना. मीर अहमद ने मुस्लिम लीग की भी ख़ूब मदद की थी. जिन्ना ने भी फ़र्ज़ निभाया. वो कलात की पैरवी के लिए कैबिनेट मिशन से मिले. मीर अहमद ने जवाहरलाल नेहरू को भी मनाने की कोशिश की. मगर नेहरू तैयार नहीं थे. फिर मीर अहमद खुद दिल्ली आए. 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में नेहरू के साथ राउंड टेबल मीटिंग हुई. इसमें लार्ड माउंटबेटन और जिन्ना भी थे. जिन्ना ने वहां भी कलात की आज़ादी का समर्थन किया. तय हुआ कि कलात आज़ाद देश होगा और खारान और लॉस बेला का उसमें विलय कराया जाएगा.

15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ. अगले ही रोज़ कलात ने अपनी आज़ादी का ऐलान कर दिया. कहा कि पाकिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्ते होंगे. हालांकि, कुछ समय बाद ही कलेश शुरू हो गया. सितंबर 1947 में ब्रिटेन ने कहा कि कलात आज़ाद मुल्क की ज़िम्मेदारियां उठाने के लिए तैयार नहीं है. जिन्ना को मौका मिल चुका था. अक्टूबर 1947 में कलात के राजा कराची के दौरे पर पहुंचे. उन दिनों कराची पाकिस्तान की राजधानी थी. बलोच लोगों ने उनका ज़बरदस्त स्वागत किया. मगर उनके स्वागत के लिए जिन्ना ना तो ख़ुद आए और ना प्रधानमंत्री को भेजा. बाद में हुई मीटिंग में तो ग़ज़ब ही हुआ. ताज मोहम्मद ब्रीसीग ने अपनी किताब ‘बलोच नेशनलिज्म’ में इस मीटिंग का ज़िक्र किया है. बकौल ताज, उस मीटिंग में जिन्ना ने मीर अहमद ख़ान को पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव दिया. मीर अहमद ने वहीं पर मना कर दिया. लेकिन वहां से दबाव बढ़ता गया. स्थानीय कबीलों के सरदार मीर अहमद का सपोर्ट करने से मना करने लगे. बलूचिस्तान की कुछ रियासतों ने पाकिस्तान के साथ मिलने की इच्छा जताई. मीर अहमद ने हर तरफ़ हाथ-पैर मारे, मगर कहीं से मदद नहीं मिली.

फिर आई, 27 मार्च 1948 की तारीख़. इस रोज़ ऑल इंडिया रेडियो पर एक ख़बर चली और कहानी का पन्ना तेज़ी से पलटने लगा. उस प्रसारण में भारत के तत्कालीन केंद्रीय सचिव वीपी मेनन की प्रेस कांफ्रेस का जिक्र हुआ. बकौल प्रेस कॉन्फ़्रेंस, मेनन ने कहा था कि कलात के राजा भारत के साथ विलय चाहते हैं. लेकिन हम कुछ करने के पक्ष में नहीं हैं. चूंकि मेनन अब सरदार पटेल के साथ रियासतों के विलय की जिम्मेदारी संभाल रहे थे. इसलिए, उनके इस कथित बयान पर हंगामा तय था. नेहरू और सरदार पटेल ने इस ख़बर को झूठा बताया. मगर तब तक देर हो चुकी थी. जिन्ना ने पाक फ़ौज को कलात पर चढ़ाई का आदेश दे दिया था. 28 मार्च 1948 को मीर अहमद ख़ान को अरेस्ट कर कराची ले जाया गया. और, वहां उनसे ज़बरन विलय के काग़ज़ात पर दस्तख़त कराया गया. इस तरह बलूचिस्तान को पाकिस्तान का हिस्सा बनाया गया. इसे अधिकांश बलोच नागरिकों ने कभी स्वीकार नहीं किया. इसलिए, पाकिस्तान की साज़िशों का लगातार प्रतिरोध होता रहा है.
इसके बाद 1958, 1962 और 1973 में पाकिस्तान सरकार के ख़िलाफ़ विद्रोह हुआ. फ़ौज ने इसको बेरहमी से कुचल दिया. बलूचिस्तान में अगला बड़ा विद्रोह 2005 में हुआ. उस बरस नवाब अकबर ख़ान बुगती ने बंदूक उठाई थी. बुगती 1950 के दशक में डिफ़ेंस मिनिस्टर हुआ करते थे. 1989 से 1990 के बीच बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री भी रहे. 2005 में उन्होंने बलूचिस्तान के संसाधनों पर पर्याप्त हक़ देने की मांग की थी. अगले बरस उनकी हत्या हो गई. इसके बाद विद्रोह और तेज़ हुआ.
उससे पहले बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले संगठनों के बारे में जान लीजिए. कुछ बड़े नाम हैं,
-लश्कर-ए-बलूचिस्तान.
-बलोच लिबरेशन फ्रंट (BLF).
-बलोच राज़ी अजोई संगार (BRAS)
-बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA)
26 अगस्त वाले हमले की ज़िम्मेदारी BLA ने ली है. माना जाता है कि BLA का बेस दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान और ईरान में है. अगर आपको याद हो, जनवरी 2024 में पाकिस्तान और ईरान के बीच तनातनी हुई थी. पाकिस्तान ने ईरान के हमले का जवाब दिया था. तब पाकिस्तान ने दावा किया था कि उसने ईरान के अंदर BLA के अड्डों को निशाना बनाया है.
पाकिस्तान में BLA बलूचिस्तान और सिंध के कुछ इलाकों में भी ये एक्टिव है.
इसको लेकर मतभेद हैं. कुछ लोगों का मानना है कि 2000 के साल में स्थापना हुई. कुछ का दावा है कि इसको रूस की ख़ुफ़िया एजेंसी KGB ने बनाया. 1979 में सोवियत संघ ने अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया. जंग में पाकिस्तान और अमेरिका मुजाहिदीनों की मदद कर रहे थे. सोवियत यूनियन ने पाकिस्तान में आतंरिक कलह पैदा करने के इरादे से अपने दो एजेंट्स भेजे. इनके नाम थे मीशा और शाशा. इन दोनों ने बलूचिस्तान स्टूडेंट आर्गनाइजेशन (BSO) से मुलाकात की. BSO अयूब खान के दौर में बना था. उस समय बलोचों पर फ़ौज का ज़ुल्म बढ़ा हुआ था. कहानी चलती है कि मीशा और शाशा ने BSO के लोगों को रूस भेजा और ट्रेनिंग दिलवाई. वहीं से बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी BLA की शुरुआत हुई.
जब-जब BLA की चर्चा होती है, भारत का नाम क्यों आता है?पाकिस्तान अक्सर आरोप लगाता है कि भारत BLA को फ़ंडिंग देता है. ताकि पाकिस्तान में अस्थिरता पैदा की जा सके. भारत इससे इनकार करता है. हालांकि, कुछ मौकों पर BLA के कमांडर्स फ़र्ज़ी पहचान पत्र पर भारत आकर इलाज करवा चुके हैं.
BLA का कैडर लगभग छह हज़ार लोगों का है. वे पाकिस्तान में सैकड़ों हमले कर चुके हैं. कुछ बड़े नाम जान लीजिए,
- 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ पर जानलेवा हमला किया. मुशर्रफ़ बच गए. इसके बाद BLA के ख़िलाफ़ बड़ा मिलिटरी ऑपरेशन शुरू हुआ. उसी बरस पाकिस्तान ने BLA को प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया. पाकिस्तान के अलावा अमेरिका, ब्रिटेन और चीन भी BLA को आतंकी संगठन मानते हैं.
- अप्रैल 2009 में BLA ने पंजाब प्रांत के लोगों को टारगेट करना शुरू किया. कुछ ही महीनों में 500 नागरिकों की हत्या कर दी गई.
- सितंबर 2021 में ग्वादर में BLA ने मोहम्मद अली जिन्ना की मूर्ति को उड़ा दिया.
इन सबके अलावा, BLA कई बार चीनी नागरिकों और चीन के पैसे से चलने वाले प्रोजेक्ट्स पर भी हमले कर चुका है. पाकिस्तान सरकार BLA को खत्म करने के लिए कई ऑपरेशन चला चुकी है. मगर उन्हें अब तक कामयाबी नहीं मिली है.
BLA को बढ़ावा देने में तालिबान का भी हाथ बताया जाता है. अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद पाकिस्तान में आतंकी हमले बढ़े हैं. केवल 2023 में 650 से ज़्यादा हमले हुए. इनमें से 23 प्रतिशत हमले बलूचिस्तान में हुए. कई बलोच संगठन पाकिस्तान सरकार पर दोहरा रवैया अपनाने के आरोप लगाते हैं. कहना ये कि सरकार उनके संसाधनों की लूट करती है. विदेशियों में भी बांटती है. मगर कभी उनकी जायज़ मांगों पर ध्यान नहीं देती.
नवाब अकबर बुगती की कहानीइनकी डेथ एनिवर्सरी पर ये हमला हुआ है. 12 जुलाई 1926, बलूचिस्तान के डेरा बुगती इलाके में पैदाइश हुई. उनके पिता कबीले के मुखिया थे. नाम था, नवाब मेहराब खान बुगती. कराची ग्रामर स्कूल में शुरुआती पढ़ाई के बाद ऑक्सफोर्ड भेजा गया. 1958 में पहली बार सांसद बने. 1958 में मलिक फ़िरोज़ खान नून की सरकार में उन्होंने कुछ समय के लिए रक्षा मंत्री का पद भी संभाला. फरवरी 1989 में वो बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री चुने गए. फिर आया साल 2005. सुई गैस फील्ड में शाजिया खालिद नाम की डॉक्टर का रेप हुआ. पाकिस्तान सरकार ने इसपर कोई एक्शन नहीं लिया. उन्हें उल्टा विदेश भेज दिया गया. बुगती ने सरकार पर भेदभाव का आरोप लगाया. कुछ समय बाद उन्होंने विद्रोह छेड़ दिया. अगस्त 2006 में बुगती को पाकिस्तानी सेना ने मुठभेड़ में मार दिया. बुगती पर परवेज मुशर्रफ पर हमले का आरोप लगाया गया था. अगस्त 2024 में बुगती के बेटे ने आरोप लगाया कि अमरेिका ने उनके पिता की लोकेशन पाक फ़ौज को दी थी.
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