पाकिस्तान का ममी कांड!
2600 साल पुरानी ममी ने पाकिस्तान को चूना लगा दिया!
पाकिस्तान का बलूचिस्तान प्रांत. यूं जाना जाता है उन बेज़ुबान आवाज़ों के लिए जो दबा दी जाती हैं. फ़ौजी तानाशाहों के एक इशारे पर. बलूचिस्तान की राजधानी है क्वेटा. साल 2000, अक्टूबर के महीने में किसी रोज़ यहां रहने वाले एक क़बीलाई सरदार के घर एक दस्तक हुई. बाहर पुलिस थी. बाहर खड़े लोग सोच रहे थे, आज किसकी बारी है. कुछ देर में अंदर से एक ताबूत निकला. (Pakistan Mummy)
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मौत रोज का मसला है, लेकिन आज ये ताबूत किसलिए. सवाल सबके होंटों पर था. और जवाब किसी के पास नहीं. ताबूत क्वेटा से कराची पहुंचा. और कुछ ही दिनों में ताबूत की खबर दुनिया भर में फैली और ईरान, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में तनातनी शुरू हो गई. सब उस ताबूत पर अपना हक़ जता रहे थे. लेकिन क्यों? ऐसा क्या था उस ताबूत में? ताबूत के अंदर थी एक लड़की. पट्टियों में जकड़ी हुई. जिसके सीने पर लिखा था. (Persian Princess Mummy Case)
मर्डर के केस में मिली ममी“मैं महान जरसीज की बेटी हूं. मैं हूं रोडुगून. मैं हूं”
इस क़िस्से की शुरुआत होती है एक पुलिस केस से. साल 2000 की बात है. पाकिस्तान के कराची शहर की पुलिस एक मर्डर केस की तहक़ीक़ात कर थी. इसी दौरान पुलिस के हाथ एक विडियो लगा. जो केस को एक बिलकुल नई दिशा में ले गया. विडियो में क्या था? एक ममी दिखाई दे रही थी. बिलकुल वैसी जैसी मिस्र में मिलती हैं. विडियो बनाने वाला ममी बेचेने की बात कर रहा था. दाम कितना था- 60 करोड़ रुपए. पुलिस ने विडियो बनाने वाले का पता लगाया. विडियो अली अकबर नाम के एक शख़्स ने बनाया था. जो कराची का रहने वाला था. (Persian Princess Mystery)
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पुलिस ने दबिश डाली और अली अकबर को गिरफ़्तार कर लिया. पूछताछ में उसने ममी का असली पता बताया. ममी बलूचिस्तान में रखी थी. ऊंटो का कारोबार करने वाले एक क़बीलाई सरदार के घर में. जिसका नाम वली मुहम्मद रीकी था. पुलिस रीकी के घर पहुंची. और ममी को अपने क़ब्ज़े में ले लिया. रीकी और अकबर पर पुरावशेष अधिनियम के तहत केस दर्ज हुआ और दोनों को जेल हो गई. हालांकि मामले में अभी काफ़ी कुछ साफ़ नहीं हुआ था. पाकिस्तान में मिस्र की ममी कहां से आई. पुलिस के सामने ये सवाल बाक़ी था. और इसका जवाब सिर्फ़ वली मुहम्मद रीकी ही दे सकता था. (Fake Persian mummy Pakistan)
रीकी ने पुलिस को बताया कि ये ममी उसे शरीफ़ शाह बाखी नाम के शख़्स ने दी थी. बाखी ईरान का रहने वाला था, और उसने अनुसार ये ममी ईरान में आए एक भूकम्प के बाद खोद कर निकाली गई थी. बाखी ने रीकी से कहा, अगर वो ब्लैक मार्केट में ममी को बेच देगा तो करोड़ों की रक़म दोनों आधा आधा बांट लेंगे. ये कहानी सुनकर पुलिस बाखी के खोज में जुट गई. बाखी तो पुलिस की पकड़ में नहीं आया लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में एक काम ये ज़रूर हुआ कि पाकिस्तान के हाथ एक बड़ा ख़ज़ाना लग गया. प्राचीन मिस्र की ममी, पाकिस्तान के टूरिज़्म को ग़ज़ब बढ़ावा दे सकती थी. इसलिए ममी को पूरी सुरक्षा के साथ नेशनल म्यूज़ियम पहुंचा दिया गया. तुरंत दुनिया भर में हो हल्ला मच गया. ममी से वैसे भी हमारा फ़ेसिनेशन ज़्यादा ही रहता. इसलिए ये खबर अमेरिका के अख़बारों ने तक छाप दी. हालांकि अभी तक ये किसी को नहीं पता था कि ममी किसकी है, ताबूत का अंदर और क्या-क्या है.
पर्शिया की शहजादीये पता लगाने का ज़िम्मा मिला पाकिस्तान के आर्कियोलोजिस्ट अहमद हसन दानी को. दानी ने कई दिनों तक ममी को स्टडी किया और फिर एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स कर सबको ममी की कहानी बताई. दानी के अपने आकलन के अनुसार ममी प्राचीन मिस्र के तौर-तरीक़ों से बनाई गई थी. ममी को एक लकड़ी के ताबूत में दफ़नाया गया था. और उसके बाद उस ताबूत को पत्थर के बने एक ताबूत में डाला गया था. पत्थर के ऊपर हज़ारों साल पुरानी लिपि में कुछ चीजें लिखी हुई थीं. और एक देवता का चित्र बना हुआ था. जिसका सम्बंध पारसी धर्म से था. दानी ने ममी की उम्र 2600 साल बताई. यानी इस ममी को ईसा से 600 साल पहले दफ़नाया गया था.
ममी थी किसकी?
ये बात उसके सीने में लगी सोने की एक प्लेट से पता चली. प्लेट में जो लिखा था उसके अनुसार ये फ़ारस के एक बड़े महान और प्रतापी राजा जरसीज की बेटी थी. जिसका नाम रोडुगून था. उसके शरीर पर मोम और शहद का लेप लगाकर उसे ममी बनाया गया था. और उसके सर पर एक सोने का मुकुट भी पहनाया हुआ था. ममी के बारे में अगर आप थोड़ा बहुत भी जानते तो एक सवाल उठना लाज़मी है. मरे हुए लोगों की ममी बनाना, ये मिस्र की परम्परा थी, फ़ारस की नहीं. इसलिए सवाल उठा कि फ़ारस की शहज़ादी को ममी क्यों बनाया गया. इस सवाल का सही-सही जवाब कोई नहीं दे सकता था. लिहाज़ा अलग-अलग आर्कियोलोजिस्ट ने अलग लाग थियोरी दी.
किसी न कहा, हो सकता है ये मिस्र की शहजादी हो, जिसकी शादी फ़ारस के किसी राजकुमार से हुई हो. किसी ने कहा, ये राजा सायरस के दौर की कोई शहज़ादी हो सकती है. कई विशेषज्ञों ने कहा कि हो सकता है ये फ़ारस में बनाई गई इकलौती ममी हो. जिससे हमें फ़ारस यानी पर्शिया के इतिहास के बारे में नई जानकारी मिल जाएगी.
तालिबान, ईरान, पाकिस्तान में झगडाइन थियोरीज के बाद सवाल उठा कि ये ममी क्वेटा कैसे पहुंची. इस सवाल का जवाब यूं मिला कि साल 1999 में ईरान में एक भूकम्प आया था. इस दौरान किसी ने ये ममी निकाल कर बॉर्डर पार पहुंचा दी थी. हुआ जो भी, फ़िलहाल का सत्य ये था कि पाकिस्तान के हाथ एक ऐतिहासिक ख़ज़ाना लग गया था. जिसकी क़ीमत करोड़ों में थी. लेकिन इस बात का कोई जश्न मनाया जाता, उससे पहले ही गिद्द टपक पड़े. पका पकाया खाने के लिए.
ममी बलूचिस्तान से मिली थी, जिसका बॉर्डर अफ़ग़ानिस्तान से मिलता था. इसलिए ज़िंदा लड़कियों की दुपल्ली कीमत भी ना रखने वाला तालिबान इस 2600 साल पुरानी लाश पर दावा ठोकने लगा. तालिबान ने यहां तक दावा कर दिया कि उसने ममी की कब्र खोदने वाले तस्करों को पकड़ लिया है. दूसरी तरह जब ममी के पर्शिया से सम्बंध की बात सामने आई, ईरान ने भी ममी को वापिस लौटाने की बात कही. ईरान ने unesco और इंटरपोल जाने की धमकी दी. पाकिस्तान ने दोनों दावों को ठुकरा दिया. पाकिस्तान पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर, सलीम उल हक़ ने कहा, चूंकि ममी पाकिस्तान की सीमा के अंदर मिली है, इसलिए वो पूरी पाकिस्तान की है, हम उसके ताबूत की मिट्टी भी नहीं देंगे.
इधर जब अंतराष्ट्रीय पटल पर ये मुद्दा गरमा रहा था, पाकिस्तान के अंदर से भी आवाज़ें उठना शुरू हो गई. बलोच नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि सिंध वाले हमारी ममी चुराकर ले गए. सिंध वाले बेफ़िकर थे. पाकिस्तान का नेशनल म्यूज़ियम तैयारियों में जुटा था. ममी को म्यूज़ियम में रखकर खूब नोट कूटे जाने वाले थे. सब कुछ सही चल रहा था कि फिर एक दिक़्क़त आ गई. म्यूज़ियम में जब किसी ऐतिहासिक चीज़ को रखा जाता है, तो उसकी डिटेल्ज़ भी लिखी जाती हैं. मसलन वो कितनी पुरानी है. ममी है तो उसकी हाइट कितनी है, उसका आकार प्रकार कैसा है, आदि कई बातें. ये सब पता लगाने के लिए ममी के परीक्षण किए जाते हैं. रेडियोएक्टिव परीक्षण होता है, कार्बन डेटिंग से उसकी उम्र पक्का की जाती है, और CT स्कैन कराया जाता है. लेकिन CT स्कैन होता इससे पहले ऐक्स रे में ही ममी ने कुछ ऐसा दिखा दिया, जिससे पता चला कि वो ममी नहीं सबकी पापा है.
हुआ ये कि जिस म्यूज़ियम में ममी को रखा गया था, वहां एक निश्चित तापमान मेंटेंन किया गया था. ताकि उसमें कोई ख़राबी ना आए. ये तापमान रूम टेम्प्रेचर के बराबर होता है. लेकिन रूम टेम्प्रेचर में रखी ममी कुछ ही दिनों में सडांध मारने लगी. उसमें हल्की-हल्की बदबू आने लगी. ये देखकर म्यूज़ियम वालों ने जल्दी से ममी को कराची के आगा खान अस्पताल भेज दिया गया. टेस्टिंग के लिए.
आगा खान शिया मुसलमानों के निज़ारी इस्माइल सेक्ट के इमाम की पदवी होती है. उन्हें पता चलता कि उनके नाम पर बने हॉस्पिटल में इस ममी को भेजा गया, तो शायद सर पीट लेते. क्योंकि अस्पताल में जैसे ही ममी की टेस्टिंग की गई पता चला, उसका दिल शरीर से ग़ायब था. आप कहेंगे इसमें क्या दिक़्क़त. दिक़्क़त ये कि मिस्र की ममियों का दिल नहीं निकाला जाता था. मिस्र के लोग मानते थे कि दिल में आत्मा का वास होता है. और दिल मौत के बाद की यात्रा के लिए ज़रूरी होता है. बहरहाल दिल ग़ायब होने से अधिकारियों का दिल कुछ ज़ोरों से धड़का लेकिन आगे जो होने वाला था उससे दिल के टुकड़े टुकड़े होने वाले थे. एक ऐतिहासिक खोज जल्द ही ऐतिहासिक बलंडर में तब्दील होने वाली थी.
जब ममी पर डाला गया एक्स-रेममी पर जब एक्स रे डाला गया, पता चला कि उसकी उम्र 2600 साल तो क्या 26 साल भी नहीं है. आगे की टेस्टिंग से पता चला कि ममी को जो ज़ेवर पहनाए ग़ए थे, सब नक़ली और सस्ते धातु के बने थे. जितना सोना था,वो इतना पतला था कि छूने से टूट जाए. यहां तक कि उसके बालों पर भी रंग किया गया था, ताकि वो पुराने लगें. ममी के ताबूत में जो कुछ लिखा हुआ था, वो सब भी नक़ली और फ़ेक था. ममी ममी नहीं किसी बेचारी 21-22 साल की लड़की थी लाश थी. इस लड़की की मौत 1996 में हुई थी. जिसका या तो क़त्ल किया गया था. या मौत के बाद कब्र से उसकी लाश चोरी कर ली गई थी. लड़की की बॉडी से ये भी पता चला कि उसकी गर्दन की हड्डी टूटी हुई थी और मौत के 24 घंटों बाद ही उसे ममी बना दिया गया था.
ममी की पूरी असलियत बाहर आने में 6 महीने का वक्त लगा. अप्रैल 2001 में पाकिस्तानी आर्कियोलोजिस्ट ने स्वीकार किया कि ममी नक़ली है. कमाल की बात ये हुई कि जो पुलिस क्वेटा जाकर 2600 साल पुरानी लाश ढूंढकर ले आई थी, वो उस मासूम लड़की के हत्यारों का पता नहीं लगा पाई. यहां तक कि उसे दोबारा दफ़नाने के लिए भी एक NGO को आगे आना पड़ा.
सरकार से कई बार रिक्वेस्ट करने के बाद ईधी फ़ाउंडेशन को साल 2008 में लड़की की लाश मिली. और उन्होंने विधिवत तरीक़े से उसका अंतिम संस्कार किया. गीता याद है आपको. 8-9 साल की एक भारतीय बच्ची जिसे सुनाई नहीं देता था और जो गलती से ट्रेन में बैठकर पाकिस्तान पहुंच गई थी. इसी ईधी फ़ाउंडेशन के संस्थापक, अब्दुल सत्तार ईधी की पत्नी बिलक़िस ईधी ने गीता को अपने यहां पनाह दी थी. और कई सालों तक उसकी देखरेख कर उसे भारत लाए थे. बाद में केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज के प्रयास से गीता को भारत लाया गया था.
कहानी इतनी ही थी. कहानियां इतनी ही होती हैं. 2600 साल पुरानी लाश की खबर दुनिया में दिखाई जाती है, और जब पता चलता है वो 21 साल की विक्टिम लड़की है. किसी की उस कहानी में दिलचस्पी नहीं रहती. उसका नाम भी पता नहीं होता. हमें भी नहीं पता है. पता करने लायक़ वैसे भी अभी कुछ और है. वो और ये कि अपने भी देश में एक लड़की के अपराधियों को फूल मालाएं पहनाई जाती हैं. और महीनों से चली आ रही हिंसा, जिसका सबसे ज़्यादा शिकार लड़कियां हुई हैं, उस एक खबर पर चर्चा करने के लिए देश को 70 दिन लग जाते हैं.
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