सलीम किदवई को बेगम अख्तर से इतना प्यार क्यों था?
जाने-माने इतिहासकार और गे राइट एक्टिविस्ट सलीम किदवाई का निधन हो गया है.
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सलीम किदवई. दाईं ओर बेगम अख्तर के साथ जवानी की एक तस्वीर. फोटो साभार- ट्विटर
कम ही लोग जानते हैं कि बेगम की कब्र लखनऊ के पसंदबाग इलाके में है. इस कब्र की स्थिति खराब हो चली थी. ये बात जानकर सलीम किदवई दुखी थे. उन्होंने अपने दोस्तों को इस बारे में बताया. वो चाहते थे की बेगम अख्तर की कब्र का जीर्णोद्धार किया जाए. दो संस्थाओं, अपने दोस्तों की मदद से सलीम ने आखिरकार बेगम की कब्र को वो सम्मान दिलाया जिसकी वो हकदार थीं. अब लखनऊ की तहज़ीब को समझने वाले बेगम अख्तर की कब्र तक भी जाते हैं. सलीम किदवई ऐसे ही थे. अड़ जाते तो बस फिर करके दम लेते थे. तमाम किताबों का ट्रांसलेशन हो या फिर बेहतरीन रचनाएं. उन्होंने तहज़ीब और संस्कृति के क्षेत्र में अपना बड़ा योगदान दिया. लखनऊ से उन्हें बेपनाह प्यार था. इतना कि दिल्ली छोड़ने के बाद वो लखनऊ ही आ बसे थे. चाहते तो दिल्ली रुक सकते थे, विदेश जा सकते थे, लेकिन लखनऊ के चाहने वाले कहते हैं ना-What terrible news tjats just come from Lucknow Via Askari Naqvi : Saleem Kidwai Bhai is no more in this world. He left us this morning. A noted historian, author and gay rights activist, Saleem leaves behind a rich and valuable legacy of literature, activism and friendship. pic.twitter.com/WHNTE20e0h
— Rana Safvi رعنا राना (@iamrana) August 30, 2021
लखनऊ हम पर फिदा है, हम फिदा-ए-लखनऊ
आसमां में वो ताव कहां, जो हमसे छुड़ाए लखनऊ'पॉजिटिव वाले अजीब शख्स थे' सलीम किदवई दिल्ली के रामजस कॉलेज में मध्यकालीन इतिहास पढ़ाते थे. रिटायर हुए तो लखनऊ पहुंच गए. मशहूर इतिहासकार और समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ता थे. लेकिन इन शब्दों भर से सलीम किदवई की पहचान नहीं हो सकती. उनकी पहचान के लिए तो उनका दोस्त बनना जरूरी था. उनके दोस्त अस्करी नकवी ने फोन पर 'दी लल्लनटॉप' से कहा,
"सलीम अजीब थे और ये नेगेटिव वाला अजीब नहीं पॉजिटिव वाला अजीब है. वो दोस्तों के दोस्त थे. कभी फोन करो तो कहते थे कि दो दिन बाद मिलूंगा. उनको नहीं समझने वाले शायद बुरा मान जाते. लेकिन जो उन्हें जानता था वो ये भी जानता था कि सलीम क्या शख्सियत हैं. वो अपनेपन से बात करते थे. अधिकार से बात करते थे. ऐसे ही टोकते थे. डांट भी देते थे. लेकिन हर चीज में सीख छुपी होती थी. वो अपने आप में एक अलहदा शख्सियत थे. लखनऊ चले आए थे और तभी से हमारी उनकी दोस्ती और पक्की होती गई."नकवी बताते हैं कि सलीम ने इस बात को कभी छुपाया नहीं कि वो 'गे' हैं. उन्होंने 'सेम सेक्स लव इन इंडिया' नाम की एक बेहद चर्चित किताब भी लिखी. अस्करी कहते हैं,
"बेगम अख्तर पर उन्होंने काफी लिखा. बेगम की तमाम रिकॉर्डिंग्स उनके पास मौजूद थीं जो शायद किसी के पास ना हों. रेयर रिकॉर्डिंग्स भी उनके पास थीं. वो इस हद तक उनके मुरीद थे कि एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि वो इकलौती औरत हैं इस संसार की जिनसे मैं प्यार करता हूं. सिवाय उनके कोई और नहीं जिससे मुझे मुहब्बत होगी. दोनों 30 तारीख को ही गए."नकवी ने कहा कि सलीम, लखनऊ इसलिए आए थे कि वो लिख-पढ़ सकें. यहां आकर उन्होंने ट्रांसलेशन का बहुत काम किया. मल्लिका पुखराज की ऑटोबायोग्राफी लिखी. फिर उर्दू की तीन किताबें कीं. जानवरों पर एक किताब का ट्रांसलेशन किया, मिरर ऑफ वंडर्स. फिर कुर्अतुल ऐन हैदर की किताबें थीं. लखनऊ आने के बाद उनकी जिंदगी पढ़ने-पढाने को समर्पित थी.
Two years ago #SaleemKidwai gave me the permission to post this picture on Twitter. Today we lost Saleeb Saab. the other two giants are gone as well. It's truly the end of an era. cc: @MananKapo https://t.co/yWAVmVvupW — Aseem Chhabra (@chhabs) August 30, 2021अस्करी बताते हैं कि सलीम लोगों की बहुत मदद करते थे. ऐसा नहीं है कि वो बहुत प्यार से समझाते थे. वो अधिकार से टोकते थे. उनके जैसा इंटेलेक्चुअल, उनके जैसा स्कॉलर होना कठिन है. उनके दोस्त उन्हें याद कर रहे हैं. मनोज बाजपेयी, देवदत्त पटनायक समेत तमाम लोग उन्हें याद कर रहे हैं. लखनऊ के मशहूर किस्सागो हिमांशु वाजपेयी बताते हैं,
"उनका जाना लखनऊ के लिए बहुत बड़ा नुकसान है. वो इतिहास पढ़ाते थे दिल्ली विश्वविद्यालय में और उस जमाने में LGBTQ राइट्स की बात करते थे, जब इस पर बात करना ही कठिन था. उन्होंने बहुत शानदार ट्रांसलेशन्स कीं. खुद बहुत लिखा. उनका जाना वाकई बहुत बड़ा नुकसान है. एक लेखक और एक इंसान के तौर पर वे हमेशा याद किए जाएंगे."वरिष्ठ पत्रकार, लेखिका और सलीम की दोस्त महरू जाफर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि सलीम को सवाल करने वाले युवा पसंद थे. वे मानते थे कि समलैंगिकता, वेस्टर्न कल्चर नहीं है, बल्कि भारत में इसका इतिहास रहा है. यहां की संस्कृति का हिस्सा रहा है. धारा 377 के विरोध में दाखिल की गई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान रूथ वनिता और सलीम की लिखी किताब सुप्रीम कोर्ट में भी रखी गई थी. बाराबंकी जिले के बड़ागांव इलाके के रहने वाले सलीम किदवई, जीवन के शुरुआती सालों में ही लखनऊ आ गए थे. यहां से वो दिल्ली पहुंचे थे और वहां से कनाडा. लेकिन इसी रास्ते वो वापस लखनऊ आ गए. उनकी मौत के बाद उनकी पार्थिव देह को बाराबंकी के बड़ागांव ले जाया गया और वहीं दफन किया गया.