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'खून में ब्रेड भिगो कर खाने' से लेकर 'ब्लड बाथ' तक, ड्रैकुला और वैम्पायर के इन किस्सों का सच क्या है?

कंकाल के पैरों में ताला पड़ा था. और गर्दन के चारों तरफ लोहे की दरांती थी. ये सब किया गया था. ताकि ये कभी मौत से वापस ना लौट सके.

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real story of history of dracula and vampire lallantop
वैंपायर्स को खून पीने वाला बताया जाता है(PHOTO-वॉलपेपर केव)
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राजविक्रम
26 नवंबर 2024 (Updated: 27 नवंबर 2024, 14:39 IST)
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आज से कुछ दो साल पहले, साल 2022. उत्तरी पोलैंड में पिएन का एक कब्रिस्तान. जहां एक रिसर्च टीम कब्र खोद रही थी. बारीकी से खुदाई चल रही थी, ताकि अवशेषों को कोई नुकसान ना पहुंचे. धीरे-धीरे मिट्टी साफ होती जाती है और हड्डियां नजर आने लगती हैं. एक कंकाल निकलता है. ये कंकाल एक महिला का था. पर ये कोई आम कब्र नहीं थी. कंकाल के पैरों में ताला पड़ा था. और गर्दन के चारों तरफ लोहे की दरांती थी. ये सब किया गया था. ताकि ये कभी मौत से वापस ना लौट सके.

दरअसल कुछ 400 साल पहले, इसे वैंपायर समझकर दफनाया गया था. ऐसे ही दर्जनों लोगों को यहां वैंपायर, यानी खून पीने वाले दैत्य समझकर दफनाया गया था. स्थानीय लोगों ने इस खास वैंपायर को नाम दिया, जोज़िया. मौत के वक्त जोज़िया की उम्र कुछ 18-20 साल थी. जोज़िया की खोपड़ी का एनालिसिस करने पर पता चला, कि उसे हेल्थ की दिक्कतें थीं. जिसकी वजह से उसे भयंकर सिर दर्द होते रहे होंगे. साथ ही कुछ मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याएं भी रही होंगी.

इसके अलावा जोज़िया की जिंदगी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं मालूम पड़ता. लेकिन हाल के सालों में एक प्रोजेक्ट को अंजाम दिया गया. रिसर्चर्स ने इस महिला के चेहरे की नकल को फिर से बनाया. जिसमें ये आम इंसान सी ही नजर आती है. स्वीडिश आर्कियॉलजिस्टर ऑस्कर निलसन इस प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं, 

“दफनाने वालों ने पूरी कोशिश की थी कि जोज़िया मौत के बाद कभी वापस ना आ सके. दूसरी तरफ हमने पूरी कोशिश की है कि उसे वापस लाया जा सके.”

जाहिर सी बात है. जोज़िया अकेली महिला नहीं थीं. जिन्हें वैंपायर समझ, ये सुलूक किया गया था. ऐसे ही बुल्गेरिया में मिले 700 साल पुराने एक कंकाल के दांत निकाल लिए गए थे. और उसके सीने पर लोहे की छड़ घुसा दी गई थी. फिल्मों, किताबों और कहानियों में आज वैंपायर्स का खूब जिक्र मिलता है. अलग-अलग देश-काल और किस्सों में वैंपायर्स के कई लक्षण बताए गए हैं. कुछ में इन्हें खून का प्यासा दरिंदा बताया जाता है. जो रात के अंधेरे में शिकार पर निकलते हैं. धूप पड़ते ही जल उठते हैं. लहसुन से इन्हें भय है. यानी ये ठंड की गुनगुनी धूप में, नुक्कड़ वाली चाची की चाउमीन नहीं खा सकते. इन्हें मारने के सीमित तरीके हैं, मसलन इनकी छाती में लकड़ी का टुकड़ा घुसा दो. चांदी की गोली सीने में भर दो या फिर इन्हें शीशा दिखा दो.

वहीं इनमें से कुछ चमगादड़ों की तरह, तहखाने में रहते हैं. तो कुछ ड्रैकुला की तरह महलों में. वैंपायर डायरीज़ जैसे शोज़ में इनका ड्रामा दिखाया जाता है. वहीं ‘व्हाट वी डू इन द शैडोज़’ जैसे शोज़ में - इन कहानियों के मजाकिया पहलू को एक्सप्लोर किया जाता है. आज ये कहानियों और पॉप कल्चर का हिस्सा हैं. मनोरंजन में भरपूर इस्तेमाल किए जाते हैं. पर एक वक्त में लोग इन कहानियों पर खूब भरोसा करते थे. खून पीने वाले इस काल्पनिक दैत्य का इतिहास, खूब खूनी भी रहा है. इस सब के पीछे एक अंधविश्वास था.

मौत के बाद वापसी

इनके बारे में अंधविश्वास है कि मौत के बाद उठकर, वैंपायर्स हमें नुकसान पहुंचा सकते थे . और ये उभरा एक गलतफहमी के चलते कि बॉडी डिकंपोज़ कैसे होती हैं. दरअसल मरने के बाद इंसान की लाश सिकुड़ती है. जिससे उसके दांत और नाखून बढ़ते हुए लग सकते हैं. मरने के बाद लोगों के नाखून बढ़ना, अपने आप में असहज कर देने वाला है. वहीं दूसरी तरफ अंगों के ब्रेकडाउन के बाद, एक काला सा ‘पर्ज फ्लूइड’ तरल- नाक और मुंह से बहने लगता है, जो खून जैसा लग सकता है. शायद इन्हीं वजहों से लोगों को लगता होगा कि ये मरने के बाद कब्र से निकलकर खून पीते थे. इस भ्रम के साथ वैंपायर के मिथक के दूसरे पहलू भी हैं.

कार्क कॉलिंस अपनी किताब ‘वैंपायर फॉरेंसिक्स’ में बीमारियों को भी इसके पीछे की एक वजह मानते हैं. दरअसल उस दौर में तमाम बीमारियों के पीछे की वजह नहीं मालूम थी. प्लेग जैसी महामारियां भी आम थीं. पर लोगों को पता नहीं था. कि ये ना दिखने वाले वायरस या बैक्टीरिया से हो रही हैं. ऐसे में एक तबका वैंपायर्स को भी बीमारियों के पीछे की एक वजह समझने लगा और इन्हें मारने पर उतारू हो गया. उद्देश्य था कि एक छद्म नियंत्रण का भाव इन बीमारियों पर पाया जा सके. इससे इन बीमारियों पर कंट्रोल की झूठी फीलिंग लोगों को मिली. खैर ये तो बात हो गई मिथक की. पर इस मिथक का असर असल जिंदगी पर भी था.  

शुरुआती किस्से

खून पीने वाले दैत्यों की कहानी पुरानी है. प्राचीन मेसोपोटामिया और ग्रीस में भी खून पीने वाले जीवों के किस्से चलते थे. लैमिया और एमपुसा ग्रीक माइथोलॉजी में खून पीने वाली दैत्य थीं. खैर एक वक्त में लोग कहानियों में इतना खो गए कि कई असल मामलों में इनकी झलक दिखने लगी. ऐसी ही एक कहानी, एलिजाबेथ बॉथोरी की. हालांकि इस कहानी, में कई बातों पर रिसर्चर्स एक मत नहीं हैं. कुछ उसे मानसिक तौर पर बीमार खूनी मानते हैं. वहीं कुछ के मुताबिक, उसे दौलत हड़पने के लिए, रिश्तेदारों के हाथों फंसाया गया था.  

जो भी हो, ये कहानी दिल दहला देने वाली है. बॉथोरी को अब तक की सबसे खूंखार महिला सीरियल किलर कहा जाता है. जिसने अपने आलीशान किले के भीतर 600 जवान लड़कियों को मौत के घाट उतार दिया. किस्से चलते हैं कि उसे लगता था कि कुंवारी लड़कियों के खून से नहाने पर, वो जिंदगी भर जवान रह सकती है. खैर प्राचीन ट्रांसल्वेनिया के रईस परिवार में बॉथोरी का जन्म हुआ था. साल 1560 से ये एक आलीशान किले में रह रही थी. लेकिन बचपन से ही उसे स्वास्थ्य की दिक्कतें होने लगीं. चार-पांच साल की उम्र से ही उसे मिर्गी के दौरे पड़ते. खतरनाक मूड स्विंग्स होते, और भयंकर सिरदर्द होता. दूसरी तरफ बचपन से ही वो हिंसा देखती रही. उस दौर में नौकरों को बुरी तरह पीटा जाता था. बचपन में एक बार तो उसने एक शख्स को मौत की सजा दी जाते हुए देखा. कुछ वक्त बाद उसकी शादी हो गई. उसके बच्चे भी हुए. 

एक तरफ बॉथोरी का पारिवारिक जीवन चल रहा था, दूसरी तरफ गांव में किसानों की बेटियों की हत्या हो रही थी. लेकिन काफी समय तक इनपर ध्यान नहीं दिया गया. जब तक एक राजसी खानदान की महिला का कत्ल नहीं हो गया. लोगों ने दावा किया कि बॉथोरी ने ही इन्हें मारा है. तब हंगरी के राजा ने इन कत्लों के पीछे के कातिल को खोजने का आदेश दिया. उसके ही चचेरे भाई को ये जिम्मेदारी दी गई. जिसने आस-पास के लोगों से बातचीत के आधार पर बताया, कि बॉथरी ने ही अपनी कामवाली की मदद से 600 से भी ज्यादा लड़कियों की जान ली. एक धड़ा मानता है कि दौलत के लिए उसे फंसाया गया था.

खैर 30 दिसंबर, 1609 को बॉथरी और उसके नौकरों को गिरफ्तार कर लिया गया. फिर साल 1611 में तीन नौकरों को मौत की सजा सुनाई गई. हालांकि बॉथरी पर कोई मुकदमा नहीं चलाया गया. बस उसे किले के एक कमरे में बंद कर दिया गया. जहां वो मरते दम तक रही. बहरहाल खून से नहाने, कुंवारी लड़कियों की हत्या और तमाम दूसरी कहानियों के साथ - ये अफवाहें भी चलीं कि बॉथरी खून पीने वाली एक वैंपायर भी थी. ऐसी ही एक और कहानी ‘व्लाद द इम्पेलर’ की भी है.

सूली पर चढ़ाने वाला

1450 के दशक के आस-पास, रोमानिया में एक शासक हुआ. काउंट ड्रैकुला उर्फ सूली पर चढ़ाने वाला उर्फ व्लाद ड्रैकुला. कुछ इतिहासकार इसे महज एक खूंखार शासक बताते हैं. जो ऑटमन साम्राज्य के साथ बहादुरी से लड़ा. लेकिन इसके ये नाम किसी और वजह के चलते पड़े. लेजेंड्स के मुताबिक, व्लाद ड्रैकुला - पीड़ितों को मरते दम तक सूली पर टांगता था. और इनके बहते खून में ब्रेड डुबा कर खाता था. जिसके चलते इसका ड्रैकुला नाम पड़ा.

दूसरी तरफ वैंपायर के साथ जुड़ी हर कहानी खूंखार नहीं थीं. मसलन मैरी ब्राउन की कहानी ही ले लीजिए. 1800 के दशक की बात है, अमेरिका के रोड आइलैंड में एक किसान था, जार्ज ब्राउन. जार्ज ब्राउन की एक बेटी थी, मैरी ब्राउन. सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था. पर टीबी के चलते जार्ज के परिवार के कई लोग एक-एक करके मरने लगे. उस दौर में ये आम बात थी कि परिवार में हुई कई मौतों का जिम्मा, किसी एक पर डाल दिया जाता था. लाशों को खोदा जाता था और एक मृत को वैंपायर करार दे दिया जाता था कि यही मौत से उठकर जाने ले रहा होगा.

गांव वालों ने जार्ज के परिवार के मृत लोगों के शरीर को निकाला, वैंपायर होने के संकेतों की खोज की. दरअसल देखा जाता था कि लाश डिकंपोज हुई है या नहीं. एक-एक करके सभी की लाशों को देखा गया. लेकिन मेरी की मौत ठंड के समय हुई थीं. जाहिर सी बात है उसकी लाश इतनी जल्दी खराब नहीं हुई थी. गांव वालों ने समझा कि वो एक वैंपायर थी. जो अपने परिवार के लोगों की जान ले रही थी. इसलिए उन्होंने मैरी का दिल निकाला. और उसे जला दिया. फिर उसकी राख, जिंदा बचे बीमार भाई को खिला दी गई. पर कुछ वक्त बाद उसका भाई भी मर गया. ऐसी ही तमाम कहानियां वैंपायर के मिथकों से जुड़ी मिलती हैं. पर कुछ वैंपायर असल में भी हैं. कम से कम वो मानते हैं कि वो वैंपायर हैं.

असली वैंपायर!

विज्ञान की तरक्की. बीमारियों के पीछे की वजह और इलाज मिलने के बाद, वैंपायर का मिथक खत्म हुआ और ये आधी रात वाले हॉरर शो तक सीमित रह गए. पर आज भी कुछ लोग हैं, जो खुद को वैंपायर मानते हैं. देखने में तो वो हमारे-आपके जैसे लगते हैं. पर अंधविश्वास के चलते वो सेहतमंद रहने के लिए थोड़ी मात्रा में खून भी पीते हैं.

इंटरनेट, समेत कई देशों के कस्बों और शहरों में ऐसी कम्युनिटी हैं, जो खुद को वैंपायर मानती हैं. ये किसी की जान नहीं लेते. बस चुपके से डोनर से खून लेकर पीते हैं. हाल के सालों में हेलेन स्वीज़र नाम की एक महिला ने भी सुर्खियां बंटोरी. जिसका दावा था कि वो असली वैंपायर है. इसके मुताबिक ये लोगों की एनर्जी खाती थी. खैर वैंपायर की तमाम कहानियों में एक कहानी ये भी सही. पर इस मिथकीय किरदार से एक बात तो कही जा सकती है. कि कई बार मिथक लोगों के दिमाग में घर कर लेते हैं. और इसका असर असल दुनिया में भी दिखता है.

जैसा कि नाज़ी प्रोपॉगैंडा नेता जोसेफ गोएबल्स से जुड़ी एक बात कही जाती है,

                                                                                                       “एक झूठ को कई बार दोहराओ और वो सच बन जाता है.”

वैंपायर्स के अलावा कुछ और भी मिथकीय किरदार हैं जिनके बारे में लोग काफी मजबूती से मानते हैं. जैसे पिरामिड के ममीज़ की आत्मा और हिमालय के पहाड़ों में रहने वाले येति दानव.

वीडियो: तारीख: क्या लोग मरने के बाद लौट सकते हैं? खून में ब्रेड डुबाकर खाने वाले ड्रैकुला की कहानी

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