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राहुल गांधी से जो बंगला छिना, वो मिलता कैसे है, उसमें क्या-क्या होता है?

सांसदों को बंगला वरिष्ठता के आधार पर मिलता है या जुगाड़ से?

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Rahul Gandhi Official Bunglow
राहुल गांधी ने बंगला छोड़ने को तैयार हैं. (फोटो सोर्सं- फेसबुक)
30 मार्च 2023 (Updated: 31 मार्च 2023, 11:28 IST)
Updated: 31 मार्च 2023 11:28 IST
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मानहानि मामले में राहुल को सजा हुई. सांसदी भी चली गई. और 27 मार्च, 2023 को लोकसभा की हाउसिंग कमेटी ने उन्हें अपना आधिकारिक आवास खाली करने का नोटिस भेजा. उसे भी उन्होंने स्वीकार कर लिया. राहुल अब तक 12, तुगलक लेन, नई दिल्ली के पते पर रहते आए हैं. ये बंगला उन्हें साल 2004 में अलॉट किया गया था. तब, वो पहली बार अमेठी लोकसभा से सांसद बनकर सदन में आए थे. वो अब तक 4 बार सांसद रह चुके हैं. माने करीब 19 सालों से ये बंगला उनका आधिकारिक आवास रहा है.

राहुल के पास अपनी सजा के खिलाफ अपर कोर्ट में अपील करने का विकल्प मौजूद है. कोर्ट ने 30 दिन का वक़्त भी दिया है. लेकिन अभी तक उन्होंने कोई कानूनी कदम नहीं उठाया है. हालांकि आज तक की एक खबर के मुताबिक, राहुल गांधी ने बंगला खाली करने के लिए कुछ दिन का वक़्त मांगा है. 

नियमतः जब सांसद की सदस्यता जाती है तो सभी सुविधाएं भी छिन जाती हैं. भत्ते, बंगला, गाड़ी सब. लेकिन बंगला मिलने और जाने के कुछ नियम हैं. संवैधानिक पदों के कद के हिसाब से बंगले बांटे जाते हैं. आज इन्हीं नियमों को जानेंगे.

बंगला कैसे मिलता है?

साल 1922 में डायरेक्टरेट ऑफ़ स्टेट्स (DoE) नाम का एक विभाग बनाया गया था. ये हाउसिंग और शहरी विकास मंत्रालय के अधीन आता है. ये विभाग सरकारी बंगले भर नहीं, बल्कि पूरे देश में भारत सरकार की सारी प्रॉपर्टीज का मैनेजमेंट और प्रशासन देखता है. डायरेक्टरेट ऑफ़ स्टेट्स विभाग, जिस क़ानून के तहत बंगले अलॉट करता है वो है, जनरल पूल रेजिडेंशियल एकोमोडेशन एक्ट, संक्षिप्त में GPRA एक्ट. इसी क़ानून में बताई गई शर्तों और नियमों के मुताबिक, सरकारी लोगों को दिल्ली और उसके बाहर की भी कई लोकेशंस पर बंगले मिलते हैं. इसमें उनका पद और तनख्वाह जैसी चीजें देखी जाती हैं. हालांकि, सांसदों को घर देने की प्रक्रिया में, DoE के अलावा लोकसभा और राज्यसभा की हाउसिंग कमेटीज का भी अपना रोल होता है.

बंगलों की कैटेगरी क्या है?

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के जजों, सांसदों और ब्यूरोक्रेट्स को दिल्ली में जो सरकारी आवास दिए जाते हैं, वो लुटियंस जोन में आते हैं. अभी लुटियंस बंगलो जोन 28 वर्ग किमी से ज्यादा दायरे में है. मौजूदा वक्त में लुटियंस जोन में 1 हजार से ज्यादा बंगले हैं, जिनमें से 65 निजी हैं. बाकी बंगलों में बड़े-बड़े नेता, अफसर, जज और सेना के अधिकारी रहते हैं. टाइप IV से टाइप VIII के आवास सांसदों, केंद्रीय मंत्रियों और राज्य मंत्रियों को दिए जाते हैं.  पहली बार चुने गए सांसदों को टाइप IV के बंगले मिलते हैं. एक से ज्यादा बार चुने गए सांसद को टाइप VIII बंगला दिया जाता है. टाइप VIII का बंगला सबसे उच्च श्रेणी का होता है. ये बंगले आमतौर पर कैबिनेट मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के जज, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व  राष्ट्रपति और वित्त आयोग के चेयरमैन को मिलते हैं.

कैटेगरी के आधार पर ही इन बंगलों में कमरों की संख्या और सुविधाएं का स्तर होता है.

सुविधाएं क्या मिलती हैं?

लोकसभा पूल में कुल 517 रिहायशी ठिकाने हैं. इनमें 159 बंगले, 37 ट्विन फ्लैट, 193 सिंगल फ्लैट, 96 बहुमंजिला इमारतों में फ्लैट और 32 यूनिट्स सिंगुलर रेगुलर ठिकानों की हैं.  ये सारे आवास सेंट्रल दिल्ली के नार्थ एवेन्यू, साउथ एवेन्यू, मीना बाग, बिशम्बर दास मार्ग, बाबा खड़क सिंह मार्ग, तिलक लेन और विट्ठल भाई पटेल हाउस में हैं.

-बंगलों में टाइप 8 बंगला, सबसे उच्च श्रेणी का माना जाता है. यह लगभग तीन एकड़ (थोड़ा कम-ज्यादा भी) का होता है. इन बंगलों की मुख्य बिल्डिंग में 8 कमरे (5 बेडरूम, 1 हॉल, 1 बड़ा डाइनिंगरूम और एक स्टडी रूम) होते हैं. इसके अलावा कैम्पस में एक बैठकखाना और बैकसाइड (कैम्पस के अंदर ) में  एक सर्वेन्ट क्वार्टर भी होता है. आम तौर पर टाइप 8 बंगला कैबिनेट मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, पूर्व प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति/  (अथवा इनके जीवित पत्नी/पति) और वरिष्ठतम नेताओं को आवंटित किया जाता है. टाइप 8 बंगले जनपथ, त्यागराज मार्ग, कृष्णमेनन मार्ग, अकबर रोड, सफदरजंग रोड, मोतीलाल नेहरू मार्ग और तुगलक रोड पर हैं.

-टाइप 7 बंगला का रकबा एक से डेढ़ एकड़ के बीच होता है. इसमें टाइप 8 बंगलों की तुलना में एक बेडरूम कम ( 4 बेडरूम) होता है. ऐसे बंगले अशोका रोड, लोधी इस्टेट, कुशक रोड, कैनिंग लेन तुगलक लेन आदि में हैं. इस प्रकार के बंगले अक्सर राज्य मंत्रियों, दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीशों, कम से कम पांच मर्तबा सांसद रहे व्यक्तियों को आवंटित होता है. राहुल गांधी जिस तुगलक लेन के बंगले में रहते आए हैं, वह टाइप 7 ही है.

पहली बार सांसद बनने वाले लोगों को आम तौर पर टाइप-5 आवास मिलता है. हालांकि नई शर्तों के मुताबिक, उन्हें टाइप-6 आवास भी मिल सकता है. इसके लिए उन्हें कुछ शर्तें तय करनी पड़ती है. इनमें पहले विधायक या राज्य सरकार में मंत्री बनने की शर्तें शामिल हैं. टाइप-5 में भी A,B,C,D-चार कैटेगरी हैं. हर कैटेगरी में पहली वाली से एक बेडरूम ज्यादा है.

बंगले में सांसदों को बिजली, पानी फ़्री मिलता है. पर्दों की धुलाई भी मुफ़्त में होती है.  रखरखाव के लिए भत्ता भी दिया जाता है. अगर खर्च 30 हजार से ज्यादा हुआ है तो फिर शहरी विकास मंत्रालय की तरफ से फंड अप्रूव किया जाता है. वहीं 30 हजार तक के खर्च का अप्रूवल हाउस कमिटी कर सकती है.

बंगला खाली करवाने के क्या नियम हैं?

बंगला खाली करवाने के लिए भी एक क़ानून है. पब्लिक प्रिमाइसेस (एविक्शन ऑफ़ अनऑथोराइज्ड ऑक्यूपेंट्स एक्ट ). आसान भाषा में, सार्वजनिक जगहों से अनधिकृत लोगों को बेदखल करने का क़ानून. इस नियम के तहत,

-सामान्य रूप से नोटिस देने के बाद से 30 दिन के अन्दर बंगला खाली करने को कहा जाता है.

-बंगला नहीं खाली करने वाले को 3 दिन में नोटिस का जवाब देना होता है. और ये बताना होता है कि उसके खिलाफ बेदखली का आदेश क्यों न दे दिया जाए.

-विवाद की स्थिति में शो-कॉज नोटिस भी जारी किया जाता है. और ‘डायरेक्टरेट ऑफ़ स्टेट्स’ मामले की सुनवाई करता है.

लेकिन नोटिस के बाद भी अगर जवाब नहीं दिया जाता तो बंगला खाली करवाने के लिए बल प्रयोग भी किया जा सकता है. इस क़ानून में साल 2019 में एक संशोधन किया गया है, जिसके मुताबिक बंगला खाली न करने पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है.  
 

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