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'मैं एक राजपूतनी हूं और आज मुझे इस बात पर शर्म आ रही है'

ये किस किस्म की राजपूती दिलेरी है, जो एक फिल्म से आहत हो जा रही है?

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विरोध करती इन महिलाओं के घूंघट देखिए और साथ में देखिए तख्ती पर लिखी हुई इबारत भी
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25 जनवरी 2018 (Updated: 25 जनवरी 2018, 05:40 AM IST) कॉमेंट्स
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ये लेख वेबसाइट dailyo.in के लिए RUCHI KOKCHA ने लिखा है. इसका अनुवाद विनय सुल्तान ने किया है.



पैदाइश से मैं राजपूत हूं. मैं राजपूतों की बहादुरी के किस्से सुनते हुए बड़ी हुई. 'दिलेरी हमारे खून में है', ये शब्द मैं तब से सुनती आ रही हूं, जब मुझे 'दिलेरी' का असल मतलब भी पता नहीं था. लेकिन आज मेरा दिमाग सवाल पूछ रहा है कि आखिर 'राजपूती दिलेरी' का असली मतलब क्या है?

वक़्त के साथ-साथ हर आदमी में अपने चारों तरफ की दुनिया को देखने की समझ विकसित होती है. हमारी कल्पनाएं खुरदरी असलियत से टकराती है. वक़्त के साथ-साथ मैंने महसूस किया कि कुछ राजपूत परम्पराएं औरतों के प्रति कितनी जुल्मी हैं. मैं दिल्ली में पैदा हुई थी और चीजों से मीलों दूर थीं, जिन्हें दूर-दराज में रहने वाली राजपूत औरतें हर दिन झेल रहीं थीं. कभी-कभी मुझे अपनी नानी के घर जाने का मौका मिलता. वहां जाकर मुझे महसूस होता कि कैसे मर्दवादी सोच हमारे दिमाग में अंदर तक धंसी हुई है.


फिल्म पद्मावत के विरोध में संजय लीला भंसाली का पुतला फूंकते करणी सेना के कारकून
फिल्म पद्मावत के विरोध में संजय लीला भंसाली का पुतला फूंकते करणी सेना के कारकून

औरतें बिना किसी शिकायत के घर की चारदिवारी में खुद को बंद रखती हैं. उनके दिमाग में ये भर दिया गया है - घर की दहलीज ना लांघना बहुत फ़क्र की बात है. घर से बाहर का काम मर्द का है. घर चलाने के लिए कमाना और परिवार की रक्षा की जिम्मेदारी मर्दों के कंधे पर है. औरतों की जिम्मेदारी है कि वो अपने पति और उसके वारिस का ख्याल रखें.

ये सारी बातें इन राजपूत महिलाओं के परवरिश का हिस्सा थीं. यही वजह थी कि उन्हें बाल विवाह, घूंघट, कन्या भ्रूण हत्या जैसी चीजों में कुछ भी गलत नहीं लगता. घर में रोज-रोज पिटने और यहां तक कि दहेज़ के लिए मार दिए जाने के बावजूद वो इन परम्पराओं पर सवाल खड़ा नहीं करतीं. आज राजपूत औरते हाथ में तलवारें लिए विरोध प्रदर्शन कर रही हैं. ये प्रदर्शन उस जलालत के खिलाफ नहीं है, जो वो हर दिन झेल रही हैं बल्कि वो अपने तथाकथित 'इज्जत' की रक्षा के लिए सड़कों पर उतरी हैं.


रानी पद्मावती के सम्मान की रक्षा के लिए तलवार लेकर प्रदर्शन करती राजपूत महिलाएं
रानी पद्मावती के सम्मान की रक्षा के लिए तलवार लेकर प्रदर्शन करती राजपूत महिलाएं

फिल्म पद्मावत की शूटिंग के दौरान करणी सेना के लोगों ने डायरेक्टर संजयलीला भंसाली के साथ हाथापाई की. इससे परेशान भंसाली शूटिंग की लोकेशन जयपुर से बदलकर कोल्हापुर ले गाए. उनके सेट पर आग लगा दी गई. भंसाली और दीपिका पादुकोण को जान से मारने की धमकी दी जाने लगी. फिल्म पद्मावत की रिलीज के खिलाफ हिंसक और उग्र प्रदर्शन होने लगे. यहां तक कि कई राज्य सरकारों के मंत्रियों ने भी फिल्म पर बैन लगाने की बात कही.

इतवार के दिन करणी सेना और दूसरे राजपूत संगठनों ने दिल्ली-नोएडा के DND टोल प्लाजा पर तोड़-फोड़ की. देश के दूसरे हिस्सों में बसों को जला दिया गया. सड़कों पर जाम लगा दिया गया. सिनेमाघरों में तोड़-फोड़ हुई. राजपूत 'गौरव' की रक्षा का मतलब गुंडागर्दी और उत्पात मचाना कब से हो गया? मुझे माफ़ करें जो आप सड़कों पर कर रहे हैं, वो कहीं से भी 'राजपूती गौरव' नहीं है.


फिल्म पद्मावत का पोस्टर
फिल्म पद्मावत का पोस्टर

करणी सेना के लोगों का दावा है - फिल्म के डायरेक्टर ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़-छाड़ की है. रानी पद्मावती, जो कि राजपूत परम्परा में त्याग और बलिदान का प्रतीक हैं, उन्हें घूमर नाचते हुए और सपने में अलाउद्दीन खिलजी के साथ रोमांस करते हुए दिखाया है. फिल्म के ये सीन रानी पद्मावती की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने के लिए फिल्माए गए हैं.

ये किस किस्म की इज्जत है, किस किस्म की दिलेरी है जो एक कलाकार के काम को सहन नहीं कर पाती. फिल्म 16वीं सदी के सूफी कवि मलिक मोहम्मद जायसी के महाकाव्य 'पद्मावत' पर आधारित होने की बात कही जा रही है. फिल्म निर्माता पहले ही कह चुके हैं कि वो राजपूतों की बहादुरी के सम्मान में ये फिल्म बना रहे हैं. कोई भी आदमी किसी कलाकृति को अपनी समझ के हिसाब से देखता और समझता है. जायसी के पद्मावत पर अपनी समझ और अपनी कल्पना को एक साथ गूंथकर संजयलीला भंसाली ने फिल्म को परदे पर उतारा है. हमें भी इसे इसी तरह से देखना चाहिए. जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, "अगर आप फिल्म नहीं देखना चाहते हैं तो मत देखिए लेकिन आप किसी और को फिल्म देखने से रोक नहीं सकते."


विश्व हिन्दू परिषद के लोग भी रानी पद्मावती की इज्जत बचाने में पीछे नहीं रहे
विश्व हिन्दू परिषद के लोग भी रानी पद्मावती की इज्जत बचाने में पीछे नहीं रहे

चित्तौड़ में सैकड़ों औरतों ने 'स्वाभिमान' रैली निकालकर चेतावनी दी कि अगर फिल्म रिलीज हो जाती है तो वो जौहर कर लेंगी. मैं भी राजपूत क्षत्राणी हूं. पूरी जिंदगी में इससे पहले मैं खुद के राजपूत होने पर कभी इस तरह से शर्मिंदा नहीं हुई. एक फिल्म के नाम पर जिस किस्म की मूर्खता हो रही है, वो भयावह है. जो लोग इस फिल्म के नाम पर जान देना चाहते हैं उन्हें इजाजत लेने में वक्त बर्बाद नहीं करना चाहिए. इस किस्म की मूर्खता को हमारे जीन पूल से खत्म हो जाना चाहिए.

बाकी बचे हुए राजपूतों से इल्तिजा है कि वो सोचें कि आज के वक़्त में साहस या दिलेरी किस चिड़िया का नाम है. क्या एक फिल्म के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करना बहादुरी है. या फिर उन बेहूदा परम्पराओं से लड़ना बहादुरी है जो हमें इतिहास के सबसे बोसीदा चीथड़ों को हमारे साथ जोड़े हुए हैं. मेरे लिए राजपूत होने का मतलब है बेजबान लोगों को जबान देना, दबे-कुचले लोगों को साहस देना और कमजोर लोगों के पक्ष में खड़ा होना.

आज के दौर में असली बहादुरी शिक्षित होने में है. जागरूक होने में है. वक़्त के साथ कदम मिलाकर चलने में है. आज के दौर में लड़ाई के मैदान बदल गए हैं. तलवारें भांजने का दौर जा चुका है. ये तर्कों के आधार पर लड़ाई लड़ने का दौर है. असल लड़ाई आपके और उन वहशी ताकतों के बीच है जो अपने सियासी नफे के चलते समाज में अराजकता का माहौल खड़ा कर रहे हैं. अपनी तालीम को अपनी तलवार बनाइए, अपने तर्कों को अपना कवच बनाइए और ऐसी ताकतों के खिलाफ लड़ाई में उतार जाइए.




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