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क्या हिंदी के बहाने CM स्टालिन तमिलनाडु में पीएम मोदी की सालों की मेहनत खराब कर देंगे?

NEP को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है. तमिलनाडु सरकार ने NEP 2020 के तहत तीन भाषा नीति को लागू करने से इनकार कर दिया है. दूसरी तरफ शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मोर्चा संभाल रखा है. अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले ये विवाद किसको नुकसान और किसको फायदा पहुंचाएगा?

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Tamil Nadu
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की पुरानी तस्वीर. (India Today)
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सौरभ
11 मार्च 2025 (Published: 05:40 PM IST) कॉमेंट्स
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) का मुद्दा तमिलनाडु से निकलकर संसद तक पहुंच गया है. 10 मार्च को बजट सत्र फिर शुरू हुआ तो तमिलनाडु के सासंदों ने NEP पर हंगामा शुरू कर दिया. जवाब में शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान एक बार फिर सामने आए और तमिलनाडु की एमके स्टालिन सरकार पर निशाना साधा. प्रश्नकाल के दौरान हुई बहस में धर्मेंद्र प्रधान ने DMK सांसदों को 'असभ्य' और 'अलोकतांत्रिक' बता दिया. उन्होंने DMK सरकार की NEP के विरोध की आलोचना करते हुए यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने पीएम-श्री स्कूलों को लेकर 'यू-टर्न' ले लिया है. इस बयान पर DMK के सांसदों ने कड़ा विरोध जताया. मामला इतना बढ़ गया कि शिक्षा मंत्री को तमिलनाडु के सांसदों के विरोध के बाद अपने शब्द वापस लेने पड़े.

NEP को लेकर तमिलनाडु और केंद्र सरकार के बीच काफी समय से विवाद चल रहा है. स्टालिन सरकार ने NEP 2020 के तहत 'तीन भाषा नीति' को लागू करने से इनकार कर दिया है. राज्य में पहले से ही दो-भाषा नीति लागू है, जिसके तहत छात्र केवल तमिल और अंग्रेजी पढ़ते हैं. और राज्य सरकार ने तीसरी भाषा पढ़ाने से इनकार कर दिया है. इसी को लेकर तमिलनाडु से दिल्ली तक गहमागहमी मची हुई है.

संसद में हुई बहस के तुरंत बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया पोस्ट में प्रधान पर ‘अहंकारी’ होने का आरोप लगाया. स्टालिन ने लिखा,

“केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान अहंकार से ऐसे बोलते हैं जैसे कि वे राजा हों. उन्हें अपने शब्दों पर ध्यान देने की ज़रूरत है! आप तमिलनाडु के उचित फंड को रोक रहे हैं और हमें धोखा दे रहे हैं, फिर भी आप तमिलनाडु के सांसदों को असभ्य कहते हैं…क्या माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे मंज़ूरी देते हैं?”

स्टालिन इस विवाद को लेकर प्रधानमंत्री मोदी को पहले भी चिट्ठी लिख चुके हैं. वे शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान पर लगातार निशाना साध रहे हैं, और प्रधान उन्हें जवाब दे रहे हैं. लेकिन बीजेपी में अब तमिलनाडु को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. इंडियन एक्सप्रेस ने इस मसले पर एक रिपोर्ट की है जिसके मुताबिक, जैसे-जैसे यह मुद्दा तूल पकड़ रहा है, बीजेपी के कई नेता आशंका जता रहे हैं कि यह सब DMK की सोची-समझी रणनीति हो सकती है, खासकर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले. 

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस विवाद का असर बीजेपी पर भी पड़ सकता है. तमिलनाडु बीजेपी के लिए एक महत्वपूर्ण राज्य बना हुआ है, जहां पार्टी ने पिछले साल के लोकसभा चुनावों में कुछ हद तक पैठ बनाने में सफलता पाई थी.

कर्नाटक को छोड़कर बीजेपी पूरे दक्षिण भारत से नदारद नज़र आती है. मौजूदा स्थिति की बात करें तो ओडिशा और महाराष्ट्र को छोड़कर भारत के नीचे के नक्शे में भगवा पार्टी का कहीं शासन नहीं है. 2023 में कर्नाटक में भी बीजेपी सत्ता बचाने में असफल हुई थी. लेकिन इस बीच बीजेपी की रणनीति को बारीकी से देखने पर यह समझा जा सकता है कि पार्टी तमिलनाडु पर लंबे समय से फोकस कर रही है.

बीजेपी का मिशन तमिलनाडु

मोटे तौर पर दो-ध्रुवीय राजनीति वाला राज्य माने जाने वाले तमिलनाडु में बीजेपी पीएम मोदी के नेतृत्व में अपनी जगह बनाने और द्रविड़ प्रभाव से अलग तीसरी ताकत के रूप में उभरने का गंभीर प्रयास कर रही है. काशी-तमिल समागम और संसद में प्रतीकात्मक रूप से 'सेंगोल' (राजदंड) स्थापित करना यह दर्शाता है कि पिछले दो साल में बीजेपी आलाकमान तमिलनाडु पर पूरी तरह से नज़र गड़ाए हुए हैं. विवाद भाषा को लेकर ही चल रहा है और ‘मन की बात’ कार्यक्रम के 117वें एपिसोड में पीएम मोदी कह चुके हैं कि तमिल ‘दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा’ है और हर भारतीय को इस पर गर्व है.

पिछले 10 साल में प्रधानमंत्री मोदी तमिलनाडु के 41 दौरे कर चुके हैं. कर्नाटक के बाद तमिलनाडु दूसरा ऐसा दक्षिण राज्य है जहां पीएम मोदी ने सबसे अधिक दौरे किए हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान फरवरी, मार्च और अप्रैल में पीएम मोदी ने 7 दौरे किए थे. चुनाव खत्म होने के बाद ध्यान करने के लिए भी मोदी ने तमिलनाडु के कन्याकुमारी को ही चुना. 

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कन्याकुमारी में प्रधानमंत्री की ध्यान करने की तस्वीर. (India Today)

लेकिन NEP, तीसरी भाषा और स्टालिन-प्रधान के बीच जारी अनवरत वाद-विवाद बीजेपी की दूरदृष्टि वाली योजना पर आघात कर सकता है. हालांकि, पार्टी आधिकारिक तौर पर इन आशंकाओं से इनकार करती है. दी लल्लनटॉप से बात करते हुए बीजेपी के नेशनल सेक्रेटरी और तमिलनाडु के प्रभारी अरविंद मेनन ने कहा,

“बीजेपी ऐसा नहीं मानती कि इस विवाद से हमें नुकसान होगा. तीन भाषा नीति से सभी राज्य सहमत हैं, सिर्फ DMK और स्टालिन सरकार जानबूझकर राजनीति कर रहे हैं. उन्हें डर है कि इस विवाद से चुनाव में उनकी पार्टी को नुकसान होगा.”

2024 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में बीजेपी भले ही खाता खोलने में असफल रही हो, लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज़ से वो तीसरी सबसे बड़ी पार्टी थी. DMK को सबसे अधिक 27 प्रतिशत वोट मिले, AIDMK को 20.46 प्रतिशत (सीट एक भी नहीं मिली) और बीजेपी को कांग्रेस से थोड़े ज्यादा 11.24 प्रतिशत वोट मिले.

स्टालिन का 'चक्रव्यूह'

बीजेपी अपने इस प्रदर्शन के बाद विधानसभा चुनाव को लेकर काफी उत्साहित है. अगले साल तमिलनाडु में इन्हीं महीनों में चुनाव होंगे. इसके मद्देनजर सीएम स्टालिन भी अपनी रणनीति में बदलाव करते दिख रहे हैं. पहले तीन भाषा विवाद और फिर परिसीमन के मुद्दे पर स्टालिन मुखर होकर बीजेपी को घेर रहे हैं. परिसीमन के मुद्दे पर वो अन्य पार्टियों को भी शामिल कर रहे हैं. यहां तक कि राजनीतिक तौर पर DMK की कट्टर दुश्मन AIDMK भी इस मुद्दे पर उनके साथ खड़ी दिख रही है. 

ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी स्टालिन के चक्रव्यूह में फंस रही है? हमने तमिलनाडु स्थित रूस्टर न्यूज़ के संपादक राहुल वी से इस विषय पर बात की. उन्होंने एक किस्सा सुनाया,

“लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में ऐसी बात चली थी कि प्रतियोगी परीक्षाएं हिंदी भाषा में आयोजित की जाएं. ऐसा कोई सरकारी आदेश आया भी नहीं था लेकिन परिणाम यह हुआ कि तमिलनाडु में कुछ लोगों ने आत्मदाह कर लिया. तमिनलाडु में भी जाति के नाम पर लोग बंटे हैं, लेकिन जब बात भाषा पर आती है तो सब एक हो जाते हैं. इसलिए यहां ध्रुवीकरण संभव नहीं है.”

राहुल कहते हैं कि अगर दिल्ली के स्कूल में बच्चों से कह दिया जाए कि कल से उन्हें तमिल भाषा पढ़नी है तो वे क्या सोचेंगे. कुछ वैसा ही तमिलनाडु के लोग इस मसले पर सोचते हैं. DMK और स्टालिन जानते हैं कि तीसरी भाषा के विवाद से उन्हें ही फायदा होगा, इसलिए पार्टी इस मुद्दे को छोड़ेगी नहीं.

कल संसद में भी यह टकराव तब शुरू हुआ जब DMK सांसद टी सुमति ने एक सप्लिमेंट्री प्रश्न पूछते हुए दावा किया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध करने के कारण तमिलनाडु के लिए निर्धारित लगभग 2,000 करोड़ रुपये अन्य राज्यों को बांट दिए गए हैं. सुमति ने इसे 'सहकारी संघवाद (को-ऑपरेटिव फेडरलिज़्म) के लिए मृत्यु की घंटी' करार देते हुए सवाल किया कि क्या केंद्र सरकार स्कूल के बच्चों की कीमत पर फंड को ‘बदले के हथियार’ के रूप में इस्तेमाल कर रही है.

सुमति के आरोप पर अपने जवाब में धर्मेंद्र प्रधान ने दावा किया कि तमिलनाडु सरकार पीएम-श्री को लेकर MoU पर दस्तखत करने के लिए तैयार थी, लेकिन बाद में उन्होंने यू-टर्न ले लिया. उन्होंने कहा कि भारत सरकार इस मुद्दे पर पूरी तरह से खुली है. प्रधान ने यह भी कहा कि कई गैर-भाजपा शासित राज्यों, खासकर कांग्रेस-शासित कर्नाटक NEP को लागू कर रहे हैं और पीएम-श्री योजना अपना रहे हैं.

प्रधान ने यह भी कहा कि मार्च में अभी 20 दिन बाकी हैं. ये बोलकर उन्होंने संकेत दिया कि तमिलनाडु सरकार के पास अभी भी पीएम-श्री पर MoU पर हस्ताक्षर करने का समय है.

लेकिन तमिलनाडु सरकार NEP 2020 को लागू करने से बार-बार इनकार कर चुकी है. कथित तौर पर इस कारण केंद्र सरकार ने राज्य को  योजना के तहत मिलने वाले फंड को रोक दिया है. इसी को लेकर 20 फरवरी को मुख्यमंत्री स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर दखल देने की मांग की थी. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने तमिलनाडु को 2,152 करोड़ रुपये की समग्र शिक्षा योजना की राशि जारी नहीं की है और इसे NEP 2020 को लागू करने से जोड़ा जा रहा है.

इस पूरे मसले पर इंडिया टुडे के सीनियर स्पेशल करेस्पॉन्डेंट प्रमोद माधव कहते हैं,

“बीजेपी भले ही इस मुद्दे पर दो-दो हाथ करने को तैयार है, लेकिन भाषा के मसले पर उसे नुकसान हो सकता है. तमिलनाडु में बड़े स्तर पर लोगों का मानना है कि यह उन पर हिंदी थोपने का एक जरिया है. क्योंकि तीसरी भाषा के रूप में मराठी या कश्मीर की किसी भाषा को कोई चुनेगा नहीं. और अगर इन भाषाओं को किसी ने पढ़ना चाहा भी तो कितने स्कूलों में इनका विकल्प रहेगा? अंत में बात सिर्फ हिंदी पर ही आकर खत्म होगी. और तमिलनाडु के लिए भाषा एक भावनात्मक विषय है.”

हिंदी और तीसरी भाषा से जुड़े इस विवाद में देखना होगा कि INDIA गठबंधन की पार्टियों का क्या रुख रहेगा. क्योंकि तमिलनाडु में अगले साल चुनाव होने हैं, लेकिन बिहार में इसी साल के अंत में ही चुनाव हैं. और बिहार हिंदी हार्ट लैंड वाला राज्य माना जाता है.

वीडियो: नेतानगरी: तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास क्या है? क्या बिहार में BJP-JDU के बीच कोई डील हुई है?

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