भगवान शिव के मुकुट में लगा हीरा इंडिया से बाहर कैसे गया? जिसे भी मिला, वो बर्बाद हो गया
Nassak Diamond History : ये हीरा वहीं से निकला था, जहां कोहिनूर का जन्म हुआ था. शिव की तीसरी आंख से निकलने के बाद इस हीरे को कोई भी अपना नहीं बना पाया. हिटलर से बचने के लिए इसने आधी दुनिया का चक्कर भी लगाया. इस पर बर्बादी के इल्जाम भी लगे. इस हीरे का नाम है 'नासक'.
ये गोलकुंडा की कोख से निकले एक हीरे की कहानी है. वही जगह, जहां से कोहिनूर का जन्म हुआ. इस हीरे के बारे में मशहूर है कि शिव की तीसरी आंख से निकलने के बाद इस हीरे को कोई भी हमेशा के लिए अपना नहीं बना पाया. कभी हिटलर से बचने के लिए इस हीरे ने आधी दुनिया का चक्कर लगाया. तो कभी किसी राजा की तलवार की मूठ बने इस हीरे पर बर्बादी के इल्जाम लगे (Nassak Diamond History).
ये 1930 के दशक की बात है, अमेरिकी बैंकर और इन्वेस्टर, JP Morgan And Company के फाउंडर के बेटे JP MORGAN जूनियर ने एक हीरा खरीदा. ये कोई मामूली हीरा नहीं था. बल्कि, ये हीरा दुनिया के 24 सबसे बेशकीमती हीरों में शामिल था. बड़े शौक से उन्होंने इस हीरे को एक हार में जड़वा कर अपनी पत्नी को तोहफे के रूप में दिया.
उनकी पत्नी को ये हीरा काफी पसंद आया. उस दौर की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसे पहनने के कुछ दिनों बाद ही उनके जीवन में मुश्किलें बढ़ने लगीं, तबीयत ख़राब होने लगी, उनके परिवार की माली हालत ख़राब होने लगी, कुल मिलाकर उन्हें काफी समस्याओं का सामना करना पड़ा. इन सब चीजों के लिए कुछ लोग हीरे के शाप को जिम्मेदार मानते हैं. दरअसल ये हीरा ऐसा-वैसा हीरा नहीं था, इस हीरे ने सदियों से राजा-महाराजा से लेकर आम आदमी तक सबको कौतूहल से भर रखा था.
ये हीरा आया कहां से?भारत के दक्षिण में एक राज्य है, तेलंगाना. सूबे की राजधानी हैदराबाद से सात मील दूर एक जगह है, गोलकुंडा. दुनिया में अपने हीरो के लिए पहचाने जाने वाले गोलकोंडा के कोल्लूर खदानों से एक से बढ़कर एक नायब हीरे निकले हैं. 16वीं शताब्दी से बीसवीं शताब्दी तक हीरों का गढ़ रही ये खदान अब बंद हो गयी है. यहां से निकले हीरों का अपना एक विशेष रंग और रूप होता है. कोहिनूर के बारे में तो हम सब जानते ही हैं, कोहिनूर भी गोलकोंडा के कोख से निकला है. इसके अलावा होप और रीजेंट जैसे हीरे भी गोलकोंडा ने ही दुनिया को दिए. 19वीं शताब्दी में साउथ अफ्रीका में हीरों की खदान मिलने से पहले पूरी दुनिया में गोलकोंडा ही हीरों का सप्लायर था.
इसी गोलकोंडा से निकला है ये नायाब हीरा जिसका नाम है ‘नासक’. इसका नाम महाराष्ट्र के मशहूर शहर नासिक के नाम पर पड़ा. गोलकोंडा से 16वीं शताब्दी में निकले इस हीरे का पहला मालिक बना क़ुतुब शाही वंश. लेकिन 1687 में मुग़लों ने गोलकोंडा पर कब्ज़ा कर लिया, और जैसा कि उस दौर में होता था, राज आपका तो संपत्ति भी आपकी, इस तरह नासक की अगली हुक्मरान बनी मुगलिया सल्तनत. लेकिन, समय के पहिए में हर राजा और सल्तनत को एक बार तो पहिए के नीचे आना ही होता है, मुग़ल वंश कमजोर होने लगा और 18वीं शताब्दी में ये हीरा मराठाओं के हाथ लगा.
मराठा पेशवा बाजीराव प्रथम के बाद उनके बेटे बालाजी बाजीराव मराठा साम्राज्य के पेशवा बने. बालाजी को नानासाहेब के नाम से जाना जाता था. नानासाहेब ने 12 ज्योतिर्लिंग में से एक श्री त्र्यंबकेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. मंदिर बन जाने के बाद नानासाहेब ने मंदिर को अनेक रत्न और जेवरात दान किये जिसमें नासक हीरा भी शामिल था. इस हीरे को त्र्यंबकेश्वर शिव मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति की एक आंख के रूप में स्थापित किया गया. यहां इस हीरे को केवल एक आभूषण के रूप में नहीं, बल्कि एक दिव्य तत्व के रूप में पूजा जाता था.
लोगों की इसमें आस्था थी. लोक कथाओं के अनुसार इस हीरे पर महादेव का आशीर्वाद था और ये उस इलाके को खतरों से बचाता था. कहा जाता था कि जब सूर्य की पहली किरण इस हीरे पर पड़ती, तो उसकी चमक से पूरे मंदिर में रोशनी हो उठती थी. इस हीरे के प्रति आस्था इतनी गहरी थी कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते थे.
लेकिन इतिहास की नियति में सब कुछ नियत कहां होता है, मराठा और अंग्रेजों के बीच 18वीं शताब्दी में कई लड़ाइयां हुईं, जिन्हें एंग्लो मराठा युद्ध के नाम से जाना जाता है. तीसरे और आखिरी एंग्लो मराठा युद्ध में अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय को हरा दिया. इस तरह मराठाओं के राज्य का सूर्य अस्त हुआ. इस युद्ध को जीतने के बाद अंग्रेजों ने त्रयंबकेश्वर मंदिर से इस हीरे को चुरा लिया. ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही हीरा मंदिर से हटा, क्षेत्र की समृद्धि और शांति भी उसी के साथ चली गई. हीरे को कम्पनी के गवर्नर जनरल हास्टिंग्स को सौंप दिया जाता है जो उसे लंदन भेज देते है.
चमक बढ़ी, भारतीय पहचान खो गईलंदन भेजे जाने के बाद नासक को वहां के ज्वैलरी मार्किट में बेच दिया गया. लेकिन, भारत में इतना मान-सम्मान पाने वाले इस हीरे को ब्रिटेन में बेकद्री मिली. बाज़ार ने इसमें ज़्यादा उत्सुकता नहीं दिखाई. उसे वहां ‘खुरदुरी सतह वाले, बिना चमक वाले ठोस चीज’ की संज्ञा दी गयी और इसे लन्दन के बड़े नामी ज्वैलर ‘रंडेल एन्ड ब्रिज’ ने ख़रीदा. वे इंग्लैंड के राज जौहरी भी थे. लेकिन इसकी कीमत लगी मात्र 3000 पाउंड माने करीब 3 लाख 25 हज़ार रूपये. जिस समय ये बाजार में आया था उस समय ये हीरा 89 कैरट का था जिसे रंडेल और ब्रिज ने तराश कर 78.62 कैरट का कर दिया. तराशने के बाद हीरे की चमक तो बढ़ गई, लेकिन उसकी मूल भारतीय पहचान खो गई.
इसके बाद ये हीरा ब्रिटिश उच्च समाज में एक प्रतिष्ठित वस्तु बन गया. इसे इंग्लैंड में तराशने के बाद इसके पहले मालिक बने Duke Of Westminster. उन्होंने अपने तलवार के हत्थे पर इस हीरे को लगवाया और इसके बाद उनकी तलवार उत्सुकता का केंद्र बन गयी थी. हर कोई उनकी तलवार पर एक नजर भर लेना चाहता था. लेकिन, इस हीरे को अपनाने के कुछ समय बाद ही ड्यूक का जीवन अचानक दुर्भाग्य और विवादों से भर गया. पत्नी के साथ अनबन और पारिवारिक समस्याएं बढ़ने लगीं थीं. लोगों ने इसका दोष इस हीरे को दिया और इस हीरे को शापित करार दिया गया. लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि यह हीरा जिस भी घर में जाएगा, उसे तबाही ही मिलेगी.
नासक हीरे के साथ जुड़ी शाप की कहानियां तेजी से फैलने लगीं. जहां भी ये हीरा जाता, वहां लोगों के जीवन में अजीबोगरीब घटनाएं घटने लगतीं. कुछ लोग कहते थे कि इस हीरे में एक अदृश्य शक्ति छिपी है, जो इसे पाने वाले हर व्यक्ति से अपना बदला लेती है. इस हीरे को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैलने लगीं. कोई कहता कि इस हीरे को छूने से बर्बादी निश्चित है.
अब इसे इत्तेफ़ाक़ कहें या कुछ और लेकिन चाहे वो Duke Of Westminster हो या JP मॉर्गन जूनियर, जिसने भी इस हीरे को अपनाया है उसके बाद उसके जीवन की गाड़ी बेपटरी हो गयी. इन्हीं सब घटनाओं के बाद हीरे के शापित होने की बात को और बल मिला.
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कहानी आगे बढती है, दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर की निगाह सिर्फ यूरोप के देशों पर ही नहीं थी बल्कि दुनिया के कई बेशुमार रत्न, मूल्यवान पेंटिंग और ऐतिहासिक सामान पर भी थी. ऐसे में कई रत्न और ऐतिहासिक महत्त्व की चीजों को छिपा दिया गया था. जिससे वो नाज़ी सेना के हाथ न लगें. छिपाए गए रत्नों में नासक हीरा भी शामिल था. कोई कहता है इसे इंग्लैंड के दूर दराज़ के इलाकों में छिपाया गया था. कुछ कहते हैं, इसे दूसरे देश ले जाया गया था. उस समय ये हीरा वास्तव में कहां था ये तो रहस्य है. कई साल गायब रहने के बाद 20वीं शताब्दी के अंत में नासक आधी दुनिया का चक्कर लगा कर अमेरिका में पाया गया.
अमेरिका में नासक के पुराने वैभव लौटने के दिन थे. 1930 में इसे दुनिया के 20 सबसे मूल्यवान और महान हीरों में शामिल किया गया. 1929 और 1930 में दो बार इस हीरे को चोरी करने की कोशिश भी की गयी, लेकिन दोनों बार यह कोशिश असफल हुई. अमेरिका के मशहूर जौहरी हैरी विंस्टन की नजर भी नासक पर पड़ी. विंस्टन को ‘हीरों का राजा’ कहा जाता था. उन्होंने पूरी शिद्दत से इसे तराशा और आखिर ये हीरा 43.38 कैरट के अपने मौजूदा स्वरुप में आ गया. हर बार तराशने पर नासक की गति घटती जाती, लेकिन उसकी ताकत नहीं. ताकत चमक की, ताकत उसके चाहने वालों की चाहत की. 1970 में इसे पांच लाख डॉलर यानी करीब 4 करोड़ 20 लाख रूपये में कारोबारी एडवर्ड हैंड द्वारा खरीदा गया. उस समय यह किसी भी हीरे को ऑक्शन में मिलने वाली दूसरी सबसे बड़ी रकम थी. जब से ये हीरा मंदिर से चोरी हुआ तबसे अभी तक इसे कई लोगों ने खरीदा लेकिन यह किसी के पास भी नहीं टिका.
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इस बारे में एक रोचक लोक कथा है, जिसमें कहा गया है कि यह हीरा कभी भी स्थिर नहीं रहेगा, ये हमेशा एक जगह से दूसरी जगह पर भटकता रहेगा. जब तक कि इसे अपने मूल स्थान, त्र्यंबकेश्वर मंदिर में वापस नहीं लाया जाएगा. ये भविष्यवाणी बताती है कि इस हीरे की यात्रा एक ऐसा चक्र है, जो उसकी वापसी के साथ ही पूरा होगा. और इसके वापस आते ही नासिक में दोबारा से खुशहाली आएगी. फिलवक्त ये हीरा कहां है? इसके बारे में ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, 1977 के बाद सऊदी के राजा ने इस हीरे को किसी प्राइवेट कलेक्टर को बेच दिया था.
प्राइवेट कलेक्टर माने, वो लोग जो निजी तौर पर इतिहास की बहुमूल्य चीजों को बटोरते रहते हैं. सन 1977 के बाद से ये हीरा उसी प्राइवेट कलेक्शन का हिस्सा है. भारत में कुछ समय पहले इसको वापस लाने की बात शुरू हुई थी. जैसे कोहिनूर की होती रहती है. बहरहाल, नासक हीरे की कहानी को सिर्फ एक कीमती रत्न की यात्रा तक महदूद कर देना इतिहास के साथ अन्याय है, ये एक ऐसी रहस्यमयी और अद्भुत गाथा है, जो सदियों से लोगों को रोमांचित करती आई है. उनकी जुगुप्सा का केंद्र बनी है. चाहे ये हीरा कहीं भी हो, इसकी चमक से हमारे किस्सों में रौशनी आती रहेगी.
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