संस्कृत के लिए इस जर्मन को हिंदुस्तान में जितनी इज्जत मिली, उतना ही छीछालेदर किया गया
पीएम नरेंद्र मोदी जर्मनी गए हैं, तो ये बात करनी जरूरी है.
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फोटो - thelallantop
1. एडिसन ने 19वीं शताब्दी में ग्रामोफोन का आविष्कार किया. क्या आपको पता है इस पर सबसे पहले किस भाषा में रिकॉर्डिंग हुई?
एडिसन अपना ग्रामोफोन लेकर इंग्लैंड गये थे. वहां पर प्रोफेसर मैक्समूलर से मिले. कहा कि मैं आपकी आवाज रिकॉर्ड करना चाहता हूं. मैक्समूलर उस वक्त के बहुत बड़े विद्वान थे. उन्होंने मुस्कुराते हुए रिकॉर्डिंग कर दी. शाम को मजमा लगा. सब लोग ग्रामोफोन की पहली रिकॉर्डिंग सुनने आए थे. एडिसन भी डिस्क लेकर आए. पर जब ग्रामोफोन बजना शुरू हुआ तो लोग हक्के-बक्के रह गए. ये भाषा तो किसी ने सुनी ही नहीं थी. ना इंगलिश, ना लैटिन, ना ही ग्रीक.
ये भाषा संस्कृत थी. एडिसन के ग्रामोफोन पर रिकॉर्ड होने वाली पहली भाषा. मैक्समूलर ने ऋग्वेद की पहली ऋचा पढ़ी थी: अग्नि मूले पुरोहितम. मतलब अग्नि ही सारे हितों का मूल है. हालांकि इस ऋचा की कई व्याख्याएं हैं.
मैक्समूलर संस्कृत के विद्वान थे. जर्मनी के थे. इंग्लैंड में रहे. इंडिया पर रिसर्च किया. संस्कृत से खासा लगाव था.
एडिसन
2. मैक्समूलर ब्रिटिश एजेंट था. वेदों के ट्रांसलेशन के काम में उसे लगाया गया था. उसने जान-बूझ के ऐसा ट्रांसलेशन किया कि हिंदुओं का खुद पर से भरोसा उठ गया.
3. मैक्समूलर जैसे लोग संस्कृत के विद्वान समझे जाते हैं. लेकिन ये लोग क्रिश्चियन एजेंट थे जिन्होंने हिंदुस्तानी सभ्यता को बिगाड़ने का काम किया है.
4. मैक्समूलर ने ही आर्यों के बाहर से आनेवाली थ्योरी दी थी. बाल गंगाधर तिलक ने भी इस थ्योरी को माना था. कभी इस थ्योरी को श्रेष्ठता से जोड़ा गया, कभी कहा गया कि ये फर्जी थ्योरी है जो देश को आर्य-द्रविड़ में बांट रही है.
क्या आपको पता है कि ग्रामोफोन वाली फेक न्यूज है? मैक्समूलर संस्कृत के विद्वान तो थे, इंडिया पर रिसर्च भी किया पर ग्रामोफोन पर संस्कृत में रिकॉर्ड होने वाली बात झूठी है. ये वॉट्सऐप और फर्जी साइट्स पर चलने वाली खबर है. उसके नीचे की दो बातें भी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर 'हिंदू मर्यादा' वाली वेबसाइट्स और ग्रुप्स में शेयर होती हैं. चौथी बात के साथ दो नावों पर चढ़ने वाला हादसा हुआ ही है.
मैक्समूलर ने संस्कृत तो खूब पढ़ा, पर उनको मोक्ष नहीं मिला है. पूर्व एचआरडी मिनिस्टर स्मृति ईरानी ने अपने कार्यकाल में जर्मन भाषा को हटाकर संस्कृत रखने की प्लानिंग की थी, पर इस पर खूब बवाल हो गया.
पर कौन था ये व्यक्ति? क्या किया था मैक्समूलर ने जो उनको ले के कई थ्योरीज बना दी गई हैं?

मैक्समूलर
1882 में इंडियन लिटरेचर और धर्म के स्टूडेंट मैक्समूलर ने कैम्ब्रिज में कई लेक्चर दिये. 'सैक्रेड बुक्स ऑफ द ईस्ट' के नाम से उन्होंने भारतीय लिटरेटर पर 49 वॉल्यूम लिखे. "India: What can it teach us?" के विषय पर 7 लेक्चर दिये. ये लेक्चर इंडियन सिविल सर्विस के कैंडिडेट्स को दिये गये थे. बाद में इन लेक्चर्स का इस्तेमाल इंडिया के नेशनलिस्ट लोगों ने भी किया. हालांकि बाद में मैक्समूलर को खूब बदनाम भी किया गया. यही दोहरापन मैक्समूलर के काम को रोचक बनाता है.
मैक्समूलर ने ऋग्वेद से शुरुआत की थी. इसको खूब पढ़ा, इस पर खूब लिखा. पहले लेक्चर में संस्कृत साहित्य पर बात की थी. कहा कि ये साइंस, लिटरेचर, मॉरेलिटी हर चीज में उपयोगी है. ये उन्होंने मुख्यतया वेदों के संदर्भ में ही कहा था. फिर आगे के लेक्चर्स में बताया कि किस तरह वेद बाकी दुनिया के साहित्य से अलग हैं. फिर बाद में उन्होंने वेदांत और उपनिषद पर भी बोला. उन्होंने अफसरों को बताया था कि इंडिया यूरोप के ज्ञान के काफी करीब है. आर्य लोग हैं ये, जो यूरोप की ही एक ब्रांच हैं. ज्ञान वाली बात तो इंडिया के लोगों को अच्छी लगी, पर ब्रांच वाली बात कई लोगों को बुरी लग गई.
पर मैक्समूलर ने ये भी कहा कि वो इंडिया के सिर्फ आर्य लोगों को देख रहे हैं. ट्राइबल्स को नहीं. आर्यन लिटरेचर पढ़ रहे हैं. कहा कि मुसलमान आक्रमणकारियों ने अत्याचार किये तब तक, जब तक कि इंग्लैंड के लोग इंडिया नहीं आ गए. कहा कि आश्चर्य हो रहा है कि इतने आतंक के बावजूद इंडिया में गुण और सच्चाई कैसे रह गए हैं. मैक्समूलर की इस बात से कुछ लोग को काफी खुशी हुई क्योंकि इससे उनका पक्ष सध रहा था. पर मैक्समूलर ब्रिटिश राज के अत्याचार को भूल गए. वो नजर नहीं आया.

मैक्समूलर की किताब
मुसलमानों पर सवाल तो उठाया, पर बेहद चालाकी और दुखद तरीके से उन्होंने द्रविड़ और आदिवासियों को भी लपेटे में ले लिया. उनको बस नॉर्थ इंडिया के ताकतवर लोगों का ज्ञान पसंद आ रहा था. एक अंग्रेज का संस्कृत पढ़ना उस वक्त रोमांचक लगता तो था, पर संस्कृत पढ़ के जाने-अनजाने कई तरह का तिलिस्म बुनना भी बेहद अजीब चीज थी.
ऋग्वेद पर बहुत काम किया, पर इसके साथ ही आलोचना का रास्ता भी छोड़ते गए

वेद
मैक्समूलर का सबसे बड़ा काम ऋग्वेद को लेकर ही था. पर उन पर आरोप लगा कि इसका इस्तेमाल भी वो भारतीय समाज का ईसाईकरण करने के लिए कर रहे हैं.
संस्कृत का एक बहुत पॉपुलर श्लोक है, जो कि ऋग्वेद से ही है:
एकम् सत् विप्र बहुधा वदन्ति.
मतलब एक ही सच है, इसकी व्याख्या कई तरीके से होती है. इसको मैक्समूलर समेत कई अंग्रेज विद्वानों ने ईसाईयत से जोड़ दिया. कहने लगे कि हिंदू धर्म बहुत सारे देवताओं वाला धर्म नहीं है. वेदों में लिखा है कि एक ही सच है. मतलब एक ही देवता हैं, क्रिश्चियन धर्म की तरह. पर वो ये भूल गये. ये श्लोक भक्तिकाल में पॉपुलर हुआ था. उस वक्त तक इस्लाम भी भारत में आ चुका था. सभी धर्मों को मिलाकर सहिष्णुता की ये परिभाषा वेदों से निकाली गई थी.
तो मैक्समूलर एक स्कॉलर थे. ईसाईयत से जुड़े थे. कभी-कभी चीजों को खुद से जोड़ लेते थे. इंडिया और संस्कृत से उनको लगाव था. ब्रिटिश राज था इंडिया में. तो रिलेशन निकालकर सेफ गेम खेलना चाहते थे. ये अलग मसला है. पर वेदों को लेकर उनकी उत्सुकता और काम इस बात से कम नहीं हो जाते.
1883 में मैक्समूलर ने लिखा:
अगर मैं पूरी दुनिया में देखूं कि किस देश को सबसे ज्यादा धन, ताकत और प्राकृतिक खूबसूरती मिली है, जहां पर स्वर्ग है, तो मैं इंडिया की ही तरफ देखूंगा. अगर मैं पूछूं कि कहां के इंसान को कुदरती गिफ्ट मिले हैं, कहां के लोगों ने जिंदगी की समस्याओं पर सबसे ज्यादा विचार किये हैं और उनके उपाय निकाले हैं जो कि प्लेटो और कांट की बातों जैसे हैं, जो मैं कहूंगा कि वो इंडिया ही है.1884 में मैक्समूलर ने लिखा:
महाभारत में सच का बहुत सम्मान किया गया है. इंडिया में सच वाइब्रेट होते रहता है.Also Read:
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