तांत्रिक चंद्रास्वामी और माफिया बबलू श्रीवास्तव ने क्या बताया, जो धीरेंद्र शास्त्री को देख याद आया?
95-96 की एक कहानी, जो औचक मिली और सबसे बड़ी हेडलाइन बन गई.
जिस साल खजुराहो के गढ़ा गांव में दुधमुहां बाल धीरेंद्र अपने घर के आंगन में घुटनों के बल चल रहा था, मैं लगभग उसी दौर में दिल्ली की सत्ता से जुड़े ताक़तवर तांत्रिक चंद्रास्वामी और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम के संबंधों की पड़ताल में लगा था.
गढ़ा गांव का वो बच्चा बड़ा होकर एक से एक चमत्कार दिखाने लगा. उसके दरबार में भक्तों की भीड़ इकट्ठा होने लगी. सोशल मीडिया और 24 घंटे चलने वाले न्यूज़ चैनलों पर बागेश्वर धाम के चमत्कारों की चर्चा होने लगी. आज 26 बरस के उस नौजवान को हम और आप धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री उर्फ़ बागेश्वर धाम सरकार नाम से जानते हैं. धीरेंद्र शास्त्री की पैदाइश के वक़्त दिल्ली में तांत्रिक चंद्रास्वामी के ख़िलाफ़ ठगी, जालसाज़ी और राजीव गांधी की हत्या जैसे गंभीर मामलों की जांच चल रही थी.
दोनों घटनाओं में परस्पर कोई संबंध नहीं है. सिवाय इसके कि जैसे चमत्कार दिखाकर चंद्रास्वामी देश-विदेश की नामी-गिरामी हस्तियों को अपना भक्त बना लेते थे, इन दिनों वैसे ही चमत्कारों की ख़बरें बागेश्वर धाम से भी आती हैं. चंद्रास्वामी की ताक़त का अंदाज़ा सिर्फ़ इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव तक उनकी सीधी पहुंच थी. विधायक, मंत्री, व्यापारी और आमजन उसके सामने ठीक वैसे ही सिर नवाते थे जैसे आज धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के सामने झुकाते हैं.
बबलू श्रीवास्तव और वीरेंद्र पंत जैसे अंडरवर्ल्ड के शार्प शूटर चंद्रास्वामी के आश्रम में शरण पाने का दावा करते थे.
वीरेंद्र पंत नेशनल लेवल का टेनिस खिलाड़ी था और बबलू श्रीवास्तव का शार्प शूटर भी. वो दुबई के माफ़िया डॉन फ़ज़लू भाई के गैंग से भी जुड़ा था. बाद में उसे वो दिल्ली पुलिस के साथ दक्षिण दिल्ली में हुए एक ‘एनकाउंटर’ में मारा गया था. अगर बबलू श्रीवास्तव से आपको कुछ याद न आ रहा हो तो इतना बताना काफ़ी होगा कि इन दिनों वो बरेली जेल में उम्रक़ैद की सज़ा काट रहा है. कुछ हफ़्ते पहले ही पाकिस्तान ने बाक़ायदा प्रेस कॉनफ़्रेंस करके आरोप लगाया था कि 23 जून 2021 को लाहौर में लश्कर-ए-तौएबा के चीफ़ हाफ़िज़ सईद के घर के बाहर हुआ बम विस्फोट दरअसल बबलू श्रीवास्तव ने करवाया था. पाकिस्तान के गृहमंत्री ने एक डॉसिए जारी करके कहा कि बबलू श्रीवास्तव भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के लिए काम करता है.
वही बबलू श्रीवास्तव इस कहानी की धुरी है.
ये बिलकुल इत्तेफ़ाक था कि चंद्रास्वामी और दाऊद इब्राहीम के रिश्तों की खबर मेरे हाथ लगी. वो रिपोर्टरी के दिन थे. हम ख़बरों की तलाश में एक दफ़्तर से दूसरे दफ़्तर भटकते रहते थे. जिस दिन कोई अच्छी ख़बर हाथ लग जाती थी तो दिन सार्थक हो जाता था, वरना प्रेस रिलीज़ पर आधारित भर्ती की ख़बरें बनाकर दिन अकारथ करते थे.
शाम ढलने वाली थी और मेरे पास कोई ख़बर नहीं थी. आख़िरी कोशिश के तौर पर मैं सीजीओ कॉम्प्लेक्स में CBI हेडक्वॉर्टर्स गया. मुझे मालूम था कि CBI बबलू श्रीवास्तव को सिंगापुर से एक्स्ट्राडाइट करके लाई है और उससे पूछताछ चल रही है. लेकिन उसके बारे में कोई भी अफ़सर मुंह खोलने को तैयार नहीं था.
हारकर मैं सीबीआई हेडक्वॉर्टर्स से बाहर आ ही रहा था कि हमारे एक पुराने वकील मित्र बाहर ही मिल गए. उन्होंने कहा,
“बबलू श्रीवास्तव तो बहुत कुछ बता रहा है. चंद्रास्वामी और दाऊद इब्राहीम का नाम ले रहा है. उसे कल कानपुर मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया जाएगा. अगर वहां सुबह तक पहुंच सको तो पाँच मिनट खड़े-खड़े बात कर लेना. वो सबकुछ बता देगा.”
ये धरती धकेल स्कूप था. स्कूप का मतलब पारस पत्थर. यानी असंभव चीज़ को पा जाना. शाम ढल चुकी थी और अगले दिन सुबह बबलू श्रीवास्तव को हवाई जहाज़ से कानपुर ले जाया जाना था. मुझे सीबीआई टीम से पहले कानपुर पहुंच जाना था.
सुबह चार बजे उठकर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से शताब्दि ट्रेन लेकर कानपुर पहुंचा. उस दिन सरकारी छुट्टी थी और सुनवाई मजिस्ट्रेट के घर पर ही होनी थी. जैसे ही मैं मजिस्ट्रेट के घर के सामने पहुंचा हूटर बजाते हुए एक के पीछे एक करके तेरह गाड़ियां वहां से बाहर निकल गईं. पूछने पर पता चला कि बबलू श्रीवास्तव को मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर दिया गया है और अब उसे जेल ले जाया जा रहा है.
बबलू श्रीवास्तव ही वो सूत्र था जो चंद्रास्वामी के काले-सफ़ेद की जानकारी CBI को दे रहा था. अगर मैं उससे बात नहीं कर पाया तो कानपुर आना बेकार! मैंने टैक्सी ड्राइवर से गाड़ी उसी क़ाफ़िले के पीछे लगाने को कह दिया. कानपुर जेल के गेट पर पहुंचे तो सभी गाड़ियों को अंदर जाने दिया, मगर जैसे ही हमारी टैक्सी का नंबर आया सुरक्षा गार्डों ने गेट बंद कर दिया और कहा कि बिना पास के आप अंदर नहीं जा सकते.
हाथ आया पंछी फुर्र से उड़ गया. निर्मल वर्मा के शब्द याद आ रहे थे और अपनी हथेलियों पर उस उड़ चुके पंछी की धड़कनों को मैं अब तक महसूस कर रहा था. सुरक्षा गार्डों से की गई मिन्नत-चिरौरी किसी काम नहीं आई और थक हार कर मैं दिल्ली की ट्रेन पकड़ने के लिए लौटने लगा. तभी मेरी नज़र सामने लगे बोर्ड पर पड़ी – ज़िलाधीश कानपुर.
बचपन से सुन रखा था डीएम यानी ज़िलाधीश पूरे ज़िले का मालिक होता है. जो चाहे वो करवा सकता है. तुरंत रिक्शे से कूदा और डीएम के दफ़्तर में दाख़िल हो गया. कार्ड भेजने पर डीएम ने अंदर बुलवा लिया. मैंने सीधे-सपाट स्वर में कहा –
“सर, मैं दिल्ली से आया रिपोर्टर हूं. जेल में एक लोकल क्रिमिनल है. मैं उससे मिलकर एक-आध स्टोरी कर लेता पर जेल वाले अंदर जाने ही नहीं दे रहे. अगर आप कह देंगे तो मेरा काम बन जाएगा.”
डीएम को या तो मुझपर तरस आया होगा या फिर उन्हें बबलू श्रीवास्तव के दाऊद कनेक्शन की कोई ख़बर नहीं रही होगी. उन्होंने तुरंत जेलर को फ़ोन लगाया और कहा – ‘दिल्ली से ये रिपोर्टर आया है, इसे उस क्रिमिनल से क्यों नहीं मिलने दे रहे हो?’
मैंने डीएम का शुक्रिया अदा किया और वापिस जेल की ओर भागा. अब जेल के सभी दरवाज़े मेरे लिए खुले हुए थे. मुझे बाइज़्ज़त अंदर ले जाया गया और जेलर के कमरे तक पहुंचाया गया. मैं पूरी तैयारी के साथ गया था. पीले पॉलिथीन के थैले में रिकॉर्डर तैयार था. जेलर को डीएम का हुक्म मिल चुका था. उसने तुरंत बबलू श्रीवास्तव को बुलवा कर मेरे बग़ल में बैठा दिया.
मेरे ठीक सामने मेज़ के पार जेलर, चारों तरफ़ वकीलों और क्लर्कों का जमावड़ा. सब क़ानूनी दांव-पेच की बहस में मशगूल. ऐसे में हिम्मत करके मैंने टेबल के नीचे ही थैले में हाथ डालकर रिकॉर्डर ऑन कर दिया. बबलू श्रीवास्तव ने लगभग रटी हुई स्क्रिप्ट की तरह वो सबकुछ मुझे बता दिया जो सीबीआई के अफ़सरों को बताया था.
उसने अपने छात्र जीवन के बारे में बताया, अपने आपराधिक जीवन की शुरुआत के बारे में बताया, ये बताया कि चंद्रास्वामी के आश्रम में उसे कैसे शरण मिली. और, ये भी बताया कि चंद्रास्वामी की दाऊद इब्राहीम से कैसे मुलाक़ात हुई. उसने बंबई के उन बिल्डरों का नाम बताया जो चंद्रास्वामी को लेकर दाऊद के पास गए थे.
सब कुछ रिकॉर्ड हो गया था. स्टोरी मेरे हाथ में थी. पर तभी जेलर ने मेरे हाथ में रिकॉर्डर देख लिया और रिकॉर्डिंग के लिए मना करते हुए उसे मुझसे लेकर अपने पास टेबल पर रख लिया. मैंने किसी तरह की घबराहट का इज़हार नहीं किया और आराम से बबलू श्रीवास्तव से पहले की तरह बातचीत में मशगूल रहा. उसके पास अब बताने को और कुछ नहीं था. उसने कहा मैं थका हुआ हूं और सोना चाहता हूं. उसे कमरे से बाहर ले जाया गया.
लेकिन अब सबसे बड़ी चुनौती अपने रिकॉर्डर को जेलर से रिट्रीव करने की थी. मैं तुरंत कुर्सी से खड़ा हुआ और जेलर की ओर हाथ बढ़ा दिया और कहा – “शुक्रिया, जेलर साहब... आपने बहुत मदद की पर उसके पास ज़्यादा कुछ कहने को था नहीं.” ऐसा कहकर फुर्ती से टेबल पर रखे रिकॉर्डर को उठाया और बिना जल्दबाज़ी दिखाए टहलते हुए जेल से बाहर आ गया. मुझे बार बार लग रहा था कि जेल के सुरक्षा गार्ड अब पीछे से आवाज़ देकर बुलाएंगे और रिकॉर्डर छीन लेंगे. पर रिकॉर्डर लेकर अगली ट्रेन से सुरक्षित दिल्ली पहुंच गया.
उन दिनों केंद्रीय गृह राज्यमंत्री राजेश पायलट थे. चंद्रास्वामी से उनकी दुश्मनी जगज़ाहिर थी. दौसा, राजस्थान के एक चुनाव में दोनों के बीच तनातनी हो गई थी, जिसके बाद राजेश पायलट ने चंद्रास्वामी को कभी माफ़ नहीं किया. अगली सुबह जनसत्ता अख़बार की सुर्ख़ी थी – ‘बबलू श्रीवास्तव ने खोला दाऊद इब्राहीम से चंद्रास्वामी के रिश्तों का राज़’. ख़बर राजेश पायलट ने पढ़ी और सीबीआई से बबलू श्रीवास्तव की इंटैरोगेशन की रिपोर्ट मंगवा ली.
चंद्रास्वामी के लिए ये शनि की दशा की शुरुआत थी. उनकी गिरफ़्तारी के आदेश कर दिए गए और उनके तमाम नए पुराने कांडों की फ़ाइल खुल गई. अगले कई महीनों तक उन्हें जेल में रहना पड़ा.
पर कहानी तो शुरू हुई थी कि कैसे चंद्रास्वामी मार्गरेट थैचर से लेकर जूलिया रॉबर्ट्स और ब्रूनेई के बादशाह से लेकर दिल्ली के पावरफ़ुल मंत्रियों और बिज़नेस के लोगों को अपने चमत्कारों के बल पर शीशे में उतारते थे. पर यहां तो वो ख़ुद जाल में फंस चुके थे. फ़ाइलें खुलीं तो फिर लखूभाई पाठक केस, सेंट् किट्स फ़ोर्जरी और राजीव गांधी की हत्या तक की फ़ाइल भी उनमें शामिल थीं. इन सब मामलों में चंद्रास्वामी का नाम बार-बार आ रहा था.
हालांकि चंद्रास्वामी को कुछ महीनों बाद ज़मानत मिल गई लेकिन चमत्कार दिखाकर लोगों को भौंचक कर देने की उनकी आदत नहीं गई. उनके चमत्कारों का प्रसाद एक बार मुझे भी मिला.
वो दोपहर मेरी स्मृति में अब भी ताज़ा है जब मैं चंद्रास्वामी के हवेलीनुमा आश्रम के एक बड़े से कमरे में चंद्रास्वामी के साथ अकेले बैठा पाया गया. वो मुझसे काफ़ी दूर अपने ऊंचे से सिंहासन पर विराजमान थे और मैं नीचे एक सोफ़े पर. उन्होंने सेवा-टहल करने वाले सभी लोगों को कमरे से बाहर निकाल दिया था. एक ताकतवर तांत्रिक जो आपके कारण जेल की हवा खा चुका हो उसके साथ अकेले एक कमरे में बैठना... मेरे मन में कई तरह की आशंकाएं तो थीं, पर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू मिलने का लालच उन सब आशंकाओं पर भारी पड़ रहा था.
थुलथुल शरीर, फूले गाल, भारी होंठ, लंबे बाल और दाढ़ी, माथे पर बड़ा-सा लाल रंग का गोल टीका, हाथों की लगभग दसों उंगलियों में बड़े-बड़े बेशक़ीमती हीरे-ज़वाहरात जड़ी अंगूठियां. कुछ ऐसा स्वरूप था चंद्रास्वामी का.
बातचीत के दौरान वो एक काग़ज़ की एक छोटी सी पुर्ज़ी पर कलम से कुछ लिखते जा रहे थे. कुछ देर बाद उन्होंने उस पर्ची को अपनी उंगलियों में घुमाकर उसकी छोटी गोली-सी बना ली और उससे खेलते रहे. मुझसे मेरे घर-गांव के बारे में कुछ और बातें करने के बाद उन्होंने आदेश के स्वर में मुझसे कहा:
“एक पक्षी का नाम लीजिए.”
“मोर”, मुझे सबसे पहले इसी पक्षी का ख़याल आया.
“एक से नौ के बीच की कोई संख्या बताइए.”
मैं थोड़ा सोचने लगा. मेरे दिमाग़ में द्वंद्व चल रहा था चार कहूं या पांच. आख़िर में मैंने झिझकते हुए कहा, “चार”.
अचानक चंद्रास्वामी के तेवर पूरी तरह बदल गए. उन्होंने तुरंत अपना रौद्र रूप प्रकट किया और चिल्लाते हुए बोले, “सोचो मत! जो संख्या पहले दिमाग़ में आई वो बताओ.”
मुझे फिर ध्यान आया कि मैं चंद्रास्वामी के कमरे में उनके साथ अकेले बैठा हूं. उनकी क़ुव्वत से भी मैं अच्छी तरह से वाक़िफ़ था. संजय वन के भुतहा जंगल से लगे उनके आश्रम के उस विशाल कमरे में उनके साथ अकेले होने का एहसास ने मेरे माथे पर पसीने की बूंदें छलका दी थीं.
“पांच.” घबराहट और हड़बड़ाहट में मेरे मुंह से यही निकला.
“एक पुष्प का नाम लो.” चंद्रास्वामी की आवाज़ तुरंत मखमल जैसी मुलायम हो गई थी. मेरे लिए ये बहुत राहत की बात थी. सवाल आसान भी था. कमल से अच्छा और कौन सा पुष्प हो सकता है.
“कमल”, मैंने दबी आवाज़ में कहा.
मेरा जवाब सुनकर चंद्रास्वामी फिर से अपने रौद्र रूप में आ गए. अपनी बड़ी-बड़ी लाल आंखों से मेरी ओर देखा, पास रखे काग़ज़ के पुर्ज़े की गोली बनाकर मेरे मुंह पर दे मारी और पहले से भी ज़्यादा बुलंद आवाज़ में लगभग चीखते हुए बोले – “ले देख ले अपना भविष्य!”
डरते डरते मैंने कागज की गोली को खोला. अंदर तीन शब्द लिखे थे – मयूर, पांच, कमल.
मुझे काटो तो ख़ून नहीं. कोई भी तर्क मुझे संतुष्ट नहीं कर पा रहा था कि मैंने जो कुछ कहा उसे चंद्रास्वामी ने पहले से काग़ज़ पर कैसे लिख दिया!
बागेश्वर धाम सरकार उर्फ़ धीरेंद्र शास्त्री से मैं अब तक नहीं मिला हूं. अब तक मैंने उनका चटाक से ताली बजाना, बात बात पर चुटकी बजाना और भक्तों को शुद्ध बुंदेलखंडी में सरेआम डाँटना सिर्फ़ टीवी और यू-ट्यूब की स्क्रीन पर ही देखा है.
बागेश्वर बाबा न करें कि मुझे कभी धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के कमरे में उनके साथ अकेले बैठकर ‘सत्संग’ करना पड़े.
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