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'विलोम क्या है? एक असफल कालिदास. और कालिदास ? एक सफल विलोम'

पढ़िए आधुनिक नाटकों में टॉप पर आने वाले मोहन राकेश कृत 'आषाढ़ का एक दिन' का एक अंश.

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जिस नाटक को साहित्य अकादमी दिया गया था.
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17 जुलाई 2019 (Updated: 19 जुलाई 2019, 11:49 AM IST) कॉमेंट्स
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आषाढ़ का महीना खत्म हो गया है और शुरू हो गया है सावन. झमाझम बारिश भी होने लगी है. इस बारिश के मौसम में पढ़िए मोहन राकेश का लिखा नाटक 'आषाढ़ का एक दिन'. मोहन राकेश की इस रचना ने उन्हें साहित्य अकादमी दिलाया था. उनकी बहुत सी किताबें छपी हैं. जिनमें से एक आषाढ़ का एक दिन मुख्य़ है. ये नाटक ऐतिहासिक है. रंगमंच जब तक रहेगा, कलाकारों की लिस्ट में तब तक ये नाटक हमेशा टॉप पर रहेगा.
पढ़िए इनकी ही कहानी का एख अंश
पढ़िए इनकी ही कहानी का अंश

 


कालिदास को सब जानते हैं. मगर लोग ये नहीं जानते कि वो कालिदास, कालिदास कैसे बने? उन्हें किसने कालिदास बनाया? उन परिस्थितियों के ताने-बाने से बुना गया है,नाटक. आइए पढ़ते हैं नाटक का एक अंश.


विलोम :  तुम, मल्लिका की माँ, इस विषय में सोचना नहीं चाहतीं? आश्चर्य है!
अम्बिका  : मैंने तुमसे कहा है विलोम, तुम चले जाओ.
विलोम  : कालिदास उज्जयिनी चला जाएगा! और मल्लिका, जिसका नाम उसके कारण सारे प्रान्तर में अपवाद का विषय बना है, पीछे यहाँ पड़ी रहेगी? क्यों, अम्बिका?
(अम्बिका कुछ न कहकर आसन पर बैठ जाती है. विलोम घूमकर उसके सामने आ जाता है.)
क्यों? तुमने इतने वर्ष सारी पीड़ा क्या इसी दिन के लिए सही है? दूर से देखने वाला भी जान सकता है, इन वर्षों में तुम्हारे साथ क्या-क्या बीता है! समय ने तुम्हारे मन, शरीर और आत्मा की इकाई को तोडक़र रख दिया है. तुमने तिल-तिल करके अपने को गलाया है कि मल्लिका को किसी अभाव का अनुभव न हो. और आज, जब कि उसके लिए जीवन-भर के अभाव का प्रश्न सामने है, तुम कुछ सोचना नहीं चाहतीं?
अम्बिका  : तुम यह सब कहकर मेरा दु:ख कम नहीं कर रहे, विलोम! मैं अनुरोध करती हूँ कि तुम इस समय मुझे अकेली रहने दो.
विलोम  : मैं इस समय अपना तुम्हारे पास होना बहुत आवश्यक समझता हूँ, अम्बिका! मैं ये सब बातें तुमसे नहीं, उससे कहने के लिए आया हूँ. आशा कर रहा हूँ कि वह मल्लिका के साथ अभी यहाँ आएगा. मैंने मल्लिका को जगदम्बा के मन्दिर की ओर जाते देखा है. मैं यहीं उसकी प्रतीक्षा करना चाहता हूँ.
Prabhat Khabar से लिया गया नाटक का दृष्य.
Prabhat Khabar से लिया गया नाटक का दृष्य.

(ड्योढ़ी से कालिदास और उसके पीछे मल्लिका आती है.)
कालिदास  : अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी, विलोम!
(विलोम को देखकर मल्लिका की आँखों में क्रोध और वितृष्णा का भाव उमड़ आता है, और वह झरोखे की ओर चली जाती है. कालिदास विलोम के पास आ जाता है.)
मैं जानता हूँ कि तुम कहाँ, किस समय, और क्यों मेरे साक्षात्कार के लिए उत्सुक होते हो....कहो, आजकल किस नये छन्द का अभ्यास कर रहे हो?
विलोम  : छन्दों का अभ्यास मेरी वृत्ति नहीं है.
कालिदास  : मैं जानता हूँ तुम्हारी वृत्ति दूसरी है.
(क्षण-भर उसकी आँखों में देखता रहता है.)
उस वृत्ति ने सम्भवत: छन्दों का अभ्यास सर्वथा छुड़ा दिया है.
विलोम  : आज नि:सन्देह तुम छन्दों के अभ्यास पर गर्व कर सकते हो.
(अग्निकाष्ठ के पास जाकर उसे सहलाने लगता है. प्रकाश उसके मुख पर पड़ता है.) वीडियो देखकर पूरे नाटक का आनंद उठाएं:

सुना है, राजधानी से निमन्त्रण आया है.
कालिदास  : सुना मैंने भी है. तुम्हें दु:ख हुआ?
विलोम  : दु:ख? हाँ-हाँ, बहुत. एक मित्र के बिछुडऩे का किसे दु:ख नहीं होता?
...कल ब्राह्म मुहूत्र्त में ही चले जाओगे?
कालिदास  : मैं नहीं जानता.
विलोम  : मैं जानता हूँ. आचार्य कल ब्राह्म मुहूत्र्त में ही लौट जाना चाहते हैं. राजधानी के वैभव में जाकर ग्राम-प्रान्तर को भूल तो नहीं जाओगे?
(एक दृष्टि मल्लिका पर डालकर फिर कालिदास की ओर देखता है.)
Patrika.com में छपे नाटक का एक दृष्य.
Patrika.com में छपे नाटक का एक दृष्य.

सुना है, वहाँ जाकर व्यक्ति बहुत व्यस्त हो जाता है. वहाँ के जीवन में कई तरह के आकर्षण हैं—रंगशालाएँ, मदिरालय और तरह-तरह की विलास-भूमियाँ!
(मल्लिका के भाव में बहुत कठोरता आ जाती है.)
मल्लिका  : आर्य विलोम, यह समय और स्थान इन बातों के लिए नहीं है. मैं इस समय आपको यहाँ देखने की आशा नहीं कर रही थी.
विलोम  : मैं जानता हूँ तुम इस समय मुझे यहाँ देखकर प्रसन्न नहीं हो. परन्तु मैं अम्बिका से मिलने आया था. बहुत दिनों से भेंट नहीं हुई थी. यह कोई ऐसी अप्रत्याशित बात नहीं है.
कालिदास  : विलोम का कुछ भी करना अप्रत्याशित नहीं है. हाँ, कई कुछ न करना अप्रत्याशित हो सकता है.
विलोम  : यह वास्तव में प्रसन्नता का विषय है कालिदास, कि हम दोनों एक-दूसरे को इतनी अच्छी तरह समझते हैं. नि:सन्देह मेरे स्वभाव में ऐसा कुछ नहीं है, जो तुमसे छिपा हो.
(क्षण-भर कालिदास की आँखों में देखता रहता है.)
विलोम क्या है? एक असफल कालिदास. और कालिदास? एक सफल विलोम. हम कहीं एक-दूसरे के बहुत निकट पड़ते हैं.
(अग्निकाष्ठ के पास से हटकर कालिदास के निकट आ जाता है.)
कालिदास  : नि:सन्देह. सभी विपरीत एक-दूसरे के बहुत निकट पड़ते हैं.
विलोम  : अच्छा है, तुम इस सत्य को स्वीकार करते हो. मैं उस निकटता के अधिकार से तुमसे एक प्रश्न पूछ सकता हूँ? ...सम्भव है फिर कभी तुमसे बात करने का अवसर ही प्राप्त न हो. एक दिन का व्यवधान तुम्हें हमसे बहुत दूर कर देगा न!
कालिदास  : वर्षों का व्यवधान भी विपरीत को विपरीत से दूर नहीं करता.... मैं तुम्हारा प्रश्न सुनने के लिए उत्सुक हूँ.
(विलोम बहुत पास आकर उसके कन्धे पर हाथ रख देता है.)
विलोम  : मैं जानना चाहता हूँ कि तुम अभी तक वही कालिदास हो न?
(अर्थपूर्ण दृष्टि से अम्बिका की ओर देख लेता है.)
कालिदास  : मैं तुम्हारा अभिप्राय नहीं समझ सका.
(उसका हाथ अपने कन्धे से हटा देता है.)
विलोम  : मेरा अभिप्राय है कि तुम अभी तक वही व्यक्ति हो न जो कल तक थे?
(मल्लिका झरोखे के पास से उधर को बढ़ आती है.)
मल्लिका  : आर्य विलोम, मैं इस प्रकार की अनर्गलता क्षम्य नहीं समझती.
विलोम  : अनर्गलता?
(अम्बिका के निकट आ जाता है. कालिदास दो-एक पग दूसरी ओर चला जाता है.)
इसमें अनर्गलता क्या है? मैं बहुत सार्थक प्रश्न पूछ रहा हूँ. क्यों कालिदास? मेरा प्रश्न सार्थक नहीं है?...क्यों अम्बिका?
(अम्बिका अव्यवस्थित भाव से उठ खड़ी होती है.)
अम्बिका  : मैं इस सम्बन्ध में कुछ नहीं जानती, और न ही जानना चाहती हूँ.
(अन्दर की ओर चल देती है.)
विलोम  : ठहरो, अम्बिका!
(अम्बिका रुककर उसकी ओर देखती है.)
आज तक ग्राम-प्रान्तर में कालिदास के साथ मल्लिका के सम्बन्ध को लेकर बहुत कुछ कहा जाता रहा है.
(मल्लिका एक पग और आगे आ जाती है.)
मल्लिका  : आर्य विलोम, आप...!
विलोम  : उसे दृष्टि में रखते हुए क्या यह उचित नहीं कि कालिदास यह स्पष्ट बता दे कि उसे उज्जयिनी अकेले ही जाना है या...


 
 
आषाढ़ का एक दिन किताब का मुख्य पेज
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पुस्तक का नाम - आषाढ़ का एक दिन

लेखक का नाम - मोहन राकेश

प्रकाशक - राजपाल

मूल्य - रू. 125

पेज - 128




वीडियो देखें: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता: खाली समय में

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