बिहार, महाराष्ट्र, हरियाणा से 17 मंत्री, जबकि सीटें पहले से कम जीतीं, BJP ने ऐसा कर कहां निशान लगाया?
Modi 3.0 में Bihar से 8, Maharashtra से 6 और Haryana से 3 मंत्री बनाए गए हैं. भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. मगर इन राज्यों में BJP लोकसभा चुनाव में पिछली बार के मुकाबले मजबूत नहीं नज़र आई. तो आइए तीनों राज्यों पर एक नज़र डालते हैं समझने की कोशिश करते हैं इन राज्यों से जिन्हें मंत्री बनाया गया है, इनके जरिए BJP क्या हासिल करना चाहती है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नई सरकार का गठन हो गया है. 30 कैबिनेट मंत्री समेत 72 मंत्रियों ने शपथ ली है. सरकार चलाने में इस बार दूसरे दलों की भी जरूरत है, इसलिए मंत्रिमंडल में इस बार सहयोगी की संख्या भी बढ़ गई है. NDA में शामिल दूसरे दलों से 11 मंत्री बनाए गए हैं. देश के सभी राज्यों का ध्यान रखा गया है. जहां से BJP का एक भी सांसद नहीं बना, वहां से भी मंत्री बनाए हैं. लेकिन कहा जा रहा है कि उन राज्यों का विशेष ध्यान रखा गया है, जहां इस साल या अगले चुनाव होने वाले हैं. मसलन, महाराष्ट्र और हरियाणा में इस साल चुनाव होने हैं, बिहार में अगले साल चुनाव होंगे.
इन्हीं तीन राज्यों की बात करें तो महाराष्ट्र से 6, हरियाणा से 3 और बिहार से 8 मंत्री बनाए गए हैं. यानी तीन राज्यों से 17 मंत्री. हालांकि, भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. पहले भी सरकार में आने के बाद पार्टियां अपने राजनीतिक हितों को तवज्जो देती रही हैं. मगर बिहार, महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव से पहले हुए लोकसभा चुनाव में पिछली बार के मुकाबले BJP की स्थिति इस बार उतनी मजबूत नहीं नज़र आई. फिर भी जीती गई सीटों के लिहाज से और अन्य राज्यों की तुलना में, यहां से ज्यादा मंत्री बनाए गए. आइए इन तीनों राज्यों पर एक नज़र डालते हैं और समझने की कोशिश करते हैं इन तीन राज्यों से जिन्हें मंत्री बनाया गया है, इनके जरिए BJP आखिर क्या हासिल करना चाहती है? इतने मंत्री बनाने का मकसद है क्या?
बिहार के जातीय समीकरणयूपी के बाद सबसे ज्यादा मंत्री बिहार कोटे से ही बने हैं. वजह भी है, बिहार में इस बार BJP के साथ-साथ NDA को भी नुकसान हुआ है. पिछले लोकसभा चुनाव में BJP को 17 सीटें मिली थीं, जो इस बार घटकर 12 पर आ गई हैं. नतीजों के बाद नीतीश कुमार की सिर्फ मुस्कुराती तस्वीरें ही आई हैं. वजह भी साफ है 12 सीटों के साथ जेडीयू BJP की सहयोगी के साथ-साथ जरूरत भी बन गई है. लेकिन पिछली बार के मुकाबले उसकी भी 4 सीटें कम हुई हैं. यही वजह है कि मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही बिहार से 8 मंत्री बनाए गए हैं.
बिहार से इस बार गिरिराज सिंह, नित्यानंद राय को एक बार फिर मंत्री बनाया गया है. नए चेहरों की बात करें तो, चिराग पासवान, जीतन राम मांझी, ललन सिंह, रामनाथ ठाकुर, राजभूषण और सतीश दुबे को भी इस बार मंत्री बनाया गया है. तीन दशक से बिहार की राजनीति को करीब से देख रहे वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार कहते हैं,
'इस बार के चुनाव में 'जाति' बड़ा फैक्टर रहा है. इसीलिए बिहार में जातीय समीकरणों को साधने की पूरी कोशिश की गई है.'
मनोज इसके बाद सभी मंत्रियों के जातिगत फैक्टर को रेखांकित करते हैं. मसलन, गिरिराज सिंह पर पहले भी अटकलें लगती रही हैं. पिछली सरकार में मंत्रिमंडल के फेरबदल में भी ऐसी आशंकाएं जताई गई थीं कि गिरिराज का पत्ता कट सकता है. लेकिन ऐसा तब भी नहीं हुआ था और इस बार भी नहीं. मोदी सरकार में गिरिराज को रिटेन किया गया है. अपने बयानों से उन्होंने अपनी छवि को हिंदुत्ववादी फायरब्रैंड नेता बनाया है. जिसका लाभ भी उन्हें मिलता रहा है.
अगले मंत्री जिन्हें एक बार फिर मंत्रिमंडल में जगह मिली है वो हैं नित्यानंद राय यादव. बिहार की सबसे डॉमिनेटिंग कास्ट से आते हैं. यादव भले ही BJP का वोटबैंक नहीं माना जाता, लेकिन 14 प्रतिशत आबादी को छोड़ा नहीं जा सकता. साथ ही BJP के इस बार 2 सांसद जीतकर आए हैं जो यादव जाति से आते हैं.
पहली बार सांसद बने चिराग पासवान को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. चिराग को वही मंत्रालय दिया गया है जो उनके पिता को दिया गया था. खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय. चिराग पासवान को मंत्रिमंडल में शामिल करने की वजह साफ है. पांच में पांच सीट जीतकर सौ प्रतिशत स्ट्राइक रेट रहा है LJP(RV) का. इसके अलावा चिराग दलित समाज से आते हैं. बिहार में पासवान या दुसाध जाति यादवों के बाद सबसे बड़ी आबादी है. जिनकी संख्या 5 प्रतिशत से ज्यादा है.
जीतन राम मांझी भी महादलित समुदाय से आते हैं. नीतीश कुमार ने दलितों से महादलितों को अलग पहचान दी. जिनकी आबादी बिहार में 3.5 प्रतिशत के करीब है. मांझी 'हम' पार्टी से आने वाले इकलौते सांसद हैं. इसलिए उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी गई है.
ललन सिंह की बात करें तो जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद सबसे सीनियर नेता हैं. उनका नंबर इस बार आने की पूरी संभावना जताई जा रही थी. ललन सिंह भूमिहार जाति से आते हैं. और बिहार में भूमिहार NDA, खासतौर पर BJP का कोर वोटर माना जाता रहा है. लेकिन बीते दो चुनावों में भूमिहार जेडीयू से छिटक रहा था. यह भी वजह है कि ललन सिंह के जरिए नीतीश इस वोटबैंक को एक बार फिर मजबूत करने की कोशिश में हैं.
रामनाथ ठाकुर और राजभूषण, दोनों अतिपिछड़ा वर्ग (EBC) से आते हैं. जिनकी राज्य में आबादी 31 प्रतिशत है. रामनाथ ठाकुर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे हैं. चुनाव से पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न भी दिया गया था. जिसके तुरंत बाद जेडीयू NDA में शामिल हो गई थी.
राजभूषण भी EBC में शामिल मल्लाह जाति से आते हैं. इस चुनाव में विकासशील इंसान पार्टी वाले मुकेश सहनी ने तेजस्वी यादव के साथ घूम-घूमकर खुद को मल्लाह समाज का नेता स्थापित करने की कोशिश की है. BJP इसको काउंटर करना चाहती है. राजभूषण पहले मुकेश सहनी के ही साथी थे. जिन्हें तोड़कर BJP अपने खेमे में लाई है.
आखिर में आते हैं सतीश चंद्र दुबे. दुबे राज्यसभा सांसद हैं. ब्राह्मण चेहरे के रूप में उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है.
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महाराष्ट्र से 6 मंत्रीमहाराष्ट्र में इस बार BJP समेत NDA का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है. जबकि इस बार BJP के साथ शिवसेना और NCP भी थी. 2019 में 23 सीटें जीतने वाली BJP को इस बार 9 सीटें मिलीं. शिवसेना और NCP की टूट का खामियाजा पूरे NDA को भुगतना पड़ा. पार्टी और सिंबल जाने के बाद भी उद्धव ठाकरे और शरद पवार पर जनता ने भरोसा जताया है. BJP के लिए खतरे की घंटी इसलिए भी है क्योंकि इसी साल राज्य में चुनाव हैं. अगर यही ट्रेंड बकरार रहा तो राज्य की सत्ता बचाना मुश्किल हो सकता है.
ऐसे में महाराष्ट्र से केंद्र में 6 मंत्री बनाए गए हैं. इनमें से नितिन गडकरी और पीयूष गोयल पहले से केंद्र में मंत्री रहे हैं. दोनों कैबिनेट मिनिस्टर हैं. रामदास आठवले को भी पहले की तरह राज्य मंत्री बनाया गया है. आठवले की पार्टी से ना कोई विधायक है ना कोई सांसद. लेकिन उन्हें मंत्रिमंडल में जगह दी गई है. इसकी वजह है उनका दलित समाज से आना. इस बार के चुनाव में ऐसा माना जा रहा है कि दलित वोटर BJP से खफा हैं. इसलिए सांकेतिक ही सही पर आठवले के बहाने BJP दलित वोटों को साधने की कोशिश में है.
इनके अलावा रक्षा खडसे, मुरलीधर मोहोल और प्रताप राव जाधव को मंत्रिमंडल में पहली बार जगह मिली है. रक्षा खडसे तीसरी बार सांसद बनी हैं. वो एकनाथ खडसे की बहू हैं. एकनाथ 2020 में BJP छोड़ NCP में चले गए थे. लेकिन रक्षा ने ससुर का साथ नहीं दिया. वो BJP में बनी रहीं. जिसका इनाम उन्हें मिला है. इसके अलावा खडसे OBC की लेवा पाटिल समाज से आती हैं. उनके जरिए BJP ने OBC को साधने की कोशिश की है.
मुरलीधर मोहोल पश्चिमी महाराष्ट्र से आने वाले एकमात्र नेता हैं, जहां इस साल नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों में पार्टी का दांव बहुत बड़ा है. लोकसभा चुनावों में पश्चिमी महाराष्ट्र से भाजपा के केवल दो सांसद चुने गए. मोहोल के अलावा, सतारा से छत्रपति शिवाजी के वंशज उदयन राजे भोंसले. साथ ही मोहोल मराठा समाज से आते हैं. मराठा आरक्षण को लेकर कहा जाता है कि BJP इस मुद्दे को सही तरीके से हैंडल नहीं कर पाई. मराठा समाज की नाराज़गी से BJP को इस बार नुकसान भी हुआ है. यही वजह है कि मोहोल को शामिल करके BJP ने सांकेतिक ही सही मराठा समाज को संदेश देने की कोशिश की है.
प्रताप राव जाधव एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना से आते हैं. उनका एक परिचय ये भी है वो शिवाजी की मां जीजाबाई के वंशज हैं. वो भी मराठा समाज से आते हैं. पार्टी टूटने के बाद एकनाथ शिंदे गुट जिसे चुनाव आयोग ने आधिकारिक शिवसेना कहा, उसका प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा. इसलिए मराठा समाज को साधने के लिए शिंदे गुट ने भी जाधव को मंत्री बनाया.
5 सांसद वाले हरियाणा से 3 मंत्रीहरियाणा के कोटे से मंत्रियों की लिस्ट चौंकाने वाली है. इस राज्य से BJP के कुल पांच सांसद बने हैं. उनमें से 3 को मंत्री बना दिया गया है. माने एक राज्य से जीतने वाले 60 प्रतिशत सांसद मंत्री बन गए हैं. इस पूरे गुणाभाग की वजह है इस चुनाव में पार्टी का खराब प्रदर्शन और इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव.
हरियाणा से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, राव इंद्रजीत सिंह और कृष्ण पाल गुर्जर को मंत्री बनाया गया है. गौर करने वाली बात ये है कि इनमें से एक भी मंत्री जाट समाज से नहीं है. खट्टर सरकार में भी पार्टी पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि हरियाणा में BJP जाट Vs नॉन जाट राजनीति कर रही है. मंत्रिमंडल में हरियाणा से जाटों का प्रतिनिधित्व ना मिलने पर ऐसे सवाल फिर से उठ सकते हैं.
मनोहर लाल खट्टर का मंत्री बनना उसी दिन तय हो गया था जिस दिन उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था. खट्टर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने मित्र हैं. खट्टर 1994 में संगठन महामंत्री बनकर हरियाणा आए. और नरेंद्र मोदी 1996 में हरियाणा के प्रभारी बने. यही वो समय था जब दोनों नेता संपर्क में आए.
इसके अलावा खट्टर हरियाणा के पंजाबी हिंदू समाज से आते हैं. उत्तरी हरियाणा के पंचकुला, अंबाला, कुरुक्षेत्र, कैथल, करनाल, पानीपत जैसे इलाके पंजाबी भाषी इलाके माने जाते हैं. 2014 और उसके बाद ये क्षेत्र BJP के लिए अनूकूल माना जाता था. हालांकि, किसान आंदोलन के बाद BJP के प्रति यहां नाराज़गी देखी गई थी. खट्टर की पंजाबी भाषी इलाकों में पकड़ मानी जाती है.
राव इंद्रजीत की बात करें तो वो पहले भी मोदी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. उन्हें इस बार कैबिनेट में जगह मिलने की उम्मीद थी. अपने क्षेत्र में उन्होंने जनता से कहा भी था कि इस बार बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है. लेकिन उन्हें राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार से संतोष करना पड़ेगा.
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हरियाणा के अहिरवाल इलाके में राव इंद्रजीत की अच्छी पकड़ मानी जाती है. गुरुग्राम सीट पर उन्होंने कांग्रेस के राज बब्बर को हराया है. कहा जा रहा है कि भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट पर भी उनका प्रभाव है. गुरुग्राम के बगल वाली इस सीट पर BJP की जीत के लिए राव इंद्रजीत को भी योगदान दिया जा रहा है.
इस राज्य से अगले मंत्री बने हैं कृष्ण पाल गुर्जर. पहले भी मोदी सरकार में मंत्री रह चुके हैं. फरीदाबाद से जीतकर आते हैं. फरीदाबाद में विधानसभा की 6 सीटें हैं. जहां कृष्णपाल गुर्जर का प्रभाव माना जाता है.
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