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कौन हैं 'कुनबी' जिनके OBC आरक्षण में मराठाओं को भी हिस्सा चाहिए?

महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण के केंद्र में एक समुदाय 'कुनबी' का नाम बार-बार सामने आता है. मराठा मांग कर रहे हैं कि उन्हें कुनबी में शामिल करके OBC आरक्षण का लाभ दिया जाए.

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Maratha protest
महाराष्ट्र में मराठा आंदोलन जोर पकड़ रहा है (India Today)
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राघवेंद्र शुक्ला
2 सितंबर 2025 (Updated: 2 सितंबर 2025, 10:12 PM IST)
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मनोज जरांगे के नेतृत्व में मराठा कार्यकर्ता मांग कर रहे थे कि उन्हें कुनबी जाति में शामिल किया जाए. इससे उन्हें सरकारी नौकरियों में OBC के हिस्से का आरक्षण मिलने लगेगा. कुनबी लोगों को OBC श्रेणी में 19 फीसदी रिजर्वेशन मिलता है. मराठाओं का कहना है कि 1948 में हैदराबाद के निजाम का शासन खत्म होने तक वह कुनबी में ही गिने जाते थे. ऐसे में उन्हें भी इस श्रेणी में मिलने वाला आरक्षण दिया जाना चाहिए. गौरतलब है कि सरकार ने मनोज जरांगे की ये मांग स्वीकार करते हुए हैदराबाद गजेट जारी कर दिया है.

लेकिन कुनबी लोग इससे सहमत नहीं हैं. उनका साफ-साफ कहना है- ‘हम अलग हैं. मराठा शक्तिशाली हैं. सत्ता और प्रशासन में उनका ठीक-ठाक दखल है. वो OBC कैसे हो सकते हैं?'

मराठाओं के कुनबी बनने की आकांक्षा 'इतिहास के शीर्षासन' का सबसे सटीक उदाहरण है. कैसे? जानेंगे लेकिन पहले ये समझ लें कि मराठा कौन हैं और कुनबी कौन हैं.

कौन है कुनबी और कौन है मराठा?

सीधा-सीधा समझें तो मराठी भाषा बोलने वाले हर व्यक्ति को ‘मराठा’ कहा जा सकता है. इतिहास की किताबें तो यही बताती हैं. 1340 ईसवी में भारत घूमने आए अरबी घुमक्कड़ इब्नबतूता ने अपनी किताब में भारतीयों की पहचान करते हुए दौलताबाद के आसपास रहने वाले लोगों को ‘मराठा’ बताया था. शुरुआत में तो 'मराठा' जातिसूचक था भी नहीं. यह एक क्षेत्रीय पहचान थी, जिसमें किसान, कारीगर, पुजारी सैनिक सब आते थे. लेकिन धीरे-धीरे मराठाओं का आशय बदलता गया. यह लड़ाकों और प्रभुत्व वर्ग के लोगों का संबोधन हो गया. जैसे-जैसे खुद को मराठा कहने वाले लोगों ने अपनी पहचान में ‘क्षत्रियता’ को हावी किया, वैसे-वैसे एक और उपजाति उभरती गई, जिसे ‘कुनबी’ कहा जाने लगा.

लेखक और इतिहासकार संजय सोनवणे कुनबी और मराठा में अंतर करते हुए बताते हैं कि मराठा जमींदार होते थे. उनके पास अपनी जमीनें थीं, जिनके वे मालिक थे. राज किसी का भी हो, मराठा सत्ता के हमेशा वफादार बने रहते थे. फिर कुछ ऐसे लोग भी थे जिनके पास जमीनें नहीं थीं. खेत नहीं थे. वह दूसरे की जमीन को ‘बटाई’ पर लेते थे. यानी दूसरे की जमीन पर खेती करते थे और फसल होने के बाद उसका 25 या 40 या जो भी तय हुआ हो, उतना हिस्सा जमीन के मालिक को देते थे. यही लोग कुनबी हैं.

संजय सोनवणे बताते हैं,

‘कुन’ का मतलब होता है ‘लोग’. और ‘बी’ का मतलब होता है ‘बीज’. यानी ऐसे लोग जो एक बीज से बहुत सारे बीज पैदा करते हैं, कुनबी कहे जाते हैं. मराठी और संस्कृत में भी यह शब्द खेतिहर लोगों के लिए ही इस्तेमाल होता है. 

संजय सोनवणे कहते हैं कि मराठाओं का समाज वतनदारी पर कायम था. यानी उन्हें इनाम में जमीनें मिलती थीं. और ये जमीनें बड़ी-बड़ी होती थीं. कई बार तो पूरा का पूरा गांव वतनदारी में मिल जाता था. लेकिन इतनी बड़ी जमीन पर खेती कौन करेगा? फिर ‘बटाई’ पर खेती करने वाले लोग आते थे, जो कुनबी थे. 

सोनवणे के मुताबिक, मराठा और कुनबी साफ-साफ अलग हैं. दोनों एक जैसे बिल्कुल भी नहीं हैं. न जाति से न समाज से, क्योंकि मराठा किसान नहीं हैं. मराठाओं के पास बड़ी-बड़ी जमीनें थीं लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी उनके वंशजों में बंटते हुए जमींदारी कमजोर होने लगी. सोनवणे का कहना है कि पहले के मुकाबले आज के मराठा गरीब हैं और इसलिए वह OBC में शामिल होकर आरक्षण चाहते हैं.

‘द हिंदू’ की रिपोर्ट में इतिहासकार रोजलिंड ओ हैनलॉन बताते हैं कि मराठा पहले व्यापक रूप में इस्तेमाल होता था. मराठी बोलने वाले सभी लोगों को मराठा ही कहा जाता था. छत्रपति शिवाजी महाराज और बाद में पेशवाओं के दौर तक यानी 1818 तक यह शब्द जाति-विशेष नहीं था. लेकिन धीरे-धीरे ‘मराठा’ कहलाने वाले किसान समाज के भीतर से कुछ परिवार खुद को ‘खास मराठा’ बताने लगे और क्षत्रिय का दर्जा मांगने लगे. वहीं, कुनबी लोगों ने अपनी सामाजिक स्थिति बदलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और जैसे थे, वैसे ही बने रहे.

हैनलॉन के मुताबिक, योद्धा मराठाओं और खेती किसानी वाले कुनबियों का मूल एक ही है. 1400 से 1600 ईसवी के बीच मराठा शब्द उन सरदारों के लिए इस्तेमाल हुआ जो बहमनी सल्तनत और बाद में उसकी पांच छोटी-छोटी रियासतों के लिए फौजी सेवाएं देते थे. इनमें भोसले मराठा परिवार भी शामिल थे, जिनके तौर-तरीके साधारण कुनबियों से अलग हो गए, क्योंकि ये शासकों के दरबारों से जुड़े रहते थे. इन लोगों की चाहत समाज में ऊंचा दर्जा, खासतौर पर क्षत्रिय वाला रुतबा पाने की थी.

सन् 1828 में जेम्स डफ ने 'History of the Mahrattas' नाम की किताब लिखी. इसका मराठी में अनुवाद भी हुआ. इससे मराठा शब्द और ज्यादा फैलने लगा और 1860–70 के दशक में कई कुनबी परिवार भी खुद को मराठा कहने लगे. ऐसा हो गया कि जो भी कुनबी परिवार थोड़ा संपन्न होता, उसके जीने के तौर-तरीके बदल जाते और वह अपने आपको मराठा कहलाना पसंद करता था. तब एक कहावत खूब मशहूर हुई कि ‘कुनबी मजला, मराठा झाला’. यानी जब कुनबी तरक्की करता है, तो मराठा बन जाता है.

OBC में जाने की मांग ने कब जोर पकड़ा?

लेकिन अब ये धारा उल्टी बहने लगी है. इतिहास का ये अजब खेल ही है कि अब कुनबी, मराठा नहीं बल्कि मराठा, कुनबी होना चाहते हैं. संजय सोनावणे के मुताबिक, मंडल कमीशन के समय मराठा भी उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने OBC आरक्षण का विरोध किया था. लेकिन बाद में जब उन्होंने आरक्षण के फायदे देखे तो उनका विचार बदलने लगा और धीरे-धीरे आरक्षण को लेकर उनकी मांग जोर पकड़ने लगी.

साल 2017-18 में देवेंद्र फडणवीस की तत्कालीन सरकार ने इस दिशा में कोशिश भी कि और मराठों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) कैटिगरी के तहत शिक्षा और नौकरियों में 12 और13 प्रतिशत कोटा दिया, लेकिन मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा का हवाला देते हुए इस फैसले को खारिज कर दिया. 

इसके बाद अगस्त 2023 में जालना के एक सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल ने मराठा आरक्षण के लिए बड़ा आंदोलन किया. अपनी इस मांग को लेकर वह फिर चर्चा में हैं. हाल में मुंबई के आजाद मैदान में उन्होंने फिर से आरक्षण के लिए विरोध प्रदर्शन किया. हालांकि, सरकार के कुछ मांगें मान लेने के बाद उन्होंने प्रदर्शन समाप्त कर दिया है.

कुनबी किन्हें कहा जाता है?

ब्रिटिश नौकरशाह आरई एंथोवेन ने ‘ट्राइब्स एंड कास्ट्स ऑफ बॉम्बे’ नाम की एक किताब लिखी है. इसमें उन्होंने बताया है कि ‘कुनबी’ कोई जाति नहीं है बल्कि एक सामाजिक दर्जा है. कई जगहों पर मराठा और कुनबी शब्द एक-दूसरे के लिए इस्तेमाल होते हैं, लेकिन कोंकण के कुनबी खुद को न मराठा मानते हैं और न क्षत्रिय. इसी वजह से आज कोंकण के मराठा मनोज जरांगे के आरक्षण की मांग का विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि अगर मराठाओं को OBC कुनबी मान लिया गया तो उनका दर्जा गिर जाएगा. 

आमतौर पर धोनोजे, घटोले, हिंद्रे, जादव, झारे, खैरे, लेवा, तिरोले, माना, गूज जैसी जातियां कुनबी में गिनी जाती हैं. महाराष्ट्र के अलावा गुजरात में भी कुनबी लोग रहते हैं. यहां डांग्स, सूरत और वलसाड जिले में इनकी ठीक-ठाक आबादी रहती है.

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