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जिस फिल्म ने ज़ीनत अमान को अमर कर दिया, वो इस एक्ट्रेस ने बोल्ड सीन के कारण छोड़ दी थी

परिवार ने फिल्मों में काम करने से रोका, तो घर छोड़ने की धमकी दे दी.

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विद्या सिन्हा का परिवार फिल्म इंडस्ट्री से ही था, लेकिन उन्होंने अपने दम से नाम बनाया.
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15 नवंबर 2020 (Updated: 14 नवंबर 2020, 05:00 IST)
Updated: 14 नवंबर 2020 05:00 IST
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सत्तर का दशक. हिंदी सिनेमा अभी इतना मॉडर्न नहीं हुआ था. बाद के एकाध दशक तक भी नहीं. हीरोइन्स का बोल्ड, रिविलिंग कपड़ों में होना आम बात नहीं थी. ऐसे दौर में ज़ीनत अमान को लेकर राज कपूर ने एक फिल्म बनाई. 'सत्यम शिवम सुंदरम'. ज़ीनत इस फिल्म से घर-घर पहचानी जाने लगीं. 'भोर भए पनघट पर' गाना चोरी-छुपे देखने की चीज़ बन गया. खूब तारीफें बटोरीं ज़ीनत ने इस फिल्म से. लेकिन इस फिल्म के लिए ज़ीनत राज कपूर की पहली पसंद नहीं थी. ये फिल्म विद्या सिन्हा को ऑफर की गई थी. लेकिन बोल्ड कपड़ों और सीन्स की वजह से उन्होंने इंकार कर दिया था. ये फिल्म ज़ीनत की झोली में आ गई.

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रजनीगंधा के एक सीन में विद्या सिन्हा और सत्यम शिवम सुदंरम फिल्म में ज़ीनत अमान.


रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में विद्या ने कहा था-
राज कपूर के पिता पृथ्वीराज ने भी मेरे दादा के साथ काम किया था. मैं राज जी को काफी अच्छे से जानती थी, लेकिन इसके बावजूद मैंने कहा था कि मैं इस फिल्म में एक्टिंग को लेकर कंफर्टेबल नहीं हो पाऊंगी. उनके (राज कपूर) के साथ काम करना हर हीरोइन का सपना होता है, लेकिन मैंने 'सत्यम शिवम सुंदरम' करने से मना कर दिया. मुझे आज भी उनके (राज कपूर) साथ काम न कर पाने का अफसोस है.
विद्या ने 1974 में फिल्म आई 'रजनीगंधा' से फिल्मों में डेब्यू किया था. उनके कोस्टार थे अमोल पालेकर. जिस दौर में हिंदी फिल्मों की हीरोइनें त्याग और बलिदान वाले रोल कर रही थीं. पर्दे पर अत्याचार सह रही थीं. तब विद्या ने पहली ही फिल्म में एक आम मिडिल-क्लास, पढ़ी-लिखी औऱ करियर ओरिएंटेड लड़की का रोल किया था. जो रोने नहीं मूव ऑन करने पर यकीन रखती है. असल जिंदगी में भी विद्या कुछ ऐसी ही थीं. आज यानी 15 नवंबर को उनका बर्थडे आता है. जानते हैं उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें.
अपने दम पर बॉलीवुड में आईं
विद्या का पूरा खानदान फिल्मों में था. पिता राणा प्रताप सिंह प्रोड्यूसर थे. दादा मोहन सिन्हा भी प्रोड्यूसर और डायरेक्टर थे. उन्होंने संजीव कुमार जैसे एक्टर को बॉलीवुड में लॉन्च किया. लेकिन उन्हें अपने दम पर पहली फिल्म मिली.
विद्या की मां उनके जन्म के वक्त ही चल बसी थीं. उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली. वह अपने नाना-नानी के पास माटुंगा (मुंबई) आ गईं. 1968 में ब्यूटी कॉन्टेस्ट में भाग लिया और मिस मुंबई चुनी गईं. 'कॉलगेट', और 'लिप्टन टी' जैसे दर्जनों विज्ञापन में काम किया. ऐसे ही एक ऐड में बासु चैटर्जी को नजर आईं. वो उस समय 'रजनीगंधा' बनाने की तैयारी कर रहे थे. यहीं से बासु चैटर्जी को 'रजनीगंधा' की हीरोइन मिली.
अपने एक इंटरव्यू में विद्या ने कहा था-
मुझे न तो एक्टिंग आती थी, न कैमरा और लाइटिंग की समझ थी. बासु ने मुझे जीरो से सिखाया.
अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा- एक भोली सी जोड़ी
विद्या की सबसे पहली फिल्म 'राजा काका' थी, जिसका बजट दो लाख रुपये था. और उस फिल्म के लिए उन्हें 10,000 रुपये मिले थे. लेकिन ये फिल्म 'रजनीगंधा' के बाद रिलीज हुई. इसके बाद उन्होंने 'छोटी सी बात', 'इंकार', 'मुक्ति', 'पति पत्नी औऱ वो' और 'स्वयंवर' जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया. चार फिल्मों में विद्या के हीरो अमोल पालेकर रहे.
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फिल्म 'रजनीगंधा' के एक सीन में अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा.


विद्या ने एक बार कहा था,
अमोल पालेकर के साथ काम करना हमेशा मजेदार रहा. रजनीगंधा में हम दोनों नए थे. सीख रहे थे. अमोल का मराठी एक्सेंट था और वो उसे सुधारने पर काम कर रहे थे. हमारे पास कोई मेकअप रूम और वैनिटी वैन नहीं था. सेट पर बैठकर ही हम घंटो बातें करते थे और डायलॉग्स याद करते रहते थे. हम अभी भी दोस्त हैं. वो मुझे कई बार पार्टी में बुला चुके हैं, लेकिन मैं शूटिंग शेड्यूल की वजह से नहीं निकल पाती.
फिल्मों में काम करने से रोका तो अड़ गई थीं
विद्या ने 19 साल की उम्र में ही शादी कर ली थी. फिल्मों में डेब्यू से पहले. तब उनके पति उनके पड़ोसी हुआ करते थे. नाम था वेंकटेश अय्यर. तमिल ब्राह्मण थे. दोनों में प्यार हुआ और शादी कर ली. हालांकि उनके पति और ससुराल को उनके फिल्म करने से दिक्कत थी. विद्या मिस मुंबई बन चुकी थीं. फिल्मों में काम करना चाहती थीं. लेकिन परिवार इसके खिलाफ था, इसलिए वो जिद पर अड़ गई.
उन्होंने एक इंटरव्यू में ये राज़ खोला था-
मैंने परिवार को कह दिया कि फिल्मों में काम करने से रोका जाएगा, तो मैं घर छोड़कर चली जाऊंगी. फिर क्या था, सबको मेरी बात माननी पड़ी.
दूसरी शादी और तलाक- अपनी कहानी फिर से लिखने की हिम्मत
वेंकटेश से शादी हो गई. दोनों ने 1989 में बेटी जाह्नवी को गोद लिया. 1996 में पति वेंकटेश की मौत हो गई. वह सबकुछ छोड़कर सिडनी शिफ्ट हो गईं. यहां वह डॉक्टर भीमराव सालुंखे से मिली. 2001 में विद्या ने सालुंखे से शादी की. लेकिन चीजें ठीक नहीं रहीं. 2009 में उन्होंने सालुंखे पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देने का आरोप लगाया. 2011 में दोनों अलग हो गए. बेटी की परवरिश का जिम्मा विद्या ने लिया.
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बेटी जाह्नवी के साथ विद्या.


बेटी की परवरिश को लेकर एक बार उन्होंने कहा था-
मुझे इस बात का अफसोस है कि मैं टॉप मोस्ट हीरोइन नहीं बन सकी, लेकिन इस बात की बहुत ज्यादा खुशी है कि मैं एक बहुत अच्छी मां हूं. मैंने अपनी बेटी को पढ़ा-लिखाकर इस काबिल बना दिया है कि वो एक हसीन और खुशगवार जिंदगी बसर कर सके.
2011 में विद्या भारत लौटीं. बेटी के कहने पर दोबारा दोबारा से एक्टिंग शुरू की. फिल्म 'बॉडीगार्ड' से कमबैक किया. सीरियल तमन्ना से टीवी पर एंट्री की. 'काव्यांजलि' 'कबूल है' और 'कुल्फी कुमार बाजेवाला' जैसे पॉप्यूलर टीवी सीरियलों में दिखाई दीं.
अचानक इंडस्ट्री छोड़ने का अफसोस
12 साल के करियर में विद्या ने करीब 30 फिल्मों में काम किया. सीधी-सादी और चुलबुली लड़की के अलावा बोल्ड और नेगेटिव रोल्स भी किए. अपने ड्रीम हीरो संजीव कपूर के साथ भी काम किया. लेकिन करियर के टॉप पर अचानक इंडस्ट्री छोड़ने का अफसोस उन्हें रहा.
विद्या ने एक बार कहा था-
फिल्में न करने की वजह सिर्फ यही थी कि मुझे लगता था मैंने पर्याप्त काम कर लिया है. मैं काम करके ऊब गई थी. और कोई दूसरी वजह नहीं थी. आज मुझे लगता है कि मैंने करियर के पीक पर ब्रेक लेकर गलती की थी. सबकुछ दोबारा से शुरू करना इतना आसान नहीं होता, लेकिन मैंने कभी हार नहीं मानी. और मैं जब तक जिंदा हूं, काम करती रहूंगी.
लेकिन वो मानती थीं कि 80 साल की औरत भी अगर चलने और चीजें याद रखने में सक्षम है, तो उसे भी घर पर खाली नहीं बैठना चाहिए. आपका काम आपको बेहतर महसूस कराता है. जिंदा रखता है.
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'कुल्फी कुमार बाजेवाला' सीरियल में विद्या दादी के रोल में नजर आईं थी.


विद्या लंबे वक्त से फेफड़ों और दिल की बीमारी से जूझ रही थीं, लेकिन सीरियल्स में एक्टिव थीं. 15 अगस्त 2019 को जुहू, मुंबई के एक हॉस्पिटल में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. लेकिन उनकी शख्सियत आज भी बरकरार है. उसपर हमेशा बात होती रहेगी. वो अपनी फिल्मों और किरदारों के लिए वह हमेशा याद की जाती रहेंगी.
उनके कुछ सबसे ज्यादा यादगार किरदारों की लिस्ट ये रही:
रजनीगंधा (1974) 
वैसे तो उस साल कई फिल्में आई थीं. लेकिन रजनीगंधा सुपरहिट रही थी. बेस्ट फिल्म इन पॉपुलर कैटेगिरी औऱ क्रिटिक अवॉर्ड मिले थे. विद्या का कैरेक्टर दीपा नाम की एक मिडिल क्लास लड़की का था, जो जॉब की वजह से दिल्ली में मुंबई शिफ्ट हो जाती है. बॉयफ्रेंड दिल्ली में रहता है. मुंबई में दीपा को एक और लड़का अच्छा लगने लगता है. कंफ्यूजन में फंसी दीपिका बेबाकी से कहती है "सत्रह साल की उम्र में किया हुआ प्यार भी कोई प्यार होता है भला, मेरा बचपना था
". कुछ देर बाद उसके मन से आवाज आती है "पहला प्यार ही सच्चा प्यार होता है.
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छोटी सी बात (1975)
प्रभा (विद्या सिन्हा) रोज बस से ऑफिस आती-जाती है. अमोल पालेकर जो अरुण बने हैं, रोज उसे देखते हैं, लेकिन कभी बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. एक मोमेंट के बाद तो खुद प्रभा सोचती है, कि ये देखने से आगे बढ़ेगा कि नहीं, लेकिन डर है कि अरुण के मन से जाता ही नहीं. फिर तैयारी करता है. बाकायदा कोचिंग लगाता है. एक हजार रुपये फीस देता है. हिम्मत और तैयारी के बाद प्रभा को प्रपोज करता है. पास भी हो जाता है.
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मुक्ति (1977)
पति कैलाश शर्मा (शशि कपूर) को फांसी की सजा होने के बाद सीमा (विद्या सिन्हा) बेटी के साथ मुंबई शिफ्ट हो जाती है. दूसरी शादी कर लेती है. लेकिन एक दिन पति वापस लौट आता है. सीमा को सच पता चलता है. वह पहले पति के पास वापस लौटना चाहती है. लेकिन धर्मसंकट होता है. एक ट्रैजडी के बाद सीमा और कैलाश दोबारा एक हो जाते हैं.
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पति-पत्नी और वो (1978)
फिल्म में विद्या, शारदा नाम की शादीशुदा महिला के किरदार में थीं. पति का सेक्रेटरी से अफेयर होने की बात शारदा को पता चलती है. वो सुबकने की जगह सुबूत इकट्ठे करती है. पति की लंका लगाती है. फिर घर छोड़ने जाने वाली होती है, उससे पहले पति सुधर जाता है.
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मीरा (1979)
फ़िल्म में कहानी 1580 के करीब स्थिति है. मेड़ता (राजस्थान) के राजा वीरमदेव राठौड़ की दो बेटियां हैं. मीरा (हेमा मालिनी) औऱ कृष्णा (विद्या सिन्हा). कुछ राजनैतिक वजहों से मीरा की शादी भोजराज से की जाती है. लेकिन मीरा तो बचपन से ही कृष्ण को अपना पति मान बैठी है. ससुराल पहुंचती तो अपनी शर्तों पर चलती है. भक्ति में डूबी रहती है. पति से कह देती है कि वे उन्हें वो सब नहीं दे पाएंगी जिसकी उम्मीद होती है. पति और परिवार सुख न दे पाने की वजह से उसे मौत की सजा दे दी जाती है.
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