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'दादाजी के जन्म से पहले तुम कैसे दिखते थे': जापान के बौद्ध धर्म में ध्यान की विधि हैं ऐसे सवाल

बुद्ध पूर्णिमा के दिन जापान के बौद्ध धर्म का एक रोचक पक्ष

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दर्पण
30 अप्रैल 2018 (Updated: 30 अप्रैल 2018, 11:38 AM IST)
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इंडिया में का एक शब्द 'ध्यान' चाइना में पहुंचकर 'चान' और जापान पहुंचते-पहुंचते 'ज़ेन' हो गया.
वैसे ज़ेन धर्म को चाइना में ही ओरिजनेट हुआ मानते हैं जिसमें ताओइज्म और बौद्ध धर्म का मिला जुला प्रभाव है.
तो वो धर्म जिसमें ध्यान को मोक्ष प्राप्ति का रास्ता बताया गया है और जिसका नाम भी 'ध्यान' शब्द से ही उत्पन्न हुआ है वहां पर कोऑन का अस्तितव आपको हतप्रभ कर सकता है. क्यूंकि जहां ध्यान एक ऐसी अवस्था होती है जिसमें आप शब्द, नाम, रूप... सभी चीज़ों से परे जाकर 'कुछ नहीं भी नहीं' पर फोकस करते हो वहीं 'कोऑन' शब्दों से बना हुआ है.
'कोऑन' है क्या इसकी ठीक-ठीक परिभाषा कोई नहीं जानता, या कोई नहीं बता सकता क्यूंकि 'कोऑन' एक प्रश्न तो है लेकिन कोई पहेली भी नहीं जिसका कोई सही उत्तर हो. लेकिन ऐसा भी नहीं कि इसमें आप अपना मत रख सकते हों. और कई उत्तर होने के बावज़ूद कोई भी उत्तर ग़लत न हो. कोऑन को एक उदाहरण के माध्यम से समझिए -
यदि किसी जंगल में कोई पेड़ गिरता है और वहां पर कोई नहीं है तो क्या पेड़ के गिरने की आवाज़ होगी?
अब प्रथम दृष्टया तो इस प्रश्न का उत्तर यही लगता है कि चाहे वहां पर कोई हो न हो लेकिन पेड़ के गिरने की तो आवाज़ होगी ही. लेकिन फिर इसमें एक पेंच ये पड़ जाता है कि ज्ञान के तीन स्तर होते हैं - एक वो जो हम जानते हैं, दूसरा वो जो हम नहीं जानते तीसरा वो जो हम नहीं जानते कि हम नहीं जानते. और ज़्यादातर चीज़ें तीसरे वाले कॉलम में आती हैं. तो ये पेड़ का गिरना दरअसल तीसरे पॉइंट में आती है, तब तक जब तक आपसे प्रश्न नहीं पूछा गया. तो यूं काफी जद्दोज़हद के बाद भी उत्तर तो खैर किसी कोऑन का नहीं मिलता लेकिन जो व्यक्ति या जो छात्र उस कोऑन में ध्यान लगाता है उसे इनलाइटन्मेंट ज़रूर मिल जाता है. लेकिन ध्यान में लगना कभी-कभी सालों कभी-कभी दशकों तक चलता है. यानी कोऑन मोक्ष प्राप्ति के लिए या परम सत्य के लिए वैसा ही है जैसा एल्ज़ेब्रा के लिए x. जब समीकरण हल हो जाता है तो x की फिर कोई ज़रूरत नहीं रहती.
Photo Credit: Noise of India
Photo Credit: Noise of India

कोऑन की तुलना यीस्ट से भी की जा सकती है, जो स्टार्च को शराब में तो बदलता है, लेकिन बदल चुकने के बाद भी उतनी ही मात्रा में रहता है जितना स्टार्च में डाला गया था - न कम, न ज़्यादा.
दरअसल एक कोऑन को हल करने का 'प्रयास' विश्लेषणात्मक बुद्धि और अहंकारी इच्छा को समाप्त करना है
इसी आधार पर एक ज़ेन गुरु से उनके एक शिष्य ने प्रश्न पूछा -
आप कहते हो कि 'कोऑन' परम सत्य को पाने के लिए बिल्कुल अनावश्यक है. लेकिन फिर भी आप दसियों साल तक हमें उस-पर ध्यान लगाने को क्यूं कहते हैं?
गुरु ने उत्तर दिया -
एक व्यक्ति था. वो बाग़ में जाने से डरता था क्यूंकि उसने सोचा कि वहां पर एक ज़हरीला सांप है. अब मैंने उसे लट्ठ पकड़ा दिया कि सांप दिखे तो इससे मारना. वो बगीचा घूम कर आया और मेरे पैरों पर लाठी फैंकते हुए बोला कि इस लाठी की क्या ज़रूरत थी, वहां पर तो कोई सांप नहीं था.
तुम समझे?
मुझे पता है कि वहां पर सांप नहीं है. मुझे पता है कि लाठी की कोई ज़रूरत नहीं है, लेकिन फिर भी मैंने तुम्हें ये लाठी, ये कोऑन दिया है ताकि जब तुम वहां पहुंच जाओ तो बेशक मुझे गाली दो लेकिन मेरे उद्देश्य के पूर्ण होने के निमित्त भी बनो.
ज़ेन गुरु वूमेन ने कोऑन के बारे में कहा है -
यह एक गर्म-लाल लोहे की गेंद निगलने सरीखा है. तुम इसे उलट देना चाहते हो पर उलट नहीं पाते.
अच्छा एक बात और, जिस तरह अलग-अलग रोग की अलग-अलग दवाएं होती हैं, जिस तरह अलग-अलग ग्रहों के अलग-अलग रत्न होते हैं वैसे ही अलग-अलग व्यक्ति या अलग अलग शिष्य के लिए अलग-अलग 'कोऑन' होते हैं. और ये एक ज़ेन गुरु ही निर्धारित करता है कि किस शिष्य के लिए कौन-सा 'कोऑन' सही होगा.
बहरहाल आपको कुछ और 'कोऑन' पढ़वाते हैं:
Photo Credits - Bizarro.com
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Zen - 3



 
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