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Karnataka: हिजाब, मुस्लिम आरक्षण, लिंगायत धर्म की मांग या बेरोजगारी- कौन सा मुद्दा जिताएगा चुनाव?

कौन सा मुद्दा किस पार्टी के लिए बन रहा है वरदान?

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Karnataka Election
13 मई के नतीजे बताएंगे जनता ने किस मुद्दे पर वोट किया है. (इंडिया टुडे)
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7 मई 2023 (Updated: 11 मई 2023, 17:26 IST)
Updated: 11 मई 2023 17:26 IST
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सबसे पहले एक पहेली: निम्नलिखित में से कौन सा आंकड़ा सही है - 10 परसेंट, 30 परसेंट, 50 परसेंट या फिर 85 परसेंट?

बात दस परसेंट से शुरू हुई थी, लेकिन अब 85 परसेंट तक पहुंच गई है. आप इस पहेली का जवाब तलाशने में वक़्त ज़ाया न करें. क्योंकि ये राजनीतिक पहेली है. और राजनीतिक पहेलियों के जवाब अक्सर नहीं मिला करते हैं. बात हो रही है कर्नाटक की जहां कुछ ही दिनों में विधानसभा के लिए वोट डाले जाएंगे. फ़िलहाल चुनावी बुख़ार फैला हुआ है. आइए एक बार फिर से पहेली की ओर लौटते हैं.

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार के दौरान नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार के लिए कर्नाटक जाते हैं. कहते हैं राज्य में 10 परसेंट वाली सरकार चल रही है. गठबंधन सरकार गिरती है. बीजेपी की सत्ता में वापसी होती है. इस बार कांग्रेस के पूर्व सीएम सिद्दारमैया कहते हैं कर्नाटक में 30 परसेंट वाली सरकार है. फिर एक चिट्ठी लिखी जाती है. राज्य के कॉन्ट्रेक्टर्स की ओर से प्रधानमंत्री नरेंग्र मोदी को. ठेकेदार आरोप लगाते हैं कि बीजेपी सरकार हर काम के लिए करीब 40 परसेंट कमीशन मांगती है. और फिर 2023 में चुनाव से 10 दिन पहले नरेंद्र मोदी कर्नाटक में धुआंधार प्रचार करते हुए कहते हैं -- कांग्रेस के समय तो 85 परसेंट वाली सरकार थी.

इतना साफ़ है कि कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार का मुद्दा कर्नाटक बीजेपी के गले की फांस बनता जा रहा है. लेकिन क्या कर्नाटक का चुनाव सिर्फ इसी मुद्दे पर लड़ा जा रहा है. या जमीन पर कुछ और ऐसे मुद्दे हैं जिन पर बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस चुनाव में अपनी संभावनों को तलाश रही है. तो आज बात उन्हीं मुद्दों की जो 10 मई को EVM पर बटन दबाते समय कर्नाटक की जनता के दिमाग में चल रहे होंगे.

40 परसेंट वाली सरकार

कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलते रहे. सत्ता से पार्टियां बदलती रहीं. लेकिन कमीशनखोरी का आरोप ना बदला. परसेंटेज नीचे से ऊपर की ओर बढ़ता रहा. राज्य की मौजूदा बीजेपी सरकार को विपक्ष ने 40 परसेंट वाली सरकार का तमग़ा दिया है.

बसवराज बोम्मई की सरकार पर आरोप है कि कोई भी काम करवाना हो, किसी भी फाइल पर साइन कराना हो - 40 परसेंट कमीशन देना ही होगा. इस आरोप को बल तब मिला जब बृहत बैंगलौर महानगर पालिका वर्किंग एसोसिशन ने चिट्ठी लिखकर शिकायत की कि नगर पालिका के सभी दफ्तरों में कॉन्ट्रैक्टर्स से 50 प्रतिशत कमीशन मांगा जा रहा है. 24 अप्रैल, 2022 को इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक ठेकेदारों ने आरोप लगाया कि उन्हें धमकी दी गई है कि अगर काम का भुगतान करवाना है तो कमीशन देना पड़ेगा.

मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई. (इंडिया टुडे)

इसके बाद 1 सितंबर, 2022 को इंडियन एक्सप्रेस ने एक और खबर छापी. इस खबर में भी एक चिट्ठी का जिक्र आया. ये चिट्ठी गई थी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को. कर्नाटक कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष डी केंपन्ना ने मोदी को ये चिट्ठी 6 जुलाई, 2022 को लिखी. इसमें उन्होंने लिखा-

“हमारे राज्य के ठेकेदारों को काम शुरू करने से पहले टेंडर का 25 से 30 प्रतिशत देना होता है. काम पूरा होने के बाद लेटर ऑफ क्रेडिट जारी करने के लिए 5 से 6 परसेंट और देने के लिए परेशान किया जाता है.“ 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी शायद इस उम्मीद से लिखी गई क्योंकि उन्होंने कहा था – न खाऊंगा, न खाने दूंगा."

बहरहाल, कमीशनखोरी के आरोप कर्नाटक सरकार पर पहली बार नहीं लग रहे हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार को '10 परसेंट वाली सरकार' कहा था. सरकार बदली. बीजेपी के येदियुरप्पा की सरकार आई. पर उनपर आरोप दस परसेंट का नहीं, 30 परसेंट का लगा.

कांग्रेस के पूर्व सीएम सिद्दारमैया ने येदियुरप्पा की सरकार को 30 प्रतिशत वाली सरकार कहा. इसके बाद से कांग्रेस लगातार बीजेपी की सरकार पर हमलावर रही. खनन के ठेकों में हुए भ्रष्टाचार के मुद्दे पर येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. लेकिन बीजेपी सरकार पर लग रहे कमीशनखोरी के आरोप कम नहीं हुए. प्रधानमंत्री को लिखी गई ठेकेदार एसोसिएशन की चिट्ठी ने गंभीर सवालिया निशान खड़ा कर दिया.

लेकिन फिर एक आत्महत्या जिसने कर्नाटक सरकार को सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया. तब कुर्सी पर बैठ चुके थे बसवराज बोम्मई. अप्रैल 2022 में उडुपी में एक कॉन्ट्रैक्टर ने आत्महत्या कर ली. ख़ुदकुशी करने से पहले उसने अपने दोस्त को एक वॉट्सऐप मैसेज भेजा. इस मैसेज में ठेकेदार ने अपनी मौत का जिम्मेदार सरकार में मंत्री के. ईश्वरप्पा को ठहराया.

के ईश्वरप्पा. (इंडिया टुडे)

ठेकेदार की मौत के बाद ईश्वरप्पा के खिलाफ केस दर्ज हुआ. उन पर आरोप लगा कि सड़क के कॉन्ट्रैक्ट में उन्होंने 40 प्रतिशत कमीशन की मांग की. मुकदमा दर्ज होने के बाद ईश्वरप्पा को सरकार के इस्तीफा देना पड़ा.

ध्रुवीकरण

कमीशनखोरी एक तरफ़. लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की भी कोशिशें कम नहीं हुई हैं. ये मुद्दा लगभग सभी राज्यों में एक जैसा नजर आता है. कर्नाटक में कई बरस पहले ही ध्रुवीकरण के कड़ाह को सांप्रदायिकता की आग पर चढ़ा दिया गया था. हिजाब के मुद्दे पर 2021 में इतना बवाल मचा कि देश के हर अखबार के फ्रंट पेज पर यही हेडलाइन थी. स्कूलों में हिजाब पहनकर आने वाली मुसलमान लड़कियों को क्लास में बैठने से रोक दिया गया. इसके बाद सरकारी नौकरियों में पिछड़ी जातियों के मुसलमानों का आरक्षण खत्म कर दिया गया. यही नहीं ईदगाह में गणेश चतुर्थी मनाने का मुद्दा भी अदालत तक जा पहुंचा.

इन मुद्दों से सामाजिक ताने-बाने को तो नुकसान पहुंचता है. लेकिन इतिहास बताता है कि सांप्रयादिक ध्रुवीकरण के ज़रिए वोटों की फ़सल काटने की कोशिशें अक्सर कामयाब हुई हैं. कर्नाटक में बीते कुछ महीनों में ऐसे ही मुद्दों के सहारे राजनीति साधने की कोशिश की जा रही है.

1.हिजाब

उडुपी में सरकारी महिला इंटर कॉलेज है. नाम है - Government Pre-University College for Girls, Uddupi. इस कॉलेज की आठ मुस्लिम छात्राओं ने आरोप लगाया कि 27 दिसंबर 2021 को कॉलेज प्रशासन ने उन्हें हिजाब पहनकर कक्षाओं में बैठने से रोक दिया. यानी वो कैंपस में तो हिजाब पहन सकती थीं, लेकिन हिजाब ओढ़कर कक्षाओं में नहीं बैठ सकती थीं. फिर 15 जनवरी को सोशल मीडिया पर इन लड़कियों की तस्वीरें आईं, किताब-क़लम लेकर सीढ़ी पर बैठे हुए. हिजाब पहने हुए. मामले को कुछ स्थानीय मीडिया संस्थाओं ने कवर किया. मीडिया में जो छात्राओं का बयान है, उसके मुताबिक उन्होंने दिसंबर 2021 से ही क्लास में हिजाब पहनकर बैठना शुरू किया था. यानी वो कॉलेज कैंपस में तो हिजाब पहले भी पहन सकती थी, पहनती होंगी. लेकिन दिसंबर से क्लास में भी हिजाब पहनकर बैठने लगीं. लड़कियों ने ये भी बताया कि एडमिशन के वक्त उनसे फॉर्म साइन कराया गया था जिसमें ये क्लॉज थी कि क्लास में हिजाब पहनकर नहीं बैठ सकते. अपने पक्ष में लड़कियों ने ये भी तर्क दिया कि उन्होंने अपने सीनियर्स को क्लास में हिजाब पहने बैठा देखा था.

कॉलेज के प्रिंसिपल रुद्र गौड़ा और कॉलेज विकास समिति के उपाध्यक्ष यशपाल सुवर्णा ने पलट कर लड़कियों को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की. उन्होंन कहा कि कॉलेज में 150 से ज़्यादा मुस्लिम लड़कियां पढ़ती हैं, लेकिन कभी किसी ने हिजाब पहनने की मांग नहीं उठाई. प्रशासन का दावा है कि यह लड़कियां कैंपस फ़्रंट ऑफ़ इंडिया से जुड़ी हुईं हैं और इसीलिए मामले को भड़का रही हैं. PFI, 2006 में बना मुस्लिम संगठन है, दक्षिण भारत के केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक जैसे राज्यों में इसका बेस है. और इस संगठन का स्टूडेंट विंग माना जाता है कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया को.

मामला बढ़ता गया. कर्नाटक की सरकार तक गया. कर्नाटक सरकार ने 25 जनवरी को एक एक्सपर्ट कमेटी बनाई. आदेश दिया कि जब तक कमेटी किसी फैसले पर नहीं पहुंचती, तब तक सभी छात्राएं 'यूनिफ़ॉर्म रूल' का पालन करेंगी. यानी, क्लासरूम में हिजाब नहीं पहनेंगी.

सांकेतिक तस्वीर. (PTI)

इसके बाद छात्राओं की तरफ से कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया गया. उस पर हम बाद में आएंगे. पहले कोर्ट के बाहर हफ्तेभर से जो रहा है वो देख लेते हैं.

उडुपी में हिजाब वाली घटना के बाद कर्नाटक के और इलाकों में भी माहौल बदलने लगता है. 31 जनवरी को मंगलुरु का एक वीडियो आता है. इसमें इसमें बड़े-बड़े पोस्टर पर लिखा होता है कि हिंदू इन दुकानों से सामान न ख़रीदें. कथित तौर पर विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने यह पोस्टर लगाए थे. 2 फरवरी को कुछ छात्र भगवा साफ़ा पहन कर कॉलेज आ गए. कहा, अगर हिजाब की अनुमति है भगवा साफ़े की क्यों नहीं?

कर्नाटक के कई इंटर कॉलेजों में भी ऐसा हुआ. उडुपी ज़िले के ही बिंदूर गवर्नमेंट इंटर कॉलेज में बजरंग दल के नेताओं ने छात्र-छात्राओं को कथित तौर पर जबरन भगवा स्कार्फ पहनाया, जिसके बाद कॉलेज प्रशासन को इसके ख़िलाफ़ ऐक्शन लेना पड़ा. 3 फरवरी को कुंडापुर में हिजाब पहनी 20 से ज़्यादा मुस्लिम छात्राओं को कॉलेज के गेट पर ही रोक दिया गया. ऐसा ही कर्नाटक के और कॉलेज में भी हुआ. प्राइवेट कॉलेजों में भी. आरएन शेट्टी पीयू कॉलेज, भंडारकर्स, गवर्नमेंट पीयू कॉलेज कुंडापुर, जूनियर कॉलेज बिदूर, ने भी एक गवर्नमेंट आर्डर का हवाला देते हुए हिजाब पहनी लड़कियों को कॉलेज में प्रवेश करने से रोक दिया.

एक वीडियो कर्नाटक के मांड्या जिले से भी आया. मांड्या के PSE कॉलेज में हिजाब पहने हुए एक छात्रा स्कूटी से आती है. जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ती है, सामने से दर्जनों की संख्या में भगवा कपड़े पहने छात्र नारेबाजी करने लगते हैं. जय श्री राम के नारे लगाते हैं. जवाब में हिजाब पहनी अकेली छात्रा भी अल्लाह हू अकबर के नारे लगाने लगती है. कॉलेज का स्टाफ बीच बचाव की कोशिश करता है. आखिर में छात्रा कॉलेज के अंदर चली जाती है और बाहर जयश्री राम के नारे और तेज हो जाते हैं.

एक और वीडियो को सोशल मीडिया में वायरल हुआ. वीडियो शिवमोगा के कॉलेज का था, जहां एक छात्र पोल पर चढ़कर भगवा झंडा लहराता नजर आता है इस वीडियो पर कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने आरोप लगाया कि तिरंगा झंडा उतारकर भगवा झंडा लगाया गया. ध्वस्त कानून व्यवस्था की बात कही. इसके बाद DK शिवकुमार ने अपनी तिरंगे के साथ एक फोटो भी ट्वीट की. जिसमें लिखा कि बीजेपी से जुड़े कुछ असमाजिक तत्वों ने तिरंगा उतार दिया. मैं सभी से तिरंगे के साथ फोटो पोस्ट करने की अपील करता हूं शिवमोगा में तनाव बढ़ा तो पुलिस ने धारा 144 लगा दी गई.

इस बीच कर्नाटक हाई कोर्ट में उडुपी के उसी Government Pre-University College for Girls की 7 मुस्लिम छात्राओं ने दो याचिकाएं दायर कीं. याचिका दायर करने वाली लडकियां थीं -- आयशा, हाजिरा अल्मस, रेशम फारूक, आलिया असदी, शफा, शमीन और मुस्कान जैनब.

15 मार्च को कर्नाटक हाईकोर्ट ने क्लासरूम में हिजाब पहनने की मांग को खारिज कर दिया था. फिर मुस्लिम पक्ष ने हाई कोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. वहां जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की 
इस मामले पर एकमत नहीं हो पाई. केस बड़ी बेंच को रेफर कर दिया. मामला अदालती कार्रवाई में उलझा है. फिलहाल हिजाब पर बैन जारी रहेगा.

2. ईदगाह

यही वो मुद्दा है जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी किसी दक्षिण भारतीय राज्य में पहली बार क़दम जमाने में कामयाब हुई. उत्तरी कर्नाटक का हुबली शहर. वहां सिर्फ़ डेढ़ एकड़ जमीन को बीजेपी ने एक बड़े राजनीतिक मुद्दे में बदल दिया. इसे ईदगाह मैदान कहा जाता था. यहां मुसलमान ईद और जुमे की सामूहिक नमाज़ पढ़ा करते थे. अब इसका नाम कित्तूर रानी चेनम्मा मैदान कर दिया गया है.

साल 1921 की बात है. अंजुमन-ए इस्लाम नाम की एक संस्था ने स्थानीय नगरपालिका से ये जमीन लीज़ पर ली. लीज की शर्तों के अनुसार संस्था को ये मैदान साल में दो बार नमाज के लिए इस्तेमाल करने की इजाजत थी. वहीं साल के बाकी दिन इसका इस्तेमाल खेल या दूसरी गतिविधियों के लिए होता था. सालों तक चीजें सामान्य चली लेकिन फिर 1990 में इस पर विवाद शुरू हो गया.

हुआ ये कि 1990 में अंजुमन-ए इस्लाम ने यहां एक ईमारत बनाने की शुरुआत की. कुछ लोगों ने इसका विरोध किया और जल्द ही मामले ने धार्मिक रंग ले लिया. ठीक इसी समय उत्तर भारत में अयोध्या जन्मभूमि आंदोलन तेज़ी पकड़ रहा था. देखादेखी विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा ने ईदगाह मैदान विवाद को आंदोलन का स्वरूप देना शुरू कर दिया. राज्य में कांग्रेस की सरकार थी. उसने ईमारत के निर्माण में दखल देने से इंकार कर दिया. भाजपा के कुछ लोग मामले को लेकर अदालत पहुंच गए. इन लोगों में एक नाम जगदीश शेट्टार का भी था. शेट्टार का नाम पहली बार लोगों के बीच आया. सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी के नेता और मशहूर वकील अरुण जेटली ने शेट्टार की तरफ से पैरवी की. जिसके बाद जेटली और शेट्टार के रिश्ते प्रगाढ़ होते गए. वहीं कर्नाटक भाजपा ने इस विवाद के सहारे राज्य में अपनी जमीन मजबूत करनी शुरू कर दी.

जनवरी 1992 में बीजेपी ने तय किया कि पूरे हुबली में यात्रा निकाली जाएगी. जिसका अंत ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने के साथ होगा. इसके लिए तारीख तय की गई, 26 जनवरी 1992. ये दिन खास तौर पर इसलिए चुना गया था कि इसी दिन मुरली मनोहर जोशी कश्मीर में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने वाले थे. अंजुमन-ए-इस्लामी ने मैदान को प्राइवेट प्रॉपर्टी बताते हुए इस ऐलान का विरोध किया. मामले की नजाकत देखते हुए सरकार ने भी झंडा रोहण की इजाजत देने से इंकार कर दिया. लेकिन ऐन तारीख को कुछ लोग मैदान में घुसे और वहां तिरंगा लगा दिया. हंगामा होना लाजमी था, सो हुआ. और सरकार ने हड़बड़ाहट में मैदान से झंडा हटा दिया. भाजपा और संघ परिवार ने मिलकर आंदोलन और तेज़ कर दिया. राष्ट्र ध्वज संरक्षण समिति का गठन हुआ. और एक मामला जो अब तक सिर्फ स्थानीय था, उसने एक राजनीतिक विस्फोट की शक्ल ले ली. 1992 से 1995 तक भाजपा ने तीन बार मैदान में तिरंगा फहराने की कोशिश की. 1994 में खुद उमा भारती ने ऐलान किया कि वो ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराएंगी. राज्य सरकार ने कर्नाटक में उनकी एंट्री पर बैन लगा दिया. इसके बावजूद भारती हुबली तक पहुंची लेकिन ईदगाह मैदान में घुसने से पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इस गिरफ्तारी से हंगामा और तेज़ हो गया. लोग सड़कों पर उतर गए. पुलिस से हुई भिड़ंत में 4 लोग मारे गए और कई घायल हुए.

राजनीतिक विश्लेषक कहते है कि इस पूरे विवाद से बीजेपी को कर्नाटक में फायदा हुआ. 1994 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 40 सीटें मिलीं. सत्ता तक पहुंचने के संघर्ष में बीजेपी के लिए ये बड़ी सफलता थी. इतनी सीटें उसे पहले कभी नहीं मिली थीं.

अब आते हैं कि 2022 में. गणेश चतुर्थी पर कुछ ऐसा हुआ कि हुबली की ईदगाह एक बार फिर चर्चा में लौट आई. हिंदुओं के संगठनों ने ईदगाह में गणेश चतुर्थी मनाने का ऐलान कर दिया. अगस्त 2022 के आख़िरी हफ़्ते में उन्हें ईदगाह में गणेश चतुर्थी मनाने की इजाजत मिल भी गई. इसको लेकर अंजुमन-ए-इस्लाम ने हाई कोर्ट में अर्ज़ी दायर कर कहा था कि ईदगाह मैदान में गणेश प्रतिमा को स्थापित करने से रोकने के लिए अंतरिम आदेश दिया जाए.

इस पर कोर्ट ने कहा कि- इस तथ्य को लेकर कोई विवाद नहीं है कि ये संपत्ति नगर निगम की है और याचिकाकर्ता को केवल रमज़ान और बक़रीद के मौके पर इसका इस्तेमाल करने की इजाज़त मिली है. याचिकाकर्ता ख़ुद ये स्वीकार कर रहे हैं कि संपत्ति के मालिकाना हक़ को लेकर कोई विवाद नहीं है. कोर्ट ने भी हिंदुओं को ईदगाह में गणेश चतुर्थी मनाने की इजाजत दे दी.

3. टीपू सुल्तान

कर्नाटक के ओल्ड मैसूर रीजन में कुछ लोग ये दावा करने लगे हैं कि टीपू सुल्तान अंग्रेज़ों से लड़ते हुए नहीं मारा गया. वो दावा करते हैं दो वोक्कलिगा प्रमुख उरी गौड़ा और नान्जे गौड़ा ने टीपू सुल्तान को मारा था. इतिहासकारों की नज़र में ये दावे कोरी गप्प हैं. लेकिन बीजेपी के कुछ बड़े नेता इसके समर्थन में उतर आए. चुनाव से कुछ हफ्ते पहले बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि, बोम्मई सरकार में मंत्री अश्वस्थ नारायण और यहां तक की केंद्र सरकार में मंत्री शोभा करंदलाजे ने भी इस दावे का समर्थन किया.

टीपू सुल्तान. (इंडिया टुडे)

इधर कांग्रेस और जेडीएस के नेता इन दावों को खारिज करते हैं. उनका कहना है कि उरी गौड़ा और नान्जे गौड़ा, वास्तविकता में कभी हुए ही नहीं. ये दोनों काल्पनिक कैरेक्टर हैं. और बीजेपी ऐसे दावे वोक्कलिगा समाज के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए कर रही है.

गौर करने वाली बात है कि वोक्कलिगा जेडीएस का एकमुश्त वोटबैंक है. देवगौड़ा की पार्टी को ज्यादातर सीटें भी वोक्कलिगा बहुल दक्षिण कर्नाटक में ही मिलती हैं. जबकि बीजेपी अब तक वोक्कलिगा समाज में असरदार पैठ नहीं बना पाई है.

वोक्कलिगा समाज के प्रमुख संत निर्मलानंदनाथ स्वामी भी कहते हैं कि इस बात के कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं हैं कि टीपू सुल्तान को दो वोक्कलिगा लड़ाकों ने मारा. उन्होंने कहा कि इस विवाद से वोक्कलिगा समाज पर भी प्रभाव पड़ता है. इसलिए इसे यहीं पर समाप्त कर देना चाहिए. 

इससे पहले फरवरी के महीन में राज्य के यादगिरि में टीपू सुल्तान सर्किल का नाम बदलकर, वीर सावरकर सर्किल कर दिया गया.

4. मुस्लिम आरक्षण

24 मार्च को कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार ने राज्य के आरक्षण कोटा में बड़े बदलाव किए थे. इसके तहत, मुसलमानों का कैटेगरी 2B के तहत 4 फीसदी आरक्षण खत्म कर दिया गया था. राज्य सरकार के मुताबिक, आरक्षण का लाभ ले रहे मुसलमानों को 10 फीसदी EWS कोटे में लाया जाएगा. साथ ही मुसलमानों का ये 4 फीसदी कोटा अब लिंगायत और वोक्कलिगा में बराबर-बराबर यानी दो-दो परसेंट बांट दिया जाएगा.

लेकिन 25 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण खत्म करने के फैसले पर 9 मई तक रोक लगा दी है. कर्नाटक में 10 मई को विधानसभा चुनाव होने हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अमित शाह ने एक रैली के दौरान कहा कि देश का संविधान हमें धर्म के आधार पर आरक्षण की अनुमति नहीं देता.

सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कांग्रेस ने कहा कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो मुस्लिम आरक्षण को दोबारा बहाल किया जाएगा. कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा था कि अगले 45 दिनों में कांग्रेस सत्ता में आ जाएगी और पहली कैबिनेट बैठक में ही ये फैसला लिया जाएगा.

कर्नाटक के मुसलमानों को सामजिक और शिक्षा के स्तर पर पिछड़ा मानते हुए पहली बार  4%  आरक्षण 2B कैटेगरी के तहत साल 1994 में मिला. उस वक़्त HD देवेगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री थे. लेकिन मुसलमानों को आरक्षण देने की कवायद साल 1918 में तत्कालीन मैसूर रियासत के वक़्त से ही चल रही थी.

पर कमाल की बात ये है कि जैसे जैसे चुनाव का दिन नज़दीक आ रहा है वैसे वैसे ध्रुवीकरण के ये सब मुद्दे चर्चा से बाहर होते नज़र आ रहे हैं. फिलहाल न तो कोई हिजाब पर बात कर रहा है, न ही टीपू सुल्तान की मौत पर. तब सवाल उठता है कि क्या वाकई अब ये मुद्दे चुनावी मुद्दे नहीं रह गए हैं.

इस बारे में कर्नाटक चुनाव कवर कर रहे पत्रकार कहते हैं कि- ये जरूर है कि ये मुद्दे अब रैलियों में नहीं उठाए जा रहे. लेकिन घर-घर जाकर प्रचार करते नेता इन मुद्दों को वोटरों की याद में लगातार ताज़ा बनाए हुए हैं.

जाति की राजनीति

उत्तर भारत हो या दक्षिण, चुनावी राजनीति की बात जाति के बिना पूरी ही नहीं होती. कर्नाटक का हाल भी कुछ ऐसा ही है. यहां उत्तर भारत की तरह दलित-अगड़े-पिछड़े की बजाए लिंगायत और वोक्कलिगा पंथ की बात होती है.  

येदियुरप्पा और लिंगायत

लिंगायत एक ऐसा प्रगतिशील संप्रदाय है जिसकी बुनियाद ही जाति व्यवस्था को ख़ारिज करके डाली गई थी.  पर इस पंथ की स्थिति भी चुनाव में वैसी ही नजर आती है जैसी बाकी जातियों की है. कर्नाटक की राजनीति सिद्ध करती है कि लिंगायत समाज जिस पार्टी पर मेहरबान, सरकार उसी की बनती है. 90 के दशक तक लिंगायत कांग्रेस के समर्थक माने जाते थे. लेकिन उसके बाद से धीरे-धीरे ये वोट छिटककर बीजेपी के पाले में खिसक आया. और इसकी सबसे खास वजह माने गए बीएस येदियुरप्पा.

येदियुरप्पा लिंगायत हैं और लगभग पूरा लिंगायत समाज येदियुरप्पा का समर्थक रहा है. लेकिन सत्ता तक पहुंचने के बाद ये पहला ऐसा चुनाव है जिसमें येदियुरप्पा एक्टिव पॉलिटिक्स में नहीं हैं. और कर्नाटक की राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि बीजेपी के लिए सबसे बड़ी परेशानी की वजह यही है.

इस बीच बीजेपी वोक्कलिगा वोटों पर भी सेंध लगाने की कोशिश करती दिखी. चाहे वोक्कलिगा समुदाय के शिखर पुरुष कैम्पेगौड़ा की 108 फीट की मूर्ति लगाना हो या दो वोक्कलिगा प्रमुखों के हाथों टीपू सुल्तान के मारे जाने का दावा हो. बीजेपी की नज़र वोक्कलिगा वोटों पर ही नज़र आती है.

कांग्रेस भी लिंगायत और वोक्कालिगा वोटों को साधने की कवायद में नज़र आती है. सिद्दारमैया की सरकार ने अपना कार्यकाल खत्म होने से दो महीने पहले लिंगायत समाज को अलग धर्म मान लिया था. उन्होंने नोटिफिकेशन जारी कर दिया. और केंद्र सरकार को लिंगायत को अलग धर्म मानने की सिफारिश भी भेज दी.


कांग्रेस के सिद्दारमैया कुरुबा समाज से आते हैं. कुरुबा पिछड़ा समाज है. 7 प्रतिशत आबादी है. लेकिन इनके साथ-साथ सिद्दारमैया अन्य पिछड़े वर्ग में आने वाली दूसरी जातियों को भी साधने में कामयाब रहे हैं. वोक्कालिगा समाज में भी सिद्दारमैया पैठ रखते हैं. वोक्कालिगा समाज को साधने की जिम्मेदारी डीके शिवकुमार के कंधों पर भी है. क्यों वो इसी समुदाय से आते हैं. इसके अलावा मुस्लिम वोट भी कांग्रेस के हिस्से जाता रहा है.

कांग्रेस ने इस बार दलित वोटों का दांव भी चला है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे दलित हैं. राज्य में दलितों की आबादी की करीब 19.5 फीसदी बताई जाती है.

कर्नाटक में अनुसूचित जाति के लिए 36 सीटें आरक्षित हैं. हालांकि दलित जातियों का प्रभाव इससे कहीं ज्यादा सीटों पर है. कांग्रेस के पास मल्लिकार्जुन खड़गे जैसा दलित नेता होने के बावजूद राज्य में बीजेपी दलितों के बीच ज्यादा मजबूत रही है. पिछले चुनाव में 36 में से 17 आरक्षित सीटें बीजेपी के खाते में गईं. जबकि कांग्रेस के 12 विधायक आरक्षित सीट से चुनकर आए.

अब बात जनता दल (सेकुलर) की. वोक्कलिगा समाज की राजनीति करने वाले एचडी देवगौड़ा की पार्टी पिछले कुछ चुनावों में अपने ही गढ़ में सिमटती नज़र आ रही है. जेडीएस की सीटें भी कम हुई हैं और वोट बैंक भी. जेडीएस का मूल वोक बैंक वोक्कलिगा समाज दक्षिण कर्नाटक में बहुसंख्यक है. हालांकि इस बार जेडीएस ने उत्तर कर्नाटक में लिंगायतों को गढ़ में भी जीत की आस से कुछ उम्मीदवार उतारे हैं. कितना फायदा होगा ये तो नतीजे वाले दिन ही पता चलेगा.

मठों की राजनीति

कर्नाटक में अलग-अलग समाज के मठों को भी राजनीति का अखाड़ा माना जाता है. कर्नाटक में कुल 600 मठ होने का दावा किया जाता है. इनमें सबसे ज्यादा 300 मठ लिंगायतों के हैं. ये लिंगायतों के प्रमुख मठ है. इसके बाद करीब 150 मठ वोक्कलिगा के हैं. जबकि 50 से ज्यादा मठ कुरुबा समुदाय के बताए जाते हैं.

सभी राजनीति पार्टियों के नेता इन मठों में नतमस्तक रहते हैं. बीजेपी ने इस बार लिंगायत मठों के साथ वोक्कलिगा मठों को साधने की कोशिश भी की है. बीजेपी के कई बड़े नेता वोक्कलिगा समुदाय के सबसे अहम, चुनचुन गिरी मठ पहुंचे. पिछले साल राहुल गांधी भी यहां पहुंचे थे.

इसके अलावा राहुल गांधी लिंगायत के मुरुगराजेंद्र मठ भी पहुंचे थे. मठ के पुजारी शिवमूर्ति मुरुघा शरण  से उन्होंने 'इष्ट लिंग दीक्षा' भी ली. यह लिंगायत के प्रमुख मठों में से एक है.

बयानबाजी

चुनावों से ठीक पहले की बयानबाजी अकसर कांग्रेस का नुकसान ही करती है. कांग्रेसी नेताओं ने जब-जब नरेंद्र मोदी के बारे में कोई टिप्पणी की, असर उल्टा ही पड़ा. चाहे वो ‘चायवाला’ वाला बयान हो या फिर ‘चौकीदार’ वाला. कर्नाटक में वोटिंग से ठीक पहले ऐसा ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का एक बयान आ गया है. इस पर राजनीति गर्म हो चुकी है.

27 अप्रैल मल्लिकार्जुन खरगे कर्नाटक के रोन में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे. वो कन्नड़ में बोल रहे थे. इंडिया टुडे के मुताबिक उसी दौरान उन्होंने ये कहा,

"मोदी जहरीले सांप की तरह हैं. अगर आपको संदेह है कि (उसमें) जहर है या नहीं और आप उसे चखते है तो आप मारे जाएंगे. आपको लग सकता है कि "क्या ये जहर है? मोदी तो अच्छे आदमी हैं, उन्होंने ये दिया, वो दिया, हम देख लेंगे"... तो इसका मतलब आप पूरी तरह सो रहे हैं."

हालांकि इसके कुछ देर बाद मल्लिकार्जुन ने सफाई दी. उन्होंने कहा कि जहरीला सांप वाली बात उन्होंने बीजेपी के लिए कही थी. इंडिया टुडे से जुड़े सगाय की रिपोर्ट के मुताबिक खरगे ने कहा,

"मैंने कहा भारतीय जनता पार्टी सांप की तरह है. आप उसे छूएंगे तो आखिर में आपकी मौत हो जानी है. मैंने उनके (पीएम मोदी) बारे में कुछ नहीं कहा. मैं व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करता हूं. मेरा मतलब था कि उनकी विचारधारा सांप की तरह है. अगर आपने उसे छुआ तो मौत होनी ही है."

कर्नाटक से अबतक आ रही सुगबुगाहट में कांग्रेस चुनाव में मजबूत स्थिति में बताई जा रही थी. लेकिन अब खरगे का बयान आ गया है. इसका कितना असर चुनाव पर पड़ेगा, ये नतीजों के दिन साफ हो जाएगा.

इस बीच बीजेपी की तरफ से भी बयानबाजी में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. कर्नाटक के बीजेपी विधायक बसनगौड़ा पाटिल ने कांग्रेस पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को ‘विषकन्या’ कहा है. बसनगौड़ा कर्नाटक की बीजापुर शहर सीट से विधायक हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक चुनावी रैली में बसनगौड़ा ने सोनिया गांधी को पाकिस्तान और चीन से भी जोड़ दिया. उन्होंने सोनिया गांधी को पाकिस्तान और चीन का एजेंट बता डाला.

बेरोजगारी

अब तक जिन मुद्दों पर हमने बात की वो ऐसे मुद्दे थे जिनको राजनीतिक पार्टियां अपने सहूलियत के हिसाब से इस्तेमाल करती हैं. लेकिन असल मुद्दे वो होते हैं जो लोगों की रोटी-कपड़ा और मकान से जुड़े होते हैं. संक्षिप्त में ही सही लेकिन उन मुद्दों पर बात सबसे जरूरी है.

बीते दिनों, NDTV और लोकनीति-CSDS ने मिलकर कर्नाटक में एक सर्वे किया. सर्वे के नतीजे 1 मई को जारी किए गए. इस सर्वे में जब लोगों से पूछा गया कि चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा क्या हो तो जवाब ऊपर बताया गया कोई भी मुद्दा नहीं था. लोगों ने सबसे बड़ा मुद्दा बताया बेरोजगारी को.

सर्वे में शामिल 28 प्रतिशत लोगों ने कहा कि बेरोजगारी कर्नाटक में सबसे बड़ी समस्या है. जबकि 25 प्रतिशत लोगों ने गरीबी को कर्नाटक की सबसे बड़ी समस्या बताई.

इस सर्वे में 7 प्रतिशत लोगों ने महंगाई को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बताया.

कर्नाटक में ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो चुनाव में मतदान की दिशा तय करेंगे. कौन सी पार्टी किस मुद्दे को ज्यादा बेहतर तरीके से भुना पाती है, इसका परिणाम 13 मई को आएगा जब जनता अपना फैसला सुनाएगी.

 

वीडियो: नेता नगरी: आनंद मोहन और कर्नाटक चुनाव की बहस में जाति का सारा गणित खुल गया

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