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खजुराहो के मंदिर में भगवान विष्णु का शीश तोड़ा गया या सच कुछ और है?

जावरी में खंडित मूर्ति विष्णु भगवान के मंदिर में सदियों से विराजमान है और अब तो यूनेस्को द्वारा संरक्षित भी है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई थी.

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Khajuraho
जावरी के मंदिर में विष्णु भगवान की मूर्ति खंडित क्यों है (India Today)
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राघवेंद्र शुक्ला
18 सितंबर 2025 (Updated: 18 सितंबर 2025, 08:29 PM IST)
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मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर परिसर का एक हिस्सा है जावरी मंदिर. गजब की नक्काशी के साथ नागर शैली में बना मंदिर जो देखे, देखता ही रह जाए. गर्भगृह, मंडप, बरामदा और दीवारों पर मूर्तियों की नक्काशी का ऐसा काम है कि देखकर हैरानी हो कि क्या इसे इंसानों ने बनाया है या खुद भगवान विश्वकर्मा ने. खजुराहो के मंदिर समूह के पूर्वी हिस्से में स्थित इस विष्णु मंदिर में प्रवेश कीजिए तो दीवारों पर उकेरे गए नवग्रह आपका स्वागत करेंगे. वहीं पास में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की भी मूर्तियां उभरी हुई दिखेंगी. 

अंदर जाते ही एक बड़ी प्रतिमा दिखेगी. चतुर्भुज यानी चार भुजाओं वाले भगवान विष्णु. सदियों के बड़े अंतराल की मार झेलकर भी इस मूर्ति के हाथ, पैर और शरीर के समस्त हिस्से सही-सलामत हैं. लेकिन अब प्रतिमा का शीश ही नहीं है. वह धड़ से ऐसे अलग है, जैसे कभी था ही नहीं. 

यह खंडित मूर्ति इसी अवस्था में विष्णु भगवान के मंदिर में सदियों से विराजमान है और अब तो यूनेस्को द्वारा संरक्षित भी है. राकेश दलाल नाम के एक शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में इस मूर्ति को बदलने और नई लगाने के लिए याचिका डाली थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें डांट दिया. ये भी कह दिया कि ये अपील पूरी तरह से प्रचार पाने के लिए है. उन्होंने राकेश दलाल से कहा, “अब आप जाइए और भगवान से प्रार्थना कीजिए. वही कुछ करेंगे.”

इस केस के जरिए जावरी मंदिर और उसकी खंडित मूर्ति एक बार फिर अपने इतिहास के अनुत्तरित सवालों के साथ हमारे सामने हाजिर है. 

भोपाल के हमीदिया आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर शिवम शर्मा बताते हैं कि चंदेल वंशी राजा धंग के समय खजुराहो के मंदिर बने थे. जावरी मंदिर भी तभी बना था. भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जिनकी मूर्तियां खंडित अवस्था में मिलती हैं. या मंदिर टूटे मिलते हैं. लेकिन चंदेल काल में जो भी मंदिर खजुराहो में 10वीं और 11वीं शताब्दी में बने, वे लगभग पूरी तरह सुरक्षित हैं. इन मंदिरों की वास्तविक बनावट से छेड़छाड़ भी नहीं की गई है. केवल अगर गर्भगृह को छोड़कर कहीं कोई हिस्सा जीर्ण-शीर्ण हो गया है तो शासन-प्रशासन की ओर से उसी स्थापत्य शैली में उसकी मरम्मत कर दी जाती है.

लेकिन जावरी मंदिर के विष्णु भगवान की प्रतिमा क्यों टूटी है?

शिवम शर्मा बताते हैं कि इसको लेकर कई तरह की बातें चलती हैं. एक मत है कि बाहरी आक्रांताओं ने इसे तोड़ा था. जैसे भारत के अन्य हिस्सों में मंदिरों के साथ हुआ. दूसरा मत ये है कि मूर्ति अपने निर्माण में पूरी नहीं हो पाई होगी. कलाकार शायद पूरी मूर्ति को अंतिम आकार नहीं दे पाया होगा. इस कारण प्रतिमा का सिर बनना रह गया होगा. हालांकि, स्पष्ट प्रमाण किसी मत के समर्थन में नहीं हैं. अगर आप स्थानीय लोगों से पूछें तो वे यही कहते हैं कि बाहरी लोग आए थे और उन्होंने इसे तोड़ दिया. वजह ये कि मूर्ति का बाकी हिस्सा तो बिल्कुल सही है. केवल सिर का भाग ही खंडित है.

हालांकि शिवम का कहना है कि अधूरी मूर्ति की दलील इसलिए भी विचार करने लायक है क्योंकि देश में ऐसे कई मंदिरों के उदाहरण हैं जो पूरे नहीं बन पाए. नेमावर की ही मिसाल लें. इस जगह को नर्मदा नदी का नाभि-स्थल माना जाता है. यहां पहाड़ी की ऊंचाई पर एक मंदिर बना है. उसकी स्थापत्य शैली पूरी तरह चंदेल शैली जैसी है, हालांकि चंदेलों ने उसे नहीं बनवाया था. यह मंदिर भी अधूरा माना जाता है क्योंकि उसका गर्भगृह ही नहीं बन पाया.

भोपाल का भोजेश्वर मंदिर भी एक उदाहरण है. यहां भारत का सबसे बड़ा शिवलिंग है. एक किंवदंती है कि इसे पांडवों ने एक रात में बनाना शुरू किया था और जितना बना पाए, यह उतना ही रह गया. बाद में राजा भोज ने भी इसमें निर्माण कार्य कराया लेकिन मंदिर फिर भी अधूरा ही रहा. सरकार और पुरातत्व विभाग ने वहां संरक्षण का काम किया है, लेकिन मूल मंदिर को नहीं छेड़ा.

शिवम कहते हैं, 

इसी तरह अनेक मंदिर और मूर्तियां समय के साथ अधूरी रह गईं या खंडित हो गईं. इसमें कोई संदेह नहीं कि बाहरी आक्रांताओं ने भी भारत में मंदिरों को तोड़ा और हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया. लेकिन खजुराहो में अगर ऐसा होता तो वहां के कई और मंदिर भी नष्ट मिलते.

वह आगे कहते हैं कि खजुराहो बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है. महमूद गजनवी और मुहम्मद गौरी यहां तक पहुंचे तो थे, लेकिन चंदेलों का शासन इतना ताकतवर था कि बाहरी आक्रांताओं को पूरी तरह सफलता नहीं मिल पाई. कलिंजर दुर्ग उस समय की चंदेल राजधानी रहा. दुर्ग इतनी ऊंचाई पर था कि आक्रांताओं के गोले वहां तक आसानी से नहीं पहुंच सकते थे. कहा जाता है कि महमूद गजनवी ने हार तो नहीं मानी, लेकिन कालिंजर के शासक से समझौता कर लिया था और उनसे नाममात्र की अधीनता स्वीकार भी करवा ली.

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तो मुगलों ने नहीं तोड़ा मंदिर?

पुरातत्व मामलों के जानकार और सर्व पुरातत्व सॉल्यूशंस के संस्थापक शिवाजी कहते हैं कि आमतौर पर लोग हर मुस्लिम आक्रमण को ‘मुगल आक्रमण’ कह देने के आदी हैं. वो ये फर्क नहीं कर पाते कि भारत में मुगल 1526 के बाद आए. उसके पहले भी हिंदुस्तान में लगभग 300 साल से मुस्लिम राज था. लेकिन ये लोग सभी मुस्लिम शासन को एक ही नाम ‘मुगल’ से पुकार देते हैं.

शिवाजी आगे बताते हैं कि मंदिरों पर हमले सिर्फ 16वीं से 18वीं सदी तक ही नहीं हुए थे. उससे कहीं ज्यादा बड़े पैमाने पर मंदिरों का विनाश 13वीं से 16वीं सदी के बीच भी हुआ था. कलिंजर में सबसे पहले महमूद गजनवी के आक्रमण का सिलसिला 11वीं सदी में शुरू हुआ था. उस समय चंदेल शासन ने कुछ समझौते कर लिए, इसलिए गजनवी ने वहां आक्रमण नहीं किया. अल्बरुनी की ‘किताबुल-हिंद’ में ये सब दर्ज है. 

13वीं सदी के बाद बड़े आक्रमणों की लड़ाई शुरू हुई और 15वीं सदी में सिकन्दर लोदी के समय खजुराहो पर जो बड़ा आक्रमण बताया जाता है, वह इसी समय में हुआ था. इसके बाद खजुराहो को लगभग 300 सालों तक जंगल ने अपनी आगोश में छिपाए रखा. कई लोगों को तो पता ही नहीं था कि ये स्थान भी दुनिया में मौजूद है. फिर 18वीं सदी में टीएस बर्ट नाम के एक अंग्रेज ने इस हैरतअंगेज प्राचीन निर्माण को खोज निकाला. उस समय खजुराहो की हालत किसी खंडहर की तरह थी. मंदिर गिरे पड़े थे. मूर्तियां इधर-उधर बिखरी पड़ी थीं. लेकिन लोदी के हमले से पहले यही मंदिर गुलजार रहता था और यहां पूजा भी होती थी. 

खजुराहो के मंदिर पर तोड़ने के मकसद से हमले हुए या नहीं, यह बात ठीक-ठीक नहीं कही जा सकती. कई सवाल इस धारणा का विरोध करते हैं. जैसे, हमले सिर्फ खजुराहो में क्यों हुए और मंदिरों में क्यों नहीं? इतने सारे मंदिरों के बीच सिर्फ जावरी के मंदिर पर ही ‘अटैक’ क्यों हुआ? अगर अटैक हुआ तो सिर्फ एक मूर्ति क्यों तोड़ी गई? वगैरा-वगैरा.

शिवाजी कहते हैं कि उस समय मुस्लिम आक्रमणकारियों का उद्देश्य मंदिर तोड़ना था ही नहीं. उनका मकसद था कि मंदिर, मंदिर न रह जाए. नागर स्टाइल के मंदिर को ध्वस्त करना आसान भी नहीं था. ऐसे में हो सकता है कि हमलावर मुख्य देवता का मस्तक धड़ से अलग कर मूर्ति खंडित कर देना चाहता हो. क्योंकि हिंदू लोग खंडित मूर्ति की पूजा नहीं करते. इतिहासकारों के ग्रंथों में ये जिक्र है कि हमलावर मंदिरों को भ्रष्ट करने के लिए ये तरीके भी अपनाते थे. हालांकि, किसी मुस्लिम शासक के मंदिर पर हमला कर उसे खंडित कर देने का कहीं प्रमाण नहीं मिलता. ऐसे में दावे के साथ इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है कि मूर्ति खंडित क्यों है.

ताजा विवाद क्या है?

अब वापस मौजूदा मसले पर आते हैं. जो इसी खंडित मूर्ति के जीर्णोद्धार से जुड़ा है. कुछ धार्मिक प्रवृत्ति के लोग खंडित मूर्ति के स्थान पर नई मूर्ति स्थापित करना चाहते हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी. शिवम शर्मा का मानना है कि इस मुद्दे पर अदालत की टिप्पणी में भावनात्मक दृष्टिकोण नहीं था. उनके मुताबिक बेंच याचिकाकर्ता से कह सकती थी कि गर्भगृह को न छेड़कर बगल में नया मंदिर बनाइए. नया नाम दीजिए और वहां मूर्ति स्थापित कर दीजिए. ताकि मूल मंदिर संरक्षित रहे और लोग पर्यटन की दृष्टि से भी वहां आएं. 

फिलवक्त तो जो हुआ उस पर CJI बीआर गवई ने अपनी बात रखी है. एक सुनवाई में उन्होंने कहा कि वे सभी धर्मों में विश्वास करते हैं और उनका सम्मान करते हैं. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मुख्य न्यायाधीश का समर्थन किया और कहा कि सोशल मीडिया पर बयानों को संदर्भ से बाहर तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: CJI बीआर गवई को खजुराहो और भगवान विष्णु पर ट्रोल करने वाले लोग कौन हैं?

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