आम बजट से कैसे अलग है अंतरिम बजट? जान लीजिए.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Niramala Sitharaman) लगातार छठवीं बार बजट पेश करने जा रही हैं. ये अंतरिम बजट (Interim Budget 2024) होगा. अब लाख टके का सवाल ये है कि आम बजट से अंतरिम बजट कितना अलग होता है?
मोदी सरकार इस चुनावी साल में अंतरिम बजट (Interim Budget 2024) ही पेश कर रही है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Niramala Sitharaman) लगातार छठवीं बार बजट पेश करने जा रही हैं. ये मौजूदा लोकसभा और मोदी सरकार 2.0 का आखिरी बजट है. लेकिन इस बार फुल बजट यानी आम बजट नहीं बल्कि अंतरिम बजट पेश होगा. अंतरिम बजट और फुल बजट में काफी अंतर है. ये अंतर क्या है? इसका फर्क बताना हमारी जिम्मेदारी है. अंतरिम बजट के बारे में जानने से पहले बजट के बारे में जान लीजिए.
क्या होता है बजट?बजट में कोई भी सरकार अपनी साल भर की आमदनी और खर्च का ब्यौरा संसद के जरिए देश के सामने रखती है. इसमें सरकार बताती है कि आने वाले साल में सरकार देश में कौन सी योजनाएं लागू करेगी. और इन योजनाओं पर सरकार कितना पैसा खर्च करने वाली है. इन योजनाओं से देश की जनता का क्या भला होने वाला है. इसका एक मोटा-मोटा खाका भी संसद रखा जाता है. हमारे देश में सरकार 1 अप्रैल से 31 मार्च तक का बजट पेश करती है. यानी 1 अप्रैल से 31 मार्च तक सरकार को अपनी योजनाएं लागू करने के लिए जितना पैसा चाहिए होता है, उस पैसे की मंजूरी उसे संसद से लेनी पड़ती है. इसको ऐसे समझ सकते हैं. मान लेते हैं कोई स्टूडेंट है. उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए पैसे चाहिए. ट्यूशन फीस, यूनीफॉर्म और स्कूल फीस आदि के लिए. ऐसी स्थिति में स्टूडेंट अपने पिताजी से पैसे मांगता है. ठीक यही तरीका सरकार का भी है. लेकिन इस बार सरकार पूरा बजट तो ला नहीं रही. मोदी सरकार पेश कर रही है अंतरिम बजट. तो इसको भी समझ लेते हैं.
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क्या होता है अंतरिम बजट?अंतरिम बजट खास बात ये होती है कि ये बजट पूरे साल के लिए न होकर कुछ महीनों के लिए होता है. आम चुनाव की वजह से आमतौर पर सरकार उतने वक्त तक का बजट ही पेश करती है, जितना उसका कार्यकाल बाकी होता है. इस बजट में सरकार देश को चलाने के लिए कुछ खर्चों का इंतजाम करती है. फिर इन खर्चों के लिए संसद से मंजूरी लेती है. इसको कुछ ऐसे समझ सकते हैं- नरेंद्र मोदी सरकार का कार्यकाल आगामी लोकसभा चुनाव (मई, 2024) तक है. मई में ही नई सरकार का गठन हो जाएगा. ऐसे में अब जो अंतरिम बजट आएगा, वो करीब 3 महीने के लिए होगा. माने फाइनेंशियल ईयर 1 अप्रैल से शुरू होगा. ऐसे में मौजूदा सरकार अप्रैल, मई, जून तक का बजट पेश कर सकती है. कई बार 5 महीने तक का अंतरिम बजट पेश किया जाता है. पहले की कई सरकारें अपने बाकी बचे कार्यकाल का बजट पेश करती रही हैं.
नॉन टेक्निकल भाषा में इसे ऐसे समझें -माताजी को घर चलाने के लिए पैसे की जरूरत पड़ती है. हर साल पिताजी यानी संसद पूरे साल का पैसा दे देते थे. लेकिन इस साल माताजी को एक परीक्षा पास करनी है. और वो एग्जाम 4 महीने बाद है. माताजी के पास 2 महीने का घर चलाने का खर्च अभी बचा है. एग्जाम में अभी 4 महीने हैं. और तब तक घर तो चलाना ही है. इसलिए पिताजी से अभी से पैसा मांगा जा रहा है, जिससे घर चलाने में कोई दिक्कत न हो. पिताजी भी अभी सिर्फ 3 महीने का खर्च दे रहे हैं. बाकी के 8 महीने का खर्च एग्जाम पास करने के बाद मिलेगा. कुछ ऐसा ही अंतरिम बजट के मामले में होता है.
एक बात घोंट लीजिए. अंतरिम बजट में सरकार कोई ऐसा नीतिगत फैसला नहीं लेती है, जिसके लिए संसद की मंजूरी लेनी पड़े या कानून में संशोधन करना पड़े. क्योंकि इसपर चुनाव के बाद बनने वाली सरकार का हक बनता है. परंपरा के मुताबिक अंतरिम बजट में इनकम टैक्स स्लैब में भी कोई बदलाव नहीं किया जाता है. मगर टैक्स में बदलाव करने के लिए किसी तरह की रोक भी नहीं है. इसे अंतरिम बजट तभी कहा जाएगा, जब सरकार संसद में अपनी आमदनी का भी ब्योरा रखेगी. अगर मोदी सरकार सिर्फ संसद से खर्च की मंजूरी मांगेगी, तो इसे वोट ऑन अकाउंट कहा जाएगा.
पहला अंतरिम बजट का किस्सा क्या है?अंतरिम बजट शब्द का जिक्र संविधान में कहीं नहीं है. आजाद भारत का पहला बजट वित्तमंत्री आरके षणमुगम चेट्टी ने 26 नवंबर, 1947 को पेश किया. ये फुल बजट नहीं था. इस बजट में देश की आर्थिक नीतियों और अर्थव्यवस्था की समीक्षा की गई थी. इस बजट में न तो नए नियम लागू किए गए और न ही कोई नए टैक्स. असल में साल 1948-1949 के बजट में केवल 95 दिन बचे थे. इसके बाद जब आरके षणमुगम ने साल 1948-49 का दूसरा बजट पेश किया तो उन्होंने कहा कि आजाद भारत का अंतरिम बजट कुछ दिनों के लिए पेश किया गया था. इसी के बाद से अंतिरम बजट नाम का जुमला निकल पड़ा. वही आज तक चला आ रहा है. तभी से कम समय के बजट के लिए इस शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा. भारत में पहला अंतरिम बजट मोरारजी देसाई ने साल 1962-63 में पेश किया. फिर साल 1991-92 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार जाने के बाद यशवंत सिन्हा ने अंतरिम बजट पेश किया. चुनावों के बाद पीवी नरसिम्हा राव की अगुआई में कांगेस की सरकार बनी और तब मनमोहन सिंह ने पूर्ण बजट पेश किया.
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