रामप्रसाद बिस्मिल का वो किस्सा, जब उनकी बहन की शादी में वेश्याएं आ गईं
चोरी करने पर बंदूक की गज से हुई थी पिटाई.
"सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-कातिल में है"
ये लाइनें भारत में बच्चे-बच्चे की ज़ुबान पर हैं और इन्हें सुनकर जिस व्यक्ति का नाम उभरकर आता है, वो हैं राम प्रसाद बिस्मिल. राम प्रसाद बिस्मिल खुद एक अच्छे कवि थे, लेकिन ऊपर लिखी लाइनें उन्होंने नहीं, बल्कि शाह मोहम्मद हसन बिस्मिल अज़ीमाबादी ने लिखी थीं. बिस्मिल ने फांसी पर चढ़ने के पहले इस गीत को गाया और इसलिए ये इनके नाम से मशहूर हो गया.
देश की आज़ादी की लड़ाई के दौरान राम प्रसाद बिस्मिल के नाम पर मणिपुर षडयंत्र और काकोरी ट्रेन डकैती जैसी कई घटनाएं दर्ज हुईं. इनके अलावा उनकी ज़िंदगी से जुड़ी तमाम ऐसी रोचक घटनाएं हैं, जो उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखी हैं. बिस्मिल को काकोरी ट्रेन डकैती मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस दौरान उन्हें गोरखपुर जेल में रखा गया, जहां उन्होंने आत्मकथा लिखी. ये उन्होंने फांसी के दो दिन पहले पूरी की थी. फांसी के दो दिन पहले जब उनकी मां उनसे मिलने जेल में आईं, तो उन्होंने अपनी आत्मकथा खाने के डिब्बे में रखकर मां के हाथों जेल से बाहर भिजवा दी. बाद में 1928 में गणेश शंकर विद्यार्थी ने इसे छपवाया. इसमें राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने जीवन के कई पहलुओं को लिखा है-
1. बंदूक के गज से हुई पिटाईः
बिस्मिल के पिता पढ़ाई-लिखाई को लेकर बहुत सख्त थे. बचपन में जब बिस्मिल देवनागरी सीख रहे थे तो उन्हें 'उ' लिखने में दिक्कत हो रही थी. एक बार पिताजी ने इन्हें 'उ' लिखकर प्रैक्टिस करने को कहा और खुद कचहरी चले गए. बिस्मिल ने मौका देखा और खेलने निकल लिए. शाम को पिताजी आए तो 'उ' लिखकर दिखाने को कहा, जब ये नहीं लिख पाए, तो वो आग-बबूला हो गए. पिता ने बिस्मिल को बंदूक के गज के लोहे से इतना पीटा कि गज टेढ़ा पड़ गया. बिस्मिल भागकर दादी के पास चले गए, तब जाकर बच पाए.
2. दिन में पीते थे 50 से 60 सिगरेटः
चौदह की उम्र में राम प्रसाद पांचवीं क्लास में पहुंच गये थे. तभी उन्हें उपन्यास पढ़ने की आदत लग गई. उपन्यास खरीदने के लिए इन्हें पैसों की ज़रूरत होती थी, जिसकी वजह से ये घर में चोरी करने लगे. पर जहां से ये किताबें लाते थे, उस दुकानदार को इस बात का पता लग गया. दुकानदार इनके पिताजी का मिलने वाला था. जब उसने पिताजी से शिकायत कर दी, तो इन्होंने वहां से किताबें खरीदना छोड़ दी. लेकिन इस दौरान इन्हें सिगरेट और भांग के नशे की भी आदत लग गई. इन्हें सिगरेट पीने की इतनी बुरी लत लग चुकी थी कि दिन में 50 से 60 सिगरेट पी जाया करते थे.
राम प्रसाद बिस्मिल शव के साथ उनके पिता
एक दिन ये भांग पीकर पिताजी के संदूक से पैसे निकालने की कोशिश कर रहे थे, तभी मां ने देख लिया और सारा भेद खुल गया. फिर इनका संदूक खुलवाकर तलाशी ली गई, तो उसमें उर्दू के उपन्यास और पैसे मिले. उपन्यास फाड़ दिए गए और इनकी पिटाई हुई. अपनी बुरी लत के काऱण बिस्मिल दो बार मिडिल की परीक्षा में पास नहीं हो सके. पांचवीं कक्षा में मिशन स्कूल में भर्ती होने के बाद इनके एक दोस्त सुशीलचंद की वजह से इनकी सिगरेट पीने की आदत छूटी.
3.सत्यार्थ प्रकाश से प्रभावित होकर लिया ब्रह्मचर्य का व्रत
इनके घर के पास के मंदिर में एक मुंशी जी आते रहते थे. एक बार उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल को सलाह दी कि संध्या किया करो. संध्या के बारे में जानने के लिए इन्होंने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा, जहां से इन्हें ब्रह्मचर्य की प्रेरणा मिली. बिस्मिल अपनी आत्मकथा लिखते हैं, 'मैं तख्त पर कंबल बिछाकर सोने लगा और सुबह चार बजे उठ जाता था. उस दौरान मैने रात का भोजन त्याग दिया. दिन में किए जाने वाले भोजन में भी उबला हुआ साग और दाल ही खाता था. मिर्च और खटाई बिल्कुल छोड़ दिया था. स्वप्नदोष से बचने के लिए कुछ दिनों के बाद भोजन में नमक लेना भी बंद कर दिया.'
राम प्रसाद की बहिन शास्त्री देवी, साभारः भास्कर.कॉम
4.सच पर डटे रहने की थी आदत
लगभग 18 साल की उम्र में बिस्मिल पहली बार ट्रेन में बैठे. इन्होंने टिकट तीसरे दर्ज़े की खरीदी, लेकिन इंटर क्लास में बैठकर दोस्तों से बात करते हुए चले गए. इंटर क्लास का टिकट तीसरे दर्जें के टिकट से ज्यादा महंगा था. बाद में इन्हें अपने इस कृत्य पर बहुत दुख हुआ. दोस्तों से इन्होंने कहा कि ये भी एक तरह की चोरी है, हमें बाकी के पैसे स्टेशन मास्टर मास्टर को दे देना चाहिए.
एक और घटना है. इनके पिताजी दीवानी में किसी पर दावा करके वकील से कह गए थे कि जो काम हो वह बिस्मिल से करा लें. कुछ ज़रूरत पड़ने पर वकील साहब ने इन्हें बुलाया और कहा कि वकालतनामें पर पिताजी के हस्ताक्षर कर दो. पर बिस्मिल ने ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि इन्हें वो पाप लगा. वकील साहब ने बहुत समझाया कि सौ रुपए से अधिक का दावा है, मुकदमा खारिज हो जायेगा. लेकिन इन पर कोई असर नहीं पड़ा और आखिरकार इन्होंने दस्तखत नहीं किए. अात्मकथा में ये लिखते हैं कि मैं अपने जीवन में हर प्रकार से सत्य का आचरण करता था, चाहे कुछ हो जाए, सत्य बात कह देता था.
5.वेश्याओं की वजह से बहन की शादी में नहीं हुए शरीक
बिस्मिल के बहन की शादी तय हो गई थी. जिस कारण से इनके मम्मी-पापा ग्वालियर चले गए थे. इनका परीक्षा होने वाली थी इसलिए ये और इनके दादाजी शाहजहांपुर ही रुक गए . परीक्षा खत्म हुई तो ये भी शादी में शरीक होने के लिए ग्वालियर पहुंच गए. गांव के बाहर पहुंचे तो इन्हें मालूम पड़ा कि बारात आ गई है और उसके साथ वेश्याएं भी आई हैं. ऐसा सुनकर ये वहीं से वापस हो गए और बहन की शादी में शरीक नहीं हुए.
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