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19 साल का भारतीय पायलट, जिसने विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की तरफ से लड़कर छक्के छुड़ा दिए

बात इंद्र लाल रॉय की.

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इंद्र लाल रॉय (बाएं). भारत में जारी उनकी फोटो वाला डाक टिकट (दाएं). (फोटो- Commons, Flickr)
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अभिषेक त्रिपाठी
22 जुलाई 2021 (Updated: 22 जुलाई 2021, 01:12 PM IST) कॉमेंट्स
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19 बरस की उम्र.

13 दिन, जो विश्वयुद्ध में लड़ते हुए बिताए.

170 घंटे की उड़ान भरी इस दौरान.

9 हवाई जहाज मार गिराए दुश्मन के.

ज़िक्र विश्वयुद्ध का आ गया है तो आप समझ ही गए होंगे कि डायरी के पुराने पन्ने खुलने वाले हैं. सांख्यिकी का ज़माना है इसलिए संख्या में बता देते हैं. ज़िक्र है 103 साल पुरानी बात का. प्रथम विश्वयुद्ध का, और उस विश्वयुद्ध में ब्रिटेन की वायुसेना के लिए जहाज उड़ाने वाले 19 बरस के भारतीय मूल के पायलट का. जिसने युद्ध के 13 दिनों में 170 घंटे की उड़ान के दौरान दुश्मन के 9 हवाई जहाज गिरा दिए थे. सोचिए कि क्या बहादुरी थी, क्या जिगरा था कि आज 103 बरस बाद भी हम आप बैठे याद कर रहे हैं पायलट इंद्र लाल रॉय को, जो 22 जुलाई 1918 को जंग में ही शहीद हो गए थे. कोलकाता में पैदाइश इंद्र लाल का जन्म हुआ था 2 दिसंबर 1898 को कलकत्ता में. तब कलकत्ता ही हुआ करता था, कोलकाता नहीं. बंगाली ब्राह्मण परिवार में, रॉयल घराने में जन्म हुआ था. पिता बैरिस्टर थे. बड़े भाई परेश लाल रॉय को ‘फादर ऑफ इंडियन बॉक्सिंग’ कहा जाता है. नाना देश के पहले एलोपैथिक डॉक्टर्स में से एक थे. भांजे सुब्रतो मुखर्जी पहले भारतीय चीफ ऑफ एयर स्टाफ बने. यानी घर में सब एक से बढ़कर एक तोप. लैडी यानी इंद्र लाल को लंदन के सेंट पॉल स्कूल पढ़ने के लिए भेजा गया. लैडी उनका निकनेम था. जब वो वहां पढ़ ही रहे थे, तभी विश्वयुद्ध छिड़ गया था. और रॉय एक बहादुर मिशन पर गए थे. एक एप्लिकेशन रिजेक्ट, दूसरी पास लेकिन ये सब शुरू कहां से हुआ? दरअसल पढ़ाई के साथ-साथ ही लैडी ने युद्धक विमान उड़ाने की जबरदस्त ट्रेनिंग ले रखी थी. ब्रिटेन की वायुसेना रॉयल एयर फोर्स के विमान उड़ाने के लिए उन्होंने अर्जी लगाई. पहली बार में उनकी एप्लिकेशन रिजेक्ट हो गई. कारण- कमजोर आईसाइट. बाद में रॉय ने अन्य डॉक्टरों की रिपोर्ट लगाई कि उनकी आईसाइट सामान्य है, तब जाकर उन्हें फ्लाइंग का लाइसेंस मिला. जॉइनिंग के दो महीने बाद ही रॉय के प्लेन को एक क्रैश का सामना करना पड़ा, जिसमें वह काफी ज़ख्मी हुए. इसके बारे में एक किस्सा कहा-सुना जाता है कि रॉय का प्लेन क्रैश हो गया तो उन्हें एक अस्पताल में भर्ती कराया गया. चोटें इतनी ज़्यादा थीं कि रॉय बिल्कुल अचेत से थे. अस्पताल ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. मुर्दाघर में भेज दिया गया. कुछ घंटे बीते थे कि रॉय को होश आ गया. वह अंदर से मुर्दाघर का दरवाजा खुलवाने के लिए खटखटाने लगे. अटेंडेंट काफी डर गए. बाद में स्थिति सामान्य हुई तो रॉय को बाहर निकाला गया, उनसे माफी मांगी गई. हादसे के छह महीने के भीतर ही फिटनेस टेस्ट पास करके रॉय फ्लाइंग में वापस आ गए. जब वो फ्लाइंग पर वापस आए, तब तक विश्वयुद्ध के हालात बन चुके थे. आने के कुछ समय बाद ही रॉय को जर्मनी की सेना के ख़िलाफ रॉयल एयर फोर्स की तरफ से उतार दिया गया. 13 दिन में 9 विमान गिराए रॉय फ्लाइंग पर वापस आए. रॉयल एयर फोर्स की तरफ से 13 दिन लड़ते हुए जर्मन सेना के 9 एयरक्राफ्ट मार गिराए. इनमें से 3 विमान तो 4 घंटे की फ्लाइंग में ही मार गिराए. 18 जुलाई 1918 को रॉय को ‘फ्लाइंग ऐस’ (Flying Ace) का खिताब मिला. फ्लाइंग-ऐस वर्ल्ड-वॉर वन के उन पायलट्स को कहा जाता था जो हवाई फाइट्स में कई हवाई जहाज मार गिराते थे. इसके 4 दिन बाद ही रॉय को दुश्मन के कई जहाजों ने डॉग फाइट में घेर लिया. इस लड़ाई में उनकी मौत हो गई. रॉय को मरणोपरांत ब्रिटिश सेना का तीसरा सबसे बड़ा गैलेंट्री अवॉर्ड 'फ्लाइंग क्रॉस' दिया गया. भारत सरकार भी रॉय के 100वें जन्मदिन पर एक डाक टिकट जारी कर चुकी है.

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