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समुद्र में बनेगी पाकिस्तान-चीन के मिसाइलों की कब्रगाह, भारत बना रहा खतरनाक मिसाइल शील्ड

भारत तेजी से अपने Sea Based Ballistic Missile Defence System को मजबूत कर रहा है. चीन की DF-21 मिसाइल और पाकिस्तान की MIRV क्षमता वाली Ababeel मिसाइल से बढ़ते खतरे के बीच DRDO और भारतीय नौसेना AD-1 और AD-2 इंटरसेप्टर के warship compatible वर्जन तैयार कर रहे हैं. ये हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर 5000 किलोमीटर तक की बैलिस्टिक मिसाइलों को समंदर से ही रोकने में सक्षम होंगे. 24 जुलाई 2024 के सफल ट्रायल के बाद भारत का फोकस अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में समुद्री BMD शील्ड तैनात करना है, जिसका लक्ष्य 2027 तक ऑपरेशनल होना है.

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India sea based BMD
भारत की समुद्री मिसाइल शील्ड के आगे फेल होगी चीन-पाकिस्तान की हर साजिश
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दिग्विजय सिंह
7 दिसंबर 2025 (Published: 05:13 AM IST)
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सोचिए एक ऐसी मिसाइल, जो आवाज से सात गुना तेज उड़ती हुई समंदर के ऊपर मंडरा रही हो. कुछ ही सेकंड में वह किसी तटीय शहर, नेवल बेस या एयरक्राफ्ट कैरियर को राख बना सकती है. अब सोचिए, उसी सेकंड आसमान से एक दूसरी मिसाइल उठे और हवा में ही उसे खत्म कर दे. यह कोई साइंस फिक्शन नहीं, बल्कि हिंद महासागर के नीचे चल रही असली, खामोश जंग की कहानी है.

एशिया इस समय एक अदृश्य मिसाइल रेस के सबसे खतरनाक दौर में है. चीन अपनी DF-21 जैसी एंटी-शिप बैलिस्टिक मिसाइलों को तेजी से तैनात कर रहा है. पाकिस्तान MIRV टेक्नोलॉजी वाली अबाबील मिसाइल के जरिए एक साथ कई शहरों को निशाना बनाने की क्षमता हासिल कर चुका है. इसी दबाव के बीच भारत ने अपना ध्यान अब जमीन से हटाकर सीधे समंदर पर टिका दिया है. लक्ष्य साफ है. दुश्मन की मिसाइल को हवा में ही खत्म करो.

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दुश्मन की मिसाइलों का सागर से खात्मा (फोटो- SeaRam)
बढ़ता खतर- चीन और पाकिस्तान की मिसाइल रणनीति

चीन की DF-21, जिसे अकसर एयरक्राफ्ट कैरियर किलर कहा जाता है, अब सिर्फ कागजों की मिसाइल नहीं रही. यह वास्तविक तैनाती के चरण में है. दूसरी तरफ पाकिस्तान की अबाबील मिसाइल MIRV क्षमता के साथ एक साथ कई टार्गेट पर अटैक करने की ताकत रखती है. शाहीन-III जैसी लंबी दूरी की मिसाइलें भी भारत के लिए खतरे का ग्राफ लगातार ऊपर ले जा रही हैं.

इस पूरे इलाके में बैलिस्टिक मिसाइल अब सिर्फ सैन्य हथियार नहीं रहीं, बल्कि राजनीतिक दबाव और रणनीतिक वर्चस्व का हथियार बन चुकी हैं.

DRDO और भारतीय नौसेना का समुद्री कवच प्लान

DRDO और भारतीय नौसेना मिलकर Phase-II बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर काम कर रहे हैं, जिसका सबसे खतरनाक हिस्सा इसका sea-based वर्जन है.

idrw.org से जुड़े सूत्रों के अनुसार AD-1 और AD-2 इंटरसेप्टर के हल्के वर्जन तैयार किए जा रहे हैं, जिन्हें सीधे युद्धपोतों पर लगाया जा सके. ये हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर जमीन आधारित सिस्टम से ज्यादा हल्के, ज्यादा चुस्त और ज्यादा तेज हैं. इन्हें अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में रणनीतिक प्वाइंट्स पर तैनात करने की योजना है, ताकि समंदर के रास्ते आने वाली किसी भी बैलिस्टिक वारहेड को हवा में ही खत्म किया जा सके.

ये भी पढ़ें- रडार से ओझल दुश्मन? जवाब तैयार है, तेजस से लेकर AMCA तक, भारतीय वायुसेना का ‘स्मार्ट वार प्लान’

AD-1 और AD-2. भारत की नई पीढ़ी की मिसाइल शील्ड

समुद्र आधारित BMD की असली ताकत AD-1 और AD-2 इंटरसेप्टर हैं.

AD-1 दो स्टेज वाला, सॉलिड फ्यूल, एंडो-एटमॉस्फेरिक इंटरसेप्टर है. इसका अनुमानित वजन करीब 1,000 किलोग्राम है और यह लगभग 150 किलोमीटर की ऊंचाई तक टार्गेट को इंटरसेप्ट कर सकता है.

AD-2 एक्सो-एटमॉस्फेरिक कैटेगरी में तैयार किया जा रहा है, जिसका काम ऊपरी वायुमंडल में मैक 6 से मैक 7 की रफ्तार से उड़ती बैलिस्टिक मिसाइलों को मिड-कोर्स फेज में तबाह करना है. इन इंटरसेप्टरों को करीब 5,000 किलोमीटर तक की रेंज वाली मिसाइलों के लिए डिजाइन किया जा रहा है.

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जापान इस तरह के सिस्टम का इस्तेमाल कर रहा है (फोटो- SeaRam)
युद्धपोत से लॉन्च- THAAD जैसे सिस्टम की तर्ज पर तैयारी

भारत का प्लान है कि इन इंटरसेप्टरों को कैनिस्टर आधारित वर्टिकल हॉट लॉन्च सिस्टम से दागा जाए, ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका का THAAD सिस्टम काम करता है. इससे जहाजों के स्ट्रक्चर में बड़े बदलाव किए बिना ही इन मिसाइलों को फिट किया जा सकेगा.

युद्धपोत चलते-फिरते एयर डिफेंस प्लेटफॉर्म की तरह काम करेंगे. यानी समंदर में तैरती हुई एक मोबाइल मिसाइल शील्ड.

24 जुलाई 2024 का ऐतिहासिक परीक्षण

24 जुलाई 2024 को ओडिशा के चांदीपुर टेस्ट रेंज पर Phase-II सिस्टम का बड़ा और हाई-स्पीड टेस्ट हुआ. इस दौरान AD-1 के एक वैरिएंट ने चार मिनट से कम समय में एक मध्यम दूरी की नकली बैलिस्टिक मिसाइल को सफलतापूर्वक मार गिराया.

इस पूरे मिशन को जमीन और समंदर आधारित रडार नेटवर्क से लाइव डेटा मिल रहा था. यह सिर्फ टेस्ट नहीं था, बल्कि आने वाले समुद्री BMD नेटवर्क का रियल टाइम रिहर्सल माना गया.

हाइपरसोनिक युद्ध की तैयारी

चीन और पाकिस्तान जिस रफ्तार से हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी पर काम कर रहे हैं, उससे मुकाबला करने के लिए भारत में स्वदेशी सीकर, डायवर्ट थ्रस्टर सिस्टम और हिट-टू-किल टेक्नोलॉजी पर तेजी से काम चल रहा है.

मकसद सीधा है. दुश्मन की मिसाइल के MIRV वॉरहेड्स को पृथ्वी के वायुमंडल में घुसने से पहले ही खत्म कर देना.

रडार सिस्टम, जो आंखों से आगे देखता है

इस पूरे sea-based BMD का आधार है लंबी दूरी का रडार नेटवर्क.

भारत 1,500 किलोमीटर से आगे तक देखने वाले ओवर-द-होराइजन रडार तैयार कर रहा है. युद्धपोतों पर X-बैंड और S-बैंड AESA रडार लगाए जा रहे हैं. इसके अलावा फ्लोटिंग टेस्ट रेंज शिप्स के जरिए मिसाइल ट्रैकिंग और डाटा कलेक्शन लगातार किया जा रहा है.

2023 के वर्टिकल लॉन्च BMD टेस्ट में Prithvi आधारित टार्गेट पर शॉर्ट रेंज इंटरसेप्टर दागकर इसी सिस्टम की नींव पहले ही दिखाई जा चुकी है.

ये भी पढ़ें- दुश्मन के ड्रोन हों या टैंक, भारत की थ्री-इन-वन मिसाइल किसी को नहीं छोड़ेगी, ब्रिटेन से LMM की डील, टेंशन में पाकिस्तान

कब तक मैदान में उतरेगी यह समुद्री ढाल

सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी के मुताबिक Phase-II का समुद्री BMD सिस्टम 2027 के आसपास ऑपरेशनल होने का लक्ष्य लेकर चल रहा है.

इसके बाद Phase-III में 5,000 किलोमीटर से ज्यादा रेंज वाली ICBM लेवल मिसाइलों को रोकने के लिए नई पीढ़ी के इंटरसेप्टर आने की योजना है.

भारत अब केवल इंतजार नहीं करता, जवाब पहले तैयार रखता है

आज भारत की रणनीति बदल चुकी है. अब सिर्फ हमला झेलने की नीति नहीं, बल्कि मिसाइल को हवा में खत्म करने की सोच पर काम हो रहा है.

समंदर में तैनात भारतीय युद्धपोत जल्द ही सिर्फ जहाज नहीं रहेंगे, बल्कि चलते-फिरते मिसाइल किलर प्लेटफॉर्म बनते जा रहे हैं. चीन और पाकिस्तान की मिसाइल रेस के बीच भारत धीरे-धीरे एक ऐसी समुद्री दीवार खड़ी कर रहा है, जिसे पार करना आने वाले समय में बेहद मुश्किल होने वाला है.

वीडियो: पाकिस्तान और अमेरिका के बीच मिसाइल डील होने वाली है, भारत पर क्या असर होगा?

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