दुश्मन के ड्रोन हों या टैंक, भारत की थ्री-इन-वन मिसाइल किसी को नहीं छोड़ेगी, ब्रिटेन से LMM की डील, टेंशन में पाकिस्तान
India-UK Defence Deal: 9 अक्टूबर 2025 को हुए भारत-यूके सैन्य समझौते में Lightweight Multirole Missile (LMM) शामिल है. जानें कैसे ये थ्री-इन-वन मिसाइल ड्रोन से लेकर हल्के टैंक तक के खिलाफ भारत की क्षमता को बढ़ाएगी और क्यों पड़ोसी देश परेशान हैं.

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जब भारतीय फोर्सेज ने दुश्मन ड्रोन को हवा में ही मार गिराया, तो दुनिया ने हमारी "काउंटर-ड्रोन" क्षमता का लोहा माना. अब इसी ताकत को और धार देने के लिए भारत ने यूनाइटेड किंगडम के साथ एक अहम रक्षा सौदा किया है. 9 अक्टूबर 2025 को साइन हुए इस समझौते के तहत ब्रिटेन भारत को अपनी आधुनिक Lightweight Multirole Missiles (LMM) यानी Martlet मिसाइलें सप्लाई करेगा. इस सौदे के साथ भारत, यूक्रेन के बाद दूसरा देश बन गया है जिसे ब्रिटेन ने यह मिसाइल देने का भरोसा जताया है.
सौदे का आकार - कितनी बड़ी है ये डिफेंस डीलब्रिटिश कंपनी Thales UK और भारत सरकार के बीच हुई इस डील की कुल राशि लगभग तीन सौ पचास मिलियन पाउंड बताई जा रही है. यह रकम करीब चार सौ अड़सठ मिलियन डॉलर या लगभग चार हज़ार एक सौ पैंसठ करोड़ रुपये के बराबर है.
यह सौदा न सिर्फ मिसाइल की सप्लाई बल्कि टेक्निकल ट्रेनिंग, लॉजिस्टिक सपोर्ट और मेंटेनेंस इंफ्रास्ट्रक्चर को भी शामिल करता है.
इससे ब्रिटेन में करीब सात सौ नौकरियां सुरक्षित रहने का दावा भी किया गया है, जबकि भारत के लिए यह काउंटर-ड्रोन और हल्के टैक्टिकल अटैक सिस्टम्स में बड़ी छलांग साबित होगा.
Lightweight Multirole Missile (LMM), जिसे ब्रिटेन में Martlet के नाम से जाना जाता है, असल में एक शॉर्ट-रेंज, हल्की और मल्टीरोल मिसाइल है. इसे इस तरह बनाया गया है कि यह ड्रोन, छोटे जहाज, हल्के बख्तरबंद वाहन या लो-फ्लाइंग टारगेट्स को कुछ ही सेकंड में मार गिरा सके.
LMM की खासियत इसका लाइट वेट और मल्टी-प्लेटफॉर्म डिज़ाइन है - यानी इसे हेलिकॉप्टर, नाव, ग्राउंड लॉन्चर या यहां तक कि वाहन-आधारित प्लेटफॉर्म से भी दागा जा सकता है.
अब जरा एक नजर Martlet मिसाइल की इन खूबियों पर भी डाल लेते हैं-
- वजन: लगभग 13 किलोग्राम
- लंबाई: करीब 1.3 मीटर
- रेंज: लगभग 6 से 8 किलोमीटर
- रफ्तार: Mach 1.5 यानी आवाज़ से डेढ़ गुना तेज
- वारहेड: 3 किलो का मल्टी-इफेक्ट वारहेड - ब्लास्ट, फ्रैगमेंटेशन और पियर्सिंग तीनों असर
- गाइडेंस सिस्टम: लेज़र बीम राइडिंग - मिसाइल लेज़र बीम की दिशा में खुद निशाने तक जाती है, जिससे सटीकता बढ़ती है.
इस मिसाइल का विकास ब्रिटेन की रक्षा कंपनी Thales ने 2008 के आसपास शुरू किया था. पहली बार इसे रॉयल नेवी के AW159 Wildcat हेलिकॉप्टर से फायर किया गया. इसके बाद 2020 के दशक में यह ब्रिटिश फोर्सेज में आधिकारिक तौर पर शामिल की गई. यूक्रेन युद्ध में इसे रशियन ड्रोन और छोटे टारगेट्स के खिलाफ इस्तेमाल किया गया और अच्छे नतीजे मिले. अब भारत इस मिसाइल का तीसरा बड़ा यूजर बनने जा रहा है.
ये भी पढ़ें- AI, लेजर और हाइपरसोनिक तकनीक: भारत के 5 फ्यूचर हथियार जो बदल देंगे जंग का अंदाज़
एक यूनिट की संभावित कीमतहालांकि मिसाइलों की सटीक संख्या सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन कुल सौदे की रकम को देखते हुए कुछ मोटे अनुमान लगाए जा सकते हैं.
अगर मिसाइलों की संख्या 5,000 हो तो प्रति मिसाइल कीमत लगभग सत्तर हजार पाउंड, यानी करीब नब्बे तीन हजार छह सौ डॉलर या लगभग तीरासी लाख रुपये
अगर संख्या 2,000 हो तो प्रति मिसाइल लगभग एक लाख पचहत्तर हजार पाउंड, यानी दो लाख चौंतीस हजार डॉलर या करीब दो करोड़ आठ लाख रुपये.
अगर सिर्फ 1,000 मिसाइलें खरीदी जा रही हों, तो प्रति मिसाइल कीमत लगभग तीन लाख पचास हजार पाउंड, यानी करीब चार लाख अड़सठ हजार डॉलर या चार करोड़ सत्रह लाख रुपये पड़ सकती है.
इन अनुमानों में लॉन्चर, ट्रेनिंग और सपोर्ट सिस्टम की कीमत भी शामिल मानी गई है.
सीमाएं और ज़मीन से जुड़ा सचLMM कोई भारी टैंक या बड़े युद्धपोत गिराने वाली मिसाइल नहीं है. यह शॉर्ट-रेंज टैक्टिकल सिस्टम है, जिसका रोल मुख्य रूप से ड्रोन, बोट्स, हल्के वाहन और एयरबोर्न टारगेट्स को रोकना है. यह भारत के मौजूदा रक्षा ढांचे में मल्टी-लेयर डिफेंस के एक अहम हिस्से के रूप में फिट बैठेगी.
भारत की “स्मार्ट स्ट्राइक” ताकत अब और बढ़ीभारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपनी मिसाइल और ड्रोन-रक्षा तकनीक को तेज़ी से आगे बढ़ाया है. अब ब्रिटेन से मिली LMM मिसाइलें इस दिशा में एक और ठोस कदम हैं. ससे भारत को न सिर्फ तकनीकी बढ़त मिलेगी, बल्कि भविष्य के किसी भी ड्रोन या लो-फ्लाइंग खतरे के खिलाफ तेज़, सटीक और लचीला जवाब देने की क्षमता भी हासिल होगी.
वीडियो: दुश्मन के अंडरग्राउंड ठिकानों को खत्म करेगी अग्नि-5, बंकर-बस्टर मिसाइल पर भारत की तैयारी