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20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज पर इन विशेषज्ञों ने कायदे की बात बोली है

पैकेज आर्थिक विकास को गति देने वाला है, या यह सिर्फ भव्य लोन मेला है, जानिए इन एक्सपर्ट्स की राय

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वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के निदेशक रथिन रॉय, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के सीनियर लेक्चरर विक्रम गांधी,अर्थशास्त्री और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी, भारत के मुख्य अर्थशास्त्री सिटी ग्रुप के समीरन चक्रवर्ती, एचएसबीसी की प्रमुख भारत की अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी से बात की इंडिया टुडे के राहुल कंवल ने
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डेविड
21 मई 2020 (Updated: 21 मई 2020, 06:46 AM IST) कॉमेंट्स
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 मई को 20 लाख करोड़ के विशेष कोविड-19 पैकेज की घोषणा की थी. अगले पांच दिन तक केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पैकेज का ब्योरा दिया. इस राहत पैकेज का अधिकांश हिस्सा लोन के रूप में है. उद्योग जगत ने यह कहते हुए पैकेज पर आपत्ति जताई है कि यह सप्लाई पर केंद्रित है, जबकि जरूरत इस बात की थी डिमांड को बढ़ाया जाए. लोगों के हाथों में कैश पहुंचाने का इंतजाम किया जाए. क्या यह पैकेज वाकई में आर्थिक विकास को गति देने वाला है, या यह सिर्फ एक भव्य लोन मेला है.  इंडिया टुडे ई-कॉन्क्लेव जम्पस्टार्ट इंडिया सीरीज़ में कई विशेषज्ञों ने इस पर बात की. वित्त मंत्रालय के प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के निदेशक रथिन रॉय, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के सीनियर लेक्चरर विक्रम गांधी,अर्थशास्त्री और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी, सिटी ग्रुप के भारत के मुख्य अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती, एचएसबीसी की भारत की प्रमुख अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी से बात की इंडिया टुडे के राहुल कंवल ने.

माइग्रेंट वर्कर्स को डायरेक्ट कैश ट्रांसफर क्यों नहीं?

वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने कहा पैकेज के दो एलिमेंट हैं.  पहला सप्लाई साइड. इसके लिए कई कदम उठाए गए हैं. प्राइवेटाइजेशन, एग्रिकल्चर को खोलना, लेबर्स लॉ में बदलाव करना, माइनिंग और अन्य सेक्टर को लेकर कई फैसले हैं. दूसरी बात ये है कि डिमांड बढ़ाने के लिए हमने क्या किया? हमने पहले आर्थिक पैकेज में कैश को लेकर बहुत कुछ किया. उनके खातों में कैश ट्रांसफर किया, राशन पहुंचाया. इस पैकेज में हमने मनरेगा का बजट बढ़ाया है. हमें पता है कि लोग गांवों की तरफ लौट रहे हैं तो उन्हें रोजगार चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि हम पिरामिड में निचले स्तर तक कैश पहुंचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं. लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि जब तक व्यावसायिक क्षेत्र, विशेष रूप से MSMEs के पास पैसे नहीं है, तब तक नौकरियों की गंभीर समस्या होगी. हमने सुनिश्चित किया कि इस क्षेत्र को पर्याप्त मात्रा में नकदी मिले. इसलिए तीन लाख करोड़ के लोन की व्यवस्था सरकार ने की है. यह एक मैराथन है और हम समय-समय पर कदम उठाते रहेंगे.

क्या आप सरकार के फैसले से संतुष्ट हैं?

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के निदेशक रथिन रॉय का कहना है कि अपने संसाधनों को जुटाना और अर्थव्यवस्था को फिर से शुरू करने के लिए उन्हें तैनात करना अच्छा विचार है. सरकार ने उधार लेने की सुविधा दी है, लेकिन यह व्यवसायों और व्यक्तियों के लिए है. यही वजह है कि कुछ लोग निराश हैं. लेकिन सरकार ने कभी नहीं कहा कि यह प्रोत्साहन एक राजकोषीय प्रोत्साहन होगा. इसके पहले चरण में बहुत कुछ किया गया था. उन्होंने अब कहा है कि x, y, z होगा, लेकिन हम नहीं जानते कि कब होगा. सुधारों को आगे बढ़ाने का यह अच्छा समय है.

कैश ट्रांसफर पर सरकार का तर्क कितना सही?

अर्थशास्त्री और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद विरमानी ने कहा कि हम पिछले दो महीने से लॉकडाउन में है. 60 प्रतिशत अर्थव्यवस्था बंद है. मेरे लिए यह पूरी डिबेट एक अलग लेवल पर हो रही है. लॉकडाउन में अर्थव्यवस्था को लेकर दो प्रमुख मुद्दे थे. आप उत्पादकों को उत्पादन और बिक्री नहीं करने के लिए मजबूर कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी भी अपने कानूनी दायित्वों जैसे किराया, ब्याज आदि देना है. वो कैसे देंगे. दूसरा है संपत्ति या आजीविका के बिना लोग कैसे सर्रवाइव करें इस पर ध्यान देने की जरूरत है. समस्या यह कानूनी विषमता है. कुछ राज्यों ने यह कहते हुए इसे जोड़ा कि सभी कंपनियों को 100 प्रतिशत कर्मचारियों को 100 प्रतिशत मजदूरी का भुगतान करना होगा. RBI और सरकार मिलकर काम कर रहे हैं. सरकार कर्ज के लिए गारंटी प्रदान करने को लेकर खुश है.

ग्लोबल पैकेज से किस तरह तुलना होनी चाहिए? 

हार्वड बिजनेस स्कूल के सीनियर लेक्चरर विक्रम गांधी का कहना है कि पैकेज में रिफॉर्म को लेकर कुछ ऐलान सही हैं. MSME के लिए उठाया गया कदम अच्छा है. अगर लिक्विडिटी एक मुद्दा है तो सरकार लोगों को समय पर भुगतान क्यों नहीं करती है? MSMEs का लगभग 5.5 लाख करोड़ रुपये का भुगतान समय पर नहीं हुआ है. गैर-सरकारी क्षेत्र को समय पर भुगतान नहीं मिलता है. बड़े उपायों की घोषणा करना बहुत अच्छा है, लेकिन उन्हें समय पर लागू करने की आवश्यकता है. इस बारे में संजीव सान्याल का कहना है कि राज्य स्तर पर बहुत सारी समस्याएं होती हैं. सभी चीजों का उद्देश्य अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह को बनाए रखना है. एक ही समय में एक बार में ही अपने सभी गोला बारूद का उपयोग करना, यह एक अच्छा विचार नहीं है. डायरेक्ट बैंक ट्रांसफ़र से एकमुश्त मदद मिलेगी, लेकिन इससे अर्थव्यवस्था नहीं चलेगी.

प्रवासी संकट पर दो राय नहीं

संजीव सान्याल ने कहा कि प्रवासी संकट को लेकर कोई दो राय नहीं है. भारतीयों को नुकसान नहीं उठाना चाहिए. हम चीजों को स्थानांतरित कर रहे हैं, लेकिन कुछ लोग दरार के माध्यम से गिरते हैं. यहां तक कि अगर हम उनके लिए बड़ी राशि ट्रांसफर करते हैं, तो यह सड़कों पर चलने वालों की मदद नहीं करेगा. कई कारणों से, इन लोगों के पास जन धन खाते नहीं हैं, उन्हें सरकार से राशन नहीं मिलता है. हमें गरीबों तक पहुंचने के लिए दूसरे रास्ते तलाशने होंगे. उदाहरण के लिए, हमें उनके घर जाने के तरीके बनाने की आवश्यकता है. यह विचार कि टॉप-डाउन ट्रांसफर से सबकुछ हल हो जाएगा, सच नहीं है. हमने उनके खातों में कैश ट्रांसफर किया है. हम उनके गांवों में मनरेगा रोजगार सृजित कर रहे हैं और MSMEs को कर्ज देकर उन्हें रोजगार में वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं. अरविंद विरमानी ने कहा, मैंने लंबे समय से मोबाइल आधारित प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण प्रणाली की सिफारिश की है. यह सीधे लोगों के हाथ में पैसा डालता है. इसे आधार से लिंक करें. इस तरह की पहल को केंद्र और राज्यों के बीच काफी सहयोग की आवश्यकता है.

भारत के आर्थिक पैकेज का सबसे बड़ा लाभ क्या है?

समीरन चक्रवर्ती का कहना है कि हमारे अधिकांश ग्राहक कहते हैं कि इन सुधार उपायों का एक बड़ा हिस्सा नया नहीं है. हम उनके बारे में जानते हैं, लेकिन जब सरकार इन सुधारों को एक बार में इस तरह दोहराती है तो यह उस दिशा को इंगित करता है जिसमें सरकार अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाना चाहती है. खासकर कृषि में सुधार. अगर हम आने वाले महीनों में इन विचारों को लागू करते हैं, तो चीजें बड़े पैमाने पर बदल जाएंगी. प्रांजल भंडारी का कहना है कि इस पैकेज का मतलब संतुलन बनाना था, क्योंकि इस समय बहुत सारे परस्पर विरोधी उद्देश्य हैं. उन देशों में जहां सप्लाई साइड स्मूथ है, आपको बस एक वित्तीय प्रोत्साहन देना है और मांग बढ़ जाएगी. भारत अलग है. यह एक बेहतर विचार होता अगर वे इन सभी सुधारों के लिए एक समयसीमा तय करते.

सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं

रथिन रॉय का कहना है कि सुधारों को लेकर इस सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड वास्तव में अच्छा नहीं है. यह एक अर्थशास्त्री का पैकेज नहीं है. हमने ये सभी वादे सुने हैं और देखा है कि कुछ भी नहीं हुआ है. मुझे सरकार से सहानुभूति है, जानते हैं कि उनकी बैंडविड्थ क्या है. मेरी एकमात्र पहेली ये है कि अगर ये ऐसी चीजें थीं जिनकी आप घोषणा करना चाहते थे, तो दो महीने इंतजार क्यों किया. जहां तक प्रवासी मुद्दे की बात है, तो उसे राहत देना सरकार के लिए मुश्किल नहीं होना चाहिए. इस मुद्दे को राज्य सरकार द्वारा हल किया जा सकता है, लेकिन उन्हें राष्ट्रीय राहत कोष से लक्षित राहत नहीं मिल रही है.
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