अगर औरतों की जगह मर्दों को पीरियड्स होते तो दुनिया कैसी होती?
सच्चाई यह है कि, अगर पुरुषों को पीरियड्स आते, तो उनकी सत्ता को बरकरार रखने वाले तर्क चलते ही रहते. हां, अगर हम उन्हें इसकी अनुमति दें तो.

"अगर औरतों की जगह मर्दों को पीरियड्स होते तो दुनिया कैसी होती?"
इस सवाल के साथ, एक छोटा सा निबंध आज से 47 साल पहले छपा. पत्रिका का नाम था, “Ms. Magazine”. तीख़े तंज़ से भरा ये लेख ग्लोरिया स्टाइनम (Gloria Steinem) ने लिखा था. जिसमें इस बात की पड़ताल थी कि पीरियड्स को लेकर समाज महिलाओं के साथ कितना पक्षपाती है और कितना भेदभाव वाला नजरिया रखता है. हम यहां इस निबंध का हिंदी भावानुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं-
“भारत में रहकर मुझे एक बात समझ आई. गोरों की अल्पसंख्यक आबादी ने सदियों तक हमें धोखे में रखा. धोखा ये कि सफेद चमड़ी लोगों को श्रेष्ठ बनाती है. जबकि असल में होता ये है कि गोरे लोग अल्ट्रावायलेट किरणों और झुर्रियों से ज़्यादा परेशान होते हैं.
सिग्मंड फ्रायड को पढ़ने के बाद मैं 'लिंग-ईर्ष्या' के बारे में डाउट्स से भर गई. कायदे से ‘गर्भ-ईर्ष्या’ तब भी एक तार्किक बात है. क्योंकि सिर्फ आप ही बच्चे को जन्म दे सकती हैं. वैसे भी पीनस जैसा बाहरी और असुरक्षित अंग पुरुषों को वास्तव में बहुत ख़तरे में डाल देता है.
लेकिन हाल ही में जब एक महिला सार्वजनिक मंच पर तगड़ी बहस कर रही थीं, तभी उन्हें अचानक उन्हें पीरियड्स आ गए. उनकी ड्रेस पर लाल दाग फैल गया था. लेकिन, जब उस घटना के बारे में कानाफूसी होने लगी, तब उन्होंने उस हॉल में बैठे सारे पुरुषों से कहा,
“तुम्हें तो अपने मंच पर एक ऐसी महिला के होने पर गर्व होना चाहिए जिसे पीरियड्स आ रहे हैं. ये शायद पिछले कई सालों में मर्दों के इस समूह के साथ हुई कोई पहली असली बात है!”
माहौल शांत हो गया. तंज के साथ उन्होंने एक नकारात्मक बात को सकारात्मक बात में बदल दिया था. उनकी कहानी को भारत के अनुभव और फ्रायड की बात के साथ मिलाकर देखने में, मुझे आखिरकार सकारात्मक सोच की ताकत समझ आई. जो कुछ भी किसी 'ताक़तवर’ समूह के पास होगा, वो अपनी शक्ति साबित करने के लिए उसका इस्तेमाल करेगा ही. और जो कुछ भी किसी 'कमज़ोर' समूह के पास होगा, उनकी बुरी हालत को सही ठहराने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. जैसे, ब्लैक पुरुषों को कम वेतन और ज्यादा परिश्रम वाले काम दिए गए, क्योंकि कहा गया कि वे गोरे पुरुषों से 'मज़बूत' हैं. जबकि सभी महिलाओं को कम वेतन वाले कामों पर रखा गया क्योंकि कहा गया कि वे 'कमज़ोर' हैं.
एक बार एक बच्चे से पूछा गया कि क्या वह अपनी मां की तरह वकील बनना चाहता है? तो उसने जवाब दिया, “ओह नहीं, वह महिलाओं का काम है.” तो बात ये है कि दमन का तर्क से कोई लेना-देना नहीं होता.
तो क्या होता अगर अचानक, जादुई रूप से, पुरुषों को पीरियड्स होते, महिलाओं को नहीं?
साफ-साफ कहें तो उसके बाद पीरियड्स होना एक जलानेवाली, घमंड करने लायक, मर्दानगी की बात हो जाती.
पुरुष इस बात का घमंड करते कि उनके पीरियड्स कितने लंबे और कितने ज़्यादा हैं.
नौजवान लड़के इसे मर्दानगी की शुरुआत मानते. और एक-दूजे से ईर्ष्या करते. पीरियड के दिन तोहफे दिए जाते, धार्मिक समारोह होते, फैमिली डिनर्स होते और उस दिन की याद में स्टैग पार्टियां होतीं.
बड़ी हस्तियों को भी पीरियड्स होते, जिस कारण काम का नुकसान होता. उसे रोकने के लिए, अमेरिकी संसद एक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिस्मेनोरिया को फंड करती. डॉक्टर दिल के दौरे के बारे में कम शोध करते, क्योंकि पुरुष उससे हार्मोनली सुरक्षित होते हैं. पर ये जरूर होता कि दुनिया भर की सारी रिसर्च क्रैम्प्स के बारे की जातीं.

सैनिटरी पैड्स मुफ्त हो जाते, और सरकार उसका पैसा भरती. बेशक, कुछ पुरुष फिर भी अपनी इज्ज़त के लिए ऐसे महंगे कमर्शियल ब्रांड्स वाले सैनिटरी पैड्स खरीदते, जैसे Paul Newman Tampons, Muhammad Ali’s Rope-a-Dope Pads, John Wayne Maxi Pads, और Joe Namath Jock Shields — “For Those Light Bachelor Days.”
सर्वे करने वाले, आंकड़ों के आधार पर दिखाते कि कैसे पीरियड्स के दौरान पुरुष खेलों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं और ज्यादा ओलंपिक मेडल जीतते हैं.
सेना के जनरल, दक्षिणपंथी राजनेता और धार्मिक कट्टरपंथी कहते कि पीरियड्स होना इस बात का सबूत है कि केवल पुरुष ही ईश्वर और देश के लिए युद्ध में सेवा कर सकते हैं. वे कहते ("खून लेना है तो खून देना पड़ेगा."), केवल पुरुष ही बड़े राजनीतिक पद संभाल सकते हैं. वे पूछते, “क्या महिलाएं मंगल ग्रह से कंट्रोल होने वाले पीरियड्स के बिना सही मायने में उतनी ही जोशीली हो सकती हैं?”. वे कहते कि सिर्फ पुरुष ही पुजारी, मंत्री, ईश्वर या रब्बी बन सकते हैं. ईश्वर एक पुरुष हैं, क्योंकि उसने हमारे पापों के लिए यह खून दिया है. वे मानते कि मासिक शुद्धिकरण के बिना महिलाएं अस्वच्छ हैं."
उदारवादी पुरुष और कट्टरपंथी इस बात पर जोर देते कि महिलाएं बराबर हैं, बस अलग हैं. और कोई भी महिला, पुरुषों जैसा दर्जा हासिल कर सकती है, बस वो “पीरियड्स सुप्रीमेसी’ की बात मान ले. ("बाकी सब बस एक मुद्दा है") या हर महीने खुद को एक बड़ा घाव देने को तैयार हो, क्योंकि लिबरल कहेंगे कि "तुम्हें क्रांति के लिए खून देना होगा”.
गली-मोहल्ले के लोग नए-नए स्लैंग्स बनाएंगे जैसे "वो तीन-पैड वाला आदमी है" और नुक्कड़ पर एक-दूसरे को हाई-फाइव देते हुए कहेंगे, "यार, तू तो बढ़िया लग रहा है!" “हां यार, मेरा पीरियड चल रहा है!”
टीवी शो इस विषय पर खुलकर चर्चाएं करते. Happy Days: Richie और Potsie, Fonzie को मनाने की कोशिश करते कि वो अभी भी "The Fonz" है, भले ही उसने लगातार दो पीरियड मिस कर दिए हों. Hill Street Blues की हेडलाइन होगी कि पूरे इलाके को एक ही साइकल में पीरियड्स आते हैं. बाकी अखबार भी ऐसे ही खबरें छापेंगे. जैसे- गर्मियों के दिनों में शार्क्स में आतंक हैं, वे पीरियड्स वाले पुरुषों को खतरा बता रही हैं. या फिर, जज ने बलात्कार के अपराधियों को माफ करते समय अपने 'मंथलीज़' का हवाला दिया. और फिल्में भी इसी तरह की बनती, जैसे- Newman and Redford in Blood Brothers!
पुरुष महिलाओं को समझाते कि 'महीने के उन दिनों में' सेक्स ज़्यादा सुख देता है. लेस्बियन से कहा जाता कि वे खून और जीवन से डरती हैं, जबकि उन्हें बस एक अच्छा पीरियड मैन चाहिए.
मेडिकल कॉलेज महिलाओं की एंट्री लिमिट कर देते कि वे तो खून देखकर ही बेहोश हो सकती हैं.
बेशक, बुद्धिजीवी सबसे नैतिक और तार्किक तर्क पेश करेंगे. चंद्रमा और ग्रहों के चक्रों को मापने के प्रकृति के इस उपहार के बिना, एक महिला उस किसी भी विषय में महारत कैसे हासिल कर सकती है जिसमें वक्त, जगह, गणित या किसी भी चीज़ को मापने की स्किल की ज़रूरत होती है? दर्शन और धर्म में, औरतें ब्रह्मांड की लय से कट जाने के इस नुकसान की भरपाई कैसे करेंगी? या फिर वो हर महीने होने वाली सिम्बोलिक मृत्यु या पुन: जन्म के अभाव को कैसे पाटेंगी?
मेनोपॉज को एक इवेंट के रूप में सेलिब्रेट किया जाएगा. ये इस बात का प्रतीक होगा कि पुरुषों ने अपने पीरियड्स साइकल से आने वाली के पर्याप्त बुद्धिमत्ता हासिल कर ली है. और अब उन्हें इससे ज़्यादा की जरूरत नहीं है.
हर क्षेत्र के उदारवादी पुरुष दयालु बनने की कोशिश करेंगे. उनका कहना होगा कि क्योंकि "इन लोगों" के पास अब ज़िंदगी को सेलिब्रेट करने का कोई कारण नहीं है, इसलिए यही इनकी सजा है.
और महिलाओं को रिएक्ट करने के लिए कैसे ट्रेन किया जाएगा? इस बात की कल्पना की जा सकती है कि दक्षिणपंथी महिलाएं मजबूती से और मुस्कुराते हुए एक प्रकार की तृप्त आत्म-पीड़ा के साथ इन सभी तर्कों से सहमत हो जाएं.
फिलीस स्काल्फी कहेंगी, ERA गृहिणियों को हर महीने खुद को घायल करने के लिए मजबूर कर देगा. वहीं मार्बल मोर्गन कहेंगे "तुम्हारे पति का खून यीशु के खून जितना पवित्र है और साथ में बहुत सेक्सी भी". सुधारक और 'क्वीन बीज़' अपने जीवन को अपने आसपास के पुरुषों के पीरियड साइकल के अनुसार ढाल लेंगी.
नारीवादी बार-बार समझाएंगे कि पुरुषों को भी आक्रामकता के गलत विचार से मुक्त होना चाहिए, जैसे कि महिलाओं को 'मासिक-ईर्ष्या' के बंधनों से निकलना चाहिए. कट्टर नारीवादी यह जोड़ेंगे कि जिन लोगों को पीरियड्स नहीं होते, उनका उत्पीड़न ही बाकी लोगों के उत्पीड़न का पैटर्न है. "वैम्पायर हमारे पहले स्वतंत्रता सेनानी थे!"
वहीं सांस्कृतिक नारीवादी कला और साहित्य में बिना खून वाली महिला की छवि को महानता मिलने लगतीं. समाजवादी नारीवादी इस बात पर जोर देतीं कि एक बार पूंजीवाद और साम्राज्यवाद हट जाए तो महिलाओं को भी पीरियड्स होंगे. वे समझातीं कि रूस में अगर महिलाओं को इस वक्त पीरियड्स नहीं हो रहे हैं, तो सिर्फ इसलिए कि सच्चा समाजवाद पूंजीवादी घेरे के भीतर मौजूद नहीं रह सकता.
संक्षेप में कहें तो, हम यह जान पाएंगे, जैसा कि हमें पहले से ही अंदाजा था, कि तर्क हमेशा तर्क देने वाले की नज़र में होता है. उदाहरण के लिए, सिद्धांतकारों और तर्कशास्त्रियों के लिए एक बात है, अगर माना जाता है कि पीरियड साइकल की शुरुआत में, जब फीमेल हार्मोन सबसे कम होते हैं, उस वक्त महिलाएं कम तर्कशील और अधिक भावुक होती हैं, तो फिर ये क्यों न कहा जाए कि उन कुछ दिनों में महिलाएं ठीक वैसे ही व्यवहार करती हैं जैसे पुरुष पूरे महीने करते हैं? आगे की बात मैं आपकी कल्पना पर छोड़ती हूं.
सच्चाई यह है कि, अगर पुरुषों को पीरियड्स आते, तो उनकी सत्ता को बरकरार रखने वाले तर्क चलते ही रहते. हां, अगर हम उन्हें इसकी अनुमति दें तो.
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