कैसे चुने जाते हैं राज्यसभा सांसद, चुनाव में विधायक कागज पर क्या लिखते हैं?
हाल में राज्यसभा चुनाव में AAP और BJP को बड़ी जीत मिली है
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बाएं से दाएं. राज्यसभा की वोटिंग के दौरान बीजेपी के एक विधायक और राज्यसभा में जारी कार्यवाही. (फोटो: इंडिया टुडे)
इन 13 सीटों के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने पंजाब की सभी पांच, बीजेपी ने असम की दोनों, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा और नगालैंड की एक-एक, लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने केरल की दो और कांग्रेस ने भी केरल की एक सीट पर जीत हासिल की. कांग्रेस के लिए सबसे चौकाने वाला रिजल्ट असम में रहा, जहां पार्टी एक भी सीट जीतने में सफल नहीं हो पाई.

देश की संसद में दो सदन हैं. (फ़ोटो-आजतक)
राज्यसभा चुनावों के बीच एक बार फिर से सवाल उठ रहा है कि आखिर संसद के ऊपरी सदन के लिए किस तरह से वोटिंग होती है? क्या होती है राज्यसभा? देश में हुए पहले लोकसभा चुनाव के बाद संसद में एक और सदन की जरूरत महसूस की गई. ऐसे में 23 अगस्त, 1954 को राज्यसभा के गठन का ऐलान किया गया. राज्यसभा एक स्थाई सदन है. ये कभी भंग नहीं होती है. इसके सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है. राज्यसभा में अधिकतम सीटों की संख्या 250 होगी. ये संविधान में तय किया गया है. 12 सदस्य राष्ट्रपति नॉमिनेट करते हैं. ये 12 सदस्य खेल, कला, संगीत जैसे क्षेत्रों से होते हैं. बाकी के 238 राज्यसभा सांसद राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से आते हैं. आबादी के हिसाब से मिली राज्य सभा सीटें संविधान की अनुसूची चार के मुताबिक, किस राज्य में राज्यसभा की कितनी सीटें होंगी ये उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की आबादी के आधार पर तय होगा. उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश की जनसंख्या सबसे ज्यादा है. ऐसे में उत्तर प्रदेश के लिए 31 सीटें निर्धारित की गई हैं. इसके बाद महाराष्ट्र में 19 सीटें हैं. इसी तरह से पश्चिम बंगाल और बिहार में 16-16 सीटें हैं. वहीं गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम जैसे राज्यों में केवल एक-एक राज्यसभा सीट है.

राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष तरीके से होता है.
इस प्रकार राज्यसभा के सदस्यों की कुल संख्या 233 ही हो सकी. अंडमान निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली जैसे केंद्रशासित प्रदेशों से राज्यसभा में प्रतिनिधि नहीं है. यानी वर्तमान में राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या 245 है. हर दो साल पर इसके एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो जाता है और फिर उन सीटों पर चुनाव होता है. कैसे होता है चुनाव? राज्यसभा चुनाव में विधायक यानी एमएलए हिस्सा लेते हैं. विधान परिषद सदस्य यानी एमएलसी राज्यसभा चुनाव में शामिल नहीं होते हैं. राज्य सभा चुनाव की वोटिंग का फॉर्मूला है-
(विधायकों की कुल संख्या/ खाली सीटें+ 1)+ 1
यानी किसी राज्य की राज्यसभा की खाली सीटों में एक जोड़कर उससे कुल विधानसभा सीटों को विभाजित किया जाता है. इससे जो संख्या आती है फिर उसमें 1 जोड़ दिया जाता है. जैसे कि अभी केरल में तीन राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव हुआ. केरल विधानसभा में कुल 140 सीटें हैं. अब समझिए-
- राज्यसभा सीटों की संख्या है 3. इसमें एक जोड़ा गया तो हो गया 4.
- अब इस 4 की संख्या से 140 को भाग दिया गया. जवाब मिला 35.
- अब इस 35 की संख्या में फिर से 1 जोड़ा गया. जवाब मिला 36.
यानी इस बार केरल से राज्यसभा चुनाव जीतने के लिए किसी प्रत्याशी को 36 विधायकों के वोट की जरूरत थी. पहली पसंद का खेल अहम राज्यसभा चुनाव की एक सबसे अहम बात ये है कि विधायक सभी सीटों के लिए वोट नहीं करते हैं. अगर ऐसा होगा तो केवल सत्ताधारी दलों के उम्मीदवार ही जीतेंगे. प्रत्येक विधायक का वोट एक बार ही गिना जाता है. इसलिए वो हर सीट के लिए वोट नहीं कर सकते हैं. ऐसे में विधायकों को चुनाव के दौरान प्राथमिकता के आधार पर वोट देना होता है. उन्हें कागज पर लिखकर बताना होता है कि उनकी पहली पसंद कौन है और दूसरी कौन. पहली पसंद के वोट जिसे ज्यादा मिलेंगे, वही जीता हुआ माना जाएगा.
उदाहरण के लिए केरल विधानसभा में लेफ्ट डेमोक्रेटिक गठबंधन के पास 99 सीट हैं. दो सीटें जीतने के लिए गठबंधन को 72 वोटों की जरूरत थी. गठबंधन के बाकी के 27 विधायक पहली पसंद के तौर पर किसी तीसरे उम्मीदवार को नहीं चुन पाए. ऐसे में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने तीसरे उम्मीदवार को चुना. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के पास केरल विधानसभा में 40 विधायक है.
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