जमीन में फावड़ा चलाने से पहले ये जानना जरूरी है कि सोना कहां मिलता है, इसे कैसे निकालते हैं
खुदाई से लेकर आपके पास सोना पहुंचने तक का पूरा सफर.
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सोनभद्र वाली एक टन चट्टान से निकलेगा मात्र 3 ग्राम सोना. (सोर्स - रॉयटर्स)
यूपी में सोनभद्र की पहाड़ियों में सोने का भंडार! 22 फरवरी, 2020 को ये खबर बाहर आई कि सोनभद्र में भारी मात्रा में सोना होने का पता चला है. पहले ये मात्रा 3350 टन होने की खबर सामने आई. अगर हम इंडिया के करंट गोल्ड रिज़र्व की बात करें, तो ये 626 टन है. इस हिसाब से ये अमाउंट हमारे करंट गोल्ड रिज़र्व का पांच गुना थी. बाद में पता चला ये फिगर गलत है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया यानी GSI ने स्पष्ट किया कि ऐसा कुछ भी नहीं है. उस जगह से महज़ 160 किलोग्राम सोना निकाला जा सकता है. और ये कोई खोज नहीं है. ये हमें 1998 से 2000 के बीच चले एक्सप्लोरेशन में ही पता चल गया था.
ये GSI की तरफ से जारी की गई प्रेस रिलीज़ है. गौर कीजिए Ore को हाइलाइट किया गया है. Ore मतलब अयस्क. (सोर्स - GSI)
इस आर्टिकल में हम समझेंगे कि सोने का पता कैसे लगाते हैं और पता लगने के बाद वहां से सोना कैसे निकाला जाता है?
जियोलॉजी 101
ऐसा नहीं होता कि पहाड़ खोदते-खोदते सीधे सोने की चट्टान निकल आए. सबसे पहले हमें जियोलॉजी यानी भूविज्ञान की बेसिक टर्मिनोलॉजी समझनी होगी. कुछ नहीं, बस चट्टान, अयस्क, खनिज और धातु का अंतर समझना है.खनिज (Mineral) - एक तय केमिकल बनावट वाली अजैवी चीज़ को खनिज (Mineral) कहते हैं. लोहा, सोना, तांबा, कोयला, नमक ये सब खनिज हैं.हर धातु एक खनिज होती है. लेकिन हर खनिज धातु नहीं होता.
लेकिन हमारे काम के ज़्यादातर खनिज हमें साबुत नहीं मिलते हैं. प्राकृतिक रूप से कई खनिज मिलकर एक चट्टान (Rock) के रूप में मौजूद होते हैं.
इस दुनिया में ढेर सारे खनिज हैं. हमारे काम के कुछ ही हैं. इसलिए हमारे काम के खनिज वाली चट्टानों के लिए अलग टर्म है. जिन चट्टानों से हमारे काम के खनिज निकाले जा सकते हैं, उन्हें अयस्क (Ore) कहते हैं.
धातु (Metal) क्या होती है? धातु मतलब कुछ स्पेशल टाइप के खनिज. आमतौर पर कठोर, चमकीले और जिनसे बिजली और आग बह सके. जैसे कि सोना, लोहा और तांबा धातु हैं, जबकि कोयला और नमक नहीं हैं.
तो सबकुछ एक लाइन में बता देते हैं - चट्टान में बहुत सारे खनिज होते हैं. उन चट्टानों को अयस्क कहते हैं, जिनसे हमारे काम के खनिज निकाले जा सकते हैं. कुछ स्पेशल टाइप के खनिज धातु की श्रेणी में आते हैं.

ये सोने का अयस्क है. सोने के बारे में एक और अच्छी बात ये है कि वो अकेला रहता है. बिना कोई बॉन्ड बनाए. इसलिए उसे निकालना आसान होता है. (सोर्स - विकिमीडिया)
सोने जैसी धातु कितनी रेयर है, इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगाइए- सोनभद्र में खोजे गए सोने की अयस्क में सोने की मात्रा 3.03 ग्राम प्रति टन है. मतलब ये 160 किलोग्राम सोना निकालने के लिए लगभग 53,000 टन चट्टान खोदकर निकालनी होगी. खोदा पहाड़ और निकली चुहिया के काफी करीब की बात. वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक, जिन खदानों से 8-10 ग्राम सोना/टन निकलता है, वो अच्छी क्वालिटी की होती हैं.
सोना निकालने के दो अहम पड़ाव होते हैं. पहले सोने की अयस्क पहचाननी होती है, फिर उस अयस्क में से सोना अलग करना होता है. इसकी पूरी प्रक्रिया बहुत समय लेती है.
सोने की खोज
सोना निकालने की शुरुआत होती प्रोस्पेक्टिंग से. प्रोस्पेक्टिंग मतलब संभावित गोल्ड साइट्स को पहचानना और वहां की चट्टानों को टेस्ट करना. टेस्ट से ये पता लगाना होता है कि क्या इस अयस्क से प्रॉफिटेबल मात्रा में सोना निकल पाएगा? मतलब सबकुछ करने के बाद जितना सोना निकलेगा, उसकी कीमत निवेश से ज़्यादा होनी चाहिए.माइनिंग करने वाली संस्थाएं हर इलाके की जियोलॉजी का अंदाज़ा रखती हैं. मतलब कहां की चट्टानों में क्या है, इसका अंदाज़ा उन्हें होता है. अमूमन सोना वहीं पाया जाता है, जहां दूसरी धातुएं, जैसे कि चांदी और तांबा मौजूद होते हैं. संभावित गोल्ड साइट्स से चट्टानों के सैंपल को लैब में टेस्ट किया जाता है.
लैब में छोटे टुकड़ों की स्टडी करके उस अयस्क पिंड की मॉडलिंग की जाती है. इसमें कई बार जटिल कंप्यूटर प्रोग्राम की मदद भी ली जाती है. कंप्यूटराइज़्ड मॉडल से अयस्क पिंड की के आकार और बनावट का अंदाज़ा लगता है. साथ ही इससे ये भी पता चलता है कि उस अयस्क को निकालने का सबसे सही तरीका क्या होगा.
सोने की खुदाई
जहां सोना सतह के थोड़ा ही भीतर मौजूद होता है, वहां छोटे-छोटे गड्ढे करते हैं. उनमें डायनामाइट भरते हैं और धमाकों से उसे खोद मारते हैं. चट्टान के इन छोटे-छोटे टुकड़ों को इक ट्रक में भरकर सोना निकालने के लिए भेज दिया जाता है.
सोने की खदान को परत दर परत खोदा जाता है, इसलिए हमें वो पट्टियां अलग से दिखती हैं. (सोर्स - रॉयटर्स)
जहां सोना सतह के बहुत नीचे होता है, वहां अंडरग्राउंड माइनिंग होती है. इसमें लिफ्ट और शाफ्ट का एक कॉप्लिकेटेड सिस्टम इन्वॉल्व होता है. गहरे-गहरे वर्टिकल कॉलम खोदे जाते हैं. उन कॉलम में हॉरिज़ॉन्टल गुफाएं बनाई जाती हैं. फिर उन गुफाओं में अंदर जाकर वहां से धमाके कर चट्टान के टुकड़े इकट्ठे होते हैं.
जैसे भी हो, इन चट्टानों के टुकड़ों को ट्रक में भरकर इन्हें एक मिल भेज दिया जाता है. मिल में इन चट्टान के टुकड़ों से सोना निकालने का काम शुरू होता है.
साफ-सफाई
मिल में इन टुकड़ों का चूरा बना लिया जाता है. फिर चूरे में पानी मिलाकर स्लरी तैयार होती है. इस स्लरी से सोना निकालने की सबसे पॉप्युलर मैथड है लीचिंग. स्लरी में सायनाइड और ऑक्सीजन मिलाकर सोने को अलग कर लिया जाता है. यही है लीचिंग.

लीचिंग में सायनाइड का इस्तेमाल होने के कारण इस प्रोसेस से ज़हरीला वेस्ट भी निकलता है. (सोर्स - विकिमीडिया)
इसके बाद कई और स्टेज के प्यूरिफिकेशन से गुज़रने के बाद सोना पिघलाया जाता है और इसके ब्लॉक तैयार कर लिए जाते हैं. फिर ये ब्लॉक आगे और रिफाइनिंग के लिए भेजे जाते हैं. उसके बाद जाकर सोना बाज़ार में पहुंचता है.
दुनियाभर में मौजूद गोल्ड डिपॉज़िट में से केवल 10% ही ऐसे हैं, जिनमें निकालने लायक मात्रा में सोना है. दुनिया का ज़्यादातर सोना समुद्र की तलहटी पर है. लेकिन फिलहाल हमारे पास वो सोना निकालने का कोई सस्ता और सुगम तरीका नहीं है.
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