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भारत का सबसे बड़ा समुद्री पुल कैसे बना?

12 जनवरी 2024 को पीएम मोदी ने अटल सेतु का उद्घाटन किया. जानकार कह रहे हैं कि इस पुल से मुंबई वासियों की जिंदगी आसान हो जाएगी. ये पुल मुंबई के सेवरी से रायगढ़ जिले के चिरले के बीच की दूरी 15-20 मिनट तक ला देगा. उद्घाटन के बाद ये देश का सबसे लम्बा पुल बन चुका है.

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atal setu mumbai trans harbour link
आसान भाषा में - अटल सेतु
12 जनवरी 2024 (Updated: 30 जनवरी 2024, 07:43 PM IST) कॉमेंट्स
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22 अक्टूबर 1963, देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू हिमाचल प्रदेश में थे. ये मौका था भाखड़ा-नांगल डैम के उद्घाटन का. पंडित नेहरू ने इस मौके पर कहा कि ये बांध ही आधुनिक भारत के मंदिर हैं. पर आज 61 साल बाद हम इसकी चर्चा क्यों कर रहे हैं.
क्योंकि इस बांध के उद्घाटन के समय ही मुंबई में एक पुल का निर्माण शुरू हुआ था. और आज के दिन माने 12 जनवरी 2024 को ये पुल बनकर तैयार हो चुका है. इस पुल का नाम मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक है लेकिन इसे पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की याद में अटल सेतु बुलाया जा रहा है.      
तो आसान भाषा में आज समझेंगे 
-अटल सेतु क्या है ?
-इसे बनाने के पीछे क्या मकसद है?
- इसे बनाने में 60 साल क्यों लग गए ?
और इससे पर्यावरण को क्या नुकसान हो सकता है ?

12 जनवरी 2024 को पीएम मोदी ने अटल सेतु का उद्घाटन किया. जानकार कह रहे हैं कि इस पुल से मुंबई वासियों की जिंदगी आसान हो जाएगी. ये पुल मुंबई के सेवरी से रायगढ़ जिले के चिरले के बीच की दूरी 15-20 मिनट तक ला देगा. उद्घाटन के बाद ये देश का सबसे लम्बा पुल बन चुका है. 

कितनी है इसकी लंबाई?  
पुल 22 किलोमीटर लंबा है. पुल का 16.5 किलोमीटर का हिस्सा समुद्र के ऊपर है जबकि 5.5 किलोमीटर जमीन के ऊपर है. पर मुंबई में समुद्र पर बना ये इकलौता पुल नहीं है. इससे पहले भी बांद्रा-वर्ली सी लिंक मौजूद है. फिर इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी?
मुंबई की आबादी 2 करोड़ से ज्यादा है. और हर साल इस संख्या में कुछ न कुछ इजाफा हो ही जाता है. अब आबादी ज्यादा है तो गाड़ियों की संख्या भी ज्यादा होगी. नतीजा मुंबई का ट्रैफिक हो जाता है आउट ऑफ कंट्रोल. इस वजह से यहाँ सी ब्रिज की जरूरत महसूस हुई.

ये तो हुई जरूरत की बात, अब समझते हैं कि इस पुल को कैसे बनाया गया और बनने में कितना टाइम लगा.कितने पैसे खर्च हुए. आदि, इत्यादि  

बात शुरू होती है 60 के दशक से. बंबई से लगी खाड़ी यानी बे और मेनलैड के बीच एक पुल बनाने की सोची गई.  सबसे पहले एक अमरीकन कांसल्टेंसी फर्म WILBUR SMITH ASSOCIATES ने 1963 में इसका आईडिया सुझाया. पर किन्हीं कारणों से इसपर आगे काम नहीं हो पाया. पुल का काम लेट हुआ. फिर आया 90 का दशक और सरकार की नज़र फिरसे इसपर पड़ी. इसके लिए टेंडर्स निकाले गए साल 2006 में. 2008 में अनिल अंबानी की Reliance Infrastructure ने इसकी बोली लगाई और जीत गए. Public private Partnership यानी PPP के तहत Reliance Infrastructure को ये ब्रिज 9 साल 11 महीने में बनाकर तैयार करना था. उस समय इसकी लागत थी 6000 करोड़.

 PPP मॉडल क्या होता है?  
हमारी सरकार के पास एक निश्चित बजट होता है. उसे कई सारे प्रोजेक्ट्स पर काम भी करना होता है. मसलन एयरपोर्ट, रेलवे, हाईवे , पुल, डैम आदि बनवाना. किसी भी देश की तरक्की के लिए इस तरह के भारी-भरकम  इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती ही है. तो सरकार को पैसे की कमी होना भी लाज़मी है. इसलिए सरकार ऐसे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी के जरिए फंड्स जुटाती है. इस तरह देश में निजी क्षेत्र को बढ़ावा मिलता है साथ ही विकास के कामों में तेजी आती है. इसे ही Public private parnership या PPP मॉडल कहा जाता है.    
 

वापस आते हैं अटल सेतु के कान्ट्रैक्ट पर.

2008 में अनिल अंबानी को कांट्रेक्ट तो मिला लेकिन कुछ महीनों बाद अंबानी की कंपनी ने प्रोजेक्ट से हाथ खींच लिए. इसके बाद टेंडर पे टेंडर, बिडिंग पे बिडिंग हुई पर प्रोजेक्ट जैसे वहीं का वहीं रुक गया. फिर इसे बनाने वाली नोडल एजेंसी को बदला गया. अब ज़ेम्म्दारी Mumbai Metropolitan Region Development Authority- MMRDA के पास आई.  
 

आगे बढ़ने से पहले समझते हैं नोडल एजेंसी किसे कहते हैं?
हर राज्य किसी भी प्रोजेक्ट या योजना के लिए किसी एक डिपार्टमेंट को नोडल एजेंसी नियुक्त किया जाता है. माने ये एजेंसी सरकार की तरफ पूरे प्रोजेक्ट का मैनेजमेंट देखती है. आमतौर पर ये सरकार का ही कोई विभाग होता है. कभी-कभी प्राइवेट संस्थाओं को भी नोडल एजेंसी के तौर पर नियुक्त किया जाता है.

वापस आते हैं पुल के किस्से पर
यहां से काम ने थोड़ी रफ्तार पकड़नी शुरू की. MMRDA ने इसके लिए जापान की एजेंसी Japan International Cooperation Agency (JICA) के साथ एक अग्रीमेंट किया. इस अग्रीमेंट के तहत JICA पूरे प्रोजेक्ट की लागत का 80 पर्सेंट फंड करने पर सहमत हुई. इसके अलावा बाकी का खर्च केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर उठाना था. पूरी डील और टेन्डर की प्रक्रिया दिसम्बर 2017 में पूरी हो गई थी और 2018 के शुरुआती दिनों में काम भी शुरू हो गया. प्रोजेक्ट की कुल लागत 21200 करोड़ आई जिसमें 15100 करोड़ JICA की तरफ से मिला हुआ लोन है. बाकी का खर्चा केंद्र और राज्य मिलकर करेंगे.
 

अब समझते हैं कि इस पुल का निर्माण कैसे किया गया ? क्या क्या लगा है इस मेगा स्ट्रक्चर में?
इस ब्रिज पर सुरक्षा के लिए 400 सीसीटीवी कैमरे लगे हैं साथ ही समुद्री जीवों के लिए ए़डवांस लाईटिंग की गई है. इस तरह की लाईटिंग का प्रकाश सिर्फ पुल पर पड़ता है जिससे समुद्री जीवों को आर्टफिशल लाइट से दिक्कत नहीं होती.  इस पुल को बनाने में कंक्रीट का जमकर इस्तेमाल हुआ है. कन्स्ट्रक्शन साइट पर कंक्रीट पहुंचाने के लिए ट्रकों ने जितने चक्कर काटे हैं, उतना अगर सीधे चलें तो धरती से चाँद तक पहुँच जाएंगे. इस पुल में आयरन बार्स लगी हैं जिसे हम आम भाषा में छड़ या सरिया कहते हैं. इन आयरन बार्स का यदि वजन करें तो इसमें 17 एफ़िल टावर बनकर तैयार हो जाएंगे. 
और तो और इस पुल में 85 हजार टन स्टील का इस्तेमाल हुआ है. ये इतना स्टील है जिससे 180 से ज्यादा बोइंग 747 विमान बनाए जा सकते हैं. 

 

पुल का पूरा तिया पाँचा समझ लिया, आसान भाषा में अब समझते हैं कि इस पुल से किन लोगों को फायदा होगा, टोल कितना लगेगा?

MMRDA और JICA के मुताबिक, इस पुल से शहर के सेवरी और चिरले के बीच की दूरी आधी हो जाएगी. अभी सेवरी से चिरले के बीच की दूरी 38 किलोमीटर है. पुल से ये दूरी महज़ 16 किलोमीटर तक सिमट जाएगी. यानी इस रास्ते से ट्रैवल करने पर आपके 60-90 मिनट बचेंगे.

इसके अलावा चिरले से एक सड़क मुंबई पुणे एक्स्प्रेस वे में जुड़ती है. इस पुल पर एलिवेटेड कनेक्टर्स लगाए गए हैं जो अभी तो अंडरकंस्ट्रक्शन हैं. इसके पूरे होने के बाद मुंबई से पुणे, लोनावला,अलीबाग और गोवा जाने वाले लोगों का सफर आसान हो जाएगा.  साथ ही नवी मुंबई में बन रहे एयरपोर्ट से चिरले की दूरी 14 किलोमीटर है. अटल सेतु से एयरपोर्ट जाने वाले लोगों को भी सहूलियत मिलेगी. 
ये तो बात हुई आसानियों की. अब बात करते हैं इस पुल पर लगने वाले टोल टैक्स की.इस पुल पर चलने के लिए आपको 250 रुपये का टोल टैक्स चुकाना होगा. अब तक इस ब्रिज पर किसी पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाली बस की घोषणा नहीं हुई है.

कितनी स्पीड लिमिट है?
मुंबई पुलिस ने बताया कि फोर-व्हीलर, मिनी बस और टू-एक्सेल व्हीकल की मैक्सिमम स्पीड 100 किलोमीटर प्रति घंटा निर्धारित की गई है. ब्रिज की चढ़ाई और उतार पर स्पीड 40 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होगी. मोटरसाइकिल, तिपहिया वाहन, ऑटो और ट्रैक्टर को इस ब्रिज पर आने की अनुमति नहीं है.

पुल का पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
मुंबई एक तटीय शहर है. समुद्र से सीमा मिलती है. यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा मछली पकड़कर अपना जीवन चलाता है. लोगों का कहना है कि ये सी लिंक जहां बनाया गया वहां फिशिंग जोन है. आशंका जताई जा रही है कि अटल सेतु बनने के बाद न सिर्फ बायो डाइवर्सिटी पर खतरा है बल्कि मछली बेचकर जीविका चलाने वाले लोगों पर भी संकट आ सकता है.

 

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