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भारत में अब कैसे हो सकती है राम राज्य की स्थापना

रावण को बार-बार फूंकने की नहीं, बल्कि अपने अंदर के राम को जगाने की जरूरत है.

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11 अक्तूबर 2016 (Updated: 11 अक्तूबर 2016, 03:03 PM IST) कॉमेंट्स
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ये आर्टिकल मूलत: डेलीओ के लिए डॉ. डेविड फ्रॉनली ने इंग्लिश में लिखा है, जिसका हिंदी तर्जुमा हम आपके लिए दी लल्लनटॉप पर लाए हैं. पढ़िए और सोचिए.


भारतीय इतिहास के आदर्श राजाओं में राम का नाम सबसे ऊपर है. वो धर्म के अवतार हैं जो सच्चाई और कर्तव्य को सबसे बड़ा मानते हैं. रामायण सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरे एशिया में सबसे फेमस कहानी और सबसे ज्यादा बार प्रदर्शित किया गया ड्रामा है. राम और सीता का ये महाकाव्य इस पूरे क्षेत्र की स्थानीय कला और संस्कृति में बहुत गहरे तक बस चुका है. पिछले दो हजार सालों में न जाने कितने साम्राज्य आए और चले गए. सभ्यता में व्यापक बदलाव आए, लेकिन रामायण अभी तक उतने ही गहरे बसी हुई है.

रावण पर राम की विजय भारत के विशाल साहित्य का सबसे नाटकीय हिस्सा है, जो दशहरे पर बड़े उत्साह और भक्ति से मनाया जाता है. ये धर्म और अधर्म के बीच का सबसे बड़ा संघर्ष दिखाता है. बुद्ध के जीवन पर लिखने वाले बौद्ध कवि अश्वघोष महर्षि वाल्मीकि की लिखी रामायण को संस्कृत की सबसे महान कविता बताते हैं.

हालांकि, रावण उतना दुष्ट राक्षस नहीं था, जितना उसे दिखाया जाता है. वो ब्राह्मण वंश का एक महान राजा था, शिव का भक्त था और सामवेद का ज्ञाता था. आखिर में वो इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी घमंड की वजह से मारा गया. वो राम की पत्नी सीता को अपनी ताकत के प्रतीक के तौर पर हथियाना चाहता था. ये संकेत देता है कि वो उस समय के सभी राजाओं में बेहद ताकतवर था. लेकिन, आज के रावण उसकी अपेक्षा बहुत बुरे हैं.

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धर्म का एक नया नजरिया

महात्मा गांधी समेत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई नेताओं ने मॉडर्न इंडिया को लेकर अपने नजरिए को 'रामराज्य' का नाम दिया. सेक्युलर नेताओं ने 'रामराज्य' को सिर्फ एक मेटाफर के तौर पर इस्तेमाल किया, लेकिन इसके आध्यात्मिक और यौगिक कनेक्शन को भुलाया नहीं जा सकता. 'रामराज्य' धर्म का देश है, जिसे शांति और प्रेम का राज्य बताया गया है. जहां जवान, बूढ़ों, बड़ों, छोटों और धरती के सभी जानवरों के लिए प्रेम हो. जहां सारी दुनिया एक परिवार हो.

रामराज्य सिर्फ अतीत का ही नहीं, बल्कि हर समय का एक आदर्श है जो हमें प्राचीन भारत की महान परंपराओं की याद दिलाता है. रामायण का संदेश धर्म और कर्मयोग को साधते हुए जीना है. जीवन में चाहे जितनी कठिनाई आए, लेकिन आपको सभी को सम्मान देना है. अगर आप ऐसा करने में सफल रहते हैं, जैसा राम के साथ हुआ तो सारी प्रकृति आपके हक में खड़ी हो जाती है.

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आज हमारे समाज में धर्म के विपरीत चीजों को बढ़ावा दिया जा रहा है. हम अहंकार को छोड़ना नहीं, बल्कि इसका विस्तार करना सीख रहे हैं. हमारे लिए अधिकार सबसे जरूरी हो गए हैं. परिवार, समुदाय, देश और मानवता को लेकर हमारी जिम्मेदारी हमें अपनी स्वतंत्रता पर हमला जैसी दिखाई देती है. हमारा अधिकार पहले अपनी उन लालसाओं को पूरा करना हो गया है, जिनका मूल न तो हम जानते हैं और न कभी उस पर सवाल करते हैं.

सभी को अपना मान लेना कोई कल्चर या त्याग नहीं है, बल्कि खुद को स्थापित करना है. हम अपने प्रति अपनी जिम्मेदारी भूल गए हैं. हमारा समाज अध्यात्म और सेवा की गहराई को खोकर खोखला होता जा रहा है. हम अपना वक्त भौतिक इच्छाओं को पूरा करने में खर्च कर रहे हैं. यही वजह है जिससे सभी के लिए संसाधन सीमित हो जाते हैं.

एक नया उदय

भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और भौतिकवाद जैसे नए रावणों से लड़ने के लिए रामराज्य के नए आदर्शों की जरूरत है. राम को खोजने से पहले हमें सीता को खोजना होगा, जो धरती का सम्मान और प्रकृति की देखभाल कर सके. रावण को हराने के लिए हमें हनुमान का साथ चाहिए यानी जिंदगी का एक मकसद जो खुद को अलग करना नहीं, बल्कि ईश्वर को समर्पित करना हो.

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राम हर शख्स के अंदर राज करते हैं. सवाल ये है कि हम कब अधर्म की वजह से होने वाले झगड़े छोड़कर धरती पर धर्म को स्वीकार करेंगे. इसके लिए काफी प्रयास की जरूरत है, लेकिन यही हमारा सच्चा लक्ष्य है, जिसे हमें कभी नहीं भूलना चाहिए. अगर हम अपने अंदर के राम को जगाते हैं तो हम हर जगह रामराज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं.

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