The Lallantop
Advertisement

असम का वो जंगल, जिसे बचाने के लिए स्टूडेंट, सिंगर और एक्टर सब एक हो गए हैं

16 साल तक गैरकानूनी रूप से देहिंग पटकई में कोयले का खनन होता रहा.

Advertisement
देहिंग पटकई वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाते स्टूडेंट्स. (क्रेडिट- ट्विटर @PankazPapon)
देहिंग पटकई वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाते स्टूडेंट्स. (क्रेडिट- ट्विटर @PankazPapon)
pic
लालिमा
21 मई 2020 (Updated: 21 मई 2020, 11:04 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

असम के कुछ ज़िलों में, खासतौर पर डिब्रूगढ़, तिनसुकिया और सिवसागर में एक बहुत घना जंगल है. नाम है देहिंग पटकई एलिफेंट रिज़र्व. करीब 575 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. देहिंग पटकई वाइल्ड लाइफ सेंचुरी (वन्यजीव अभ्यारण्य) और सलेकी रिज़र्व फॉरेस्ट भी इसका हिस्सा हैं. ये पूरा रिज़र्व रेनफॉरेस्ट है. यानी यहां पर सालाना 250 सेंटीमीटर से 450 सेंटीमीटर तक बारिश होती है. कई सारे हाथी रहते हैं. तरह-तरह के सांप, तितली, पक्षी, बिल्ली, कछुए, छिपकली और कई जीव-जंतुओं का ये घर है. इनकी तरह-तरह की प्रजातियां यहां रहती हैं. पेड़-पौधों की भी कई सारी प्रजातियां यहां मिलेंगी. यानी एक लाइन में कहें, तो बहुत ही खूबसूरत जंगल है.

लोग इसे 'पूर्व का एमेजॉन' भी कहते हैं. वो एमेजॉन जंगल याद है न, जो ब्राज़ील, कोलम्बिया, पेरू और दक्षिणी अमेरिका के कई देशों में फैला हुआ है, वो भी एक रेनफॉरेस्ट है. उसी की तर्ज पर देहिंग पटकई को 'नॉर्थ का एमेजॉन' कहते हैं.

सोशल मीडिया पर मुहिम

अब इस वक्त इस जंगल और यहां रहने वाले जीव-जंतुओं को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर भसड़ मची रखी है. गुवाहाटी यूनिवर्सिटी समेत कई कॉलेज और यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट एक कैंपेन चला रहे हैं. ट्विटर पर सेव देहिंग पटकई (#savedehingpatkai), सेव एमेजॉन ऑफ ईस्ट (#save_amazon_of_east), एलिफेंट रिज़र्व (#Elephant_Reserve) और कोल इंडिया (#Coal_India) जैसे कई हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं. इन स्टूडेंट के अभियान को कुछ पर्यावरणविदों, सिंगर और एक्टर का भी साथ मिलने लगा है.

दरअसल, ये सभी मिलकर देहिंग पटकई के सलेकी हिस्से में होने वाले कोल माइनिंग (कोयला खनन) का विरोध कर रहे हैं. इसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं. चेंज डॉट org पर एक ऑनलाइन पिटिशन भी चल रही है. अब तक 63 हज़ार लोगों ने इस पर साइन भी कर दिया है. लोग कह रहे हैं कि वक्त आ गया है कि देहिंग पटकई के सपोर्ट में खड़ा हुआ जाए, वो खतरे में है. उसे बचाने की जरूरत है. असम के जाने-माने सिंगर अंगराग महंता, यानी पापोन भी सोशल मीडिया पर चले इस कैंपेन के सपोर्ट में हैं. एक्टर आदिल हुसैन भी इससे जुड़ गए हैं.

ये देखिए वो सारे ट्वीट-


कोल माइनिंग को लेकर भसड़ हो रखी है. लेकिन फैक्ट तो ये है कि पिछले 46 बरस से देहिंग पटकई इलाके में कोल माइनिंग हो रही है, फिर अचानक अभी कैसे ये विरोध शुरू हुआ? ये बड़ा सवाल है.

इसका जवाब क्या है?

दरअसल, देहिंग पटकई फॉरेस्ट के कई इलाकों में भारी मात्रा में कोयला निकलता है. इसी के पीछे पूरी भसड़ हो रखी है. 'आज तक' से जुड़े मनोज दत्ता तिनसुकिया के रहने वाले हैं. सलेकी फॉरेस्ट भी इसी ज़िले में पड़ता है. मनोज दत्ता ने बताया कि कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) की एक यूनिट है- नॉर्थ ईस्टर्न कोलफील्ड्स (NECF). ये नॉर्थ-ईस्ट के इलाकों में कोल माइनिंग का काम करती है. 1973 से 2003 तक NECF को सलेकी फॉरेस्ट में माइनिंग की परमिशन मिली थी. 30 साल के लिए लीज़ मिली थी. लेकिन 2003 में जब ये लीज़ खत्म हो गई, तो उसके बाद भी NECF कोयले का खनन करती रही. गैरकानूनी तरीके से.

PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2012 में CIL ने माइनिंग के लिए क्लियरेंस पाने की कोशिश की थी, लेकिन अपील खारिज हो गई थी. 2019 में CIL ने दोबारा क्लियरेंस के लिए अपील डाली. इस बार वो 98.59 हेक्टेयर ज़मीन पर क्लियरेंस चाहता था. सीधी भाषा में कहें, तो कानूनी तौर पर खनन की परमिशन चाहता था. इसमें से कई हेक्टेयर ज़मीन पर पहले से खनन हो रहा था. गैरकानूनी तरीके से.


Dehing Patkai 2
देहिंग पटकई वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का एक सीन. (फोटो- forest.assam.gov.in)

प्रपोज़ल केंद्र के पास गया, तो काम शुरू हुआ. फिर रोल आया नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (NBWL) का. ये बोर्ड केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत काम करता है. 'द हिंदू' की रिपोर्ट के मुताबिक, NBWL ने जुलाई 2019 में एक कमिटी बनाई. इस कमिटी ने प्रपोज़ल पर विचार करना शुरू किया. 'PTI' की रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2019 में CIL को 57.20 हेक्टेयर ज़मीन पर क्लियरेंस मिल गया, लेकिन 28 शर्तों के साथ. इन शर्तों में फॉरेस्ट कन्जर्वेशन एक्ट का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के खिलाफ एक्शन लेना और फाइन लगाना भी शामिल था.

फिर लॉकडाउन के दौरान अप्रैल में NBWL की कमिटी की मीटिंग हुई. इसमें इस बात पर बहस हुई की जो 98.59 हेक्टेयर ज़मीन मांगी गई है, उसमें से 57.20 हेक्टेयर ज़मीन तो पहले से ही इस्तेमाल हो रही है. खनन के लिए. 41.39 हेक्टेयर ज़मीन फ्रेश है. और इसमें कई सारे प्राणी रह रहे हैं. फिर लंबी बहस चली. आखिरी में NBWL ने CIL के 98.59 हेक्टेयर ज़मीन पर खनन करने के प्रस्ताव को सपोर्ट किया. अपनी तरफ से अप्रूवल दे दिया. हालांकि अभी फाइनल अप्रूवल होना बाकी है.

लेकिन जैसे ही NBWL की सहमति की बात सामने आई, विरोध शुरू हो गया. भारी विरोध के बीच अब खबर आई है कि असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने राज्य के पर्यावरण मंत्री परिमल सुकलाबैद्य को देहिंग पटकई वन्यजीव अभ्यारण्य जाने को कहा है, ताकि वो वहां जाकर हालात का जायजा लें. आधिकारिक बयान में सोनोवाल ने कहा कि सरकार पर्यावरण को बचाने और सतत विकास के लिए प्रतिबद्ध है.

असम फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ने फाइन लगाया

असम फॉरेस्ट डिपार्टमेंट भी 16 साल बाद एक्टिव होता दिख रहा है. हाल ही में, जब नए प्रपोज़ल की बात शुरू हुई, तब उसने CIL पर 16 साल तक गैरकानूनी तरीके से माइनिंग करने का आरोप लगाते हुए 43.25 करोड़ का फाइन लगाया है.



वीडियो देखें: सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई के आरे के जंगल में पेड़ कटने पर देर से रोक लगाई, कॉलोनी का पूरा इतिहास जानिए

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement