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वो साइंटिस्ट जिसकी कटी हुई उंगली रोम की तरफ इशारा करती है

अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग भी जिसे साइंस का बाप मानते हैं. आज बड्डे है.

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15 फ़रवरी 2017 (Updated: 14 फ़रवरी 2017, 02:13 AM IST)
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एक पेंटिंग है. एक मशहूर साइंटिस्ट की. नाम है गैलीलियो गैलिलेई. फ़िल्मी स्टाइल में नहीं पूछा जाएगा, नाम तो सुना ही होगा? जाहिर है, सुना ही होगा.


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बर्तोलोमे मुरिलो की पेंटिंग

जेल के अंदर. अंधेरे में बैठे बाहर कुछ झांकते गैलीलियो. किसी शून्य में. 1640 में ये पेंटिंग बनाई थी स्पेनिश पेंटर बार्तोलोमे मुरिलो ने, जो गैलीलियो के स्कूल के दिनों के साथी थे. इस पेंटिंग को 1911 में रीस्टोर किया गया. तब पता चला कि दरअसल गैलीलियो शून्य में नहीं ताक रहे थे. वो जिधर देख रहे हैं वहां कुछ शब्द खुदे हुए हैं. शब्द हैं- E pur si muove. मतलब And yet it moves. जिसका हिंदी में मतलब है 'और अब भी ये घूम रही है.' ये रही वो पेंटिंग- 'और अब भी ये घूम रही है.' ये चंद शब्द गैलीलियो की क्रांतिकारिता के शब्द हैं. उनके जीवन का सार. उनके प्रतिरोध के सूचक. प्रतिरोध धर्म की जड़ मान्यताओं के खिलाफ. मध्ययुगीन कैथोलिक चर्च की उस सोच के खिलाफ जो ये मानता था कि धरती ही पूरे ब्रह्मांड का केंद्र है. गैलीलियो ने कॉपरनिकस की बात को ही आगे बढ़ाते हुए कहा कि नहीं. धरती केंद्र नहीं है. धरती सूरज के चक्कर लगाती है. And yet it moves. और अब भी ये घूम रही है.
ऐसे समय में जब अंधविश्वास चरम पर था. डार्क एज चला करता था तब गैलीलियो चांद तारों की बातें करते थे. उनकी दूरियां नापने की कोशिश करते थे.तब लोगों को ये सब बातें समझाने में गैलीलियो को बहुत पापड़ बेलने पड़ते थे. समय से आगे के इंसान थे. समय से आगे के इंसानों को कम ही समझा गया. वो अलग बात है उनके जाने के बाद उनकी मूर्तियां बनाई जाती हैं.

कॉपरनिकस की लिगेसी को आगे बढ़ाया

कॉपरनिकस उनके आने से 45 साल पहले इस दुनिया से चले गए थे. उन्होंने सबसे पहले कहा था कि धरती सूरज के चक्कर लगाती है. इसे Heliocentric Theory कहा जाता है. लेकिन चर्च के डर से कॉपरनिकस ने इन बातों को कभी लिखा नहीं जबकि गैलीलियो इसे लिख रहे थे और पूरी धमक के साथ अपनी बातें लोगों तक ले जा रहे थे.
कॉपरनिकस
कॉपरनिकस

इस पर जो किताब गैलीलियो ने लिखी थी उसका नाम था 'Dialogue'. धर्म के ठेकेदारों के लिए एक खतरनाक किताब. बाइबल के विरुद्ध. चर्च वालों को ये बात सही नहीं लगी. गैलीलियो पर मुकदमा ठोक दिया गया. अपनी लिखी बातों को गलत बताने के लिए उन्हें रोम बुलाया गया. फरवरी 1633 को वो रोम पहुंचे. गैलीलियो ने कहा वो अपनी कही बातों के साथ खड़े हैं और पूरे दावे के साथ खड़े हैं. उन्हें जेल में डाल दिया गया. बाद में सजा कुछ कम हुई जिसका नतीजा ये रहा कि वो ताउम्र अपने घर में नज़रबंद रहे. Dialogue समेत आगे के उनके हर पब्लिकेशन पर बैन लगा दिया गया.

खोजे जुपिटर के चार उपग्रह

उन्होंने जो टेलीस्कोप बनाया था वो तीन गुना मैग्नीफ़िकेशन वाला था. इसमें सुधार करते करते उन्होंने इसे 30 गुने तक बदल दिया. इसकी मदद से 1610 में उन्होंने जुपिटर के आस-पास चार गोलों को घूमते हुए पाया. बाद में पता चला कि ये जुपिटर के उपग्रह हैं. नाम था लो, कैलिस्टो, यूरोपा और जेनीमेड. बाद में इन्हें गैलीलियो के नाम पर जाना गया. इसके बाद उन्होंने थर्मोस्कोप और कम्पास जैसी चीजें बनाईं.
टेलीस्कोप के साथ गैलीलियो का चित्र
टेलीस्कोप के साथ गैलीलियो का चित्र

आज ही के दिन 1564 में इटली के पीसा में जन्मे गैलीलियो को क्या कहा जाए. मैथमेटिक्स से प्यार करते थे. इतना ज्यादा, कि कहते थे कि अगर प्रकृति की कोई भाषा होगी तो वो गणित ही होगी. फिलॉसफर थे. आविष्कारक थे. इंजीनियर भी कह सकते हैं.
शुरू में गैलीलियो मेडिसिन की पढ़ाई करना चाहते थे. उन्होंने पीसा यूनिवर्सिटी में इसके लिए दाखिला भी लिया लेकिन कभी पढ़ाई पूरी नहीं की. 1585 में यूनिवर्सिटी छोड़ दी. ये बड़े दिमाग वाले अक्सर अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं. सरलीकरण नहीं कर रहा हूं लेकिन ये बात ज्यादातर के मामले में सही है. मेडिकल के बाद उन्होंने मैथ्स पढ़ने की सोची. तार्किक आदमी थे और हर जगह लॉजिक और प्रयोग की बात करते थे.

लैंप से आया पेंडुलम घड़ी बनाने का आइडिया, पर...

अपनी मेडिकल पढ़ाई के दिनों में ही उन्होंने एक दफे देखा कि लैंप वाला एक झूमर दाएं से बाएं हिल रहा है. उन्होंने नोटिस किया कि इसे दाईं तरफ जाने में जितना वक्त लगता है उतना ही बाईं तरफ आने में. घर लौटकर उन्होंने एक बड़ा और एक छोटा पेंडुलम बनाया. उन्होंने इन्हें घुमाया. दाएं से बाएं जाने में दोनों एक ही बराबर समय ले रहे थे. सोचा इस मेथड से तो घड़ी बनाई जा सकती है. उनका दिमाग चलने लगा. ज्योमेट्री में उनकी रूचि पहले से ही थी. अपने पिता से कहा मैं मेडिकल की पढ़ाई छोड़ना चाहता हूं. मैथ्स और नेचुरल फिलॉसफी पढ़ना चाहता हूं. नेचुरल फिलॉसफी मतलब फिजिक्स. पिता शुरू में तैयार नहीं थे, बाद में मान गए. लेकिन अफ़सोस, लाख कोशिशों के बाद भी वो पेंडुलम वाली घड़ी नहीं बना पाए.

अरस्तू की आलोचना बाइबल की आलोचना के बराबर थी 

पीसा यूनिवर्सिटी में ही उन्होंने ग्रीक फिलॉसफर अरस्तू की कई सारी थ्योरी की आलोचना की. अरस्तू ने अपने गुरु प्लेटो की कई थ्योरी को गलत बताया था लेकिन अब तक अरस्तू को गलत बताने वाला कोई ना था. अरस्तू की आलोचना बाइबल की आलोचना के बराबर थी. अरस्तू चर्च की भाषा बोलते थे. उन्होंने भी कहा था कि धरती ही ब्रह्मांड का केंद्र है. अरस्तू का कहा ही आखिरी सच था. गैलीलियो ने अरस्तू को चैलेंज किया और कहा अरस्तू भी इंसान था और उससे गलतियां हो सकती हैं. खुद को सही साबित करने के लिए उन्होंने पीसा की झुकी हुई मीनार पर एक प्रयोग करके दिखाया.
पीसा की झुकी हुई मीनार
पीसा की झुकी हुई मीनार

अरस्तू ने कहा था कि एक साथ छोड़े जाने पर एक भारी चीज हल्की चीज से पहले ज़मीन पर आएगी. गैलीलियो पीसा की झुकी हुई मीनार पर पहुंचे. लोगों ने कहा उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए. उन्होंने एक भारी गोले और एक हल्के गोले को वहां से एक साथ ज़मीन पर छोड़ा और दोनों एक साथ ज़मीन पर आ गए. लोगों को झटका लगा कि अरस्तू गलत कैसे हो सकता है.
1588 में उन्हें फ्लोरेंस अकादमी में बोलने के लिए बुलाया गया. उनके लिए ये बड़ा मौका था. तभी उन्होंने मैथ्स और लिटरेचर को मिलाकर एक खूबसूरत लेक्चर दिया. उनसे पहले मैथ्स सिर्फ थ्योरी ही हुआ करती थी. लोग इसे बोरिंग समझते थे लेकिन उन्होंने बताया कि मैथ्स को रोचक भी बनाया जा सकता है.
इसके बाद जिस पीसा यूनिवर्सिटी में उन्होंने पढ़ाई अधूरी छोड़ी थी, वहीं 25 साल की उम्र में मैथ्स के प्रोफ़ेसर बने. लेकिन अपने विचारों की वजह से यहां पढ़ाने का उनका कॉन्ट्रैक्ट दोबारा आगे नहीं बढ़ाया गया.

जब एक फैन ने काट ली उनकी उंगली

एक किस्सा प्रचलित है गैलीलियो के बारे में. 1642 में उनकी मौत के बाद उनके शरीर को दफना दिया गया. लेकिन 1737 में उनके पिता के बगल दफनाने के लिए उनके शरीर को फिर से कब्र से निकाला गया था. इसी दौरान उनके एक फैन ने उनके दाएं हाथ की एक उंगली काट ली थी ताकि उसे याद के रूप में रख सके. ये उंगली आज भी फ्लोरेंस के Museum of history of science में रखी हुई है. रोचक बात ये है कि ये रोम की तरफ इशारा करते हुए रखी गई है. वही रोम जहां उन पर मुकदमा चला. इस दौरान उनकी दो उंगलियां और एक दांत भी गायब हो गए थे.
म्यूजियम में रखी उनकी उंगली
म्यूजियम में रखी उनकी उंगली

गैलीलियो खुद कैथोलिक ईसाई थे. उन्होंने अपने तीन बच्चों की मां से कभी शादी नहीं की. ये धर्म के खिलाफ था. इसकी वजह से उनकी लड़कियों की शादी नहीं हुई और उन्हें ताउम्र एक कान्वेंट में रहना पड़ा.
गैलीलियो की बड़ी लड़की वर्जीनिया
गैलीलियो की बड़ी लड़की वर्जीनिया

केप्लर को गलत नहीं साबित कर पाए गैलीलियो 

ऐसा नहीं था कि गैलीलियो हर जगह सही थे. केप्लर की थ्योरी थी कि समुद्र में आने वाले ज्वार चंद्रमा की वजह से आते हैं लेकिन गैलीलियो ने कहा ऐसा धरती के घूमने की वजह से होता है. उन्होंने ये बात 'कटोरे में पानी' वाले प्रयोग से समझाने की कोशिश की थी. लेकिन गैलीलियो की ये बात गलत साबित हुई. गलतियां सबसे होती हैं. उस दौर में इस तरह सोचना भी अद्भुत बात थी. ये बात गैलीलियो से ज्यादा उनके अनुमान की कहानी कहती है.
केप्लर
केप्लर

अधूरे रह गए उनके कुछ प्रोजेक्ट 

गैलीलियो दूसरी और भी कई चीजें खोजना चाहते थे. ये बात उनके अलग-अलग स्केच से जाहिर होती है. जैसे वो मोमबत्ती और शीशे से एक रिफ्लेक्टर बनाना चाहते थे. एक ऐसी मशीन बनाना चाहते थे, जिससे सब्जी को उठाया जा सके. एक जेब में रखने वाली कंघी जिसे जरूरत पड़ने पर चम्मच की तरह इस्तेमाल किया जा सके, एक बॉलपॉइंट पेन वगैरह भी उनके प्रोजेक्ट का हिस्सा थे. उनका थर्मास्कोप के बाद थर्मामीटर बनाने का सपना आर्थिक वजहों से अधूरा रह गया.
उनके मरने के लगभग तीन सौ साल बाद 31 अक्टूबर 1992 को पोप जॉन पॉल ने माना कि चर्च गलत था और गैलीलियो सही थे. उनके साथ चर्च ने ठीक नहीं किया. स्टीफन हॉकिंग और अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे दिग्गज साइंटिस्ट उन्हें Father of Modern Science कहते हैं.

ये स्टोरी निशांत ने की है.




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