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कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को ये काम हर हाल में करने चाहिए

काम इसलिए कि और किसी शख़्स के नाम की ऐसी ख़बर न लिखनी पड़े

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सरकार से कई दौर की बातचीत बेनतीजा रही है, फिर भी किसानों को बात का हल निकालने के अलावा जीवन बचाने का काम भी करना होगा (फाइल फोटो- PTI)
किसानों की सरकार से 7 दौर की बातचीत बेनतीजा रही है, फिर भी किसानों को निराश होने के बजाय हल निकालने के अलावा जीवन बचाने का काम भी करना होगा (फाइल फोटो- PTI)
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सिद्धांत मोहन
5 जनवरी 2021 (Updated: 5 जनवरी 2021, 12:18 PM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली की सरहद पर किसान बैठे हैं. हम बारिश की बात कर रहे हैं, तब भी किसान बैठे हैं. बीत गए 1 जनवरी के जश्न में भी किसान बैठे रहे. किसान बैठे हैं अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का और पुख़्ता तरीक़े से इसरार करने के लिए. वो कह रहे हैं कि सरकार तीन कृषि क़ानूनों को वापस ले. अगर क़ानून वापिस नहीं लिए गए, तो किसान नहीं उठेंगे, डटे रहेंगे. ऐसे दावे किए जा रहे हैं. लेकिन सामने आईं कुछ दुखद और निराशाजनक घटनाओं का रुख करें तो हम और आप सभी इस देश के किसानों से कुछ कहना चाहेंगे. 
पहली घटना है 16 दिसंबर 2020 की. संत बाबा राम सिंह ने ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली. बाबा राम सिंह करनाल के रहने वाले थे. उन्होंने एक सुसाइड नोट भी लिखा. कहा कि किसानों के हक़ में और सरकारी ज़ुल्म के विरोध में वो ये क़दम उठा रहे हैं. इस पत्र की एक लाइन थी :
“दास किसानों के हक में, सरकारी जुल्म के विरोध में आत्मदाह करता है. यह जुल्म के खिलाफ और किसानों के हक में आवाज है. वाहेगुरु जी का खालसा. वाहेगुरु जी की फतेह.”
दूसरी घटना 27 दिसम्बर की. पंजाब के फ़ाज़िल्का के रहने वाले वक़ील ने सरकार की नीतियों और रवैये से नाख़ुश होकर ज़हर पी लिया. वक़ील का नाम अमरजीत सिंह. अमरजीत सिंह ने भी एक सुसाइड नोट लिखा, जिसका शीर्षक था- तानाशाह मोदी के नाम पत्र. नरेंद्र मोदी के लिए उन्होंने कहा कि सरकार के कृषि क़ानूनों से मज़दूर और किसान छला हुआ महसूस कर रहे हैं. उन्होंने लिखा,
“लोगों की आवाज़ ईश्‍वर की आवाज़ है. कहा जाता है कि आपको गोधरा जैसी कुर्बानियों की चाह है, तो मैं इस विश्‍वव्‍यापी विरोध के समर्थन में अपना बलिदान दे रहा हूं ताकि आपकी गूंगी-बहरी चेतना जाग सके.”
तीसरी घटना 2 जनवरी की है. यूपी के रामपुर के रहने वाले 70 वर्षीय किसान ने ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर आत्महत्या कर ली. किसान का नाम कश्मीर सिंह दस. यहां पर भी एक सुसाइड नोट सामने आया. कहा कि वो इन कृषि क़ानूनों का विरोध करने दिल्ली आए थे. ये देश के किसानों के लिए सही नहीं है. पंजाब के 50 से ज़्यादा किसान इस आंदोलन में मारे जा चुके हैं. लेकिन यूपी या उत्तराखंड के किसी किसान ने अपनी जान नहीं दी है. इसलिए मैं इन कृषि क़ानूनों के विरोध में अपना देह त्याग करता हूं.
Farmers Protest हर मुश्किल के बावजूद किसान आंदोलन में डटे हुए हैं.  (फोटो-पीटीआई)

ये तीन घटनाएं हैं. इस देश के तीन नागरिकों ने अपनी जान दे दी. इस देश के तीन लोग अपने दोस्तों, परिजनों और क़रीबियों के बीच अब नहीं हैं. इस देश के तीन लोगों के फ़ोन पर कॉल करने पर अब कोई और फ़ोन उठाएगा. 
इन तीन के अलावा कई ऐसी घटनाएं हैं, जिनमें लोगों ने किसान आंदोलन की भूमि पर आत्महत्या का प्रयास किया. लेकिन इससे सुखद क्या होगा कि वे इसमें असफल रहे. ऐसे में दी लल्लनटॉप इस देश के किसानों से कुछ बातें कहना चाहता है. बात करिए हां. आंदोलन और प्रतिरोध आपको गहरे पकड़ते हैं. इस देश के किसानों की मांगें हैं. वो चाहते हैं कि कृषि क़ानून वापिस हों. सरकार से सहमति और असहमति के बीच वार्ताएं चल रही हैं. इसके बीच इस देश के किसानों को ये समझना होगा कि इस देश के लोकतंत्र में जीने का अधिकार सभी को मिलता है. ऐसे में किसानों को अपने बीच और आसपास मौजूद लोगों से संवाद स्थापित करना होगा. बात करनी होगी. आंदोलन मनोविज्ञान को इतना धुँधला न करे. हमारे आसपास के लोगों को लगातार प्रेरणा मिलती रहनी चाहिए. ये जानना चाहिए कि हां, आंदोलन या हमारे सवालों का जवाब आत्महत्या से नहीं मिलेगा. संवाद केंद्र सबसे ज़्यादा ज़रूरी है कि किसानों को कुछ संवाद केंद्रों या काउंसलिंग सेंटरों की स्थापना करनी चाहिए. जो भी किसान या साथी सुसाइडल महसूस कर रहे हों, तत्काल उनसे बात करनी चाहिए. और सुसाइड की दिशा में बनते उनके उत्साह को कम करना चाहिए. इसके लिए किसान आंदोलन में जमे हुए शिक्षित और अपडेटेड वर्ग को थोड़ा आगे आना होगा. रोज़ाना गुट बनाने होंगे. जत्थे टाइप. कुछ लोगों को दिन भर का अपडेट बताना होगा. अगर ये बताना मुनासिब हो कि जल्दी ही इस पूरे आंदोलन का हल निकलने वाला है, उतावला होने की ज़रूरत नहीं है, तो ये भी बताया जा सकता है. ये प्रचार कर दें कि किसी को ज़रा भी ख़राब लग रहा हो, वो तुरंत आपके पास आएं. पहले से चल रहे सुसाइड हेल्पलाइन के बारे में उन्हें बताएं.
देश के कई राज्यों में किसान सड़कों पर हैं. फ़ोटो : पीटीआई

इसके अलावा आंदोलन स्थलों से दूर भी इस तरह के प्रयास करने चाहिए. गांवों, क़स्बों और दूसरे शहरों में भी. ताकि सवालों का उत्तर मिलने तक, और बाद में भी, हर इंसान कुशल और स्वस्थ रहे. थोड़े अटेंशन की ज़रूरत आत्महत्या खुली भीड़ में नहीं होती है. ऐसे में पब्लिक बाथरूम और अकेली जगहों को अनअटेंडेड न छोड़ें. हो सके तो नियमित समय पर कुछ लोग वहां आवाजाही करते रहें. किसी तरह नज़र बनाए रखें. कोई भी साथी, परिचित, संगी या परिजन बहुत देर तक न दिखे तो परेशान हों. हां. उनकी खोज शुरू करें. उन्हें फ़ोन करें. सुनिश्चित करें कि आप या दूसरा कोई भी कहीं जाए, तो किसी को बताकर जाए और तयशुदा वक़्त के दरम्यान लौट आने की कोशिश करें. भीड़ में कोई अकेला दिखे तो उसके पास जाएं. और अगर आप अकेले हों तो किसी के पास जाएं. एक कंधा और एक शब्द बहुत है अकेलापन गहराता है या हताशा होती है तो एक कंधा और एक शब्द बहुत होता है. मन में कुछ अजीब सा लगे, या आपको पता है कि किसी और के मन में कुछ अजीब सा चल रहा है, क़तई देर न करें. किसी को भी पकड़कर मन की बात कह डालें. पूरे धैर्य और पूरे संयम के साथ. मन करे तो थोड़ा पानी पी लें. थोड़ा टहल लें. थोड़ा हाथ पैरों को स्ट्रेच कर लें. भरोसा रखिए, इनसे आराम बहुत मिलता है. और इन सबके बीच सुनिश्चित करें कि कहने सुनने की जगह हमेशा बची हुई है.
बोनस का ज्ञान : अब किसानों के पास समझ और शक्ति सबसे ज़्यादा है. फिर भी बच्चों और बूढ़ों का ख़्याल रखिए. ठंड बहुत है. शरीर को आवाज़ निकालने के लिए भी चारा और पानी चाहिए होता है. जिनकी तबीयत ख़राब हो, उन्हें घर भेज दें या डॉक्टर के पास ले जायें. और सभी लोग मास्क पहनकर रहें.

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