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हमें आज पता चला कि रानी लक्ष्मी बाई की जाति क्या थी

सर्व ब्राह्मण सभा 'मणिकर्णिका' के निर्माताओं को ब्राह्मण भावनाओं के नाम पर धमका रही है.

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सर्व ब्राह्मण सभा ने एक लेटर लिख कर 'मणिकर्णिका' के निर्माताओं से फिल्म की कहानी लिखने वालों की पृष्ठभूमि पूछी है.
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निखिल
6 फ़रवरी 2018 (Updated: 7 फ़रवरी 2018, 12:08 PM IST)
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पद्मावती पर लगे गुंडों (और सरकारों के भी) के बैन को खत्म हुए जुमा-जुमा चार दिन नहीं हुए थे कि एक दूसरी फिल्म को लेकर चकल्लस शुरू हो गई है. पद्मावती के 'सम्मान' के लिए राजपूत गुटों की गुंडागर्दी के बाद अब ब्रह्मण गुटों को 'मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी' से समस्या हो गई है. इस फिल्म में कंगना रनौत झांसी की रानी बनी हैं.
सर्व ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष सुरेश मिश्रा ने एक लेटर में फिल्म के निर्माताओं से कुछ ऊल-जलूल सवाल ऐसी भाषा में पूछे हैं, जिनमें एक चेतावनी छिपी हुई है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसके लिए आप कमल जैन (फिल्म के निर्माता) को भेजे इस लेटर पर गौर करें-
Manikarnika

इस लेटर में सुरेश मिश्रा पहले कमल जैन को उनकी फिल्म की स्टार कास्ट याद दिलाते हैं. फिर तीन सवाल करते हैं, ताकि पता कर सकें कि फिल्म में 'शालीनता' की कोई 'सीमा' तो नहीं लांघी गई है और फिल्म बनाते हुए 'ब्राह्मण समाज की भावनाओं' का खयाल रखा गया है कि नहीं -
#1. फिल्म लिखने वाले कौन हैं? उनका बैकग्राउंड और प्रोफाइल क्या हैं?
#2. कहानी लिखने में मदद करने वाले इतिहासकार का नाम और कंप्लीट प्रोफाइल क्या है?
#3. क्या फिल्म में रानी लक्ष्मी बाई पर गोई गाना है? अगर हां, तो उसके संदर्भ सहित पूरी डीटेल.
सुरेश इन सवालों का जवाब जल्द से जल्द चाहते थे. और वो जवाब आए, इसके लिए लेटर के आखिर में उन्होंने लिख दिया कि 'उनका संगठन पद्मावती के खिलाफ राजपूत समाज का समर्थन करता है.' राजपूतों का समर्थन ही वो छुपी हुई धमकी है जिसका हम ज़िक्र कर रहे थे. कि बात न माने तो वो हो सकता है जो संजय लीला भंसाली और उनकी फिल्म का हुआ.
लेटर लिखना आता नहीं, राजनीति करेंगे ये
सर्व ब्राह्मण सभा के सुरेश मिश्रा.
सर्व ब्राह्मण सभा के सुरेश मिश्रा.

कायदे से 'ब्राह्मण समाज' के इस लेटर को कचरे के डब्बे में होना चाहिए. व्याकरण से लेकर वर्तनी की पचास गलतियां हैं. लेकिन चूंकि अब शोर बहुत मच चुका है और कमल जैन को आखिर ये कहने को मजबूर होना पड़ा है कि 'फिल्म में रानी लक्ष्मी बाई के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली कोई चीज़ नहीं दिखाई गई है और ये भी कि वो फिल्म की स्क्रिप्ट 'आधिकारिक लोगों' के साथ बांटने को तैयार हैं', हमने मालूम किया कि रमेश मिश्रा हैं किस खेत की मूली जो सेंसर बोर्ड के पास जाने से पहले (और शूटिंग भी पूरी होने से पहले) फिल्म के विरोध पर उतर आए हैं. और वो आखिर इससे हासिल क्या करना चाहते हैं.
रमेश मिश्रा खुद को सर्व ब्राह्मण महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बताते हैं. लेकिन उनकी जान-पहचान ज़्यादातर राजस्थान में ही है. राजस्थान में रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों ने बताया कि सुरेश मिश्रा की जयपुर में काम कर रहे राष्ट्रीय मीडिया के ब्यूरो में दुआ सलाम चलती रहती है. इसीलिए वो प्रेसनोट वगैरह छपवा लेते हैं. कुछ वक्त इन्होंने चुनावी राजनीति को भी दिया है.
ये मामला मिश्रा बनाम मिश्रा का है
दी लल्लनटॉप ने सुरेश से फोन पर बात की. पूछा कि अभी तो न फिल्म आई है न ट्रेलर न टीज़र. तो फिर आपको कैसे मालूम कि फिल्म में रानी का अपमान हुआ है? तो उन्होंने दावा किया कि फिल्म जयश्री मिश्रा की लिखी किताब 'रानी' पर आधारित है. 'रानी' को 2008 में उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने ब्राह्मण समाज के दबाव में आकर ही बैन किया था.
ब्राह्मण समाज का ये कहना था कि किताब में रानी लक्ष्मी बाई और झांसी के पॉलिटिकल एजेंट (रजवाड़ों में तैनात किया जाने वाला अंग्रेज़ अफसर) रॉबर्ट एलिस के बीच प्यार पनपते दिखाया गया है. 'दुश्मन आक्रांता' और देश के लिए लड़ मरी रानी के बीच ये 'संबंध' ब्राह्मण समाज को बर्दाश्त नहीं था. सुरेश मिश्रा इसी भावनात्म मुद्दे को राजस्थान में कैश करना चाहते हैं. चुनाव के साल में. उनके पक्ष में ये बात है कि मणिकर्णिका' की ज्‍यादातर शूटिंग राजस्‍थान में ही हो रही है. जयपुर के बाद फिल्म की लीड एक्ट्रेस कंगना जोधपुर में शूटिंग कर रही हैं. इसके बाद नंबर आएगा बीकानेर का.
जयश्री मिश्रा की किताब रानी, जिसे 2008 में बैन कर दिया गया था.
जयश्री मिश्रा की किताब रानी, जिसे 2008 में बैन कर दिया गया था.

इस खेल में 'कीर्ति' लूटने आज़ाद भी आ गए हैं
सुरेश अपनी पहल में अकेले नहीं हैं. दी लल्लनटॉप से बातचीत में उन्होंने दावा किया कि उन्हें भाजपा सांसद और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आज़ाद का समर्थन मिला हुआ है. दी लल्लनटॉप ने कीर्ति से इस बारे में सवाल किया तो उन्होंने सुरेश के ऐतराज़ को सही बताते हुए कहा कि अगर निर्माताओं ने इतिहास से कोई छेड़छाड़ न की होती तो उन्हें खत का जवाब देने में इतना वक्त न लगता!
ये सवाल करने पर कि फिल्मों में कांट-छांट सेंसर पर नहीं छोड़ देना चाहिए, कीर्ति का कहना था कि वैसे तो 'मंगल पांडे' में मंगल पांडे को तवायफ के साथ दिखा दिया था. वो क्या सही था? इसलिए इस फिल्म के मामले में पहले ही रोकथाम करना सही है.
कीर्ति आज़ाद अब राजनीति के मैदान में खेलते हैं.
कीर्ति आज़ाद अब राजनीति के मैदान में खेलते हैं.

मिश्रा कितना दम मार सकते हैं?
ज़मीन पर सुरेश मिश्रा कितने मज़बूत हो सकते हैं, इसका अंदाज़ इस बात से लगाएं कि राजस्थान में ब्राह्मण समाज की संख्या 7 से 10 फीसद तक है. यदि दिल में चुनाव लड़ने की ख्वाहिश हो तो ये संख्या बहुत बड़ा मौका लगने लगती है. राजस्थान में इस साल के अंत में चुनाव हैं, इसलिए इस मौके को कोई चूकना नहीं चाहता. 'किंग नहीं तो किंग मेकर ही बनेंगे' वाली फीलिंग है. तो सुरेश मिश्रा ज़ोर कस रहे हैं.
लेकिन चुनाव के मामले में इतिहास सुरेश के खिलाफ है. 1999 में राजस्थान में जाटों को ओबीसी आरक्षण मिला. इसके खिलाफ दूसरी अगड़ी जातियों के नेताओं ने सामाजिक न्याय मंच बनाया. समाजिक न्याय मंच में करणी सेना बनाने वाले लोकेंद्र सिंह कालवी के साथ-साथ ब्राह्मणों के नेता के तौर पर सुरेश मिश्रा भी शामिल थे. इन्होंने अगड़ी जातियों को 'आर्थिक आधार' पर आरक्षण देने के लिए आंदोलन चलाया. जब कुछ हुआ नहीं तो 2003 का विधानसभा चुनाव लड़ा भी. लेकिन समाजिक न्याय मंच बुरी तरह विफल रहा. 65 सीटों पर उम्मीदवार उतारने वाले समाजिक न्याय मंच के 60 प्रत्याशियों की ज़मानत जब्त हुई. 4 हारकर ज़मानत बचाने लायक वोट ले आए. सामाजिक न्यास मंच से सिर्फ देवी सिंह भाटी विधानसभा पहुंच पाए. वो भी इसलिए कि वो भाजपा में रहते हुए विधायक और मंत्री रह चुके थे.
करणी सेना ने 'पद्मावत' के विरोध के वक्त काफी उत्पात मचाया था.
करणी सेना ने 'पद्मावत' के विरोध के वक्त काफी उत्पात मचाया था.

लेकिन 2003 से अब तक राजस्थान और देश में 'कौम की औरतों के सम्मान' के शेयरों में भारी उछाल आया है. तो सुरेश के पास फिल्म के निर्माताओं को तंग करने के मौके आसानी से मिल जाएंगे. लेकिन इस सब से उनके हाथ कुछ लगेगा, ये कहना मुश्किल है. सुरेश को बस एक सलाह दी जा सकती है. उन्हें उस तरह की गलती से बचना चाहिए जो खुद को रानी लक्ष्मीबाई का वंशज बताने वाले विवेक तांबे ने की थी.
तांबे ने नवंबर 2017 में दावा किया था कि फिल्म के ऑफिशियल टीज़र में एक एतिहासिक तारीख गलत दिखाई गई है. एक यूट्यूब वीडियो में लक्ष्मीबाई की बर्थ डेट 19 नवंबर, 1828 दिखाई गई थी. जबकि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडि‍या (ASI) समेत सभी सरकारी दस्तावेजों में लक्ष्मीबाई की बर्थ डेट 19 नवंबर, 1835 है. इससे आजिज़ आकर तांबे ने फ़िल्म के डायरेक्टर क्रिश( राधा कृष्णा जागरलामुडी), कंगना रनौत और फ़िल्म से जुड़े और लोगों के खिलाफ़ शिकायत की थी.
बाद में मालूम चला था कि फिल्म का कोई टीज़र आया ही नहीं था. अब भी नहीं आया था. तांबे ने एक फैन मेड वीडियो देखा था. तो थोड़े कहे को ज़्यादा समझें सुरेश जी. क्योंकि राजपूतों के साथ जो संजय लीला भंसाली ने किया, वो आपके साथ भी हो सकता है. वो बेचारे जिस फिल्म के खिलाफ खड़े थे, उसी को अब सीट पर बैठकर देख रहे हैं. उत्साह सहित.
बाकी फोन पर आप समझदार सुनाई दिए थे.


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