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पाकिस्तान का वो ट्रेन्ड कश्मीरी आतंकी, जो बैकफायर कर गया

कुका पारे वो 'सच्चा' कश्मीरी, जिसने हिजबुल मुजाहिदीन, पाकिस्तान की वाट लगा रखी थी.

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कूका पारे
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विकास टिनटिन
2 अगस्त 2016 (Updated: 2 अगस्त 2016, 08:42 AM IST) कॉमेंट्स
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कश्मीर में जब भी कोई आतंकी मारा जाता है. ज्यादातर कश्मीरी मरे हुए आतंकी को 'हीरो' बताने लगते हैं. उस 'हीरो' के लिए पत्थरबाजी की जाती है. हिंसा में कई और जानें भी चली जाती हैं. बुरहान वानी की मौत ताजा मिसाल है. लेकिन ये कथित 'हीरो' क्या वाकई हीरो कहलाने लायक हैं? एके-47 लहराते हुए, इंडियन आर्मी और जम्मू-कश्मीर पुलिस पर हमला करते 'हीरो'. जीते जी भी तमाम मौतों की वजह रहे और मरने के बाद भी मौतों की वजह रहे.
कश्मीरी 'हीरो' की इन दिनों दो डेफिनेशन हैं. एक बुरहान वानी जैसों के सपोर्टर्स की. दूजे आतंकी बुरहान को मारे जाने को सही ठहराने वालों की. पर असली 'कश्मीरी हीरो' कौन है?
1995 के कश्मीर में लौटते हैं. झेलम किनारे का एक घर. वहीं बैठा एक कश्मीरी. हुक्का पीते हुए गरीबों में 100-100 रुपये बांट दिया करता. पास खड़े कुछ सुरक्षा गार्ड. हाथ में एके-47 लहराते हुए. कहा जाता है कि इस बंदे की बारामूला जिले में खूब चलती. सबसे जरूरी बात. कई खूंरेज लड़ाइयां लड़ने वाला ये बंदा इंडियन आर्मी का भी सगा था. ये बंदा था मोहम्मद यूसुफ पारे. प्यार से लोग पुकारते, कुका पारे. पाकिस्तान का विभीषण: कुका पारे कुका पारे हथियारों वाला बंदा था. लेकिन ये हथियार चलाने की ट्रेनिंग उसे मिली कहां? वहीं जहां सबको मिलती है, पाकिस्तान में. लेकिन पाकिस्तानी की ट्रेनिंग उसके खिलाफ ही काम आई. कुका पारे बागी हो गया. कुका पारे खुद पाकिस्तान के सपोर्ट वाले आतंक के खिलाफ तो हुआ ही, साथ ही 250 आतंकियों को अपने साथ कर लिया. शुरू में कुका पारे इंडियन आर्मी, सरकार के साथ नजर आया. लेकिन बाद में वो बागी हो गया.
2002 विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार करते हुए कुका पारे. क्रेडिट: REUTERS
2002 JK विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार करते हुए कुका पारे. क्रेडिट: REUTERS
बुरहान वानी के आकाओं की कुका ने लगा रखी थी वाट कुका पारे फोक सिंगर. खूब प्यारा गाता. लोगों को भाता. कुका कश्मीरियों के अलावा इंडियन आर्मी का भी फेवरेट था. वजह भी वाजिब थी. कुका पारे हिजबुल मुजाहिदीन वालों के खिलाफ हथियार उठाए रहता. कुका ने 'एख्वान-उल-मुसलमीन' नाम का आतंकवादी गुट भी बनाया था. कई बार हिजबुल से उसकी खूनी लड़ाइयां हुई थीं. लोग उसे 'सरकारी जंगजू' पुकारते. सरकारी जंगजू यानी सरकार की तरफ से लड़ने वाला. 'सरकारी जंगजू' को कौन करता था फंड? लोग कहते कि कुका पारे जबरन वसूली करता था. लेकिन कुका पारे इस बात से साफ इनकार करता. कुका कहता,
'हिजबुल से लोग परेशान हैं. अमीर लोग अपनी मर्जी से हमें रुपये देते हैं. हमारा पहला मकसद हिजबुल मुजाहिदीन को खत्म करना है. जब ये आतंकी संगठन खत्म हो जाएगा, तब हम कश्मीर की लड़ाई के लिए राजनीतिक लड़ाई लड़ेंगे.'
दरअसल 1993-94 में 'एख्वान-उल-मुसलमीन' ने आर्मी के सामने सरेंडर कर दिया था. ये सरेंडर आर्मी के लिए फायदे का सौदा रहा. कहा जाता है कि कुका पारे का आतंकी संगठन 'एख्वान-उल-मुसलमीन' सुरक्षाबलों का काम आसान करता.
Kuka Parray JAMMU KASHMIR-1

कुका पारे ने एक पॉलिटिकल पार्टी भी बनाई. नाम रखा 'जम्मू एंड कश्मीर आवामी लीग.' पार्टी का दायां हाथ बना हिजबुल मुजाहिदीन का पूर्व कमांडर मीर नियाजी. इस पार्टी ने आर्टिकल 370 का सपोर्ट किया. इस पार्टी में कुछ छोटी पार्टियां भी मिल गईं. इस पार्टी ने कुछ चुनाव भी लड़े. लेकिन कमाल की जीत नहीं मिली. 1996 में जम्मू-कश्मीर में जो चुनाव हुए थे, कहा जाता है कि वो कुका पारे की वजह से पॉसिबल हो पाए थे. शुरुआत में कुका पारे खुद चुनाव न लड़ने की बात करता. लेकिन बाद में कुका पारे चुनाव लड़ा विधायकी का और एक बार जीता भी.  1996 चुनाव में कुका पारे की पार्टी को सिर्फ एक सीट मिली थी. हालांकि 2002 के चुनाव में कुका पारे हार गया. 'अब कभी पैदा नहीं होगा कुका पारे' कुका पारे ने 1998 में एक बार कहा था, 'अब कभी भी कोई कुका पारे कश्मीर में पैदा नहीं होगा. 1996 चुनाव में शामिल होने के लिए हमने कोई शर्त नहीं रखी. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने तो शर्त रखी थी, हम चुपचाप बिना शर्त चुनाव लड़े थे. लेकिन सरकार ने हमारा साथ नहीं दिया.' बाद के दिनों में कुका पारे की इंडियन सरकार से नाराजगी बढ़ती गई.
कुका पारे का जनाजा. फोटो क्रेडिट: Reuters
कुका पारे का जनाजा. फोटो क्रेडिट: Reuters

सितंबर 2003 में कुका पारे एक प्रोग्राम से लौट रहा था. तभी रास्ते में उसे मिलते हैं बंदूकधारी आतंकी. कुका पारे के सीने में गोलियां दाग दी जाती हैं. कुका वहीं मर जाता है. कुका पारे ने जैसा कहा था कि अब कभी कश्मीर में कोई कुका पारे पैदा नहीं होगा. कुका पारे, जो इंडियन आर्मी का साथ दे. जो कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ आवाज उठाए. क्योंकि बाद में जो पैदा हुए. वो बुरहान वानी जैसे थे. जो मरने के बाद भी मौत लाने का काम करते हैं.

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