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बस एक साल में सरकार ने देशभर में काट डाले लगभग 31 लाख पेड़

सरकार ने खुद बताई है इतनी बड़ी संख्या!

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(फाइल फोटो: पीटीआई)
25 मार्च 2022 (Updated: 25 मार्च 2022, 06:13 IST)
Updated: 25 मार्च 2022 06:13 IST
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पिछले कई सालों से यह एक बड़ी बहस बनी हुई है कि पेड़ काटना पर्यावरण की दृष्टि में उचित नहीं है, लेकिन विकास कार्यों के लिए पेड़ों को काटने की इजाजत दी जा सकती है. इसकी गूंज संसद, न्यायालयों, शिक्षण संस्थानों और यहां तक कि हमारे आसपास भी सुनाई देती रहती है. जब दुनिया भर के तमाम बड़े-छोटे मंचों से जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए पेड़ों की कटाई को रोकने और अत्यधिक पेड़ लगाने की आवाज बुलंद की जा रही है, तो ऐसे में विकास के नाम पर पेड़ों को काटना किस हद तक जायज है, इस पर एकमत होना अभी बाकी है.
बहरहाल भारत सरकार ने पेड़ों की कटाई को लेकर संसद में एक आंकड़ा पेश किया है, जो कि काफी चौंकाने वाला है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने लोकसभा में बताया है कि सिर्फ वर्ष 2020-21 में ही देश के विभिन्न हिस्सों में 30 लाख 97 हजार 721 पेड़ काटे गए थे. लगभग 31 लाख. मंत्रालय ने वन (संरक्षण) अधिनियम 1980 के तहत इसकी मंजूरी दी थी. केंद्र की दलील गुजरात के अहमदाबाद पश्चिम से भाजपा सांसद डॉ. किरीट प्रेमजीभाई सोलंकी ने इस संबंध में सवाल पूछा था, जिसे लेकर 21 मार्च को सरकार ने सदन में लिखित जवाब
पेश किया.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा,
'संबंधित राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा विभिन्न कानूनों, नियमों और माननीय न्यायालयों के निर्देश पर पेड़ों को काटने की इजाजत दी जाती है. हालांकि वर्ष 2020-21 में वन (संरक्षण) कानून 1980 के तहत मंत्रालय द्वारा 30.97 लाख पेड़ों को काटने की मंजूरी दी गई थी.'
Tree felling data Loksabha
वित्त वर्ष 2020-21 में पेड़ों की कटाई का आंकड़ा. (सोर्स: लोकसभा)
किस राज्य में कितने पेड़ काटे गए? सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में. तकरीबन 16.40 लाख पेड़ों को काटने की इजाजत दी गई. इसके बाद उत्तर प्रदेश का नंबर आता है, जहां 3.11 लाख पेड़ काटने की मंजूरी दी गई थी.
इसके अलावा ओडिशा में 2.23 लाख, तेलंगाना में 1.53 लाख, महाराष्ट्र में 1.45 लाख, झारखंड में 1.04 लाख, गुजरात में 86 हजार 887, आंध्र प्रदेश में 69 हजार 969, कर्नाटक में 40 हजार 231, उत्तराखंड में 53 हजार 739, बिहार में 61 हजार 244 पेड़ों को काटने की इजाजत दी गई थी.
वहीं हरियाणा में 27 हजार 612, गोवा में 27 हजार 249, हिमाचल प्रदेश में 26 हजार 886, राजस्थान में 8 हजार 619, तमिलनाडु में 7 हजार 691 और त्रिपुरा में 17 हजार 686 पेड़ काटे गए थे.
पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में चंडीगढ़, दमन और दीव, दिल्ली, लक्षद्वीप, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, पुदुचेरी, सिक्किम और पश्चिम बंगाल में वन संरक्षण कानून, 1980 के तहत कोई पेड़ काटने की अनुमति नहीं दी गई थी.
पर्यावरण मंत्रालय में 21 मार्च को एक और आंकड़ा
पेश किया. इसमें उन्होंने बताया कि वर्ष 2016-17 से 2020-21 यानी कि पांच सालों में 1.20 करोड़ पेड़ों को काटने की इजाजत दी गई है. पेड़ काटने के एवज में कितने पौधे लगाए गए? केंद्र ने संसद में प्रतिपूरक वनीकरण (सीए) का भी आंकड़ा पेश किया है. प्रतिपूरक वनीकरण का मतलब है कि संबंधित विकास कार्य के लिए जितने पेड़ काटे गए, उसके बदले में कितने पेड़ लगाए गए हैं. वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत प्रतीपूरक वनीकरण करना एक अनिवार्य शर्त है. इसमें वन भूमि को गैर-वन वाले कार्यों के लिए ट्रांसफर की जाती है.
Trees Felling India Today (1)
(फोटो: इंडिया टुडे)

मंत्रालय के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में विभिन्न राज्यों में पेड़ों की कटाई के बदले 3 करोड़ 64 लाख 87 हजार पौधे लगाए गए थे. यह कार्य प्रतिपूरक वनीकरण के तहत किया गया था. इसमें 358.87 करोड़ रुपये का खर्चा आया है.
सरकार द्वारा सदन में पेश किए गए जवाब के मुताबिक झारखंड में 45 लाख पौधे लगाए गए थे. वहीं मध्य प्रदेश में 35.55 लाख, मणिपुर में 35.42 लाख, मिजोरम में 13.60 लाख, ओडिशा में 19.51 लाख, तेलंगाना में 41.03 लाख, उत्तराखंड में 32.08 लाख, उत्तर प्रदेश में 13.17 लाख, राजस्थान में 17.05 लाख, हरियाणा में 12.40 लाख, गुजरात में 11.33 लाख पौधे लगाए गए थे. वनों को काटकर पौधे लगाना कितना लाभकारी है? पेड़ों को काटने को लेकर जब भी सवाल उठता है तो प्रशासन की यह दलील रहती है कि वे कानून के अनुसार पौधे लगाकर इसकी भरपाई कर रहे हैं. केंद्र सरकार भी संसद में यही जवाब देकर खुद को आरोपमुक्त करती आई है.
हालांकि प्रतिपूरक वनीकरण कितना लाभकारी है, यह हमेंशा सवालों के घेरे में रहा है. ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जिसमें यह पता चला है कि वनों को काटकर जो पेड़ लगाए जाते हैं, उसमें से या तो अधिकतर सूख जाते हैं या मवेशी वगैरह उन्हें खा जाते हैं और उनका रखरखाव अच्छे से नहीं किया जाता है.
खुद सरकारी आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं. पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 13 दिसंबर 2021 को संसद में पेश किए गए एक लिखित जवाब के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच देश भर में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत जितने पौधे लगाए गए थे उसमें से 4.84 करोड़ पौधे खत्म हो गए.
उन्होंने दावा किया कि इन पांच वर्षों में कुल 20.81 करोड़ पौधे लगाए गए थे, जिसमें से 15.96 करोड़ पौधों को ही बचाया जा सका है. इस आधार पर यदि राष्ट्रीय औसत देखें तो प्रतिपूरक वनीकरण के तहत वन कटाई के बदले जितने पौधे लगाए जा रहे हैं, उसमें से 24 फीसदी पौधे तमाम कारणों से खत्म हो जाते हैं.
दूसरे शब्दों में कहें तो यदि सरकार यह दावा करती है कि उसने इतने पेड़ों को काटकर इतने पौधे लगाए हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि उसमें से सभी पौधे, पेड़ में तब्दील हो जाएंगे. विशेषज्ञों का कहना है कि पौधों को पेड़ों में तब्दील होने का आंकड़ा और भी कम है.

मंत्रालय के मुताबिक साल 2016-17 में देश के 32 राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 3.70 करोड़ पौधे लगाए गए थे, जिसमें से 1.25 करोड़ पौधे खत्म हो गए, उन्हें बचाया नहीं जा सका. इसी तरह वर्ष 2017-18 में 4.68 करोड़ पौधे लगाए गए थे, जिसमें से 1.26 करोड़ पौधे खत्म हो गए. वहीं 2018-19 में 3.68 करोड़ पौधे लगाए गए थे, जिसमें से 79 लाख से अधिक पौधों को बचाया नहीं जा सका.
इसके अलावा वित्त वर्ष 2019-20 में 4.70 करोड़ पौधे लगाए गए और उसमें से 81.19 लाख पौधे खत्म हो गए. इसी तरह 2020-21 में 4.04 करोड़ पौधे लगाए गए थे, जिसमें से 72.47 लाख पौधों को बचाया नहीं जा सका था.
मंत्रालय का कहना है कि प्रतिपूरक वनीकरण मैनेजमेंट और प्लानिंग अथॉरिटी (काम्पा या CAMPA) के तहत लगाए गए पौधों का रखरखाव पांच से दस सालों के लिए किया जाता है. इस अवधि के दौरान राज्यों के वन विभागों द्वारा वृक्षारोपण की नियमित निगरानी की जाती है और जरूरत पड़ने पर उसमें सुधार किए जाते हैं. नए पौधों को जलवायु मिट्टी एवं अन्य संबंधित कारकों से बचाना होता है.

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