हाथी भी अपने बच्चों का अंतिम संस्कार करते हैं? तरीका इंसानों से थोड़ा अलग है
हाल ही में पश्चिम बंगाल के इलाकों में हाथी के पांच बच्चे 'दफन' मिले थे. इस बारे में एक रिसर्च पेपर छापा गया. सवाल ये कि क्या हाथी किसी रिचुअल के तहत ऐसा करते हैं? वैज्ञानिकों ने क्या-क्या बताया है?
![asian elephant burial](https://static.thelallantop.com/images/post/1718085553891_untitled_design_-_2024-06-11t112825.958.webp?width=540)
पश्चिम बंगाल (West Bengal) के उत्तर में जाएं, तो खूबसूरत चाय के बागान देखने को मिलते हैं. यहीं के न्यू डुआर इलाके में, वन विभाग के अधिकारियों और वैज्ञानिकों का ध्यान एक दिलचस्प बात ने खींचा. उन्हें एक हाथी का बच्चा जमीन के नीचे दबा मिला (Elephant calf buried). जिसके पैर कुछ ऊपर की ओर थे. लगा बच्चा गिरकर मर गया होगा. लेकिन क्या ऐसा सच में हुआ था?
जब पोस्टमार्टम किया गया, तो पता चला हाथी के बच्चे की मौत सांस के तंत्र में रुकावट और इंफेक्शन वगैरह से हुई थी. फिर ऐसे चार और दबे बच्चे मिले. सभी में लगभग एक जैसा पैटर्न देखने को मिला. सभी के पैर ऊपर की तरफ थे और शरीर जमीन के भीतर, जो इस बात की तरफ इशारा कर रहा था कि कहीं यह एक तरह का ‘अंतिम संस्कार’ तो नहीं है (Mourning A Loved One)?
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बताया जाता है, इससे पहले अफ्रीकी हाथियों में ऐसा देखा गया था. लेकिन भारत में यह पहला मामला था. तमाम अखबारों ने इसे कवर किया. विदेशी मीडिया ने भी इस पर लेख छापे. केंद्र में वही सवाल, क्या हाथी ‘अंतिम संस्कार’ जैसा कुछ करके अपने बच्चों को दफन करते हैं? क्या जानवर भी अपनों से इतना लगाव रखते हैं.
जानवरों को अक्सर ऐसे भावों से रहित माना जाता है. माना जाता है कि उनमें हम इंसानों जैसा लगाव नहीं होता. उन्हें किसी के जीने-मरने से फर्क नहीं पड़ता है. लेकिन इस रिसर्च के बाद इन सब बातों को नई चुनौती मिली. वहीं कुछ एक्सपर्ट्स इन सबूतों पर संदेह भी जता रहे हैं. आइए रिसर्च से जुड़े आकाशदीप रॉय की मदद से समझते हैं, ये पूरा मामला.
कैसे दफन किए गए हाथी के बच्चे?आकाशदीप बताते हैं कि अपने Phd फील्ड वर्क के काम से वह पश्चिम बंगाल में थे. तभी उन्हें पता चला कि पश्चिम बंगाल वन विभाग से जुड़े IFS परवीन कासवान के सामने एक खास बात आई. कि हाथी अपने मृत बच्चों को दो-दो दिन तक उठाकर घूमते हैं. लेकिन एक-दो दिन लेकर घूमने के बाद वो अपने बच्चों के साथ क्या करते हैं? यह बात नहीं मालूम चल पा रही थी.
फिर उन्हें एक के बाद एक हाथियों के पांच बच्चे एक खास तरह से दबे हुए मिले. उनके पैर ऊपर रहते थे. वो बताते हैं कि इसे जिस तरह से अंजाम दिया गया था. उसे देखकर कहा जा सकता है कि यह किसी इंसान का काम नहीं था. जब इन पांचों बच्चों का पोस्टमार्टम किया गया, तो पता चला कि इनकी मौत इंफेक्शन वगैरह की वजह से हुई थी. इन सभी बातों को समझकर आकाशदीप और परवीन ने एक साझा रिसर्च पेपर छापा. इस रिसर्च को दुनिया भर के न्यूज मीडिया ने जगह भी दी. इस पर अमेरिकी पत्रिका NatGeo ने भी एक आर्टिकल छापा.
हालांकि इस आर्टिकल में एशियन एलिफैंट स्पेशलिस्ट ग्रुप के वाइस चेयरमैन हैदी रिडल इस रिसर्च पर पूरा भरोसा जताते नजर नहीं आते. उनका कहना है कि रिसर्च में दिए गए सबूत ये साबित करने के लिए नाकाफी हैं कि दफनाने का काम हाथियों ने किया है.
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इन सवालों के बारे में हमने रिसर्च से जुड़े आकाशदीप से बात की. उन्होंने इस पर क्या बताया ये भी समझते हैं.
ये कैसे कहा जा सकता है कि यह काम हाथियों ने ही किया है?आकाशदीप बताते हैं कि हालांकि हमने सारे सबूत देने की कोशिश की है. उनके मुताबिक डॉ इयन डगलस हैमिल्टन अपनी किताब में अफ्रीकी हाथियों में ऐसा देखे जाने की बात भी बताते हैं. वो बताते हैं कि अफ्रीकी हाथी अपने बच्चों को पत्तियों से ढ़क देते हैं. इसे वैज्ञानिक ‘वीक बरियल’ नाम देते हैं. आकाशदीप बताते हैं कि चूंकि भारत में बागानों में छोटी नहरों के गड्ढे मौजूद थे तो हो सकता है. हाथियों ने इसलिए अपने बच्चों को मिट्टी से ढ़कने की कोशिश की हो.
इसके अलावा वो बताते हैं कि कुछ बच्चों की पीठ पर घसीटे जाने के निशान भी थे. समझा जा सकता है कि हाथियों का झुंड मृत बच्चे को लेकर काफी दूर तक चला होगा. वो यह भी कहते हैं कि अगर कोई हाथी किसी बच्चे को उठाकर ले जाएगा, तो लाजमी है कि वह उसे पैरों या सूंड से ही उठाएगा. और इसी स्थिति में उन्हें दबाया जाना भी स्वाभाविक नजर आता है.
वो ये भी कहते हैं कि स्थानीय लोग इस बात को काफी पहले से जानते हैं. वहां के बुजुर्ग भी बताते हैं कि हाथी अपने बच्चों को मिट्टी में दबा देते हैं.
क्या किसी ने हाथी को बच्चों को दबाते हुए देखा है?इन पांच मामलों में आकाशदीप ने हमें बताया कि किसी ने सामने से हाथियों को बच्चों को मिट्टी में दबाते तो नहीं देखा. लेकिन एक मामले में चौकीदारों ने देर रात हाथियों के चिल्लाने और रोने जैसी आवाजें सुनीं. और सुबह अगले दिन मृत बच्चा मिट्टी में दबा हुआ मिला. इसके अलावा हाथियों को अपने मृत बच्चों को लेकर घूमते हुए भी देखा गया है.
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एक और सवाल जो मन में आता है कि क्या हाथी भी इंसानों की तरह अपनों के जाने का शोक मनाते हैं? इस बारे में आकाशदीप बताते हैं कि हथिनी अपने बच्चों को 22 महीनों तक पेट में पालती है. ऐसे में हथिनी और बच्चे के बीच मां-बच्चे का मजबूत रिश्ता होता है.
वो बताते हैं कि पश्चिम बंगाल वन विभाग के अधिकारियों ने हाथिनियों को दो दिन तक मृत बच्चे को लेकर घूमते देखा है. क्योंकि फिर बच्चे का शरीर खराब होने लगता है.
बच्चों को मिट्टी में ऐसे दबाए जाने के पीछे एक और वजह भी आकाशदीप बताते हैं. उनके मुताबिक ‘पॉपुलेशन फिटनेस’ या हाथियों के समूह को बीमारियों से बचाना भी इसके पीछे की एक वजह हो सकती है. देखा गया है कि कुछ बच्चे संक्रमण या इंफेक्शन की वजह से मरे थे. ऐसे में इंफेक्शन झुंड में ना फैले, यह भी बच्चों को ऐसे मिट्टी में दबाने के पीछे की एक वजह हो सकती है.
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जहां एक तरफ अफ्रीकी हाथियों के ‘वीक बरियल’ (weak burial) के बारे में काफी पहले बताया जा चुका है. वहीं एशियाई हाथियों में ये अपनी तरह का अनोखा मामला है. जिस पर रिसर्च की गई. इस बारे में पूछे जाने पर आकाशदीप बताते हैं कि जरूरी नहीं कि यह हमेशा होता हो या सभी हाथी ऐसा करते ही हों.
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हाथी ज्यादातर समय जंगलों में ही रहते हैं. और जाहिर सी बात है, वो अपनी सूंड से गड्ढ़ा तो खोद नहीं सकते हैं. इसलिए वो खेतों के किनारे पहले से खुदी हुई नहरों का इस्तेमाल करते हैं.
आकाशदीप कहते हैं, ‘हालांकि यह देखा जाना इतना आम नहीं है. हो सकता है अगले साल उसी समय फिर कुछ बच्चों की लाश ऐसे ही मिलें. हो सकता है कई सालों तक यह व्यवहार देखने को ना भी मिले.’
कुल मिलाकर समझा जा सकता है कि जानवरों के व्यवहार पर हो रही रिसर्च में अभी और काम बाकी है. खासकर ऐसे भावनात्मक व्यवहार पर. बाकी हाथियों का यह शोक और खास ‘अंतिम संस्कार’ का व्यवहार कितना आम है. यह आगे होने वाली रिसर्च में ही मालूम चल पाएगा.
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