ED: बात उस डिपार्टमेंट की जो अब CBI और IT से ज्यादा सुर्खियों में रहता है
बीते कुछ सालों में हम और आप ED की छापेमारी की खबरों से कई बार रूबरू हुए हैं. प्रवर्तन निदेशालय या इनफोर्समेंट डायरेक्टरेट को इतनी शक्तियां कैसे मिली हैं? ED किन किन मामलों में कार्रवाई कर सकता है? आइए इन सवालों का जवाब जानते हैं.
करीब एक दशक पहले का समय याद करिए. 2010 में देश ने कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी की. करोड़ों के घोटाले की बात सामने आई. इसके बाद 2011 में 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में भी घोटाले की बात सामने आई. इन सभी मामलों की जांच थी सीबीआई के पास. उस समय तक ईडी का नाम भी बहुत लोगों ने नहीं सुना था. पर केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद से प्रवर्तन निदेशालय (ED) लगातार सुर्खियों में बना रहने लगा. ऐसा लाजमी था क्योंकि ED की कार्रवाई की संख्या तेजी बढ़ने लगी थी. विपक्षी नेता जब भी केंद्र सरकार को घेरते. उसमें ED का ज़िक्र जरूर रहता.
अब शुरुआत करते हैं एक ताज़ा केस से. जिसमें ED ने आम आदमी पार्टी पर कुछ आरोप लगाए हैं. दिल्ली. देश की राजधानी. करीब एक करोड़ 70 लाख लोग दिल्ली में रहते हैं. 1998 में दिल्ली जल बोर्ड की स्थापना की गई जो दिल्ली में पानी की सप्लाई करती है.
क्या है जल बोर्ड का केस?ईडी ने सीबीआई की एक एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की है. आरोप है कि DJB के पूर्व चीफ इंजीनियर जगदीश कुमार अरोड़ा ने NKG इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को पानी के मीटर्स, उनके इंस्टॉलेशन और टेस्टिंग के लिए 38 करोड़ का ठेका दिया था. ईडी का आरोप है कि इस ठेके के आवंटन के दौरान DJB और National Buildings Construction Corporation के अधिकारियों ने NKG इंफ्रास्ट्रक्चर का पक्ष लिया. और इसके बदले उन्हें रिश्वत दी गई.
इस मामले में ईडी ने जनवरी में जगदीश कुमार अरोड़ा और NKG इंफ्रास्ट्रक्चर के ठेकेदार अनिल कुमार अग्रवाल को गिरफ्तार कर लिया. आरोप है कि NKG इंफ्रास्ट्रक्चर ठेके के मानकों को पूरा नहीं करती. फिर भी उसने रिश्वत देकर ठेका हासिल कर लिया. NKG इंफ्रास्ट्रक्चर ने इसके लिए जाली डॉक्यूमेंट्स का इस्तेमाल किया. ED का आरोप है कि ठेके के बदले आम आदमी पार्टी को डोनेशन दिया गया. इसी मामले में ईडी ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को भी समन भेजा है.
ये तो हो गई दिल्ली जल बोर्ड के केस की कहानी. अब हम आपको बताएंगे उस एजेंसी के बारे में जो इन मामलों की जांच कर रही है.
ED: एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेटED. पूरा नाम एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट. भारत सरकार के मातहत काम करने वाली एक एजेंसी. देश में अगर बड़े पैमाने पर कहीं भी पैसों की हेरफेर होती है, तो उसकी जांच ईडी करती है. अक्सर सुर्खियों में भी रहती है. खबरों में रहने से इतर ईडी, एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट या प्रवर्तन निदेशालय एक और काम करती है. ऐसे लोगों पर नजर रखना और उन्हें पकड़ना जो किसी न किसी तरह से पैसों की हेरा-फेरी में शामिल हैं. कुछ चर्चित मामले जिनकी जांच ईडी कर रही है या उसका संबंध इन केस से है.
-दिल्ली एक्साइज़ पॉलिसी केस
-दिल्ली जल बोर्ड केस
-तेलंगाना सीएम केसीआर की बेटी के कविता की गिरफ़्तारी
-संदेशखाली के आरोपी शहजहां शेख की गिरफ़्तारी के समय ईडी की टीम पर हमला
चलिए, विस्तार से समझते हैं इस एजेंसी के बारे में.
ईडी की शुरुआतसाल 1956. भारत को आजाद हुए एक दशक होने जा रहा था. देश निश्चित तौर पर ब्रिटिश राज के अंधकार से निकलकर प्रगति की ओर बढ़ रहा था. देश में नई-नई योजनाएं आकार ले रहीं थीं. टैक्स का सिस्टम बेहतर किया जा रहा था जिससे विकास की योजनाओं को आगे बढ़ाया जा सके. लिहाजा देश में पैसे का फ़्लो भी बढ़ रहा था. देश में आर्थिक धोखाधड़ी रोकने के इरादे से इस संस्था का गठन किया गया.
इन कारणों को देखते हुए भारत सरकार को एक ऐसी एजेंसी की जरूरत महसूस हुई जो पैसों की धोखाधड़ी और विदेशी करेंसी के गैरकानूनी इस्तेमाल पर नियंत्रण कर सके. आखिरकार 1 मई 1956 को Department of Economic Affairs ने Enforcement Unit के नाम से एक संस्था बनाई. उस समय ये यूनिट फ़ॉरेन करेंसी से जुड़े मामले देखा करती था. फिर साल 1957 में इस यूनिट का नाम Enforcement Directorate कर दिया गया. वर्तमान में ये संस्था भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अधीन है.
शुरुआत में ये एजेंसी Foreign Exchange Regulation Act, 1947 (FERA ’47) के तहत अपनी जांच और कार्रवाई करती थी. ये एक ऐसा एक्ट था जिसे 1947 में लाया गया था. इसका उद्देश फ़ॉरेन करेंसी के आदान-प्रदान को रेगुलेट करना था. साल 1973 में Foreign Exchange Regulation Act, 1947 को हटाकर Foreign Exchange Regulation Act, 1973 लाया गया. यानी अब ईडी नए कानून, 1973 के एक्ट के तहत कार्रवाई करने लगी. इसके बाद 1973 से 1977 तक, चार सालों तक ईडी Department of Personnel & Administrative Reforms, गृह मंत्रालय के मातहत रही. वर्तमान में ये संस्था भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है. ये एजेंसी आर्थिक अपराधों से जुड़े मामलों में कार्रवाई करती है.
ईडी के डायरेक्टरED की स्थापना के समय एक डायरेक्टर का पद बनाया गया था जो इसके मुखिया हुआ करते थे. उन्हें असिस्ट करने के लिए रिजर्व बैंक से डेपुटेशन पर एक अधिकारी होता था. साथ ही स्पेशल पुलिस के तीन इंस्पेक्टर भी ईडी का हिस्सा हुआ करते थे. उस वक्त बॉम्बे (अब मुंबई) और कोलकाता में ईडी की ब्रांच थी. वर्तमान में भी ईडी को एक डायरेक्टर ही लीड करते हैं. लेकिन इनके साथ एक जॉइन्ट डायरेक्टर भी होते हैं. इनके अन्डर में कई सारे स्पेशल डायरेक्टर और डिप्टी डायरेक्टर होते हैं.
ED की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल 2014 से मार्च 2022 के बीच कुल 3,555 केस दर्ज किए और 99 हजार 355 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की. बात करें यूपीए सरकार की तो 9 साल यानी जुलाई 2005 से मार्च 2014 तक 1,867 केस दर्ज किए गए. अगर किसी भी मामले में पैसों के हेरफेर या कोई आर्थिक एंगल सामने आता है तो ईडी उसकी जांच में शामिल हो जाती है. सीबीआई जहां केंद्र सरकार के कहने या अदालत के आदेश पर जांच करती है वहीं ईडी के साथ ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. किसी भी पुलिस स्टेशन में एक करोड़ या उससे ज्यादा की धोखाधड़ी का मामला दर्ज होने पर पुलिस को मामले की जानकारी ईडी को सौंपनी होती है. अगर ईडी को पुलिस से पहले मामला पता चल जाए तो वो खुद से भी जांच शुरू कर सकती है.
किन कानूनों के तहत काम करती है ED?जैसा कि हमने पहले बताया ED मुख्य रूप से Prevention of Money Laundering Act 2002 के तहत अपनी कार्रवाई करती है. तो समझते हैं कि क्या है Prevention of Money Launderinng Act.
Prevention of Money Launderinng Act:शॉर्ट में इसे ही PMLA कहा जाता है. ये एक क्रिमिनल लॉ है जिसे मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने, मनी लॉन्ड्रिंग से प्राप्त या उसमें शामिल संपत्ति को जब्त करने के लिए लाया गया था. ईडी अपराध से कमाए पैसों का पता लगाने, अस्थायी रूप से प्रॉपर्टी को सील और अटैच करने व स्पेशल कोर्ट द्वारा आरोपियों पर मुकदमा चलाने के लिए PMLA का इस्तेमाल करती है. PMLA के मामलों में ईडी तीन साल तक जमानत रोक सकती है. भगोड़े अपराधियों की संपत्ति को जब्त करने का अधिकार रखती है. और ये अटैच की गई प्रॉपर्टीज केंद्र सरकार के अधीन चले जाते हैं. ईडी को ही PMLA के प्रावधानों को लागू करने की जिम्मेदारी दी गई है. इस एक्ट को Financial Action Task Force (FATF) के दिशा-निर्देशों के अनुसार बनाया गया है जिससे बड़े स्तर हो रही धोखाधड़ी रोकी जा सके. PMLA की धारा 19 ईडी के अधिकारियों को व्यक्ति के पास से बरामद सामग्री के आधार पर उन्हें गिरफ्तार करने का अधिकार देती है.
इसके अलावा कुछ और भी कानून हैं जो ED को खास तरह की शक्तियां देते हैं.
The Foreign Exchange Management Act, 1999 (FEMA)ये कानून विदेशी व्यापार और पेमेंट्स को सुविधाजनक बनाने और भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के रख-रखाव को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया था. इस कानून के तहत विदेशी मुद्रा या करेंसी से जुड़े नियमों के उल्लंघन की जांच, उल्लंघन करने पर कार्रवाई और जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी ईडी को दी गई है.
The Fugitive Economic Offenders Act, 2018 (FEOA)नीरव मोदी याद होगा आपको. 13 हजार करोड़ रुपये के पीएनबी घोटाले में आरोपी, जो देश से भाग गया था. नीरव के फरार होने के बाद ED ने उसकी सारी संपत्ति जब्त कर ली थी. ऐसा ED ने किया- The Fugitive Economic Offenders Act, 2018 के तहत. ये कानून ED को ताकत देता है कि वो ऐसे भगौड़ों की संपत्ति को ज़ब्त कर सकती है.
COFEPOSAThe Conservation of Foreign Exchange and Prevention of Smuggling Activities Act, 1974. इंदिरा गांधी के कार्यकाल में ये कानून लाया गया था. ये कानून ED को ये शक्ति देता है कि अगर उन्हें किसी व्यक्ति के स्मगलिंग जैसे गतिविधियों में शामिल होने का शक है. तो उसे डिटेन किया जा सकता है. यानी नजरबन्द या कैद में रखा जा सकता है. इस एक्ट का मुख्य उद्देश्य फ़ॉरेन करेंसी की हेरा फ़ेरी और स्मग्लिंग को रोकना था.
ये तो हुई ED की शक्तियां. जैसा मालूम पड़ता है इन सभी क़ानूनों के दम पर ED को काफ़ी व्यापक शक्तियां मिली हुई हैं. क्या इन शक्तियों की कोई लिमिट है? ये सवाल बार बार उठता रहा है. और कई बार इसके लिए मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी गया है. साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले के बारे में बताते हैं आपको. जिसने PMLA ऐक्ट के तहत ED के पास कितनी शक्तियां हैं. इसे और अच्छे से परिभाषित किया.
क्या था सुप्रीम कोर्ट में ED की शक्तियों वाला केस?साल 2023. सुप्रीम कोर्ट ने रियल एस्टेट कंपनी M3M India के डायरेक्टर पंकज बंसल के केस में एक लैंडमार्क फ़ैसला दिया. कोर्ट ने कहा कि PMLA ऐक्ट के तहत गिरफ़्तारी के वक्त ज़रूरी है कि ED व्यक्ति को लिखित में सूचना दे. और कारण बताए. इसे ED की शक्तियों पर एक लगाम के रूप में देखा गया. लेकिन फिर उसी साल रियल-एस्टेट कंपनी सुपरटेक लिमिटेड के संस्थापक राम किशोर अरोड़ा की याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये भी माना कि बंसल केस के फ़ैसले से पहले जो गिरफ़्तारियां हुई हैं. उनमें ये फ़ैसला लागू नहीं होगा. यानी रेटरोसपेक्टिव रूप से पुराने केसों में ये फ़ैसला लागू नहीं होगा. इस फ़ैसले के बावजूद PMLA जैसे क़ानूनों के चलते ED के पास पर्याप्त शक्तियां हैं. जिनके चलते आप देखते हैं कि ED के मामलों में अक्सर बेल मिलना काफ़ी मुश्किल होता है.
उम्मीद है कि इस लेख के ज़रिए आपको ED और उसकी शक्तियों के बारे में कुछ मूल जानाकरियां आसान भाषा में मिल गई होंगी.