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देश में चली 'पल्स' की आंधी, बिक्री 100 करोड़ के पार

हम चटोरे लोग हैं. हम कहते हैं कि देश में न मोदी की लहर है और न फॉग चल रिया है. लहर है तो 'पल्स' की है. और चल रई है तो 'पल्स' चल रई है.

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कुलदीप
20 अप्रैल 2016 (Updated: 20 अप्रैल 2016, 05:48 AM IST)
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हम चटोरे लोग हैं. हम कहते हैं, देश में न मोदी की लहर है और न फॉग चल रिया है. लहर है तो 'पल्स' की है. और चल रई है तो 'पल्स' चल रई है.
ऐसी चल रही है कि कवि लोग इसे रूपक की तरह भी इस्तेमाल कर रहे हैं. अखिल कात्याल
लिखते हैं:
तुम आये हो या 'पल्स' खाते-खाते ज़ुबान पर नमक आया है?
ये वो टॉफी है जिसके भीतर नमक कैद है. मुंह में रखो तो कच्चे आम वाला खट्टा-मीठापन. फिर घुल जाएगी तो आएगा नमकीन सरप्राइज. अभी तक ना खाई है तो आपका मनुष्य योनि में जन्म लेना बेकार है. खाय लो, जियरा हरियर हुइ जाई. बच्चे खाएं, बूढ़े खाएं. मम्मी खाएं, मौसी खाएं. पापा खाएं, फूफी खाएं.
तो हमारी प्यारी दुलारी 'पल्स' ने बिक्री का रिकॉर्ड बना लिया है. डीएस ग्रुप की यह टॉफी महज 8 महीने में 100 करोड़ के आंकड़े तक पहुंच गई है. अच्छी-अच्छी फिल्में नहीं पहुंच पातीं भाईसाब. 'पल्स' ने कोका कोला के डायट ड्रिंक 'कोक जीरो' की बराबरी कर ली है.
2015 का वो दौर जब दुनिया इबोला का इंजेक्शन बनाने में जुटी थी, दिल्ली वाले नई महामारी पाल रहे थे. पहली बार खाई तो जुबान को चस्का लग गया. 1 रुपल्ली में पूरा मज़ा. पहले हम दिन में 10 खाते थे, फिर 20 की लेने लगे. फिर पता चला कि 'आउट ऑफ स्टॉक' हो रही है तो इकट्ठय डिब्बा ले लिया.
पहले हम दिन में एक कैंडी खाते थे. फिर 10 खाने लगे. Source: Beepweep
पहले हम दिन में एक कैंडी खाते थे. फिर 10 खाने लगे. Image Source: Beepweep

अच्छा हम रहिते हैं जिला गाजियाबाद में. दिल्ली के दोस्तों ने कहा कि वे खोजते-खोजते इकहरे हुए जा रहे हैं और 'पल्स' औषधि कहीं मिल नहीं रही. हमने कह दिया कि हमें मिलेगी तो लेते आएंगे. घर के पास बलिया वाले सोनी जी की दुकान पर आलू चाट खाते हुए हमारी नजर राधे भाई की दुकान पर गई. वह अपनी चमकदार सफेद बनियान में बैठे तोंद पर हाथ फेर रहे थे और उनके शोकेस में 'पल्स' के दसियों डिब्बे कतार में सजे हुए थे. राधे भाई पान की दुकान लगाते हैं. वो कोई खोखा नहीं है, प्रॉपर दुकान है बड़ी सी. पार्षदी का चुनाव लड़ चुके हैं.
हमने तुरंत अपने दोस्तों को whatsapp ग्रुप पर बता दिया कि 'पल्स' के भंडार के सामने खड़े हैं और 'बांछें' - जहां भी होती हों- खिली हुई हैं. जिसको चाहिए, तुरंत बताओ. 5 मिनट में चार डिब्बों का ऑर्डर आ गया.
हम पहुंचे दुकान पर. राधे भाई से कहा 'पल्स' दे दीजिए. बोले कितनी? हमने कहा 4. डिब्बा खोलकर चार ठौ टॉफी निकालने लगे तो हमने स्पष्ट किया कि हम डिब्बों की बात कर रहे हैं. फिर राधे भाई के चेहरे पर एक उदासी तारी हो गई, जैसे हमने फ्री में कुछ मांग लिया हो. अपनी टिपिकल दिल्ली वाली टोन में वो कहने लगे, 'यार ऐसे खाओ ना कि सबको मिल सके. 20 दिन से फोन कर रहा हूं बैं**, तब बंदा कार्टन दे के गया है.' हमने बड़ी मिन्नतों से उन्हें समझाया कि हम कालाबाजारी के लिए नहीं खरीद रहे भैया. दिल्ली के परेशान दोस्तों ने मंगवाई है. तब जाकर वह तैयार हुए.
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यार टॉफियों के हम भी दीवाने पुराने हैं. पार्ले किसमी, स्वाद, मैंगो बाइट, मेलोडी, हाजमोला कैंडी, महालैक्टो, इक्लेयर्स, एल्बेनलिबे (जिसे हम एल्पेन लेप्पेन कहते थे); जाने कितनी टॉफियां आईं और गईं. लेकिन ऐसी दीवानगी कभी ना देखी. वैसे पूरा कैंडी मार्केट ही इस टाइम बूम पर है. 6 हजार करोड़ की इंडस्ट्री आज कल डेढ़ गुना तेजी से बढ़ रही है.
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डीएस ग्रुप के न्यू प्रोडक्ट डेवलपमेंट के वाइस प्रेसिडेंट शशांक सुराना कहते हैं, 'हमने इसकी कीमत 1 रुपये रखी थी. बाद में दूसरी कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट्स के साथ ऐसा किया. इससे पहले हर कोई 4 ग्राम की हार्ड बॉइल्ड कैंडी 50 पैसे की बेचता था.' डीएस ग्रुप जानते हो ना? वही पास-पास, कैच मसाले और रजनीगंधा पान मसाले वाले.
बड़ी बात ये है कि 'पल्स' की बहुत कम मार्केटिंग की गई है. इसकी सारी डिमांड माउथ पब्लिसिटी से है. अब ये अमरूद वाले फ्लेवर में भी आ गई है. वो भी चौचक है पर ओरिजिनल फ्लेवर की बात ही और है.
पल्स ने बाइ गॉड हमारी नब्ज पकड़ ली है.

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