नोबल के अलावा ट्रंप की एक और चाह, बस इस खास पहाड़ी पर मूर्ति बन जाए!
Donald Trump Mount Rushmore: अमेरिका के चार राष्ट्रपतियों के चेहरे वाले माउंट रश्मोर पर डॉनल्ड ट्रंप का चेहरा भी लगाने की मांग की जा रही है. हालांकि, एक्सपर्ट ये काम संभव नहीं बता रहे हैं.
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नोबल पुरस्कार के अलावा अमेरिका के राष्ट्रपति का अगर कोई एक और ‘सपना’ है तो वह है रश्मोर माउंट पर अपना चेहरा देखना. डॉनल्ड ट्रंप (Donald Trump) की सरकार में होमलैंड सिक्योरिटी की सेक्रेटरी क्रिस्टी नोएम से उन्होंने ये बात कही भी थी. इसके बाद क्रिस्टी ने ट्रंप को रश्मोर माउंट (Donald Trump Mount Rushmore) का एक मॉडल गिफ्ट किया था, जिसमें ट्रंप का चेहरा भी जोड़ा गया था. ये सब ट्रंप के पहले कार्यकाल की बात है. वह जबसे दोबारा राष्ट्रपति बने हैं, माउंट रश्मोर पर उनका चेहरा लगाने की चर्चाओं ने फिर जोर पकड़ लिया है.
जनवरी में फ्लोरिडा की सांसद अन्ना पॉलिना लूना की ओर से तो बाकायदा बिल ही पेश कर दिया गया कि इंटीरियर डिपार्टमेंट को माउंट रश्मोर पर ट्रंप का चेहरा बनवाना चाहिए क्योंकि वह ये डिजर्व करते हैं. हालांकि, बिल पर कोई फैसला अब तक नहीं हुआ है लेकिन सवाल उठ रहे हैं कि क्या अमेरिका के 4 महान राष्ट्रपतियों के साथ माउंट रश्मोर पर ट्रंप का चेहरा लग सकता है? क्या वहां पर इसके लिए जगह है?
ये भी जानेंगे लेकिन उससे पहले जान लेते हैं कि माउंट रश्मोर क्या है? अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए यह इतना इंपॉर्टेंट क्यों है? क्यों डॉनल्ड ट्रंप वहां अपना चेहरा होने का सपना देखते हैं?

माउंट रश्मोर (Mount Rushmore) अमेरिका के साउथ डकोटा स्टेट के ब्लैक हिल्स क्षेत्र में बना एक स्मारक है. यहां बड़े ग्रेनाइट की चट्टानों पर अमेरिका के 4 राष्ट्रपतियों जॉर्ज वॉशिंगटन, थॉमस जेफरसन, थियोडोर रूजवेल्ट और अब्राहम लिंकन के चेहरे उकेरे गए हैं. इस स्मारक को 'लोकतंत्र का मंदिर' (Shrine of Democracy) भी कहा जाता है. माउंट रश्मोर अमेरिका के लोकतंत्र के इतिहास और गजब के आर्टवर्क का अद्भुत नमूना है.
Mashable नाम के अमेरिकी न्यूज पोर्टल के मुताबिक, साउथ डिकोटा राज्य के ब्लैक हिल्स में मूर्ति बनाने का आइडिया सबसे पहले 1923 में इतिहासकार डोएन रॉबिन्सन के दिमाग में आया. उनका मकसद था कि किसी तरह से टूरिस्ट साउथ डकोटा आएं. उन्होंने पहाड़ी पर ‘वेस्टर्न हीरोज’ के चेहरों को उकेरने का फैसला किया. उनके इस प्रोजेक्ट को संघीय सरकार से फंडिंग भी मिल गई.
रॉबिन्सन ने आर्किटेक्ट और मूर्तिकार गट्ज़न बॉर्गलम को ये स्मारक डिजाइन करने और तराशने के लिए बुलाया. बॉर्गलम स्मारक बनाने को तैयार हो गए लेकिन उन्होंने रॉबिन्सन को सलाह दी कि वेस्टर्न हीरोज की जगह अगर अमेरिका के राष्ट्रपतियों की मूर्तियां चट्टान पर उकेरी जाएं, तो इससे पूरे देश के लोग इससे आकर्षित होंगे. उनके मुताबिक, इससे अमेरिका के 150 साल के इतिहास की झलक भी दिखेगी. रॉबिन्सन इस पर तैयार हो गए और माउंट रश्मोर की मजबूत ग्रेनाइट की चट्टानों पर काम शुरू हो गया.
हालांकि, ये इतना आसान नहीं था. ये फैसला नेटिव अमेरिकन लोगों को पसंद नहीं आया. लकोटा नाम की एक मूल अमेरिकी जनजाति है. उसने इस प्रोजेक्ट का विरोध करना शुरू कर दिया. लकोटा लोग इस पहाड़ी को बहुत पवित्र मानते थे और इसे 'द सिक्स ग्रैंडफादर्स' कहते थे. 1868 में एक संधि के तहत माउंट रश्मोर और उसके आस-पास की जमीन को हमेशा के लिए लकोटा जनजाति के लोगों को दे दिया गया था लेकिन बाद में जब वहां सोना मिला तो अमेरिकी सरकार ने वो जमीन अपने कब्जे में ले ली. अब उसी सरकार के राष्ट्रपतियों के चेहरे पहाड़ पर बनाने के फैसले को लकोटा के लोगों ने जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा माना.

हालांकि, उनका विरोध सुनने वाला कोई नहीं था और प्रोजेक्ट आगे बढ़ गया. तय हुआ कि स्मारक पर जॉर्ज वॉशिंगटन, थॉमस जेफर्सन, अब्राहम लिंकन और थियोडोर रूजवेल्ट के चेहरे तराशे जाएंगे, क्योंकि देश की स्थापना, विकास और इसकी एकता में इन चारों नेताओं का बड़ा योगदान था. इसके बाद 4 अक्टूबर 1927 से पहाड़ पर चेहरों की तराशी का काम शुरू हुआ, जो 1941 में जाकर पूरा हुआ.
इन 4 राष्ट्रपतियों के चेहरेबोर्गलम ने माउंट रश्मोर पर जिन 4 राष्ट्रपतियों के चेहरे बनाए, उसके पीछे उनका मानना था कि ये लोग अमेरिकी इतिहास की सबसे अहम घटनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.
जॉर्ज वॉशिंगटन (1732–1799) अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे, जिन्होंने अमेरिकी क्रांतिकारी युद्ध का नेतृत्व किया और देश को ब्रिटेन से आजादी दिलाई थी. नए देश की नींव रखने के अलावा उन्होंने अमेरिका में लोकतंत्र की स्थापना की थी. इस वजह से बोर्गलम ने वॉशिंगटन का चेहरा सबसे बड़ा बनाया.
थॉमस जेफ़रसन (1743–1826) अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थे. उन्होंने 1803 में फ्रांस से लुइसियाना टेरिटरी खरीदी, जिससे देश का आकार दोगुना हो गया.
थियोडोर रूज़वेल्ट (1858–1919) अमेरिका के 26वें राष्ट्रपति थे. पनामा नहर बनवाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी, जिससे देश के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से आपस में जुड़ गए. बोर्गलम ने उन्हें अमेरिका के विकास और प्रगति का प्रतीक माना.
अब्राहम लिंकन (1809–1865) अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति थे, जिन्होंने गृहयुद्ध के समय देश को एकजुट रखा. संरक्षण और एकता का प्रतीक बताते हुए बोर्गलम ने उनके चेहरे को भी इस स्मारक में शामिल किया.

अमेरिका की आजादी के 150 साल होने पर ये स्मारक बना था. अब अमेरिका अपनी आजादी के 250वें साल में प्रवेश करने वाला है. ऐसे में रश्मोर की संरचना में बदलाव को लेकर बहस होने लगी है. पहले भी नए चेहरों के लिए कुछ राष्ट्रपतियों के नाम उछाले गए थे. इनमें फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट, जॉन एफ केनेडी और रोनाल्ड रीगन का नाम शामिल है. लेकिन माउंट रश्मोर से भावनात्मक तौर पर जुड़े लोग स्मारक में कोई बदलाव नहीं चाहते हैं. ये लोग इसे ‘कंप्लीट आर्टवर्क’ मानते हैं.
उनका कहना है कि जैसे लियोनार्दो द विंची की मशहूर पेंटिंग 'द लास्ट सपर' में कोई और चेहरा नहीं जोड़ा जा सकता, वैसे ही बॉर्गलम के माउंट रश्मोर में भी कोई चेहरा नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
माउंट रश्मोर में नया चेहरा जोड़ने की चर्चा बीते कई सालों से ठंडी पड़ गई थी, जब तक इसके लिए ट्रंप का नाम नहीं सुझाया गया था.
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?माउंट रश्मोर पर एक और चेहरा जोड़ने के सवाल पर एक्सपर्ट साफ मना करते हैं. द न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार, माउंट रश्मोर को अच्छी तरह से जानने वाले भूगर्भशास्त्रियों का कहना है कि पहाड़ी पर नया चेहरा जोड़ना तकरीबन असंभव है. उनके मुताबिक, बॉर्गलम के शुरुआती आइडिया को भी बार-बार चट्टानों की अंदरूनी कमजोरियों की वजह से ठुकरा दिया गया था. ऐसे में अब यहां किसी और नए चेहरे की नक्काशी करना संभव नहीं है.
माउंट रश्मोर की देख-रेख करने वाले नेशनल पार्क सर्विस ने वहां नए चेहरे नहीं बनाए जा सकने की दो वजहें बताई हैं. पहली कि ये एक पूरा हो चुका आर्टवर्क माना जाता है. दूसरी वहां नए चेहरे की कोई जगह ही नहीं बची है. उनका कहना है कि माउंट रश्मोर के उस हिस्से की पूरी तरह जांच की जा चुकी है और अब वहां और चेहरे बनाने लायक कोई सही जगह नहीं है.
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